Wednesday, March 15, 2017

खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे


सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड- 16  पुनर्जन्म केसे

मै पृथ्वी पर मन चाहा शरीर केसे प्राप्त करूगा , मुझे केसे पता चलेगा की जिस घर मे पैदा होना चाहता हू वो अमीर है गरीब. वो किस धर्म का है. जिस शरीर को मे धारण करूगा वो नर है या मादा..किशन एसे बहुत से सवाल है जिस का जबाब मे जानना चाहता हू.
किशोर कोइ पुनर्जन्म क्यों लेना चाहेगा,
आप बताइये !
इसकी बहुत सारी वजह हो सकती है जेसे,
अधूरी वासनाओं को पूरा करना चाहता है
चोरी, हत्या, ठगी, धोखा इनके बारे मे सीख अधूरी हो
 नये अनुभव के लिये  
इश्वरीय संदेश देने के लिये
यदि किसी व्यक्ति को धोखे से, कपट से या अन्य किसी प्रकार की यातना देकर मार दिया जाता है तो बदले की भावना से वशीभूत होकर उसकी चेतना पुनर्जन्म अवश्य लेना चाहेगी। छल कपट का यह खेल चलता रहता है जब तक की उसकी जीवात्मा यह नही समझ जाती की उसका विकास उन सब को माफ करने मे है और इस सब को भूलाकर आगे बढने मे है.
पारिवारिक रिश्तों की समस्या भी पुनर्जन्म का एक बढा कारण होती है. इसी तरह अगर इसी दोस्त ने धोखा दिय तो वो इस बार उसी धोखा देने का सबक देगा. इस तरह उसकी योनी , समाज, धर्म तय हो जाते है.
मजेदार बात यह है की नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत ही कम लोगो को रह पाती है। वो भी कुछ लोगो बचपन मे ही उसे याद कर पाते है और जेसे जेसे उअमर बढती है वो उसे भूल जाते है. बस एक भावना रह जाती है. और जब भी उससे मिलती जुलता घटना होती है हम बैचेन हो जाते है.
किशन, एक तरह से अच्छा ही होता है वरना पिछले जन्म की यादों के साथ दूसरा जन्म जीना बहुत लोगों के लिये किसी नर्क के समान ही होता.
अब तुम्हारा भी समय हो गया है की तुम धरती पर दुबारा जन्म लो
मुझे तो मलुम ही नही की इस बार मुझे क्या करना है,
तुम्हे मालुम करने की जरूरत भी नही. तुम्हे तो बस हर पल निर्णय लेना है और कर्म करना है. वो सब तुम्हारे पिछले अनुभव का ही नतीजा होंगे. मेने कहा ना शिक्षक भी तुम हो और शिष्य भी तुम हो.    वेसे किशोरतुम्हारी अंतरआत्मा को मालुम है , अगर गंभीरता से उस पर मनन करोगे तो समझ जाओगे. 
 दूसरा जन्म इतनी जल्दी, अभी तो मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना और समझना है ?
मेन कहा ना यंहा समय अलग तरीके से काम करता है. मुझे जो समझना था वो समझा चुका हू. क्या तुम्हे इस बात का जरा भी अंदाज है की तुम्हारी धरती पर मृत्यु को कितना समय हो गया है
यही कोइ कुछ वर्ष  ...
पूरी एक शताबदी गुजर चुकी है
विश्वास नही होता
यानी अगर मे अभी जन्म लू तो वंहा 2116 चल रहा होगा
सही कहा
वंहा तो सब बदल चुका होगा मै उत्सुक हू यह जानने के लिये इन 100 सालों मे हम इंसानों ने क्या उन्नति की है
तुम तो इश्वर से मिलने को उत्सुक थे ...किशन ने हंसते हुये कहा
आपने सही कहा किशन अभी मेरा इश्वर से मिलने का समय नही हुआ है. वेसे भी यह दरवाजा तो मेरा ही बनाया हुआ है. उनकी प्रेरणा तो मेरे साथ हर समय है.
तो फिर देर किस बात की किशोर, आगे बढो और सामने दिख रहे दरवाजे को खोलो, वंहा तुम्हे इश्वर के बारे मे फेली बहुत सी भ्रांतियों को दूर करना है.तुम्हे वंहा बहुत बढे काम करने है. यंहा जो कुछ भी सीखा है देखते है उसे केसे तुम अपने नये जीवन मे उपयोग करते हुये अपना और लोगों का जीवन बेहतर बनाते हो.
पर उसके दूसरी तरफ तो इश्वर है , मेरे चेहरे की उलझन देखकर किशन मुस्करा दिया
हां भई हां वंहा इश्वर आपका अपनी पूरी श्रृष्टी के साथ इंतिजार कर रहा है.
इस बार किशन के  चेहरे की गूढ मुस्कान है ... जेसे वो ओर कोइ नही मेरे कृष्ण हो , अचानक उनकी बांसुरी की धुन मेरी सारी चेतना पर छाने लगी ... मेरा इश्वर मेरे सामने था...दरवाजा खोलते ही एक तेज प्रकाश से मेरा सामना हुआ .... मेरी चेतना उसमे वीलीन होती चली गई.


