Tuesday, October 20, 2015

स्वच्छ भारत अभियान क्या सिर्फ सरकारी कार्यक्रम है

इण्डिया टुडे के 21 अक्टूबर के अंक मे प्रकाशित गंदे शहरों की सूची ने स्वच्छ भारत अभियान की जमीनी सच्चाइ को उजागर कर दिया. 2014 में सरकार और जनता दोनों ही झाडू हाथ मे लिये फोटो खिचवाते नजर आये लगा की स्वच्छ भारत का सपना बस अब थोडी ही दूर है पर इस रिपोर्ट से पता लगा की सपना तो हवा हो गया.
Image result for कचरादेश के प्रधानमंत्री ने इसे अपनी प्राथमिकताओं की लिस्ट बहुत उपर रखा था. हर दूसरे भाष्ण मे इसका जिक्र होता था यंहा तक की विदेशी धरती पर दिये भाषण मे उन्होने इस बात को जोरदार तरीक से रखा. उनकी इस बात को देश के असरदार लोगों ने सिर आंखो पर लिया और हर रोज कोइ ना कोइ हाथ में झाडू लिये फोटो खिचावाता नजर आने लगा. मिडिया मे लम्बी बहसे. जनता भी दिल से चाहती थी की उसका शहर से गंदगी  का नामोनिशान मिट जाये. इसके बावजूद एसा क्या हुआ की हालत सुधरने की बजाय बद से बदतर होते जा रहे है. लोग नाक पर रूमाल रखे कूडे के ढेर के बगल से निकलते रहते है, कुछ उन पर थूकते हुये तो कुछ उस पर और कूडा फेकते हुये निकल जाते है. छोटा सा ढेर बढा और बढा होता जाता है. लोग उस कचरे के ढेर को देखकर चिंता करते है और चिंता का चिंतन करते नजर आते है.  
रिपोर्ट से लगा की हमारे शहरों की नगर पालिकायें जिनके जिम्मे शहर की सफाइ का जिम्मा है संसाधन की कमी  से जूझ रही है. नगर पालिकाओं का एक महत्व पूर्ण कार्य शहर को साफ रखना है. उसके लिये उसे हर घर से कूडा जमा करना, गली महोल्लों के सडकों को साफ रखना, नालीयों की नियमित सफाइ, और कचरे का सही निष्पादन करना होता है. रिपोर्ट से साफ की वो इस कार्य को करने नाकाम हो रहे है.
इस काम के लिये उन्होने सफाइ कर्मचारीयों की फोज रखी हुई है पर हर सरकारी महकमे की तरह यह भी इतने सफाइ कर्मचारीयों के बावजूद इनकी कमी से जूझ रहा है. क्या बात सिर्फ इतनी भर है. अगर एसी बात होती तो उस्का रास्ता तो आसानी से निकाला जा सकता है. कुछ समय पहले अमीर खान के शो से पता लगा की कुछ संस्र्थाये कूडा इकठठा करने और उसके निष्पादन का काम अपने हाथ मे लेना चहती थी और उसके बदले नगर पालिका को धेला खर्च करने की जगह उल्टा उन्हे इससे आमदनी होती पर उन्होने इसकी इजाजत नही दी,  क्योंकी एसा होने पर काली कमाइ का क्या होता. दो ट्रक कचरे को उठया जाता है और रजिस्टर में दर्ज होता है 10 ट्रक. हर दिन 300 से 400 टन कचरे का निष्पादन बताया जाता है और शहर से 100 टन कचरा भी नही उठाया जाता है.
