Wednesday, March 15, 2017

खंण्ड- 14 जीवात्मा

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड- 14 जीवात्मा

भले ही चेतना को पूरी आजादी है की वो जन्म कंहा और केसे लेना चाह्ती है. उसके बावजूद अगले जन्म का पिछले अनुभव के आधार पर ही निर्णय हो जाता है. पिछले अनुभव आगे होने वाले अनुभवों का आधार बनते है. अकसर चेतन जिस जन्म मे पहले होती है उसी जन्म को दुबारा दोहराती है जब तक की उसकी चेतना मे कोइ बडा बदलाव ना हो गया हो.
इसे ठीक से समझाओ
जेसे जब तुम सडक  पर गाडी चला रहे थे तो सडक की दिशा मे ही क्यों गाडी चला रहे थे. तुम अपनी मर्जी से दांये बाये कंही भी जा सकते थे.
अरे केसे जा सकता था वंहा सडक ही नही थी
क्यों नही बीच मे कई  मोड आये थे, तुम उन मोडों पर चले जाते.
सडक पर चलने का निर्णय कोन कर रहा था. तुम्हे लगा की सडक पर चलना ही सबसे सही काम है तो तुमने वो किया कुछ लोगों को कुछ ओर सही लग सकता है वो हो सकता है सडक पर ना चल कर किसी ओर कच्चे रस्ते पर चले जाते.
वो इसलिये नही मुडा क्योंकी मुझे भोपाल जाना था
किसी ओर रास्ते से भी भोपाल जा  सकते थे....
मुझे यही रास्ता सबसे सही लगा इसलिये मेने इसे चुना.
ओर भोपाल ही क्यों
ओह अब समझा मेरी चेतना ने पहले ही तय कर लिया की मुहे क्या अनुभव लेना है उस हिसाब से मेरा रास्ता तय हो गया है, मुझे वही रास्ता दिखाई देता है, मुझे  और रास्ते या विकल्प समझ ही नही आते है.
बहुत सी संभावनाये हो सकती है जिस मे से एक का चुनाव तुमने किया. हर पल आप के सामने असिमित संभावनाये होती है जिस मे आप और आपका शरीर कुछ का चुनाव उस वक्त रहा होता है.  
अगर एसा है किशन,  तो जब मे धरती पर था मुझे क्यों नही पता की मेरी चेतना आखिर क्या अनुभव करना चाहती है.
क्योंकी तुमने कभी उसे सुनने और समझने की कोशिश ही नही की. किशोर...शरीर मे रहते हुये तुम्हारी चेतना ज्यादातर समय शरारिक इन्द्रीयों के अनुभव तक ही सिमित होती है, जिसकी वजह से तुम्हारे हर कर्म की वजह डर या फिर सुख होता है.
बहुत ही कम लोग एसे होते है जो अंत:प्रेरणा से उपर उठ कर सोच पाते है. वरना ज्यादतर लोगों मे जीवात्मा मात्र शरीर का अनुसरण भर करती है. 
तुम्हारे अवचेतन को शांत करने के बाद ही तुम अपनी जीवात्मा की सुन सकते हो उस तक पहुच सकते हो. जब भी एसा होता है तो लोगों को लगता है की उन्हे  इश्वर मिल गया हो
शरीर के रहते यह असान नही होता  क्योंकी जागृत शरीर हमेशा इन्द्रीयों से से संचालित होता है तो मन उससे अलग केसे रह सकता है. मन और शरीर 99% कार्य वही करता है जो इन्द्रीयों चाहती है.
अवचेतन मे इस जन्म के और पिछले जन्मों के कर्म संचित है यंही से सारी शारारिक भावनाये और इच्छाये जागृत होती है जिनके आधार पर हमारा शरीर और मन प्रतिक्रिया देता है. तुम्हारा अवचेतन जानता है इसलिये जब भी चुनाव करना होता है तो तुम वही सब चुनाव करते हो जो तुम्हारी नियती मे है.
जेस तुम्हे लाख सिखया गया होगा की झूठ बोलना पाप है, क्रोध करना अच्छी बात नही है पर अकसर तुम झूठ बोलते हो और अपने से कमजोर पर क्रोध करते हो, क्योंकी पिछले अनुभव तुम्हे बताते है की उससे सब काम आसान हो जाता है.
इसके बाबजूद तुम ने बहुत से लोगों को देखा होगा की त्म्हारी सजेसी प्रस्थति मे उन्होने झूठ का सहारा नही लिया और ना ही क्रोध किया...दोनों मे कोन सही है ?
एक सी प्रस्थति मे लोग अलग अलग चुनाव करते है क्योंकी उनके अलग अलग मकसद होते है.  उनकी अपनी अपनी सुख और दुख की परिभाषाये होती है,  दोस्त होते है, उनके शोक अलग अलग होते है.
अगर तुम्हे अपनी जीवात्मा के साथ सीधा संवाद करना है तो तुम्हे अपने अवचेतन को शांत करना सीखना होगा. धरती पर इसे ही ध्यान या मेडीटेशन भी कहते है.   

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