Sunday, September 16, 2012

'व्यक्तिवाद' का गोबर

दबंग जब चालाकी, मक्कारी, चापलूसी के गुण में गिनने लगे. जब किसी की प्रतिष्ठा इस बात से हो की उसका बैंक् बेंलेस क्या है...और वो किस गाडी मे सफर करता है. जब इस बात को अनदेखा कर दिया जाने लगे की कमाइ के साधन पवित्र और कानूनी है या फिर कुछ ओर. जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो समाज और देश को बरबादी से कोन रोक पायेगा..


पढा लिखा होने का मतलब जरूरी नही की आप देश और समाज के कानून के साथ हो समाज के लिये हो. आज ज्यादा पढा लिखा होने का मतलब चालाकी, मक्कारी, चापलूसी को अपने लिये इस्तेमाल करने कला को जानना है.. जो सीख गया वो तर गया और जो नही सीख सका वो लाइन मे सबसे पीछे खडा दिखाइ दे रहा है. अगर आप पैसा फेंकने को तैयार है तो कानून के जानकार आपको बतायेगे की केसे अपने फायदे के लिये उसका इस्तेमाल किया जा सकता है.


हम भले ही किसी जमाने मे समाजिक थे पर अब समय का पहिया उल्टा चल पडा है. जिस संस्कृति ने ‘हम’ का पाठ पढाया आज वो मै ...मै कर रही है.

समाज तेजी से अपने मूल्य बदल रहा है, सादगी कब हमारी कमजोरी बन गई हमे पता ही नही चला. राजनिती भी सफेद से गरूये रंग मे ढ्लने लगी. इन बदलते मूल्यों मे शब्द भी अपनी परिभाषा बदल रहे है. अन्ना जेसे लोग गंदगी से भरे तालाब मे लहर तो पैदा कर देते है पर गंदगी की सफाइ?.....

हमे समय ने इस हद तक सुविधा भोगी बना दिया है कि अपनी सुविधा के लिये हम कुछ भी कर गुजरते है. हमने हम की परिभाषा को इतना समित कर लिया है के पडोसी भी हमे दुश्मन नजर आता है. जब तक हमारी सुविधा बरकारार है हम कोइ चिंता नही.

जब धर्म

हाल ही में कुरान शरीफ और पेंगबंर के अपमान जनक विडियों पर दुनिया भर मे हो रही प्रक्रिया पर....


जब धर्म

धर्म ना होकर

एक भीड का जमावाडा बन जाये

जब डर के साये में

उसको याद करने की आदत बन जाये

किसी को नीचा दिखाना ही

खुद के उपर उठने का आसान तरीका नजर आये

जब खुद का सच ,

सच

और दूसरों का सच

झूठ नजर आये

जब अपने बेगुनाह

और दूसरे गुनाह्गार नजर आये

जब इंसानियत बचाने की नाम पर

इंसानों को ही खत्म किया जाये

जब ताकत और् रूतबे का नशा

उसको भी भुला दे

जिसके नाम पर उसे हासिल किया

तो कुछ एसा ही होता है

कोइ सिर फिरा कुछ कह देता

और बहुत सारे लोगों के सिर

फिर जाते है

Tuesday, September 11, 2012

हिंदी पखवाडा



हिंदी पखवाडा चल रहा है, अगले दिन 14 सिंतंबर को हिंदी दिवस मनाया जायेगा ... सोचा की हम भी कुछ लिखे और आप सब तक अपनी बात पहुंचायें.
अब देखो...आज हिंदी को कितना भी बुरा भला कह दे, है तो हमारी अपनी भाषा. यह हमारे देश में आज भी सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है.  पर  आज यह गरीबों, कमजोरों और पिछडों की भाषा बनकर रह गई है. 
बुरा लगा क्या सुनकर !
ज्ञानियों की माने तो किसी भी भाषा की ताकत उसका ज्ञान होता है. जरूरी नहीं की वो उनका अपना हो. पर ये जरूरी है की वो सब उनकी अपनी भाषा में हो जिसे उसके लोग पढ सके और समझ सके.... 
इधर हमारे विश्व विद्यालय लोगों को डिग्रीया बांटते रहे. बिना इस बात की चिंता किये की जो ज्ञान वो विदेशी भाषा में उपलब्ध करा रहे है वो उनकी अपनी भाषा में भी उपलब्ध करा सकते थे. इसे किसी भी तरह असंभव काम नहीं कहा जा सकता..बस हमारे अदंर इच्छा शक्ति नहीं थी. अगर एक प्रोफेसर अपने विषय को अपनी भाषा में ना समझा सके तो लानत है एसी  प्रोफेसरी पर. 
सच तो यह है कि पढने वाले को नोकरी के लिये डिग्री चाहिये थी और पढाने वालों को अपनी तन्खाह से मतलब था. अब अगर ऐसा है तो फिर हिंदी हो या कोई ओर भाषा  ,,, क्या फर्क पडता है. क्योंकी ये दोनों काम तो हो ही रहे है.
अब असली और पते की बात ....
आज भाषा पेट से जुडी है. अंग्रेजी हम भारतीयों की जरूरत है क्योंकी यह हमे रोटी दे रही है. कल अगर जर्मन या फिर चाइनिस वो काम करेगी तो हम वो सीख लेगे... आज हम गलोबल युग में है. जो बेहतर होगा वो ही टिकेगा...जिसके पास ताकत होगी वही रहेगा...बाकी सब इतिहास की गर्त में होगा....इसलिये जागो और ओछी भाषाई राजनिती से उपर उठ कर सोचो.
भला हो बजारवाद का, कि जिसके कारण दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनीया अपना माल बेचने के लिये हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का सहारा ले रही है.