चलो मान लिया की नगर पालिकाओं के पास इस कचरे को इकठठा करने की समुचित व्यव्स्था है तो भी कचरे को निष्पादन के नाम पर मात्र इसे लेंड फिल जोन मे भेज दिया जायेगा. इन लेंडफिल मे इसके पहाड बन जाते है और उस पर घूमती आवारा गाय, कुत्ते और कभी कभी गिद्ध नजर अ जाते है. जब इन लेंड्फिल जोन में ओर कचरा ना फेंका जा सके तो दूसरे लेंड फिल जोन की खोज होती है. प्रधान मंत्री के स्वच्छ भारत मिशन का यह तो मतलब नही हो सकता की कचरे को एक जगह से उठाओ और उसे दूसरी जगह फेंक दो.
अच्छा होता अगर स्वच्छ भारत के अभियान की शरूआत करने से पहले इसे पाइलेट प्रोजेक्ट के तरह कुछ गिने चुने शहरों पर लागू किया जाता. उन शहरों को केसे zero waste  बनाना है उस पर गंभीरत से सोचकर अमल किया जाता. उन शहरों मे इसे सफल बनाया जाता. उसमे लगने वाले श्रम और लागत का ठीक ठाक आकलन किया जाता.  उसके बाद इसे पूरे भरत में लागू करने के बारे मे सोचा जाता . उस मे जन भागीदारी के बारे मे खुलकर साफ साफ बताया जाता. नागरीकों मे उनकी भूमिका के बारे मे बताया जाता समझाया जाता..और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती जब तक वो देश की आदत ना बन जाये. पर अफसोस यह मात्र राजनितिक बयान बाजी बनकर रह गया.
एक बात साफ है की स्वच्छ भारत अभियान की सफलता मात्र राज्य प्रायोजित कार्यक्रम से संभव नही है. इस मे जन भागीदारी बहुत जरूरी है. लोगों को समझाना होगा की केसे उनकी थोडी सी मदद से अधिंकांश कचरे को रिसायकिल किया जा सकता है. हम केसे 90% कचरे को अपने स्तर पर ही रिसाकिल कर सकते है. इस तरह से आप उसे आसानी से अतिरिक्त कमाइ का सधन बना सकते है. विशवास नही होता ना. पर ये आपकी थोडी सी जागरूकता और समझदारी से यह संभव है
क्या आपने कभी अपने घर और दुकान से निकलने वाले कचरे पर गोर किया है. इस लेख मे हम घरों और दुकानों से निकलने वाले कचरे के बारे मे बात करेगे. शहरो को गंदा करने में इस कचरे का सबसे बढा हाथ है. घर और दुकान से निकलने वाले कचरे मे मुख्यत:
1.      पैकिंग सामग्री जेसे प्लास्टिक, थर्मोकोल, पोलीथीन, प्लास्टिक रैपर, कागज, प्लास्टिक की बोतल इत्यादी.  
2.      कपडा,
3.      मिक्स कचरा जेसे टेट्रा पैक, use and thro rajor blades  
4.      मैटल दवाइयों के एल्यूमिनियम रैपर, कोला केन, स्प्रे केन इत्यादी ), तार इत्यादी
5.      गिलास
6.      खतरनाक रसायन जेसे बैटरी, CFL, दवाइयां, CFL
7.       इलेक्टानिक उपकरण,  
8.      ओरगेनिक पदार्थ ..जेसे फल और सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाने का समान
9.      धूल, मिट्टी,
10.  सेनेटरी नेपेकिन  

