Wednesday, March 15, 2017

खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी

ये सीढीयां किस जगह जाकर खत्म होंगी, मेने सीढीयों की तरफ बढते हुये पूछा.
किशन ने सीढीयों पर पेर रखते हुये कहा ...पता नही किशोर., क्योंकी इन्हे मेने नही तुमने बनाया है
ये कंही पहुचेंगी भी या नही .
कंही ना कंही ये जरूर पहुचेंगी.... जेसा मेने बताया यंहा टाइम और स्पेस कुछ अलग तरीके से काम करते है. यंहा से कनेक्शन अतिरिक्ष मे कंही भी जा सकते है.
ओह तो इसका मतलब यह सीढीयां हो सकता है हमे चांद पर पहुचा दे.
हां यह सभंव है पर उसकी संभावनायें नही के बराबर है. याद है मेने कहा था की इन सीढीयों को तुम्हारी चेतना ने बनाया है. इसलिये पूरी संभावना यह है की यह किसी एसी जगह हमे ले जायेगी जो तुम्हारे लिये महत्व की हो. क्या तुम इससे पहले चांद पर थे.
नही ...
तो मे शर्त लगाने को तैयार हू की ये सीढीयां तुम्हे चांद पर ले जाने से रही. मुझे लगता है की ये तुम्हारे अतीत या फिर हाल ही की किसी महत्वपूर्ण घटना की तरफ ले जायेगी.
दूर तक अंतहीन सीढीयों का ना खत्म होने वाला सिलसिला. मै और किशन साथ साथ सीढीयां पर चलने लगे.
कुछ देर बाद हमे कमरा दिखना बंद हो गया ...हम लगातार साथ साथ चलते रहे.
किसी भी अनहोनी का सामना करने के लिये अजीब सा रोंमांच मेरे अदंर भरने लगा. अचानक एक सीढी पर पेर रखते ही सीढीयां गायब हो गई. मैं धरती पर ठीक मेरी बरबाद हो चुकी कार के सामने था. सडक के किनारे अब भी वो उल्टी पडी है. चारों तरफ बिखरा कांच. सडक पर आते जाते ट्रेफिक का शोर. कार को  सडक के किनारे खिसका दिया गया था. सडक पर बिखरा कांच अब भी देखा जा सकता था. मेरी सारी संवेदानायें,  मेरा सारी व्यथा, गुस्सा बनकर मेरे अदंर उबाल लेने लगा की मेरी बेवकूफी की वजह से मे अब इस दुनिया मे नही हू.
मेने अपने अदंर एक गहरे खाली पन का अनुभव किया. दुख और गुस्से का बंवडर, मेरा सारा वजूद जेसे अब वो बंवडर था. मेने अपने अदंर एक तीव्र व्यथा का अनुभव किया. दुख और व्यथा की तीव्र वेदना से अपने को सरोवार...मुझे लगा की मे इसमे खो जाउगा.
मेरे दोस्त, मेर परिवार, एक एक करके मुझे सब याद आ रहे है ..व्यथा और दुख का सागर...महा सागर...लगा जेसे के इस बोझ के नीचे कुचल जाउगा...हे भगवान दुख और व्यथा का एसा चरम मेने पहले कभी महसूस नही किया लगा इससे कभी बाहर नही निकल पाउगा. मै खडा नही रह सका और वंही बैठ गया
मुझे इस दुख से बाहर निकालों
नही निकाल सकता ...तुम्हे खुद ही इससे बाहर निकलना होगा. तुम्हे खुद समझना होगा की इस गुजरे वक्त से अब तुम्हारा कोइ वास्ता नही है.
लगा जेसे मै  दुख और वेदना बंवडर हू और कुछ नही.
मेरे अदंर दुख का सागर उमड  रहा हो. मेरा मन रो रहा है. सब कुछ मेरे अदंर एसे उबाल मार रहा है जेसे बंद केतली मे उबलता पानी हो.  लगा जेसे दुख और व्यथा का अंतहीन सिससिला जो खत्म होने का नाम ही नही ले रहा हो.