खंण्ड- 15 पुनर्जन्म

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड- 15 पुनर्जन्म

 किशोर जेसे तुम्हे पता है की पेड पोधों में भी जीवन होता है. उनमे भी भावनाये होती है उन्हे भी दर्द होता है. वो भी खुश होते है. उन्हे कोई भी आसानी से काट देता है, उखाड देता है. जानवर उनकी पत्तीयों को खा जाते है. हर मौसम का सामना एक ही जगह रह कर करते है. जब जंगल मे आग लगती है और सब जानवर वंहा से भाग जाते है वो उसी जगह खडे रहने को मजबूर होते है.
किशन ... उसके बाबजूद उन्होने अपने को ज्यादा नही बदला है.
किशोर, इनमे से ज्यादतर को पता ही नही होता की इसके परे भी बहुत सी संभावनाये है. वो बार बार पेड का ही जीवन चुनते है. 
हां किशन... उसके बाबजूद करोडो सालों से पेड पौधे है.
यह सच है की उनके पास जानवरों की तरह विकिसित इन्द्रीयां नही है उसके वाबजूद वो जानते है की कौन उनके दोस्त है और कोन दुश्मन. वो अपने सीमित दायरे मे ही अपने विकास की संभावनाओ को खोजते रहे. अपने को विकिसित करते  रहे.
किशोर, कुछ ही होंगे जिन्होने अपनी चेतना मे क़्वाटंम जम्प लिया होगा और प्राणी जगत का हिस्सा बन गये होंगे.  
पृथ्वी पर जीवन को समय ने बांध रखा है. पर चेतना समय के बंधन से आजाद है.
किशोर अगर तुम्हे मौका मिले तो तुम कोन सा पेड बनना  चाहोगे.
मै और पेड केसी बातें कर रहे हो, वो भी कोइ जीवन है. एक जगह खडे खडे सारा जीवन निकाल दो. मै क्या कोइ भी मानवीय चेतना एसा जीवन नही चाहेगी.
नही एसा नही है किशोर, एसी बहुत सी चेतानये जो निम्न से निम्न होती गई. जड हो गई, विलीन हो गई या फिर किसी ओर चेतना मे समा गई.  
तुम्हारी कल्पना की दुनिया और भौतिक दुनिया मे एक ही अतंर है. भौतिक जगत मे चेतनाये पदार्थ के द्वारा एक दूसरे पर प्रभाव डालती है. भौतिक जगत मे चेतना पदार्थ से जुड जाती है. जब तक वो पदार्थ खत्म ना हो जाये उस से वो अलग नही हो पाती. वो उस पदार्थ का गुण धर्म बन जाती  है. जब भी दो पदार्थों का आपस मे जुडते है तो एक नये पदार्थ की रचना करते है. उसका नया भौतिक लक्षण होता है. पर जेसे ही वो अलग होते है वो अपनी पूर्व स्थति मे आ जाते है.
किशन धरती पर हमारा शरीर सामूहिक चेतना का प्रणाम होता है.  सामूहिक चेतना मे शरीर  का हर सेल, हर अंग की भूमिका होती है. वो एक दूसरे से संवाद स्थापित कर सामूहिक चेतना का निर्माण करते है. जन्म लेने के बाद एसे शरीर के पास अपना कोइ अनुभव नही होता. समय के साथ वो अपने माता पिता और समाज से सीखता जाता है. वो अपने माता पिता की भाषा सीखता है. जीने के गुर सीखता है, समाज और गुरू जनों से जीने के तौर  तरीक सीखता है वो अपने आस पास के पर्यावरण से सीखता है. उसका चेतन मन सभी अनुभवों को दर्ज  करता रहता है, जो अनुभव उसके जीवन के लिये खतरा होते है  उसे उसका अवचेतन मन एक टेम्पलेट की तरह दर्ज करता है जिससे वो अगली बार खतरे को पहचान कर अपना बचाव कर सके.  
पर यह सब तो शरीर सीख रहा है वेसे ही जेसे किसी रोबोट को प्रोग्राम किया जा रहा हो, एसे मे इसे पुनर्जन्म केसे कह सकते है.
सही कहा किशोर इसे पुनर्जन्म नही कह सकते.
शरीर का पुनर्जन्म केसे हो सकता है उसका तो मात्र जन्म होता है.
किशन आप मुझे फिर से कंन्फयूस कर रहे हो.
तो फिर पुनर्जन्म, क्या है. और वो कब और केसे होता है.  पुनर्जन्म को लेकर मेरे मन मे शुरू से ही जिज्ञासा रही है
किशोर अगर शरीर चाहे तो रोबोट की तरह शरीर अपनी सिमित चेतना के आधार पर अपना जीवन गुजार सकता है  जरूरी नही की हर शरीर पुनर्जन्म का कारण बने. समाज से वो धीरे धीरे सब कुछ सीख जाता है. सच तो यह है की 99% शरीर मे पुनर्जन्म जेसा कुछ नही होता है. वो  जन्म लेते है और मृत्यु के बाद उनकी चेताना भी विलीन हो जाती है. खो जाती है.
समझा एसे शरीरों के उपर चर्वाक के सिद्धांत लागू होता है की जीवन के खत्म होते ही सब कुछ समाप्त हो जाता है. कुछ नही बचता. मिट्टी का शरीर मिट्टी मे मिल जाता है. चेतना शरीर के साथ ही समाप्त हो जाती है.
पर कुछ शरीर अजर अमर जीवत्मा को धारण करते है वो अकसर अपने आस पास के लोगों से हटकर होते है. .कुछ बातों के लिये जुनूनी होते है. लीक से हटकर चलते है. उनके फेसले उनके कर्म बाकी लोगों के लिये अचंभा होते है. उनको देखकर ही लगता है की जेसे वो कुछ करने के लिये ही पैदा हुये है. वो समाज को नई सीख दे जाते है.
किशन यह सब तो आप अच्छी जीवत्माओं के बारे मे बता रहे हो , पर उनका क्या जिनके फेसले ह्जारो के कत्ले आम का कारण बनते है. हर कोइ जो भी करता है अपनी समझ के अनुसार सही कर रहा होता है. ..बाद मे आने वाले उसकी समिक्षा अच्छे और बुरे की तरह करते है.
यंहा तक की तुम लोगो ने कृष्ण के कार्यों को भी एसी ही नजरो से देखा है कुछ लोग उन्हे बुरा तो कुछ लोग अच्छा समझते थे. 
चेतनाये एक दूसरे से जुड सकती है. एक दूसरे से अलग हो सकती है.  एक दूसरे पर हावी हो सकती है.
किशन इसका मतलब यह हुआ की जब मे धरती पर फिर से जन्म लेना चाहूगा तो जिस शरीर के साथ भी अपनी चेतना जोडूगा तो,उसने पहले सी उसकी अपनी चेतना भी होगी.
सही कहा ...पर वो चेतना बहुत ही निम्न  स्तर की होती है पूरी तरह शरीर केन्द्रित रोबोट की तरह निशिचित क्रम मे काम करने के लिये.  हां एसे शरीर के लिये असल जीवात्मा प्रेरणा का काम करती है. अगर तुम्हारी चेतना तीव्र हुई तो उसमे मोजूद चेतना तुम्हारा अनुसरण करेगी, इसलिये अधिंकांश चेतनाये नव जात शरीर के पसंद करती है क्योकी वो उस गीली मिट्टी की तरह होती है जिसे कुम्हार मन चाहा रूप दे पाता है.
एसे शरीर बहुत तेजी से सीखते है. उनका व्यवाहर बाके सब से लग होता है. उन्हे देखक्र लगता है जेसे वो किसी ओर दुनिया से हों. अपनी उअमर से आगे की बाते करते है.   
किसी बडे की चेतना पर हावी होने पर उसमे पहले से मोजूद चेतना जो समय के साथ मजबूत हो जाती है उसके साथ तालमेल नही कर पाती और अंतर विरोध होता है ...उसे कई बार प्रेत बधा माना जाता है.

