Sunday, November 20, 2011

साइकिल..जरा याद इन्हे भी कर ले!

हमारे देश के मध्यम वर्ग एवं उच्च वर्ग के युवा लोग साइकिल चलाने की सोच भी नहीं सकते, ये आधुनिकता के परिणाम ही है कि किशोर होते ही वे मोटर साइकिल और कार चलाना चाहते है और पैदल चलना या साइकिल चलाना अपनी शान के खिलाफ समझते है. जीवन मूल्यों मे यह बदलाव पिछले तीन दशक मे तेजी से हुआ है.

कुछ दशकों पहले फिल्मों में हीरो होरोईन साइकिल का प्रेम गजब का था. ये वो जमाना था जब साइकिल गली महोल्ले की शान होती थी. जब साइकिल खरीदी जाती थी तो उसकी खुशी में सबको मिठाई खिलाई जाती थी. बच्चे अपने पापा का शाम को दफ्तर से आने का बेसब्री से इंतिजार करते थे की कब पापा आयें और साइकिल चलाने को मिले. अगर उनके पास साइकिल होती तो वो शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने में कोई झिझक महसूस नहीं करते थे. पिता खुश होकर अपने बच्चों को साईकिल इनाम में देते. स्कूल में जिस के पास साइकिल होती थी उसकी शान ही अलग होती.

जमाना बदल गया. साइकिल की जगह अब स्कूटी और मोटर साइकिल ने ले ली पिछले दो दशक में तो जेसे चार पहिया वाहनों की बाढ़ सी आ गयी है. ऐसे समय में साइकिल को अती गरीब की सवारी मान लिया गया है. इस गला काट जिंदगी में जब हमारे जीवन मूल्य तेजी से बदल रहे हो तो आपको मेरा साइकिल के बारे में बात करना अजीब लग रहा होगा. 

उन्नत देशों में साइकिल प्रेम बढता जा रहा है. कार चलाते चलाते और हवाई जहाज उडाते उडाते उन्हे अब इसकी अहमियत मालूम हो गई है. वेसे भी वहां के युवाओं और किशोरों में अब भी साइकिल प्रेम बाकी है. ये उनके यहां स्पोर्ट टीवी पर दिखाई जाने वाली प्रतियोगिता में उनके उत्साह को देखकर समझा जा सकता है. वहां की सरकारे साइकिल संस्कृति को बढावा दे रही है. व्यस्त मार्गों पर साइकिलों के लिए अलग से ट्रैक निर्माण तथा लोगों को साइकिल संस्कृति से जोड़ने के लिए पब्लिक और प्राइवेट वाहनों में साइकिलों को समुचित रूप से टांग सकने के लिए विशेष प्रकार के कैरियर लगवाना साइकिल के प्रति उनके समर्पण को दिखाता है. स्कूलों में साइकिल स्टंट के लिये विशेष साइकिल का प्रचलन और उसके लिये अलग से साइकिल ट्रेकस का निर्माण.

पश्चिम की बुराईयों को आसानी से हमने अपना लिया हमारे बुजुर्ग रात दिन उन बुराइयों क लेकर अपना सिर पीटते रह्ते है पर पता नहीं क्यों हम उनकी इस अच्छाई को क्यों नहीं अपना पाये. आज प्रदूषित महानगरीय जीवन शैली में साइकिल और भी प्रसांगिक हो गई है. अगर आपको लगता है कि साइकिल वहां सिर्फ गरीबों की सवारी है या इसे सिर्फ गांवों में चलाया जाता है तो आप गलत हैं । शायद आपको नहीं पता कि हालीवुड की सेलिब्रिटी मैडोना एक प्रसिद्ध साइकिल चालक हैं।

हमारे यहां तो सरकारी नियम और कानून सब साइकिल विरोधी है. यहां तक की ट्रेफिक हवलदार भी साइकिल सवार को पहले पकडता है. ट्रेफिक नियम साइकिल सवारों और पैदल चलने वालों के सबसे बाद में प्राथमिकता देते है. एसे में साइकिल केसे बनी रह पायेगी. धूल और कीचड से सनी गढों के बीच से गुजरती खस्ता हाल बरबाद सडकों से घिरे इन शहरों और कस्बों में साइकिलों के लिए अलग से ट्रैक एवं पार्किंग विकास एक मजाक सा लगता है.