अगर इन सब को मिक्स कर दिया जाये तो हमारे लिये मुसीबत बन जाता है. अगर आप ने  इसे मिक्स कर दिया तो फिर इसको अलग करना बहुत मंहगा पडेगा. इसमे मोजूद CFL, बैटरी, और उसमे  मोजूद लेड और मरकरी जेसे खरतरनाक रसायन इसे जहर बना देते है. जो भू जल को दूषित कर वाप्स ह्मे ही नुकसान पहुचाता है. वंही एसा कचरा बिमारीयों के फेलने के वजह भी बन जाता है.  
Image result for कचराहमारी पहली जिम्मेदारी कचरे के प्रकार के अनुसार उसे अलग अलग रखना सीखे. इसके लिये अगली बार अपने भंगार वाले से इस बारे मे बात करे. अधिंकाश रिसायकिल किये जाने वाले कचरे को भंगारवाले आपसे अच्छी कीमत देकर खरीद लेते है. उसके लिये अगलीबार जब वो आप से भंगार खरीदने आये तो उपर दिये 10 प्रकार के कचरे के बारे मे बात करे. वो खुशी खुशी इसमे से अधिंकांश आपसे खरीदने के लिये राजी  हो जायेगा. उसकी सलाह के हिसाब से उसे अलग अलग रखे. इस तरह आप क्रमांक 1 से लेकर 7 तक कचरे का निष्पादन से आपको आमदनी होगी.
क्रमांक 8 और 9 से आसानी से खाद बनाया जा सकता है उसके लिये कोलोनी मे पार्क के एक निश्चित कोने मे गढा कर उसमे ओर्गेनिक कचरा डाले और उस के भर जाने के बाद उसे 4 से 5 महोने तक बंद लर दे. जिससे वो अपने आप खाद मे बदल सके. इस खाद को आसानी से अच्छी कीमत देकर बेचा जा सकता है. या फिर इस खाद को कोलोनी के रहवासी खुद भी इस्तेमाल अपने गार्डन मे कर सकते है. अगर किसी कारण से आप इसे खाद बनाने मे असमर्थ है तो किसी भी खाद बनाने वालों से संपर्क कर उसे आसानी से बेच सकते है.
आप अच्छी तरह समझ ले की मिक्स कचरा सब के लिये मुसीबत है. इसलिये कचरे को किसी भी हालत मे मिक्स ना होने दे. लोग अपनी जिम्मेदारी समझे और सामान खरीदने से पहले उस के निष्पादन के बारे मे सोच ले. जेसे खराब CFL, बैटरी, को केसे ठिकाने लगाना है. क्योंकी उनके द्वारा गलत तरिके किया गया निष्पादन ही जल स्रोतों के प्रदूषित होने का सबसे बढा कारण है.
नगर निगम अपने सफाइ कर्मचारी को मिक्स कचरा ना उठाने की सख्त हिदायत दे. ओर जो मिक्स कचरा दे उस पर जबर्दस्त फाइन लगाये. जिससे अगली बर वो एसा ना कर सके.
जागरूकता अभियान का मतलब हाथ मे झाडू लेकर फोटो खिचावाना नही होता.   खुद को रोल माडल बनाना होता है. मिडिया आम आदमी को इस अभियान मे उसके रोल को सही तरीक से समझाये. उन शहर और कस्बों को दिखाये जो बाकी से इस मामले मे बेहतर है. उसेसे बाकी लोगों मे भी कुछ करने का जज्बा जगेगा. उन्हे असफलता की जगह सफल हो चुके कार्यक्रमों की जानकारी देते रहनी होगी, जिससे वो उससे सबक ले सके. एक तरफ तो बेरोजगारी की बात कर रहे है और दूसरी तरफ शहर गंदा है क्योंकी काम करने वाले लोग नही है एसा विरोधाभास भारत मे ही संभव है.  