खंण्ड- 14 जीवात्मा

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड- 14 जीवात्मा

भले ही चेतना को पूरी आजादी है की वो जन्म कंहा और केसे लेना चाह्ती है. उसके बावजूद अगले जन्म का पिछले अनुभव के आधार पर ही निर्णय हो जाता है. पिछले अनुभव आगे होने वाले अनुभवों का आधार बनते है. अकसर चेतन जिस जन्म मे पहले होती है उसी जन्म को दुबारा दोहराती है जब तक की उसकी चेतना मे कोइ बडा बदलाव ना हो गया हो.
इसे ठीक से समझाओ
जेसे जब तुम सडक  पर गाडी चला रहे थे तो सडक की दिशा मे ही क्यों गाडी चला रहे थे. तुम अपनी मर्जी से दांये बाये कंही भी जा सकते थे.
अरे केसे जा सकता था वंहा सडक ही नही थी
क्यों नही बीच मे कई  मोड आये थे, तुम उन मोडों पर चले जाते.
सडक पर चलने का निर्णय कोन कर रहा था. तुम्हे लगा की सडक पर चलना ही सबसे सही काम है तो तुमने वो किया कुछ लोगों को कुछ ओर सही लग सकता है वो हो सकता है सडक पर ना चल कर किसी ओर कच्चे रस्ते पर चले जाते.
वो इसलिये नही मुडा क्योंकी मुझे भोपाल जाना था
किसी ओर रास्ते से भी भोपाल जा  सकते थे....
मुझे यही रास्ता सबसे सही लगा इसलिये मेने इसे चुना.
ओर भोपाल ही क्यों
ओह अब समझा मेरी चेतना ने पहले ही तय कर लिया की मुहे क्या अनुभव लेना है उस हिसाब से मेरा रास्ता तय हो गया है, मुझे वही रास्ता दिखाई देता है, मुझे  और रास्ते या विकल्प समझ ही नही आते है.
बहुत सी संभावनाये हो सकती है जिस मे से एक का चुनाव तुमने किया. हर पल आप के सामने असिमित संभावनाये होती है जिस मे आप और आपका शरीर कुछ का चुनाव उस वक्त रहा होता है.  
अगर एसा है किशन,  तो जब मे धरती पर था मुझे क्यों नही पता की मेरी चेतना आखिर क्या अनुभव करना चाहती है.
क्योंकी तुमने कभी उसे सुनने और समझने की कोशिश ही नही की. किशोर...शरीर मे रहते हुये तुम्हारी चेतना ज्यादातर समय शरारिक इन्द्रीयों के अनुभव तक ही सिमित होती है, जिसकी वजह से तुम्हारे हर कर्म की वजह डर या फिर सुख होता है.
बहुत ही कम लोग एसे होते है जो अंत:प्रेरणा से उपर उठ कर सोच पाते है. वरना ज्यादतर लोगों मे जीवात्मा मात्र शरीर का अनुसरण भर करती है. 
तुम्हारे अवचेतन को शांत करने के बाद ही तुम अपनी जीवात्मा की सुन सकते हो उस तक पहुच सकते हो. जब भी एसा होता है तो लोगों को लगता है की उन्हे  इश्वर मिल गया हो
शरीर के रहते यह असान नही होता  क्योंकी जागृत शरीर हमेशा इन्द्रीयों से से संचालित होता है तो मन उससे अलग केसे रह सकता है. मन और शरीर 99% कार्य वही करता है जो इन्द्रीयों चाहती है.
अवचेतन मे इस जन्म के और पिछले जन्मों के कर्म संचित है यंही से सारी शारारिक भावनाये और इच्छाये जागृत होती है जिनके आधार पर हमारा शरीर और मन प्रतिक्रिया देता है. तुम्हारा अवचेतन जानता है इसलिये जब भी चुनाव करना होता है तो तुम वही सब चुनाव करते हो जो तुम्हारी नियती मे है.
जेस तुम्हे लाख सिखया गया होगा की झूठ बोलना पाप है, क्रोध करना अच्छी बात नही है पर अकसर तुम झूठ बोलते हो और अपने से कमजोर पर क्रोध करते हो, क्योंकी पिछले अनुभव तुम्हे बताते है की उससे सब काम आसान हो जाता है.
इसके बाबजूद तुम ने बहुत से लोगों को देखा होगा की त्म्हारी सजेसी प्रस्थति मे उन्होने झूठ का सहारा नही लिया और ना ही क्रोध किया...दोनों मे कोन सही है ?
एक सी प्रस्थति मे लोग अलग अलग चुनाव करते है क्योंकी उनके अलग अलग मकसद होते है.  उनकी अपनी अपनी सुख और दुख की परिभाषाये होती है,  दोस्त होते है, उनके शोक अलग अलग होते है.
अगर तुम्हे अपनी जीवात्मा के साथ सीधा संवाद करना है तो तुम्हे अपने अवचेतन को शांत करना सीखना होगा. धरती पर इसे ही ध्यान या मेडीटेशन भी कहते है.   