यहां तक की सरकारी गेर सरकारी और अर्ध सरकारी संस्थानों में साइकिल पर आने वाले कर्मचारी को चार पहिया वाहन वाले से आने वाले कर्मचारी की तुलाना में बेहद कम कनवेंस एलाउंस मिलता है. जबकीइंधन बचाने और पर्यावरण बचानेके नाम पर उसे सबसे ज्यादा एलाउंस मिलना चाहिये. गेट पर खड़ा गेटकीपर भी साइकिल से आते कर्मचारी को हिकारत की नजरों से देखता है जेसे वो कोई कर्मचारी ना होकर चोर हो. पर कार को देखते ही तनकर स्लूट मारता है.

क्या आपने कभी सोचा है कि फैंसी जिम या उच्च प्रोफ़ाइल प्रशिक्षकों के बिना भी आप अपने आपको फिट रख सकते हैं । इसके लिये आपको सिर्फ कुछ देर साइकिल के पैडल घुमाने हैं । अगर चिकित्सकों की या शोधकर्ताओं की मानें तो फिट रहने के लिए साइकलिंग सबसे प्रभावी और कम लागत वाला नुस्खा है। साइकिल चलाना शरीर के लिए संपूर्ण व्यायाम है । साइकलिंग से रक्त का प्रवाह ठीक रहता है और यह आपके पैरों को सही आकार देता है । शहरी युवाओं में रीढ़ की हड्डी की समस्या बहुत ही आम है और साइकिल चलाने से आपकी रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है । अमेरिकी कॉलेज आफ स्पोर्टस मेडिसिन की पत्रिका में छपे शोध के अनुसार वो बच्चे जो साइकिल से स्कूल जाते हैं वो उन बच्चों की तुलना में ज्यादा सक्रिय होते हैं जो यातायात का कोई और साधन अपनाते हैं।


शहरों में एक सर्वे से पता चला की हमारे 70% से ज्यादा रोजमर्रा के काम 2 किलोँमीटर की परधी में हो जाते है. जो आसानी से साइकिल चलाकर हम पूरा कर सकते है. साईकिल एक जीरो फ्यूल वाली एक बेहद सबसे सस्ती सवारी जो आसानी किसी भी उबड खाबड सड़क पर निकल जाती है. क्या ही अच्छा हो की स्थानीय स्तर पर पार्षद अपने क्षेत्र में साइकिल और पैदल चलने वालों के लिये साफ और सुरक्षित पथ बनवायें. साइकिल प्रतियोगिता करा कर इसको किशोरों और यूवाओं में बढावा दे. पब्लिक वाहनों में एसी सुविधा हो जिससे उसमे साइकिल लादी जा सके जिससे गंतव्य पर पहुचने पर बाकी का सफर साइकिल से कर सके.

अब समय आ गया है कि हम साइकिल को पर्यावरण का दोस्त मानकर उसे सम्मान की दृष्टी से देखे और उसे चलाने वालों को पूरा सम्मान देते हुये उन्हे जाने की पहली प्राथमिकिता दे. हमारी सेहत का ख्याल रखने वाली हमारी सबसे अच्छी डाक्टर साबित हो सकती है. साइकिल चलाना अपने आप में एक विशेष अनुभूति होती है बशर्ते साइकिल चलाने वाले में इस विशेष अनुभूति का अनुभव करने की ललक हो

कुछ दिन हमने भी साइकिल चलाई थी और आफिस भी गये. पर इस दोरान जो झेला उसे फिर किसी दिन बयान करेगे. अभी तो फिलहाल बस इतना कह सकते है की इस देश के योजनाकारों और निंयताओं की नींद खुले और साइकिल जेसे छोटे छोटे पर अति महत्वपूर्ण पहलुओं पर उनकी नजरे इनायत हो. लाखों करोड रूपये पेट्रोल सब्सिडी पर फूंक देने वाली सरकार अब साइकिल पर भी ध्यान दे और साइकिल संस्कृति को बढावा देने के बारे मे गंभीरता से सोचे.   सब्सिडी के जाल मे उलझे इस देश को इससे थोडी तो राहत मिलेगी.


2 comments:

  1. sach hee likha hai pane kee cycle ab gareeb ka rath hai.

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  2. arey o! cycle premi kya khoob likha hai

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