Monday, October 19, 2015

आपका RO आपको मुबारक

हे जिम्मेदार नागरिक,
मै जिम्मेदार नागरिक नही हू इसलिये इस मेल को जेसे का तेसा फार्वड ना कर कुछ लिखने की गुजारिश कर रहा हू. जनाब हम हजारों सालो से नदी तलाब का पानी पी रहे थे, इन नदी नालों को जिस तेजी  से आपने प्रदूषित किये है  वो तारीफे काबिल है. आपने अपने लिये तो RO की मांग कर दी. इन मे रह रहे जल जीव, इन पर पल रहे जीव उनका क्या...उनके लिये RO कंहा से लाओगे, अगर आपके लिये वो पानी जहर है तो उनके लिये भी जहर हुआ ना , या आप समझ बैठे है की इस संसार की  आप सर्वश्रेष्ठ रचना है और सिर्फ आपको जीने का अधिकार है पर आप भी उनके बिना अकेले कब तक !
आपकी शाही आदते नदी नालो को प्रदूषित करने का सबसे बडा कारण है पर जब बोतल बंद पानी मिल रहा है तो आपको  क्या चिंता है. आप लोग अपना मल मूत्र घर से बाहर बहाने के लिये सेकडो लीटर पानी बरबाद कर देते है, बिना ये सोचे की यही मल मूत्र नदी नालो को भी प्रदूषित कर रहा है. सेकडो टन साबुन रोज इस हसरत मे नदी नालो मे बहा देते है की उससे आप गोरे और सुदंर दिखाई देंगे.  कंही पर भी हग देगे ... मूत देगे...कचरा फेला देगे. प्लास्टिक की उडती पन्नीयां. नदी नालों को जाम करती ये पन्नीया उसका दोष भी आपको इन्ही पन्नीयों मे दिखाई दे रहा है इसलिये आप को अब कागज की थेलिया चाहिये. जिससे आपकी शाही आदते वेसी ही बनी रहे...क्योंकी आप तो इशवर की  बेहतरीन रचना है आपकी आदते या सोच खराब केसे हो सकती है
अभी हाल ही मे गणेश विसर्जन का नाजारा देखा एक छोटा सा तालाब और हजारों की भीड अपने अपने गणेश मूर्ति के साथ विसर्जन के लिये तैयार, लाख बताया , समझाया की POP की मूर्ति का इस्तेमाल नही करना है पर लोगों का क्या वो इसबार भी POP की सेकडो बढी-बढी मूर्तियों लेकर विसर्जन के लिये हाजिर थे. धार्मिक मामला था कोइ कुछ बोल भी नही सकता ओर तो ओर उनके हाथ मे पोलीथीन की छोटी बढी पूजा मे इस्तेमाल की हुई सामग्री से भरी. हजारों थेलिया थी उसे पोलीथीन समेत तालाब के फेंक दिया. कम से कम पोलीथीन तालाब मे फेंकने से बच सकते थे. पर एसा नही हुआ. एसा करने वाले पढे लिखे समझदार लोग थे जो गणेश विसर्जन बेंड बाजो के साथ कर रहे थे.  सच मानो ये वही सब लोग थे जो घरों मे RO का पानी पीते है. यही भीड अगर उस दिन तालाब साफ करने के लिये इकठ्ठी हुई होती तो नजारा कुछ ओर ही होता. बंदा नतमस्तक हो जाता, पर एसा हो ना सका.
प्रशासन नदारद था , वेसे अगर वो होता तो क्या कर लेता. यही लोग उसके विरोध मे उतर आते. क्या किसी को ये सब दिखाइ नही दे रहा था, सब को दिखाइ दे रहा था. पर बोले कोन,  टोके कोन,  समझाये कोन. नासमझ को समझाया जा सकता है, समझदार का क्या किया जाये. एक समय था जब इसी बदबूदार गंदे तालाब का  पानी  साफ हुआ करता था, पशु-पक्षी पानी पीते थे. तालाब जीवन था. अब वो मर रहा है. पर उन्हे क्या चिंता है. अगले गणेश उतस्व मे इससे ज्यादा गंदगी तालाब के हवाले कर देगे. उनके घरों मे तो RO है ना.  वेसे भी जिन लोगों ने गणेश की मूर्ति के  साइज को अपना शक्ति प्रदर्शन बना दिया हो. आस्था साइज से जुड गई हो भीड मूर्ति के साइज के हिसाब से जय जय कार करती हो , उनसे इस सब की उम्मीद केसे की जा सकती है.
अब ये दूसरा शगूफा,  असल कारण पर वार ना कर, सस्ते और मंहगे का रोना लेकर RO की बात कर रहे है. RO तकनीक आपको रामवाण नजर आ रही है, जो बोतल से सस्ता पानी देगी. क्या फर्क पडता है अगर RO तकनीक...50% से 60% पानी बरबाद कर देती हो. पीने वाले को वो साफ पानी दे रही है ना .

धन्य है दानवीर जिम्मेदार नागरिक जनता अरे हमारी बात छोडिये,  20 रूपये देना आपकी शान मे इजाफा करता है वरना आपके जेसों के लिये टीवी पर वो एड नही आता जिस मे एक ही बोतल से दूसरे के पीने से उसे पहला वाला चांटा मारता है और कारण बताया जाता है की उससे संक्रमण फेलता है ...वाह री लाजिक .. चुम्मा से संक्रमण नही फेलता पर बोतल से फेल जाता है...वाह जी वाह क्या बात है.