Saturday, November 12, 2011

जंगल ट्रेक

लंच के बाद पता चला की पावर हाउस नहीं जाना हे. 3 बजते–बजते तय किया की क्यों ना आज सामने दिखाइ देती पहाड़ की चोटी पर चढा जाये. 500 मीटर से भी ज्यादा ऊची उसकी चोटी मुझे बार बार ट्रकिंग के लिये ललचाती. साल और सागोन का घना जंगल, दिसंबर की गुलाबी सर्दी. आज वो दिन आ ही गया. बस कही आग जलायेगे और रात भर चाँद की रोशनी और सितारों भरे आसमान. आइडिया रोमानी था...उस पर इस कदर दिल आया की अकेले ही जाने का सोच ली.


सोचा आधे अधूरे चाँद की रोशनी तो साथ रेहेगी. उपर पावर हाउस का इनटेक गेट और जलाशय हे. वहां एक गेस्ट हाउस भी हे...उम्मीद हे वहां रात गुजारने भर के लिये जगह मिल जायेगी...अगर ना भी मिली तो क्या हुआ कही भी जग़ंल में मंगल करेगे. रात भर एफ एम सुनेगे और तारों को निहारेगे. वेसे भी अर्ध रात्री के बाद एफ एम पर पुराने गीत...क्या कहने.

तैयारी करते करते 4 बज गये सूरज पश्चिम की तरफ कुछ ज्यादा ही झुक गया, गेस्ट हाउस इचार्ज को बताने के बाद मैं तेजी से चल दिया मुझे बताया गया था की स्विच यार्ड के पास से रास्ता उपर की तरफ जाता हे. स्विच यार्ड 4 km की चढाई…कोइ जाने का साधन नहीं मिला तो पैदल ही चल दिया. स्विच यार्ड पहुचा तो 5 बज गये. वहां कोइ नहीं..किससे पूछू...तभी मुझे एक आदिवासी अपनी गायों के साथ लोटता दिखाई दिया. पास बुलाकर उपर तालाब पर जाने का रास्ता पूछा.

हां साहब जाता हे ना रास्ता… वो उपर महादेव मदिंर से दांई तरफ का रास्ता सीधे उपर बडे तालाब जाता हे साहब...उपर गांव के काम करने वाले लोग इसी रास्ते से रोज आते-जाते हे। आपने थोडी देर कर दी नहीं तो कोई ना कोई आपके साथ जाने वाला मिल जाता।

ठीक हे मुझे तालाब वाला रास्ता बताओ जो मदिंर के करीब से जाता हे.

ठीक हे साहब!

सोचा जरूरत पडी तो मदिंर पर ही रात गुजार देगे.

आसान हे साहब बस ये जो सामने पहाड़ पर जो सूखा झरना देखाइ दे रहा हे बस इसी के सहारे उपर जाइये। 1 घंटे में आप महादेव के मन्दिर पहुच जायेगे. फिर वहां से 30 मिनिट और चलना हे, आप तलाब पर होंगे... जल्द निकल जाइये शाम होने को हे...सर्दीयों के दिन हे जल्द ही अधेरा हो जायेगा.

मैं उसके बात पर मुस्कराया...देखा 5:00 बजे हे...7:00 बजे से पहले अँधेरा नहीं होना था..मेरे पास पूरे 2 घंटे थे. करीब 1 घंटे का महादेव के मदिंर का रास्ता…उसके बाद इनटेक का 30 मिनिट का सफर। मैं उससे विदा लेकर सूखे झरने की तरफ चल दिया.

दूर से आसान ढलान वाला पहाड़। पास से देखा तो होश उड गये। यह तो तीखी चढाइ हे. सामने खडा पहाड़..कहां से शुरू करू. तभी मुझे सूखा झरना दिखाइ दिया...ये एक बरसाती झरना था जो अब सूखा हुआ था...बडे बडे पत्थर...उन पर जमी सूखी काइ...चढाई आसान नही है...पर जाना तो था..

