Wednesday, March 15, 2017

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3/16 उलझन)
सफर (खंण्ड-4/16 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5/16 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6/16 समझ)
सफर (खंण्ड-7/16 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8/16 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9/16 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10/16 संगीत)
सफर (खंड-11/16 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12/16 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13/16 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14/16 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15/16 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16/16 पुनर्जन्म केसे)



निवेदन...

जरा एक मिनिट ठहरीये ... इसे लिखते समय मेने इश्वर और स्वर्ग के बारे मे बहुत कुछ कहा है जो पूर्व धारणाओं पर आधारित बस एक कल्पना मात्र है. मै साफ कर देना चाहता हू की यह उपन्यास स्वर्ग और इश्वर के बारे मे कोइ आकलन नही है. यह सच है की मेने इश्वर से बहुत सारे सवाल जीवन और मृत्यु और उसके बाद की संभावनाओं के बारे मे किये है पर उस तरफ से अभी तक मुझे इस बारे मे कोइ सटीक जबाब नही मिला है जिससे मे इस बारे मे पक्के तोर पर कुछ  कह  सकू.

मै या मेरी आत्मा या फिर जीव आत्मा , है तो बस यादों और अनुभव का गुच्छा. कुछ का मानना है की यह शरीर के खत्म होते ही यह भी खत्म हो जाता है. मै और मेरे जेसे लाखों और करोडो लोग एसा नही मानते. कम से कम जो लोग डार्विन थ्योरी ओफ इवोल्यूशन को मानते है वो तो यह मान ही नही सकते की शरीर के साथ ही सब कुछ खत्म हो जाता है. क्योंकी  यह थ्योरी कहती है की जीवन दर जीवन हम अपने अनुभव से अपनी दुनिया banaate चले गये. अपने शरीर को बदलते चले गये.  

यह विश्वास और संस्कार की हमारी चेतना शरीर के खत्म होने के बाद भी बनी रहती है, शरीर से विदा होने के बाद भी हमारे वजूद को बनाये रखता है. वरना जो यह  विश्वास नही करते उंनकी चेतना उस धुये के बादल की तरह है जो जरा से हवा के झोंके के साथ हवा मे विलीन हो जाते है. और असंख्य हिस्सों मे बटकर दूसरी चेतनाओ मे विलीन हो जाती है. या फिर यों ही समय और स्पेस की प्लेन मे अपनी ही यादों की धुध मे खोई रहती है.

आगे का सफर उन्ही के लिये सभंव होता है जो इस सच को समझ लेते है की शरीर के साथ सब कुछ जो इस जगत मे था वो उनके लिये  खत्म हो गया है और अब आगे का सफर तय करना है.  

पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है। पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना को ऊर्जा से भी उच्चतम अवस्था कह सकते हैं।

चेतन सत्ता का एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है।  

एसे सेकडो उदाहरण है जिन से पता चलेगा की उनके घर खानदान मे कोइ संगीतकार नही था, डांसर नही था, पेंटर नही था  और बच्चे ने विपरीत परिस्थितियों मे भी वो सब सीखने की जिद्द की और मौका मिलने पर वो उसने इस सहजता से किया जेसे उसे पहले से ही सब पता हो.

यही वजह है की मोर्जाट चार वर्ष की अवस्था में संगीत कम्पोज कर सकता था। ‘लार्ड मेकाले’  और विचारक ‘मील’  चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक ‘जान गास’ तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्व में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारथ हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे। प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना और अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। चौपाया स्वत: ही चलना सीख जाता है। पक्षी आसानी से उडना सीख जाते है. इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन इन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है.

