Sunday, June 5, 2022

विश्व पर्यावरण दिवस 2022


 



हर वर्ष की तरह इस बार भी विश्व पर्यावरण पर सरकारे और पर्यावरणविद चिंता जाहीर करेगे और घड़ियाली आँसू बहाएगे , कुछ  पेड़ लगाते मुस्कराते चेहरों के साथ फोटो शेयर करेगे, फिर अपनी दुनिया मे लोटकर वही करने लगेगे जिसे ना करने का प्रण उन्होने इस दिन लिया होगा।  

गूगल से पता लगा की  विश्व मे हम इन्सानो की आबादी 750 करोड़ पार कर गई है......जय हो , अगर सब इसी तरह चलता रहा तो अगले कुछ दशक मे हम शायद 1000  करोड़ के मार्क को पार कर जाएगे ( शायद इसलिए कहा क्योंकी इसकी भी पूरी संभावना है की हम मात्र 200-से 300 करोड़ ही रह जाये).

ज्ञात इतिहास मे इतनी आबादी पहले कभी नही थी। जन्म दर  घटने के बाबाजूद आबादी बढ़ती जा रही है। हर गुजरते वर्ष के साथ आबादी का नया किर्तीमान। यह अप्रत्याशित बढ़ौती म्रत्युदर मे आई कमी के कारण है।

7500 मिलियन की इंसान की आबादी से लदा यह ग्रह बहुत तेजी से बदल रहा है, इस बदलाव में हम इंसानो का बहुत बडा हाथ है. जंगल के कटने से और प्राकृतिक स्रोतो का अत्यधिक दोहन, शहरों का कंकरीट जंगल, जल के प्रकरितिक स्रोतो की बरबादी.  हमारा ग्रह अब पहले जेसा नहीं रहा हम इन्सानों ने इसे बदल दिया है. 

पर क्या सिर्फ हम! 

हम ही नहीं ब्रह्मांड की और भी बहुत सी ताकते इस ग्रह को बदलती रहती है, सच तो यह है की हम इसे बदले या ना बदले इसे तो समय के साथ बदलना ही था, पर हम इन्सानो ने बदलाव बहुत तेजी से किया जो बदलाव हजारो सालो मे नही हुआ विज्ञान और टेक्नोलोजी की मदद से कुछ सदियो मे हो गया. इसलिये अब अगर हमे जीना है, तो हमे भी उतनी तेजी से बदलना होगा. 


जंगल खत्म हो रहे है यह भी सच है की हमने अपने रहने के लिये और खाने के लिये इन्हे बुरी तरह बरबाद किया...अगर हम यह नहीं करते तो क्या करते...7500 मिलियन लोगो को खाने और रहने के लिये यह सब शायद जरूरी था. पर  यह पूरा सच नही है आज भी हमारे जिंदा रहने के लिए प्रयाप्त है पर लालच और अहंकार की कोई सीमा नही है। सच तो यह ही की मात्र 10% ने  बाकी 90% का जीवन अपने लालच के कारण नरक बनाया हुआ है। इन 90% के लिए टेक्नोलेजी और विज्ञान एक अभिशाप बनाकर सामने लाने वाले  यही 10% है। 

भौतिकवाद और बजरवाद के मेल से हम जिस रास्ते पर जा रहे है उसमे चंद कुछ पेड़ लगाने से समस्या हल नही होगी, क्योंकी आज का अर्थ-तंत्र अधिकाधिक खपत पर टीका हुआ है। आज किसी देश की संपन्नता का माप ही यह है की उसके नागरीक कितनी आरामदायक वस्तुओं का इस्तेमाल करते है। 

हर गुजरते दिन के साथ यह खपत बढ़ती ही जाएगी, चाहे उसके लिए हम इन्सानो को एक और विश्व युद्ध  का समना  ही क्यो ना करना पड़े।  

इसलिए अब समय है की हम पेड़ लगाने से आगे की बात करे। कचरा निपटान की बात करे, कचरे को रिसायकिल करने की बात करे। उन्हे सम्मान देने की बात करे जो न्यूनतम खपत की जीवन शैली अपनाना चाहते है। क्न्योकी अगर 90% लोगो ने भी उन 10% लोगो की तरह जीवन जीने का मन  बना लिया तो ........?   