15 मिनिट का चढाई ने हालत खराब कर दी...ये तो rock क्लाईमिंग हो रही थी...हाथो पर शरीर का बोझ संभालते संभालते मेरी हालत खराब हो गई...उगलियां दर्द करने लगी...मुझे समझ नहीं आया...की गडबड क्या हे...अगर ये रोज आने जाने का रास्ता हे तो ऐसा क्यों. 50 मिनिट हो गये कही मन्दिर का नामोनिशान दिखाइ नहीं दे रहा.

सामने डूबने को तैयार सूरज…कुछ समझ नहीं आ रहा हे। खडी ढलान, खडे होने भर की भी जगह दिखाइ नहीं दे रही। उपर अब घना जंगल हे, रास्ता नजर नहीं आ रहा। अंदर से आवाज आने लगी की ....वापस जाओ। पर जिद्दी दिल इसे अपनी हार मान रहा हे…फेसला तुरंत लेना हे। अगर एक बार अँधेरा हो गया तो नीचे उतरना असंभव हो जायेगा। आस पास कोइ एसी जगह नहीं जो रात गुजारने लायक हो।

आखिर नीचे जाने का मन बना लिया। नीचे उतरते हुये जो एक बार पैर लडखडाया तो तेजी से नीचे फिसलता चला गया। शुक्र हे कही चोट नहीं लगी बस थोडे कपडे गंदे हुये। सूरज बस अब डूबने को है. मै नीचे उतर आया था।

सामने देखा तो वही आदवासी आपनी गाय के साथ मुझे घूर रहा हे…साहब मेने आपको नीचे लुढकत हुये देखा…पर साहब आप झरने में क्या कर रहे थे मेने तो आपसे इसके पास से जो ये रास्ता जा रहा हे उस पर जाने के लिये बोला था.

…ओये ये रास्ता हे?

हां साहब …हम इसे ही रास्ता बोलते हे …यहां पहाड़ पर सब ऐसा ही होता हे…पर साहब आप को कही चोट तो नहीं लगी ना…

नहीं लगी...मेंने अपने कपडो से धूल झाडते हुये कहा!



भाग्यशाली हो आप…

अरे काहे का भाग्य …देखा मदिंर तक भी नहीं पहुच पाया।

अरे साहब महादेव ने चाहा तो अभी भी आप मदिंर जा सकते…

क्या फिर से उपर चढने को बोल रहे हो…अपुन पागल नहीं हे…तेरी बांतो में अब में नहीं आने वाला…

आरे नई साहब इससे भी आसान रास्ता…वो जो उधर नीचे देख रहे हे. वहां से सीढियां उपर जाती हे…आप आसानी से मदिंर पहुंच जाओगे…जल्दी जाओगे तो हो सकता हे आपको कोइ साथ जाने वाला भी मिल जये.

अरे ये पहले क्यों नहीं बताया …

अरे साहब यह सीधा रास्ता था ना!

उससे बहस करना ठिक नहीं लगा. अभी भी मदिंर तक जाने की आस थी…मेने उससे विदा ली और तेजी से नये रास्ते के लिये चल दिया।

सामने सीमेंट की सीढीयां…आसमान पर चाँद आ गया हे…शाम का धुधली रोशनी पर सब कुछ साफ दिखाई दे रहा हे. आसान सी दिखती सीढीयों की चढाई. मेरे पास पेसिल टार्च हे…रात की ट्रेकिंग का मन बना ही लिया. चाँदनी रात में ट्रेक करने का मजा ही कुछ और हे मैं इसे खोना नहीं चाह रहा। मेरे पास आग जलने के लिये माचिस है, रात के खाने का पूरा इतिंजाम है, मुझे चिंता की कोई बात दिखाई नहीं दी.