खंण्ड- 13 दर्द क्यों

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड- 13 दर्द क्यों
किशोर जब तुम्हे मे इस कमरे मे अकेला छोडकर गया तो तुम बहुत उत्साहित थे. तुम्हे लगा था की तुम अपनी कल्पनाओं का संसार बनाकर उसमे अनंत काल तक मजे लेते रहोगे. पर कुछ ही समय बाद तुम इस सब से उकता गये. तुम्हे लगने लगा जेसे इस सब मे तुम अपना समय बरबाद कर रहा हो, ओर तुमने मुझे फिर से याद किया.
आपने सही कहा किशन जब आप कमरे को छोडकर गये थे तो मुझे लगा की मै अपनी कल्पना का संसार बनाउगा और उसमे अनंत काल तक सुखी रहूगा. मै संगीतकार बना मेने बेहद खूबसूरत संगीत की रचना की. मे बेहतरीन डांसर बना. मेन अपनी पसंद का महल बनाया. मै वासना के सागर में डूबा. मै हर पल उन सभी सुखों को भोगा जिसकी कामना मेने कभी धरती पर रहते हुये की थी. मुझे समझ आ गया की लगातार सुख से कोइ भी कुछ समय बाद उकता जाता है.
मे अब समझ गया हू  की मे मात्र अपने को ही बार बार दोहरा था. जेसे एक ही फिल्म को बार बार देख रहा हू. अब मे इस सब से उब गया हू. उसमे जो भी नयापन था वो खत्म हो गया. अब सब बेमकसद लगने लगा है तो मेने तुम्हे याद किया. ...
किशोर तुम्हे अपनी कलप्नाओं का संसार बेमकसद इसलिये लगा क्योंकी वंहा कोइ स्पर्धा नही थी, कोई नई चुनौती नही थी. तुम उससे कुछ सीख नही रहे थे उससे तुम्हारे अनुभव मे कोइ विस्तार नही हो रहा था. जब तक तुम्हे लगा की तुम कुछ नया कर रहे हो तब तक ही तुम्हे वो सब करने मे मजा आया.
सीखने के लिये तुम्हे दूसरी चेतनाओं के साथ जरूरी है, जिससे तुम्हारा सामना नई चुनौतियों से हो, तुम्हे जीने के लिये दूसरों से स्पर्धा करनी पडे. तभी आप नये अनुभव ले सकते है. 
ओह अब समझा इसीलिये हम बार बार धरती पर जन्म लेते है 
आप सही कह रहे है..किशन मे गलत था. कल्पनाओं का संसार सुखकर जरूर है पर वो खुद सुख का कारण कभी नही हो सकता. क्योंकी सुख का आभास तो दुख के बाद ही हो सकता है .
अब तुम समझे ना की सुख और दुख प्राकृति के चलाये रखने और उसके विकास का मुख्य कारक है. जीवन का चलाने और उसे बनाये रखने मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है. अगर तुम्हे भूख नही लगेगी तो तुम भोजन नही खोजोगे. अगर तुम्हे किसी बात से दुख न होगा तो तुम सुख का यतन भी नही करना चाहोगे. सुख और दुख का अहसाहस तुम्हे अपनी क्षमताओं को विकिसित करने कुछ नया करने के लिये प्रोत्साहित करता है. 
सही कहा ना मेने
हां कुछ हद तक सही कहा है तुमने, क्योंकी एसा भी होता है की मेने बहुत बार दुख को गले लगाया है जान बूझकर खतरे से खेला हू
पर किशोर वो सब तुमने अपने और अपनों के बेहतर सुख के लिये ही किया होगा. एसा कभी नही हुआ होगा की तुम ने दुख पाने के लिये ही दुख को गले लगाया हो... अगर एसा कोइ करता है तो सभी उसे बिमार मानसिकता का कहते है.
किशन मेने धरती पर कुछ लोगों को घोर तपस्या करते देखा है, अजीब सनक पन और हठ होता था उनकी जिदंगी में, कोइ एक टांग पर वर्षों से खडा  है तो कोइ तपती दुपहरी मे अपने चारों ओर आग जला रखी है. तो किसी ने हाड जमा देवने वाली सर्दी मे  पानी मे एसे खडा है जेसे वो सब अति सुखकर हो. यह जिद्द अखिर वो क्यों करते है और इससे उन्हे क्या हासिल होने वाला है.  
कुछ तो मात्र पेट के लिये करते है वो एसे करतब दिखाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते है. बाकी को लगता है की कष्ट ही सब पापों की जड है. अगर कष्ट पर विजय पाली तो उन्हे मोक्ष मिल जायेगा. 
क्या वो एसा करके इश्वर को चुनौती नही देते ..की देखो मुझे कुछ नही हो रहा है. मेने तुम्हारे हर कष्ट पर विजय पाली है. ..पर यह तो अहंकार हुआ ना...मेरी समझ से अहंकार तो उससे भी बुरी बात है 
किशन मेरी बातों को सुनकर मुसकरा दिया खुद ही सवाल करते हो और खुद ही जबाब भी देते हो...मुझ से क्या चाहते हो...
आपकी सहमती...मे भी मुस्कराये बिना नही रहा... अगर मेने  गलत कह रहा हू तो आप मुझे टोक सकते हो 
किशोर गलत और सही जेसा कुछ नही होता. यह तो जो आप उस कर्म से प्राप्त करना चाहते हो उस पर निर्भर करता है, अगर जो चाहते हो वो प्राप्त हो गया तो तुम्हारा रास्ता सही था और अगर नही मिला तो गलत
मै समझा नही किशन, जेसे  धन तो चुराकर भी प्राप्त किया जा सकता है और मेहनत से भी प्राप्त किया जा सकता, पर दोनों सही केसे हो सकते है जब  तक मात्र धन प्राप्त करने की बात है दोनों सही है. पर जब उससे थोडा आगे सोचोगे तो तुम्हे समझ आ जायेगा की अब क्या सही है और क्या गलत.  
ओह अब समझा 
क्या समझे 
यही की  चोरी से प्राप्त धन,  घर और समाज को ज्यादा समय तक सुख नही दे सकता ना ही एसे कर्म किसी समाज का लम्बे समय तक बने  रहने की गारंटी है. अगर हम घर और समाज की सोचोगे तो एसा कर्म कभी नही करेगे 
हां किशन कभी कभी  दुख और कष्ट देने वाला काम  अपराधबोध के कारण भी  कर बैठते है.
एक तरफ दर्द, दुख और भय होता है तो दूसरी तरफ आशा, सुख, और आनंद. इन दोनों के बीच रहते हुये चेतना नये अनुभव लेते हुये अपना विस्तार करती है....किशोर, सुख और दुख हमे नये अनुभव देता है. हमे सोचने पर मजबूर कर देता है की किस तरह हम अधिक से अधिक सुखी हो आनंदित हो. हम किस तरह का यतन करे की हमें अधिक समय तक सुख और आनंद की प्राप्ती हो. अगर तुम्हे किसी बात से डर नही होगा तो तुम उस का निदान करने का यतन भी नही करोगे.
तुम्हे  सही कर्म करते हुये अपने को और अपनों को जिंदा रखना है उन्हे सुखी और आनंदित करना है. किसी के अपने मात्र खुद का शरीर होता है तो किसी के अपने उसके बच्चे होते है तो किसी के अपने उसके जात भाई  होते है तो किसे के अपने पूरा समाज होता है तो किसी का अपना देश तो किसी के लिये वासुदेव कुटुम्ब होता है. कोइ मात्र अपने धर्म के लिये जिंदा है तो किसी के लिये सभी धर्मों से उपर सारी मानवता और प्राकृति है.
किशोर एक बात अच्छी तरह समझ लो की जेसे जेसे अपनों का दायरा बढाते जाओगे, तुम इश्वरीय चेतना का असीम विस्तार अपने अदंर पाओगे.
सुख और दुख को देखने और समझने का सब का नजरिया अलग अलग होता है. किसी को पानी मे रहकर मजा आया तो कोइ हवा मे सांस लेना चाहता था, कोइ धरती पर चलना चाहता था उस पर राज करना चाहता था तो कोइ आसमान मे उडना चाहता था. उसी के हिसाब से उसकी चेतना ने उस मे बदलाव किये. समय के साथ उसने अपने को बदला और इस काबिल बनाया की वो यह सब कर सके.
धरती पर सब एक दूसरे पर निर्भर है. उन्हे जीने के लिये किसी को मारना होता है. तो किसी को बचाना है. किसी को बिगाडना है तो किसी को संवारना है. यह सब भी उनकी अपनी अपनी समझ और जरूरत के हिसाब से होता है. एसा कभी नही हो सकता की कोइ स्थति सभी के लिये एक समान हो . एक के लिये जो सही है दूसरे के लिये वो गलत हो सकती है, इसी से आपस मे स्पर्धा होगी और जो बेहतर होगा वही रहेगा और दूसरे को खत्म होना होगा. हर किसी को खुद को बेहतर साबित करना होता है.
किशन, इस स्पर्धा, माया के खेल में आखिर किस का भला हो रहा है, कोन है जो इस सब के अनुभव का लाभ ले रहा है.
हम खुद किशोर, वो सब जो इस का हिस्सा है. यंहा कर्ता और कारक खुद ही है. इस तरह उसकी चेतना जन्म और मृत्यु के चक्र से गुजरती हुई निरंतर विकास करती रहती है.