हम इंसानों ने जिंदा रहने की जिद्दो जहद में बहुत कुछ सीखा है और लगातार हम हर दिन कुछ ना कुछ नया सीख रहे है...नये उर्जा स्रोत पता करने, नया खाना...,हम में से कुछ लोग सहारा रेगीस्तान और साइबेरिया जेसी विषम परिस्थतियों मे अपने को जीने लायक बनाया। 

वो समय दूर नहीं जब हम घास को खाने लायक बना देगें. सीधे मिट्टी से हमारी फेक्ट्रीयां  पेड़ पोधों की तरह खाना बाना सकेगीं. वेसे भी हम मे से बहुत से लोग कीड़े-मकोड़े, साँप , कुत्ते-बिल्ली और ना जाने क्या क्या खा जाते है। इस दिशा मे अब और भी ज्यादा गंभीर होने  की जरूरत है । 

मिलावट खोरों से सावधान होने की जरूरत है जिस तरह से वो आज  यूरिया वाला दूध, खाने पीने की चीजो मे भरपूर रसायनों का प्रयोग कर रहे है वो हम सब के लिये अब चिंता का विषय होना चाहिए. इसे रोकने के लिए गंभीर कदम भी हमे ही उठाने होगे। 

हमे भी अब बदलती प्रस्थतियों के अनुसार अपने को ढालना होगा...यानी बढ़ते तापमान का सामना एसी चलाकर नही, उसकी जगह अपनी सहन शक्ति बढ़ाकर करना होगा, जल संकट,  सही ऊर्जा उपयोग।  

हम ही क्या जानवर भी अपने को बदलने में लगे हुये है ...अगर वो अपने को नही बदलेगे तो इतिहास बन जायेगे ...देखा नहीं आपने गाय भी अब हमारे द्वारा छोडा गया सडा गला खाना  सीख रही है, हो सकता है वो जल्द ही  प्लास्टिक को भी पचाने लगे. जंगली जानवर शहर की ओर भाग रहे ...अब अगर शेर को जीना है तो उसे हमारे साथ रहना सीखना होगा, वेसे ही जेसे कुत्तों ने हमारे साथ जीना सीखा. ...अरे आप तो बुरा मान गये.

अब हम सिर्फ शेर के लिये तो जंगल बचाने से रहे...अगर शेर को जिंदा रहना है तो उसे  भी बदलना होगा. अगर वो हमारी दया पर रहा तो जल्द ही इतिहास बन जाएगा, हमारे डार्विन बाबा ने तो यही बताया था । 

सब कुछ बहुत तेजी से घट रहा है. जो विकास हजारों सालों मे नही हो सका वो हमने कुछ दशकों मे कर दिया. इसलिये आम अदमी दुविधा मे है. समय के साथ यह दुविधा बढ़ती ही जायेगी. 

समय के चक्र को उल्टा घुमाना अभी तो असंभव है. इसलिये हमें अपने को बदलते समय के साथ खुद को बदलते रहना होगा अब चाहे वो बदलना जीवन मूल्यों का ही क्यों ना हो!

बाजारवाद और विज्ञान के मेल ने इंसानियत को ऐसे मुकाम पर ला दिया है की कुछ  ताकतवर अगर  लालची इंसानियत की दिशा और दशा तय कर रहे है। वो अर्ध सत्य का अपने लालच के  लिये खुलकर प्रयोग कर रहे है. वो अपने स्वार्थ के लिए  धार्मिक उन्माद, नस्ल वाद का खुलकर प्रयोग करते है इस सच को समझकर इसका सामना करना है और सोशल मीडिया के प्रदूषण से अपने मन को बचाए रखना है।  विशेषकर सोशल मीडिया पर मोजूद अधकचरे ज्ञान और अर्धस्त्य को गंभीरता से पहले परखे.

सच तो यह है की हमे पता ही नही चला की कब हम टेक्नोलोजी के सहारे गुलाम बना दिये गए । एक उम्मीद अब भी बनी हुई है की हम इसके प्रति जागरूक  होंगे और इसका सामना करेगे. आने वाले दिन शुभ हो  इस लिए आज का दिन हम गंभीरता से इस पर मनन करे।  

   


दुर्वेश