मैं अकेला ही सीढीया चढने लगा…15 मिनिट बाद ही सीमेंट की सीढीयों की जगह अब बस पत्थर थे…मैं पसीने से लथ-पथ धीरे धीरे उपर चढता रहा, आगे बढता रहा

अब रास्ता घूमकर पहाडी के पीछे आ गया 2 घंटे गुजर गये पर मदिंर अब तक नहीं आया....और ये क्या यह अँधेरा केसे घिर रहा हे…उपर सिर उठाया तो चांद को पहाडी के पीछे पाया …अब ये क्या नई मुसीबत हे इस बारे मे तो मेने सोचा ही नहीं था मुझे लगा था की चाँदनी रात मेरा साथ देगी। पर क्या मालूम था की चाँद इस तरह पहाडी के पीछे ओझल हो जायेगा। मेरे एक तरफ खड़ा पहाड़ और दूसरी तरफ गहरी खडी ढलान हे। चारोंओर सूखी घास. कही कोई रुकने भर की भी जगह नहीं. अब मेरे चारो और घुप्प अँधेरा हे। सन्नाटे को चीरती जंगली जानवरों की आवाज। मेरे अदंर डर समाने लगा। मुझे बार-बार उस आदवासी पर गुस्सा आ रहा हे …एक बार फिर उसने मुझे खतरे में डाल दिया।

मैं हिम्मत कर रात बिताने भर के लिये कोई ठीक जगह तलाशने के लिये टार्च जलाता हू…उसकी पतली सी रोशनी में मुझे अपने चारों सूखी लम्बी घास ओर कंटीली झाडियां… घने जंगल का अहसाहस होता है। मैं जगह की तलाश में किसी तरह टार्च की रोशनी में कदम बढता हू।

एक चट्टान के सहारे थोडी सी समतल जगह मिली. मेने कुछ सूखी घास तोडी और उसे जलाने के लिये माचिस जेब से निकाली। जेसे ही मैं तीली जलाकर नीचे झुका सर सराहट करता हुआ कोइ मेरे पेरों के बीच से निकल गया…तीली भी बुझ गई…पता नहीं क्यों लगा जेसे अभी अभी कोई जहरीला सांप मेरे पास से गुजरा हे। सर्द डर की लहर मेरी रीढ से होकर गुजर गई।

डर मेरे उपर हावी होने लगा। मैं बार बार अपने को कोसने लगा. इस बार मेने साथ लाई मोमबत्ती जलाइ पर उससे भी आग नहीं जला पाया …वो भी बार बार बुझ जाती। अंधेरे में इस तरह रुकना मुझे ठिक नहीं लगा। डरे हुये मन ने जल्दी ही हार मान ली…मेने वापस जाने का एक बार फिर मन बना लिया …चाँदनी रात में एफ़ एम सुनने का भूत कब का उतर गया था। अब तो मुझे बस वापस जाना था…

टार्च के सहारे में वापस कदम बढाने लगा…एक ठोकर लगी टार्च हाथ से छिटक कर दूर जा गिरी। और में तेजी से ढलान पर फिसलता चला गया। हाथों से घास को पकडने की कोशिश में हाथ बुरी तरह छिल गये…पत्थर से पेर टकराया और में और नीचे जाने से बच गया। दोनों हाथों से घास को कस कर पकडे कर खुद को बेलेंस किया.

में पूरे जोर से चिल्ला उठा…ब…चा…ओ

रह रह कर मैं आवाज लगाता रहा. अंधेरे में कुछ समझ नहीं आ रहा …नीचे कितनी गहरी खाइ हे यह भी पता नही चल रहा…मै जेसा था वेसे ही लटका हुआ चिल्लाता रहा।

हे भगवान इस बार मुझे बचा ले… अब अगर कोइ सांप बिच्छू मुझे काट ले तो?