इंटरनेट  पर एसे हजारों वैज्ञानिक शोध मिल जायेगे जिस मे उन्होने पिछले जन्म की यादों का मामलों पर खोजबीन की है. उसमे से बहुत से मामले वो अब तक झुठला नही सके. अगर एक भी मामला असली मे सही है तो फिर मेरे पूर्वजन्म के कथन को बल मिलता है. यह सच है की एसी घटनाओं मे जेसे जेसे बच्चे बढे होते जाते है वो भूलते जाते है जेसे हम अपने सपनों को भूल जाते है. जैसे-जैसे वो संसार में व्यस्त होते जाते हैं वो सूक्ष्म लोकों और पृथ्वी पर अपने पिछले जन्मों को भूल जाते हैं । हमारी भौतिक इंद्रियां यानी पंचज्ञानेंद्रियां, छठी ज्ञानेंद्रिय उन यादों को पूरी तरह से ढंक लेती हैं । यह हम पर ईश्वर की कृपा ही है कि उन्होंने वह व्यवस्था की है कि हम पिछले जन्मों के विषय में भूल जाते हैं । अन्यथा अपने इस जीवन के क्रियाकलापों को संभालते हुए पूर्वजन्म के संबन्धों का भी स्मरण रहना कितना कष्टप्रद होता ।

कल्पना करो कि कोई बच्चा यदि पानी में जाने से डरता है, तो हो सकता है उसके मां बाप और रिश्तेदारों ने उसके अदंर यह भय बैठाया होगा. अगर एसा नही है तो यह तय है कि पिछले जन्म में उसकी मौत पानी में डूबने से हुई होगी, या फिर उसकी मौत के पीछे पानी ही कोई कारण रहा होगा। इसी तरह हम सब सांप से डरते है कुछ तो इस कदर डरते है की उसका चित्र देखाकर भी उनका चेहरा भय से सफेद हो जाता है. जब की इस जन्म मे उन्होने कभी सांपो का सामना नही किया. वंही कुछ आसानी से सांप से एसे खेलते है जेसे वो कोइ रस्सी का टुकडा हो. आप ओरों की छोडीये आप अपने अदंर मोजूद डर का विशलेष्ण करेगे तो कुछ डर आप एसे पायेगे जिस का कोइ सिर पैर नही है. 

चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि हमारी कई आदतें और परेशानियां पिछले जन्मों से जुड़ी होती हैं। कई बार हमारे सामने ऐसी चीज़ें आती है या ऐसी घटनाएं घटती हैं, जो होती तो पहली बार हैं लेकिन हमें महसूस होता है कि इस तरह की परिस्थिति से हम पहले भी गुजर चुके हैं। चिकित्सा विज्ञान इसे हमारे अवचेतन मन की यात्रा मानता है, ऐसी स्मृतियां जो पूर्व जन्मों से जुड़ी हैं। बहरहाल पुनर्जन्म अभी भी एक अबूझ पहेली की तरह ही हमारे सामने है। ज्योतिष, धर्म और चिकित्सा विज्ञान ने इसे खुले रूप से या दबी जुबान से स्वीकारा तो है लेकिन इसे अभी पूरी तरह मान्यता नहीं दी है क्रमिक विकास सिद्धांत में एक और दलील दी जाती है कि उत्त्पत्ति अनियमितआकस्मिकनिरुद्देश्यबेतरतीबक्रम रहित, और  सहसा उत्पन्न घटनाओं का परिणाम है और प्राणी का शरीर विकास और बदलाव इन्ही घटनाओं का परिणाम है..मुझे इसमे कोई दम नजर नही आती.  इतना परिष्कृतजटिल और विवेकी शरीर सिर्फ सहसा उत्पन्न घटनाओं का परिणाम है.

क्या आप यह मानने को तैयार है की लोहे का ढेर, कुछ कांच और रबर के सहसा अचानक बेतरतीव मेल से कार बन सकती है. नही ना..अगर कार जेसी साधारण चीज अगर बेतरतीव मेल का परिणाम नहीं हो सकती तो फिर चारों तरफ दिखाई देते करोडो जीव कैसे अनियमितआकस्मिकनिरुद्देश्य घटनाओ का प्ररिणाम हो सकते है.