खंड -12 नर्क का अहसाहस

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंड -12 नर्क का अहसाहस

हमने खुद  को  घने जंगल के बीच पाया. घने पेडों से घिरे छोटे से मैदान मे एक हिरणों का झुंड दिखाई दे रहा है. पूर्णिमा के चांद की रोशनी उस छोटे  से मैदान को रोशन कर रही है. रह रह कर आती जंगली जानवरों की  आवाजें.
किशन के कहे अनुसार मेने एक हिरण  के साथ अपनी चेतना को जोड लिया.  अब जो कुछ हिरण महसूस कर रहा था वही सब मै भी महसूस कर रहा था. हल्की सी आहट पर मै कांप उठता. मेरे  नथुने चिर परिचित गंध सूघने की कोशिश करते रहते. हवा मे फेली अनेक गंधे. कुछ गंधे तो जानी  पहचानी लगी और कुछ मेरे लिये पूरी तरह अनजानी. गंधों का एसा संसार मेरे लिये नया था. कुछ बहुत मोहक थी तो कुछ बदबू से भरी. मै इन गंधों को नही समझ पा रहा हू.
हिरण की चेतना से जुडने से पहले जंगल जितना शांत ल्ग रहा था अब नही रहा. ध्वनीयों का एसा शोर लगा जेसे किसी मछली बजार मे हू. मै समझ गया की यह हिरण को जगंल मे जिंदा रखने का महत्व पूर्ण आधार थी.
मुझे मालुम है कुछ गंध और ध्वनी उसे खतरे का अहसाहस करा सकती थी. एसी गंध जिसका  पता चलते ही हिरण को भाग खडा होना था. सब हिरण एक दूसरे को खतरे का संकेत देने के लिये हरदम तैयार. डर के साये मे हिरण बेहद चौकन्ना है. रह रह कर गूंजती जंगली आवाजों के बीच गुजरती रात.  सभी जवान युवा हिरण  रात भर चोकन्ने पेहरा दे रहे है बच्चे और मादाओं को उन्होने  बीच  मे रखा हुआ है. डर पूरी तरह अपने चरम पर है. उसके बाबजूद मेरी आंखे नींद से भारी है... एक  पल की  झपकी
अचानक झुंड मे भगदड मच गई. किसी का हमला था... मै कुछ समझ पाता तब तक सब जा चुके थे मुझे समझ नही आया की मुझे किस तरफ भागना है. जब तक मे कुछ समझ पाता मेरे पुठ्ठों मे तेज नस्तर की तरह कुछ चुभा मै कुछ समझ पाता तब तक मेरी गरदन मे भी नस्तर की तरह उसके दांत घुस गये. वो जंगली कुत्तों का हमला था.
एक दो कुत्ते होते तो मै  उन्हे अपने सीगों से घायल कर खुद को बचा सकता था पर वो झुंड मे थे और मेरे चारों तरफ थे...मै मौत से घिर गया था, मौत मेरे सामने थी ..
तीखा दर्द मेरे सारे बदन मे दौड रहा है मै दर्द से तडप रहा हू. मै असाहाय होकर  जमीन पर गिर गया. कुछ  देर के लिये उन्होने मुझे छोड दिया. लगा मे अब भाग सकता हू पर जेसे ही मे थोडा हिला उन्होने इस बार और जबरदस्त तरीके से मुझे चीरना शुरू कर दिया...मेरे संगी साथी सब भाग चुके थे मुझे बचाने वाल कोइ  नही था.
वो रहरह कर मेरा मांस नोचते... मै जिंदा था और जिंदा ही वो मुझे खा रहे थे. एसी दर्दनाक मौत... हे भगवान क्या यही नर्क है. सच था एस तरह असाहाय और डरा हुआ पहले मे कभी नही था. अब तक के दर्द का हजार गुना दर्द से मे गुजर रहा था.....रात गुजरने को है मै अब भी जिंदा हू ...मेरा पेट फाड दिया गया है मेरी अंत बिखरी हुई है. यंहा  दया दिखाने वाल कोई नही है. वो सब अपने बच्चों के साथ मेरे चारों ओर बैठे हुये है मै उनका जीता जागता भोजन हू.
वो मुझे मर क्यों नही देते. रह रह कर मेरे मांस को नोचते है. दिन निकल आने के कारण अब मेरे चारों ओर गिद्ध भी आ गये है.
 मुझे मालुम है मेरे मर जाने के बाद वो मेरी मांस नोच नोच कर खायेगे. यही इश्वरीय सृष्टी है. हिरण को किस बात की सजा मिल रही थी. एसी मौत!
उसने किसी का क्या बिगाडा था. दर्द कम होने का नाम नही ले रहा है. एसा सिर्फ इसके साथ हुआ एसा नही है सभी हिरणों की यही नियती है. जिसे हम इतना भोला प्राणी समझते थे. उसके अंत इस तरह होता है एसा पहले कभी नही सोचा था.
अब दर्द सहा नही जाता. इस बार एक कुत्ते ने मेरे दिल पर बार किया... अच्छा ही किया उसके एसा करते ही मे गहरी बेहोशी मे चला गया मुझे मालुम है, अब मेरे दर्द का अंत हो जायेगा.
हिरण के मरते ही मेरी चेतना उस से अलग हो गई... मै शांत था. दर्द के सागर से बाहर तो निकल आया था पर अब भी उस दर्द और डर को याद कर मे सिहर उठ रहा हू. सच जो कुछ भी मेने अभी अभी भोगा था वो किसी नर्क से कम नही हो सकता. क्या हो अगर अनंत बार इसी नर्क से होकर गुजरना पडे.
किशन मुझे शांत देखकर बोला... क्या सोच रहे हो
यही की इश्वर की माया अजीब है....क्यों  क्या हुआ इश्वर की माया को.
हिरण जेसे सीधे सादे जानवर की इतन भयावह मौत. उसने तो कोइ पाप नही किये होंगा, फिर उसे एसी मौत. 
किसीके लिये जीवन नर्क क्यों. सच मेरी समझ अभी अधूरी थी. जो जानवर इतना सीधा और भोला है उसकी इतनी दर्दनाक मौत.
किशन धरती पर प्राकृति के नियम एसे क्यों है. बलवान कमजोर को खत्म करना चाहता है. चाहे वो कीट पंतगा हो या जानवर या अति सूक्ष्म जीवणु हर किसी को अपना जीवन बचाने के लिये सारे यतन करने होते है.
क्या इस बात का तुम्हारे पास कोइ जबाब है, या फिर इश्वर से मुझे यह सब समझना होगा..
तुम्हारे सवाल मे ही जबाब छुपा हुआ है. बस तुम उसे देख नही पा रहे हो.
तो  तुम मुझे समझाओ