डर से बुरा हाल…गला बुरी तरह सूख रहा है. हातों में चुभे हुये कंटे बुरी तरह टीस मार रहे है. क्या करू...एह भगवान इस बार मुझे बचा ले...

तभी मुझे हलकी सी रोशनी दिखाई दी कोई मेरी तरफ ही आ रहा था…मैं एक बार फिर जोर से फिर चीख उठा। वो दो थे देर रात अपने गांव वापस जाते हुये उन्होने मेरी आवाज सुन ली और मुझे उपर खीच लिया.

मशाल की रोशनी में खाई की गहराई देखकर में सन्न रह गया…मेरी बोलती बंद। मेरे आशचर्य का ठिकाना ना रहा जब मेंने एक बार फिर उस आदवासी को देखा. अब में क्या बोलता जिसे ने मुझे अभी अभी अभी बचाया है उससे क्या शिकायत करता. पता चला वो अपनी एक गाय को खोज रहा था और उसने मेरे चिल्लाने की आवाह सुनी तो इस तरफ आ आ गया.

उसने इसा बार अ[पने साथ को मेरे साथ गेस्ट हाउस तक मेरे साथ जाने को कहा. पर इस हादसे के बाद आग जाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई. मेने नीचे ही जाना ठीक समझा। मेरी बात मानकर वो मुझे नीचे ले जाने लगे …।

रास्ते में जब रुककर वो हाथ जोडकर नमन करने लगे तो ध्यान से देखा पेड़ के सिहराने रखा एक गोल पत्थर ओर कुछ सूखे फूल. साहब यह भोलेनाथ का मदिंर हे आप भी हाथ जोडकर प्राथना कर लो…इन्होने ही आप को आज बचाया हे…

ओह तो यह मन्दिर हे…

हां सच एसे ही तो मन्दिर होते हे जंगलो में…में देरे तक हाथ जोडे खड़ा रहा। वो मुझे सडक तक छोडकर वापस मुड गये…में उन्हे ठीक से धन्यावाद भी नहीं बोल सका । यह जानकर की में अब पूरी तरह सुरक्षित हू में खुशी से उछल पडा…एक बार चांदनी रात फिर मेरे साथ थी. एफ़ एम पर आते हुइ गाने की आवाज …मैं मस्ती से गुनगुनाता वापस जाने लगा.

अजीब हे ना कुछ देर पहले मौत के इतने करीब था और अब लगा रहा है जेसे कुछ हुआ ही ना हो!

कब गेस्ट हाउस पहुचा मुझे पता ही नहीं चला। चौकीदार मेरे गंदे और फटे हुये कपडे देखकर चोंका। सब ठीक हे ना साहब… हां सब ठीक हे…और में अपने कमरे में चला गया…

बिस्तर पर लेटते ही मुझे अपनी गलतियों अहसाह्स होने लगा। मेने आज एक नहीं बहुत सारी गलतियां की हे। ट्रेक का पहला नियम की रुकने की जगह पर सूरज डूबने से पहले पहुच जाओ को नजर अदांज कर सूरज डूबने के बाद नई अनदेखी जगह पर जाने के लिये सोचा था।

चांद की चाल की तो समझ थी पर यह नहीं सोच पाया की चाँद पहाडी के पीछे भी छुप सकता है, या मैं पहाडी के अधेरी तरफ भी हो सकता हू। मेने डर को अपने उपर हावी होने दिया। पर अंत भला तो सब भला का सोचकर नींद के आगोश में चला गया। ...

तेज तूफानी हवाओं ने मुझे फिर से जगा दिया…हे भगवान क्या तूफान था…रात को अगर जंगल में आग जलाये हुये ये तूफान आया होता ॥तो क्या होता!…सोचकर में आज भी कांप जाता हू।

इस ट्रेक में मेने कई गलतिया की थी…उसके बाद भी सुरक्षित हू! मैं उन सभी को दिल से धन्यावाद देता हू जो मेरे बचने का कारण थे।



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