आइडिया..:-) 
इस देश को अपनी भाषा चाहिये. एक एसी भाषा जो कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और गुजरात से लेकर नागालेंड तक सबकी अपनी हो. इसके लिये क्यों ना हम उस भाषा की बात करे जो ना हिंदी है ना इगलिश ना उर्दू है ना मराठी और ना ही वो तमिल है. एक जन सामान्य की भाषा, उसमे सभी भाषाओं के प्रचलित शब्द हों जिससे किसी को यह शिकायत ना रहे कि उसे अनदेखा कर दिया. 
एक बात ओर पूरे भारत मे लिखने की एक ही लिपी का इस्तेमाल हो. अगर मानक लिपी मे अन्य भाषा का कोई विशेष स्वर वाला अक्षर ना हो तो उसे उसमे जोडा जा सकता है. इस मानकीकरण  से पूरे भारत मे एक जेसा लिखा जा सकेगा. अभी तो तमिल नाडू में तमिल में तो केरल में मलियाली मे तो बंगाल में बँगला, आन्ध्रा में तेलगू मे लिखा होता है.   अगर किसी एक लिपी का इस्तेमाल हो, तो कम से कम उसे हर भारतीय पढ तो सकता है. अभी तो हाल यह है की दूसरे राज्यों के लोग बसों पर लिखी जगह का नाम तक नहीं पढ पाते. 
एक लिपी होने से दूसरे राज्यों की भाषा को सीख़ना भी  आसान हो जायेगा. जब अंग्रेजी  खुले दिल से दूसरे भाषा से शब्दों को आयात कर अपने को दिनों दिन विकिसित करती जा रही है तो फिर हम अपनी भाषा के साथ एसा क्यों नही कर सकते.
अगर आपको लगता है की हिंदी को इस देश की प्रथम भाषा होनी चाहिये तो राजनिती से उपर उठकर पहले कम से कम इतना भर कर ले की देवनागरी लिपी को सभी जगह लिखने के लिये इस्तेमाल करे. अगर जरूरी हो तो इसमे नये अक्षर जोडे जा सकते है. अरे...इसे ही तो भाषा का विकास कहते है. या उसे भी हम राजनीती में उलझा देना चाहते है,

हमें बाते कम और काम ज्यादा करना है. नहीं तो हम और आप हिंदी और अंग्रेजी करते रह जायेगे....और कोई  हमारे वतन में ही हमे अजनबी बना देगा.   
जो लाखों करोडों किताबे और इंटर नेट पर ज्ञान है उस सबका अनुवाद हिंदी मे करना है. जिस दिन एसा कर पायेगे ...हिंदी इस देश की क्या वो विश्व भाषा बन जायेगी. अगर सच में आप 150 करोड़ हो तो उसे काम से साबित करो.  कुछ लोग इस काम मे लगे हुये है...आप चाहो तो आप भी उनके साथ मिल जाओ...वरना शोर ना मचाओ. ना ही राज नेता की तरह बाते करो. जेसे अपुन आज कर रहा है...
 काम करो... . अगर आप भाषाई राजनिती से उपर नही उठोगे तो नीचे जाओगे...अरे नीचे जाओगे क्या ...आपकी दुआ से नीचे जा रहे है.
वेसे हम बेशर्म लोग है जी. कितना भी बुरा भला कहा लो हम वो काम नहीं करेगे जो दिल कहता है, हम वो काम करेगे जो हमसे डंडे की चोट पर कराया जाता है. या फिर पैसा फेंक कर हमसे कोई भी काम करा लो....यार कुछ तो बोलो...भगवान भला करे आपका