मेने, इतनी वेदना अपनी सारी जिंदगी मे कभी महसूस नही की, ये मुझे क्या हो रहा है किशन ...इतना दर्द... मुझे इस से बाहर निकालो. अब और सहा नही जाता. कुछ करो किशन ....भगवान के लिये कुछ करो.
अपने अदंर की चेतना  मुझे बार बार बोल रही है इसे रोको...इसे रोको किशोर इससे बाहर निकालो
लगा जेसे एक विस्फोट हुआ हो और सब कुछ बह गया ... अब बचा है एक खाली पन अब व्यथा का थोडा  भी अंश नही बचा. अब मे पहले से बहुत अच्छा फील कर रहा हू.
मुझे क्या हुआ था? मुझे इतना खराब क्यों लगा.
अब केसा फील कर रहे हो
बहुत अच्छा
पर यह सब अभी अभी क्या हुआ था.
अब तुम्हारे पास वो पुराना शरीर नही है जो तुम्हारी भावनाओं को नियंत्रित करता. अब तो सब कुछ तुम्हारी चेतना को ही करना होता है.
इस कार को देखकर ..इससे जुडी सारी यांदें एक साथ तुम्हारे उपर हावी हो गई. और तुम भावनाओं में बह गये. उसे  नियंत्रित करने का कोइ उपाय नही था सिवाय इसके की तुम इस सच्चाइ को स्वीकर कर लेते की अब इस दुनिया से तुम्हरा कोइ वास्ता नही है ...जेसे ही तुम्हारी चेतना ने इसे स्वीकार किया ..सारा दुख और वेदना अपने आप तुरंत खत्म हो गई. 
किशन मेरा सारा  दुख और वेदना इस बात की थी की मेरी नादानी ने कितनी बडी घटना को अंजाम दे दिया था. मेरी गलती की सजा अब मेरे परिवार को झेलनी है.
किशोर मुझे मालुम है, मुझे तुम्हारी व्यथा का अहसाहस है.
मेने अपने को संभाला और किशन की ओर देखा. मै अपनों को देखने के लिये बेचेन हू. मै जानना चाहता हू की मेरे ना रहने पर अब वो सब केसे है.
अपने को संभालो और इस सच को एक बार फिर स्वीकार करो की ये दुनिया तुम्हारे बिना पहले भी चल रही थी और आगे भी चलती रहेगी. इस कार को देखकर तुम्हारा यह हाल हुआ था, परिवार को देखकर क्या तुम अपने को संभाल पाओगे.
हां मुझे मालुम है मेरे लिये ये सब कुछ अब खत्म हो चुका है. मे चाह कर भी अब इनके लिये कुछ भी नही कर सकता. फिर भी किशन दिल बेचेन है. दुखी है, मन अपनों को देखने को कर रहा है. कम से कम आखिर बार अपनों को देख सकू.
इससे क्या होगा
दिल को सकून मिलेगा
सकून किस बात का
की वो सब खुश है चेन से है ...
और अगर वो एसे ना हुये तो?
क्या तुम्हे पूरा विश्वास हे की तुम अपनी भावनाओं पर काबू कर पाओगे. एसा ना हो की तुम इस बार इस बंवडर कभी ना निकल पाओ
अब तुम्ही फेसला करो की तुम क्या करना चाहते हो. तुम्हारा मन का एक हिस्सा वापस धरती के अनुभव से जुडा है तुम्हे नही मालुम ये सब क्या है. तुम दो सच्चाइ मे बटे कभी बेहद गुस्से से तो कभी दुख से सरोबार तो कभी हिंसक हो जाने का मन करेगा.
अब तुम्हारे पास पुराना शरीर नही है जो तुम्हारी भावनाओं को नियंत्रित कर पाता, अब वो सब तुम्हारी चेतना को ही करना होता है.
जब जब  भौतिक दुनिया और तुम्हारी अध्यात्मिक चेतना के बीच इंटरेक्शन होगा,  इस तरह बंवडर तुम्हे घेरते रहेगे.