मै तुम्हे यह सब समझाने की कोशिश करता हू. अच्छा होता की  धरती पर ही यह सब तुम्हे समझ आ गया होता की दर्द और आनंद क्यों है सुख और दुख किसलिये है. सभी जीव क्यों दुख से सुख की ओर और दर्द से आनंद की ओर जाना चाह्ते है. 

खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द  

एक बार फिर मे कमरे मे किशन के साथ था.
किशन मेरी तरफ देख कर मुस्कराता रहा...
बोलो किशोर.. मुझे किस लिये याद किया है?  मुझ से अब  क्या चाहते हो.   
मै तुम्हे बहुत कुछ बताना चाहता हू तुम्हारी अन उपस्थिती मे मेने अपनी कल्पनाओं  को नये पंख दिये...अपना संसार रचा उसको भोगा.
इस सब से क्या हासिल किया
जो कुछ मेने अभी अभी किया उससे मेरी चेतना को एक नया विस्तार मिला है
अच्छा
हां  किशन मै वह सब करते हुये बहुत उत्साहित था. पर मुझे यह समझ नही आ रहा की इस सब के बाद क्या. यह सच है जिस को पाने लिये मे धरती पर सारी जिंदगी जुगाड करता रहा. धरती पर जिसे पाने की मे कल्पना भी नही कर सकता था
तो क्या तुम इसे स्वर्ग बोल सकते हो?
सही कहा आपने यह किसी स्वर्ग से कम नही है....असल मे मेरे समझ से तो यही स्वर्ग है
किशन, सब आसानीसे उपलब्ध हो रहा था उसके बाबजूद अब मेरे अदंर वो उत्साह नही है. इतना सब होने के बाद भी मेरे अदंर एक खालीपन है. कितनी जल्दी मन इस सब से उकता गया है.
उस बच्चे की तरह की जब तक उसे नया खिलोना नही मिलता वो उसके लिये बैचेन हो जाता है पर उसके मिलते ही वो उससे बडी जल्दी उब भी जाता है उसके बाद वो खिलोना किसी कोने मे पडा धूल खाता रहता है. और बच्चे का मन नये के लिये मचल उठता है. एस ही कुछ अब मेरे साथ हो रहा था.
किशन अब तक जो कुछ मेने किया उससे मुझे खुद को इश्वर होने का अहसाहस होने लगा है . धरती पर जो कुछ किसी इश्वर से करने की उम्मीद की जाती है वो सब मे यंहा कर पा रहा हू.
ओह...इतनी जल्दी तुम इश्वरीय मामले मे एक्सपर्ट हो गये हो
हां मै अपनी कल्पना के संसार मे जिसे चाहे उसे बना सकता था जिसे चाहे मिटा सकता था मै अब अपनी कल्पनाओं का इश्वर हू.
सच तो यह है तुम इश्वरीय  चेतना का हिस्सा ही हो चेतना का एक बिंदू. धरती और उसके ब्रह्मांड एसी ही अनगिनित चेतनाओं के बिंदुओं से बना है.
हर बिंदू उसे अपना अनुभव दे रही है. वो अपने अनुभवों का विस्तार लगातार कर रहा है. यही उसके नये संजन का स्रोत है. यही विनाश का कारण भी है.
क्या मुझ्रे फिर से संसार मे जन्म लेना होगा.
हां क्यो नही यह तुम पर और संसार मे हो रही घटनाओं पर  निर्भर है.
मौ समझा नही
अरे जेसे तुम्हारे यंहा शादी होती है ना. एसा तो नही होता की तुम किसी  से भी शादी कर लेते हो. एसा ही तुम्हाएर संसार मे नये जन्म के बार एमे है. जिस शरीर को तुम पाना चाहते हो और वो शरीर भी तुम्हे अगर  पाना चाहता है तो तुम्हारा जन्म हो जायेगा. चुबंकीय आकर्षण जेसा ही होगा तुम उस शरीर मे समा जाओगे.
प्राक़्रति और चेतना के मिलन से ही संसार चलता है. चेतना ही जो प्राक़ृतिक घटना क सही दिशा देती है. उन्हे एक मकसद देती है. कमजोर चेतना औअर कमजोर मकसद हमेशा मजबूत और ताकतवर  चेतना का अनुसरण करेगी
एसी कोइ घटना  हो उससे पहले क्या मुझे उस असली इश्वर का सामना नही करना चाहिये देखे उसके पास एसा क्या है जो मुझ मे नही है... मेरे बारे मे उसके क्या प्लान है.
किशन अब मुझे लगता है की मुझे सामने वाला दरवाजा खोल देना चाहिये.
मेने देखा किशन मेरी बातों से खुश नजर नही आया. और खिसक कर मेरे और दरवाजे के बीच हाथ फेलाकर खडा हो गया.
तुम मुझे रोकने वाले हो क्या
नही मे तुम्हे नही रोक सकता तुम मुझे आसानी से नजर अंदाज कर दरवाजे के पास जा सकते हो उसे खोल सकते हो.
पर इसका यह मतलब नही की मै तुम्हे रोकने का प्रयत्न ना करू. मे तुम्हे तुम से बचाना चाहता हू.
मुझे किशन पर अब गुस्सा आने लगा. इस समय वो मुझे गाइड कम और मेरी प्रगति मे रूकावट ज्यादा नजर आ रहा है.
देखो किशन मे तुमसे कोइ बदतमीजी नही करना चाहता .... तुम क्यों नही एक तरफ खिसक जाते और मुझे दरवाजा  खोलने देते.