 

इसके लिये यादों और अनुभव का बने रहना जरूरी होगा जो जीवन के बाद भी बना रहे. क्योंकी इवोल्यूश्न एक ही जन्म मे संभव नही होता है वो जन्मों जन्मों तक चलने वाली निरतंर और बहुत ही धीमी प्रक्रिया है. जो survival of fittest  के साथ जुडी है. जिन्होने अपनी चेतना का विकास कर अपने शरीर मे जरूरी फेर बदल किये वही आगे जिंदा रह सके. बाकी सब इतिहास बन गये.  

हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है और चेतना  शरीर से  मुक्त हो जाती  है। एक समय तक मुक्त रहने के पश्चात आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त कर सकती है। यह उसका अपना निर्णय होता है. इसी तरह  जन्म मृत्यु के चक्र चलता रहता है।

मै कुछ स्थापित नहीं करना चाहता...मुझे जो पता था ईमानदारी से रख दिया है. किसी पक्ष के भी तर्क मुझे आसानी से पचते नहीं. विज्ञान का विद्यार्थी हूँ, इसलिये सच तो मै भी जानना चाहता हूँ,,,.... आप सभी से एक अनुरोध है....आप शोध करें,,अनुभव लिखें.... मुझे जो समझ आया मैंने लिखा है,,,...लिखने के पीछे कारण आप लोगों से मार्गदर्शन की ही है. जब तक सच जान नही लेता खुद को अज्ञानी ही समझूगा, खोज लगातार जारी रहेगी. मन सवाल करता रहेगा और उसके जबाब की खोज मे लगा रहेगा. सहिष्णु होकर सभी संभावनाओं पर विचार करते रहना चाहिये. भला को इंटरनेट का की इतनी सारी चेतानाओं के साथ इतनी आसानी से संपर्क मे हू .

मै किसी के विशवास पर चोट नही कर रहा हू की वो कंहा से आया है और मौत के बाद उसे कंहा जाना है. ना ही मै कुछ स्थापित नहीं करना चाहता...यह तो बस मौत के बाद की असीम संभवनाओं में से एक की कल्पना है, जिसने जीवन और मौत के पहलुओं को बस छुआ भर है. उम्मीद है इसे पढते समय आप अपनी कल्पनाओं के पंख को पूरी तरह खोलते हुये मेरा साथ एक नये सफर पर चलेगे.

 


खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट


रात के 11 बजे एफ एम पर गाने सुनते हुआ अपनी कार हाइवे पर तेजी से कार चला रहा हू. सडक के बीच बनी सफेद पट्टीया का सम्मोहन हे या पार्टी का असर मेरी आंखे भारी हो रही है. मेने सुस्ती को दूर भगाने के लिये रेडियो की आवाज को तेज कर,  दरवाजे का सीसा  नीचे किया. ठंडी हवा का तेज झोका मेरे चेहरे से टकराया. मुझे ठंडी हवा अच्छी लगी. दूर तक खाली सडक, मेने एक्सीलेटर पर पेर का दबाब बढाया. नजर स्पीडोमीटर पर गई... 140 की स्पीड के निशान पर नीडल के टच करते ही मेरे सारे शरीर मे एक झुरझुरी महसूस हुई.

140 पर भी कार सधी हुई चल रही है सारे शरीर मे मस्ती और रोमांच का नशा. तेजी से गुजरती सफेद पट्टीयां पूरा ध्यान सडक और कान गाने की धुन पर, मस्ती और रोमांच का नशा. काश मे इसे और तेज चला पाता. मेने एक्सीलेटर पूरा दबाया हुआ है .

सामने देखा सडक पर हल्की सी धुंध है, इससे पहले भी इसी तरह की धुंध मेने  कई बार पार की है. अकसर सर्दी के दिनों मे एसा होता रहता है ..धुंध के बावजूद मुझे रास्ता दूर तक साफ दिखाई दे रहा है मेने अपनी रफ्तार को कायम रखा. और हल्की धुंध कार घुस गई.