फिलहाल यह सब कुछ देर के लिये टल गया है. पर एसा कुछ देखते ही  हो सकता है इससे भी बुरे हलात से गुजरना पडे.
तो अब मै क्या करू
अपने को कुछ समय दो. जेसे जेसे तुम भौतिक और अध्यात्मिक चेतना के अंतर को समझते जाओगे. तुम्हारा अपनी भावनाओं पर नियंत्रण बेहतर होता जयेगा.
ओह तो जो लोग मृत्यु को स्वीकार नही कर पाते उनके साथ एसा ही अनियंत्रित भावनाओं का सेलाब आता है.
सच बोलू तो उससे भी बुरा.
सोचो अगर तुमने मृत्यु स्वीकार नही की होती तो तुम अपनों के पास वापस जाना चाहते. और अगर वो घर, परिवार वंहा ना हो , अगर वंहा नया घर, नये लोग आ जाये तो एसी हालत मे तुम्हारे सारे कनेक्शन टूट जायेगे. और तुम गुस्से और कंफ्यूसन का महा सागर बन जाओगे.
किशन एक बात मुझे अब तक समझ नही आई की अगर मेरा शरीर नही है तो मै भौतिक संसार को देख केसे पा रहा था क्योंकी भौतिक संसार को देखने के लिये तो आंखे चाहिये.
धरती पर तुम्हारी चेतना पर शरीर और उसकी इन्द्रीयों का अधिकार था उसके द्वारा उतपन्न शोर के कारण तुम्हारी चेतना कंही गहरी दब जाती थी. शरीर के द्वारा भेजे संदेशों के  विशलेषण करने मे ही तुम्हारी पूरी चेतना का समय और उर्जा लग जाता था.
इसीलिये धरती पर ध्यान का महत्व था की जिससे प्राणी अपनी चेतना से सहज संपर्क कर सके और जानवरों जेसी जिदंगी जीने से बच सके. अब जब की तुम्हारा भौतिक शरीर नही है इसलिये अब तुम्हारी चेतना सीधे उर्जा तंरगों से संपर्क कर पा रही है. जिसे पहचान कर तुम्हारी चेतना तुम्हारे लिये दृश्य का समायोजन करती है जिसे तुम समझ सको. इसलिये वो तुम्हे असली दृश्य लगते है. लगता है की तुम भौतिक जगत को असली मे देख रहे हो.
 भौतिक जगत मे मोजूद प्राणीयों से अगर मुझे संपर्क करना है तो मे केसे करू...
एसा संपर्क आसान नही होता. विशेष परिस्थितियों मे ही तुम एसा कर सकते हो. भौतिक जगत मे भी गिने चुने लोग ही  रूहों से संपर्क कर पाते है,  पर तुम अगर चाहो तो किसी से भी अपनी चेतना जोड सकते हो. तुम वो सब अनुभव कर सकते हो जो  वो प्राणी उस समय कर रहा होता है. पर एसा संपर्क एक तरफा होता है.
सब मेरे सिर के उपर से गया...मुझे कुछ समझ नही आया.
अरे यह संपर्क वेसा हे है जेसे तुम रेडियो सुनते हो, पर इसका मतलब यह नही के तुम उससे बात कर सकते हो. जिस व्यक्ति से तुम संपर्क कर रहे हो वो खुद अपनी चेतना को नही सुन पाता तो तुम्हारी चेतना को केसे सुन पायेगा. उसके लिये उसे विशेष प्रयास करने पडते है
कुछ लोग जो रूहों को देखने की बात करते हौ , उनका  क्या
ज्यादातर एसे किस्से झूठे और मनगंढत होते है और  कुछ मे वो हेलोनियेशन होता है. ...यानी जीते जागती आंखो का सपना. उसके वहम ने कुछ दृश्य बना दिये. कुछ दिखा दिया कुछ महसूस करा दिया. एसा अकसर अत्यधिक डर या बेसब्री से भी होता है... यह सब धीरे धीरे तुम सब समझ जाओगे.   

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