मै आसानी से एक तरफ होकर तुम्हे एसा करने दे सकता हू पर क्या तुम भूल गये की मे यंहा किस लिये हू.
हां मुझे मालुम है तुम यंहा मेरे सवालों का जबाब देने के लिये हो और यह बताने के लिये की मै यंहा क्या कर सकता हू.
तुम अपना काम कर चुके हो. अब मुझे एक बडे सवाल का जबाब चाहिये. जो मेरे और इश्बर के बीच मे है तुम्हारा उसमे कोइ रोल नही है. इसलिये तुम्हे अब बीच मे आने की कोइ जरूरत नही है.
तुम्हे पक्का भरोसा है की तुमने सब जान लिया
क्या मतलब क्या अब भी कुछ जानने को बचा है.
यह सही है की तुम इस स्पेस के मालिक हो, तुमने चाहा इसलिये मे भी  यंहा हू.
हां किशन मुझे लगता है की अब तक मुझे तुम्हारी जरूरत थी पर अब नही है.
तुम अब भी केसे कह सकते हो की इस दरवाजो को खोलना तुम्हारे लिये सही है.
मै इस तरह इस दरवाजे को देखते हुये नही बैठ सकता. मुझे अपने निर्णय को सम्मान देना ही होगा. कब तक तुम्हारे कहे अनुसार करूगा.
देखो यह दरवाजा कोइ सामान्य दरवाजा नही है तुम जबर्दस्ती इसे खोलना चाह्ते हो. क्या तुम इश्वर को ललकारना चाहते हो. उससे टकराना चाहते हो.
नही बिल्कुल नही एसा मेरा विचार कभी भी नही था.
तो तुम इस अनुमान पर यह दरवाजा खोलना चाहते हो की तुम इश्वर को समझ लोगे उसे मना लोगे. उसे नियंत्रित कर लोगे.
पता नही पर मे भावनाओं को दबा नही पा रहा हू. मेरी भावनाये मुझे एसा करने के लिये उकसा रही है.
भावनाओं पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है.
हां  पर उसे पूरी तरह नजर अंदाज करना भी कम खतरनाक नही है. किशन अगर भावनाये ही नही होंगी तब इस बात से क्या अंतर पडता है की इश्वर मुझे मिलेगा या नही, एसे मे मुझे इश्वर दिखे या ना दिखे, वो एक दिन मे मिलता है या हजार सदियो मे इस सब से क्या फर्क पडता है. अगर मुझे अपनी भावनाओं का ख्याल रखना है तो मुझे उन्हे सम्मान देते हुये निर्णय लेने ही होंगे.
मात्र भावनाओं मे बहने से काम नही चलेगा. तुम्हे निर्णय से होने वाले नतीजों के बारे में भी सोचना होगा. उसका अनुमान भी तुम्हे लगाना होगा.
हां मे तैयार हू मेरा ह्रदय साफ है यह मे और मेरा इश्वर जानता है.
मेने यह नही पूछा की तुम्हारे ह्रदय मे क्या है. मै तो यह कह रहा हू की अगर तुम्हारा निर्णय गलत हुआ तो क्या होगा तुम्हे उस पर भी विचार करना चाहिये. माना की तुम्हे अपनी भावनाओं और अपनी सूझ पर पूरा भरोसा है. उसके बाबजूद तुम्हारा निर्णय गलत हो सकता है.
पता नही
तुम्हे पता होना चाहिये. क्योंकी बेवकूफ ही निर्णय की परवाह किये बगैर निर्णय ले लेते है. और बाद मे पछताते है.
उसने मुझे सीढीयों की तरफ चलने का  इशारा किया. 
क्यों क्या हुआ क्या तुम मुझे फिर से धरती पर ले जाना चाहते हो.
हां 
पर क्यों
अब तुम मेरी मंशा पर भी शक करने लगे...अरे मे तुम्हारा गाइड हू..मुझ पर भरोसा कर सकते हो.
फिर भी मुझे मालुम तो होना चाहिये की हम किस लिये जा रहे है..तुम्ही ने तो कहा था की किसी निर्णय से पहले पता होना चाहिये की उसका परिणाम क्या होगा.
मुझे जाने का निर्णय करना है यह भी निर्णय करना है की तुम्हारे साथ जाना है या नही... मेने उसी की स्टाइल मे जबाब दिया...
किशन को शायद इसकी उम्मीद नही थी उसके चेहरे पर खीज साफ झलक रही है.
मै तुम्हे धरती पर कुछ और दिखाना चाहता हू कुछ और अनुभव कराना चाहता हू जिस से तुम्हारी समझ ओर बढ सके और तुम निर्णय ले सको की तुम्हे इश्वर से मिलना चाहिये या नही.
जेसे तुम नर्क के बारे मे बहुत कुछ पूछ रहे थे ना, चलो तुम्हे कुछ एसा अनुभव कराता हू जो किसी नर्क से कम नही होगा.
मै उसका विरोध करना चाहता था क्योकी की मुझे सिखाया गया था की इरादा सही हो तो नतीजों की चिंता नही करो और कर्म करो...यही तो कृष्ण ने गीता मे कहा था , अब यह जनाब कह रहे है की मुझे नतीजों का पता होना चाहिये.
मेरी अनिच्छा को देखकर उसने बोला तो तुम धरती पर नही जाना चाहते, तुम नर्क का अह्साहस नही करना चाहते. तुम अपनी सहूलियत के हिसाब से मतलब निकालना चाहते हो.