एक तेज धमाके के साथ गाडी हवा मे बहुत उपर तक उछल गई. मै कुछ समझ पाता उससे पहले एक साथ बहुत सारे विंड स्क्रीन के कांच के टुकडे मेरे चेहरे से टकराये ...एक तीखा दर्द मेने अपनी पसलियों मे भी महसूस किया. गाडी ने हवा मे एक के बाद एक कई बार गुलाटी ली. भला हो की मेने सीट बेल्ट बांधी हुई थी जिससे मेरा बदन सीट के साथ चिपका रहा. मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा है की यह अचानक क्या हो गया है. ब्लास्ट के साथ एयर बेग फूल कर मेरे से चिपक गया. अभी अच्छी भली तो गाडी चल रही थी. अचानक यह सब क्या हो गया.

एक बार फिर तेज धमाके के साथ गाडी की छत जमीन से टकराइ और छत मेरे सिर से. लगा जेसे किसी ने जबरदस्त हथोडा मेरे सिर पर मारा हो. गरदन की हड्डीयों की कडकडाती आवाज लगा जेसे मेरी गरदन टूट गई, दर्द का महाविस्फोट...  एक गहरी खामोशी या शायद बेहोशी मुझे नही मालुम.

मेन खुद को एक कमरे मे खडा पाया. उसकी दिवारे सफेद रंग की थी. मेरा असंमजस ओर बढ गया जब मेने देखा की उसमे ना कोइ खिडकी है और ना कोइ दरवाजा  है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा. मेने अपने दिमाग पर जोर डाला. ओह  याद आया मेरा तो भयानक एक्सीडेंट हुआ था. और मुझे गंभीर चोट भी आइ थी. मेने अपने हाथ पांव को देखा सब सही सलामत है ...यंहा तक की मेने अपने चेहरे पर भी किसी चोट को महसूस नही किया. मुझे अच्छी तरह याद है की जब मेरा एक्सीडेंट हुआ था तो मेरे सिर और गरदन पर गहरी चोट लगी थी, सीने मे भी तो पसलियों को तोडता हुआ कुछ घुसा था. मेन सभी जगह हाथ लगाकर देखा सब ठीक लगा. मै जितना सोच रहा हू , उलझता जा रहा हू. ना तो मुझे कोइ चोट लगी थी और नाही यह कोइ अस्पताल का कमरा है. मै  यंहा पहुचा केसे!

कंही यह सपना तो नही है. क्योंकी एसा केसे हो सकता है की मेरा एक्सीडेंट हो ओर मेरे शरीर पर कोइ चोट ना हो. जब की मुझे अच्छी तरह याद है की मुझे गंभीर चोटे लगी थी. मै यंहा क्यों हू मुझे यंहा कोन लाया है.

मै असंमजस में अपनी गरदन घुमाकर चारों ओर देखता हू. मेने ध्यान से एक बार फिर अपने  चारो तरफ देखा  इस बार मुझे दिवार के साथ कुछ सीढीयां भी देखाई दे रही है इनमे से कुछ नीचे की ओर कुछ उपर की ओर जा रही है. 

ध्यान से देखा... बांयी तरफ एक दरवाजा भी है जो पूरी तरह बंद है. एसा लग रहा है जेसे मे किसी मेट्रो स्टेशन के प्लेट फार्म पर खडा हू ओर  मुझे यंहा से मेट्रो ट्रेन पकडनी है पर ना तो यहा मेरे सिवाय कोइ दूसरा यात्री है ना ही रेल की पटरी दिखाइ दे रही है ना टिकट बूथ ना गार्ड ... पूरी तरह शांत माहोल कोइ हलचल नही . एक बात ओर मुझे अजीब लग रही है की इस कमरे मे कंही से भी रोशनी आती नही दिख रही फिर भी कमरा पूरी तरह रोशन है. मै कमरे मे चहल कदमी करने लगा. मुझे अपनी पदचाप की आवाज साफ सुनाई दे रही है वेसे ही जेसे ग्रेनाइट फ्लोर पर चलने से होती है.