जब तुम पूरी तरह स्थति को समझ ही नही रहे हो तो इस दरवाजे को खोलने की इतनी  बेताबी क्यों दिखा रहे हो.
एसी कोइ बात नही है की मै धरती पर नही जाना चाहता पर तुम्हे याद है ना धरती पर पिछली बार क्या हो गया था..कार की हालत देखकर मेरी भावनाये किस तरह बूकाबू हो गई थी. तुम्ही ने कहा था की अगर मेने एसा कुछ दुबारा देख लिया तो पता नही इस बार मे इस बबंडर से बाहर निकल भी सकू या नही.
मै वह सब याद कर अभी से सिहर उठ रहा हू. तुम्हे नही मालुम मे किस दर्द से गुजरा था. एक्सीडेंट और उसके बाद हुई मौत का तो मुझे अहसाहस भी नही हुआ था. एक्सीडेंट के बाद कब मेने अपना शरीर छोड दिया था मुझे पता भी नही चला पर उस जगह दुबारा जाने पर वो सारा दर्द मेरी चेतना मे उतर गया था. मेरा घर मेरा परिवार पता नही अब वो किस हालत मे होंगे. वापस जाने पर वो सारा दर्द ....मै यह सब नही कर सकता. वेसे भी इससे मुझे या तुम्हे क्या हासिल होगा 
घबराओ नही एसा दुनबारा नही होगा. मै तुम्हे धरती पर लेजाना चाहता हू क्योंक मे चाहता हू की तुम्हारी चेतना को ओर विस्तार मिले.
तो तुम मुझे नर्क मे ले जाना चाहते हो
नही भई मे एस काबिल नही हू की तुम्हे नर्क भेज सकू...किशन ने हंसते हुये कहा. पर तुम्हे कुछ एसा अनुभव जरूर कराना चाहूगा जो तुम्हे नर्क का अहसाहस करा सके.
अगर मे तुम्हारे साथ ना जाना चाहू तो?
तुम्हारी मर्जी मे तुम्हारे साथ जबर्दस्ती नही कर सकता.
याद रखो- इच्छा, निर्णय और नतीजे तीनों का ध्यान रखो
अगर मेरी इच्छा सही है तो मुझे नतीजों की फिक्र नही
अगर एसा है तो मेरे साथ धरती पर जाने से क्यों मुकर रहे हो
इससे तुम क्या खो दोगे... तुम्हारे पास असिमित समय है
पहली बार मै दुविधा मे था, एसी दुविधा तो मुझे मृत्यु को स्वीकर करने मे भी नही हुई थी. मै चाहता तो किशन की बातों को अनदेखा कर सकता था, वो मुझे नर्क का अहसाहस कराना चाहता है जो किसी भी तरह सुख कर तो नही होगा.
मै उसकी बात को नकार कर अपनी ही कल्पना की दुनिया मे खो सकता था, पर कल्पनाओं की दुनिया का हश्र ने देख चुका था, किस तरह उस सब मे बोर हो गया था.
मै  किशन के साथ नये अनुभव के लिये तैयार था. अब तक किशन ने हर पल कुछ ना कुछ नया सीखाया था समझाया था. उस पर मै पूरी तरह भरोसा कर सकता था. किशन सही था मुझे कुछ समय के लिये दरवाजा खोलने की अपनी जिद्द टाल देनी चाहिये.
देखते है किशन मुझे कोन सा नया पाठ सीखाना चाहता है. नतीजो से तुम्हे तभी डर लगता है जब तुम्हे लगता है की तुम जो कर रहे हो वो गलत है. जो कुछ भी आगे होने वाला था वो गलत नही हो सकता. मुझे अपने गाइड पर पूरा भरोसा था 
किशोर, नर्क को समझने के लिये जानवरों  का संसार सबसे अच्छा है इन जीवों का जीवन का  आधार भूख, डर और अपने बच्चों को पैदा करना होता है. इनकी समझ बस इतनी ही होती है की वो अपने दुशम्न को पहचान सके, उअंका भोजन क्या है. और कब उन्हे अपने बच्चों को पैदा करना है.
तुमने अकसर जंगल में जानवरो को देखा  होगाखासकर हिरणों को
नही कभी जंगल जाने का मौका नही मिला पर अकसर टीवी पर जंगल सफारी के प्रोग्राम देखता था वो मेरे फेवरेट प्रोग्रामों मे से एक था.  
टीवी पर देखना अलग बात है और उसे जीना बिलकुल दूसरी बात
 तुम अचानक मुझे इनके  बारे मे क्यों बता रहे हो.
क्योंकी मै तुम्हे डर और असहाय होना केसा अनुभव देता है उसका अहसाहस दिलाना चाहता हू...
डर और असहाय होना !... पर एसा तो मेने पिछली जिदंगी मे बहुत बार महसूस किया है
अब जो तुम महसूस करोगे उसके सामने धरती पर पिछली जिदंगी मे अनुभव किये अह्साह्स कुछ भी नही होंगे...
 तुम मुझे डरा रहे हो
मरे हुये को कोन डरा सकता है किशन ने मुझे छेडा.. मै समझ गया अब जो कुछ भी मेरे साथ होना वाला है उसे किसी भी हालत मे अच्छा अनुभव तो नही कह सकते..पर जेसा उसने कहा था अगर मुझे अपनी चेतना को विस्तार देना है तो मुझे इसका अनुभव भी लेना ही होगा.
मै अब उसके लिये तैयार था 
मै किशन के कहे अनुसार धरती पर जंगल जाने के लोये तैयर था. उसके बारे मे सोचते हुये मै किशन के साथ सीढीयों की तरफ चल दिया