हेलो ..मेने किसी तरह हिम्मत कर आवाज लगाइ... कोइ है जो मुझे बताये की इस समय मै कंहा हू और मे यंहा केसे आया....मुझे मेरी ही आवाज गूंजती हुई सुनाइ दे रही है, उसी तरह जिस तरह किसी खाली कमरे मे सुनाइ देती है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा है. इतना  सब हो जाने के बावजूद न मेरे मन मे कोइ डर है ना कोइ चिंता, पर एक जिज्ञासा जरूर है यह जानने की आखिर माजरा क्या है. यह सपना नही हो सकता क्योंकी सपने मे पहले की घटना इस तरह कोइ याद थोडे ही रहती है...अगर सपना नही तो फिर यह क्या है. 

मै एक्सीडेंट को याद करने लगा ..मुझे अच्छी तरह याद है एक्सीडेंट के समय मै 140 के उपर कार चला रहा था. जब मे धुंध से गुजर रहा था तो मेने कुछ देखा था. मै दिमाग पर जोर देने लगा की वो क्या था. हां शायद वो किसी ट्रेक्टर ट्राली का पिछवाडा था. यस मे सही हू वो ट्रेक्टर की  ट्राली ही थी. जो धुंध मे घुल मिल गई और मुझे दिखाई नही दी . 

ओह तो कार उस से टकराई थी. मै कुछ कर पाता उससे पहले ही कार उस से जा टकाराई थी. टक्कर इतनी जोरदार थी की कार हवा मे कई फुट उपर हवा मे उछल गई थी. उसके बाद उसने हवा मे ही 2 से 3 गुलाटी ली थी और छत जमीन से टकराई थी. जिस तरह का पागलपन मेरे उपर था ...140 की स्पीड..यह सब तो होना ही था. मेरे सिर, गरदन और सीने पर जबरदस्त चोट लगी थी .. उसके बाद मुझे कुछ याद नही...अब मे इस कमरे मे हू... कितना समय गुजर गया इसका भी मुझे कोइ अंदाजा नही हो पा रहा है.

मेने एक बार फिर फर्श पर नजर दौडाइ अल्ट्रा क्लीन चमकदार फ्लोर.. कंही कोइ दाग धब्बा नही. मेने जोर से सांस खीची ..मुझे हवा जाती हुई महसूस नही हुई ना ही मुझे कोइ गंध ही महसूस हुई.

मेने एक बात पर ओर गोर किया की मेने इतनी देर मे कोई सांस नही ली थी. उसके बाबजूद ना तो मुझे किसी तरह की घुटन महसूस हुई ना किसी तरह की कोइ बैचेनी महसूस हुई.. मेने अपने ह्रदय की धडकन महसूस करनी चाही कुछ भी मुझे महसूस नही हुआ.

मेने धडकन को महसूस करने के लिये बार बार हाथों को बांयी सीने पर रखा मुझे कुछ भी महसूस नही हुआ. मेने कलाइ पर चेक किया गरदन पर चेक किया हर उस जगह चेक किया जिस जगह मुझे पहले धडकन महसूस होती थी पर मुझे कंही भी धडकन सुनाई नही दी. इतनी देर से ना तो दिल धडक रहा है ना ही सांस ले रहा हू फिर भी आराम से हू

इस पहेली ने मुझे उलझा कर रख दिया. इससे पहले अगर एक मिनिट भी सांस नही लेता था तो मेरा दम फूल जाता था. पर अब एसा नही हो रहा है

मुझे अब बार बार लग रहा है की कंही कुछ गंभीर गडबड है. अगर यह सपना है तो इतनी गहरी चेतना के बाद भी यह टूट क्यों नही रहा है. इससे पहले भी मुझे उल जलूल सपने आये है पर जेसे ही मे इनके प्रति जागरूक हुआ तो थोडे देर बाद वो सपने टूट गये. इस बार भी अगर एसा ही है तो मेरा सपना बस टूटने को है ...हो सकता है इस के बाद मे अपने को किसी अस्पताल के बिस्तर पर पडा हुआ पाउ. हो सकता यह सब डाक्टर द्वारा दिये गये किसी पेन किलर या बेहोशी के इंजेक्शन का कमाल हो. जिसने मुझे इतने गहरे सपने मे डाल दिया है. कुछ भी हो सकता है.

हो सकता है मै कोमा मे हू!  

नही यह कोमा नही हो सकता क्योंकी कोमा मे मरीज सब सुन सकता है महसूस कर सकता है बस रिस्पोंस नही कर पाता. अगर एसा है तो मुझे अब तक किसी की कोई आवाज क्यों नही सुनाइ दी. मै जिस शरीर को देख रहा हू उस पर किसी चोट के निशान क्यों नही है

एक बात पक्की है जिस शरीर को मे देख रहा हू यह मेरा पहले वाल शरीर नही है. क्योंकी इस पर चोट के ताजे निशान तो छोडो, मुझे पुराने निशान तक दिखाइ नही दे रहे है. जिस तरह से मै अपने को  ताजा और स्फूर्ति से भरा महसूस कर रहा हू, एसा तो इससे पहले मेने कभी  महसूस नही किया.   

यह शरीर ना तो सांस ले रहा है ना ही धडक रहा है . ना ही मुझे भूख लग रही है ना प्यास. ना मुझे ठंड का अहसाहस हो रहा है ना  गर्मी का. तापमान इतना नियंत्रित केसे हो सकता है की मुझे गर्म और ठंड का अहसाहस भी ना हो. मुझे बार बार लग रहा है की जो मै देख रहा हू महसूस कर रहा हू वो ना तो सपना है और नाही कोमा... तो फिर क्या है. 

क्या मै मर चुका हू?

हो ना हो मे सच मे मर चुका हू. इस ख्याल के आते ही एक गहरे खाली पन के अहसाहस से मेरा दिमाग भर गया. इस ख्याल के दिमाग मे आते मै समझ गया की अब मे उस दुनिया मे नही हू जिसमे मे कभी रहा करता था. हो ना हो उस भयंकर एक्सीडेंट के बाद सच मे मर चुका हू.

एसे एक्सीडेंट के बाद मे सही सलामत केसे बच सकता था. जेसे जेसे इस बारे मे ओर सोचता जा रहा हू, यह ख्याल मजबूत होता जा रहा है की मे मर चुका हू. जेसे जेसे यह ख्याल दिमाग मे गहरा होता जा रहा है, मेरा खाली पन बढता जा रहा है..हां  सच मे अब मर चुका हू.  

मै  अब समझ चुका हू की मै मर चुका हू कम से कम धरती पर मेरा शरीर अब मर चुका है. मे अब भी देख सुन रहा हू और महसूस कर सकता हू. यहा तक की मे चल फिर सकता हू . चलने फिरने की मुझे कोइ विशेष कोशिश नही करनी पड रही है. सच कहू तो एसा लग रहा है की जेसे मुझे नया शरीर मिल गया हो. उर्जा से भरपूर बेहद लचीला शरीर. मै मर चुका हू इस ख्याल को लेकर ना मुझे कोइ डर लग रहा है न ही मुझे कोइ चिंता महसूस हो रही है बस एक जिज्ञासा है यह जानने की आखिर यह माजरा क्या है.

मै इस कमरे मे कब तक यूंही खडा रहूगा. मुझे सब एक वर्ग पहेली सा लग रहा है जिसे मुझे हल करना है. मै मर चुका हू फिर भी इतना बेफिक्र हू. मै आगे जो कुछ भी होने वाला है उसके बारे मे जानने के लिये बेहद उत्सुक हू. यंहा मेरी मदद के लिये कोइ नही है,

अरे कोइ है जो मेरी मदद कर सके...

मुझे बता सके की मै कंहा हू .

..हेलो...हेलो...कोई है? 



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