पिछले 2 दिन से टीवी और मिडिया मे पुर जोर से रिटेल क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों के लिए खोलने का विरोध हो रहा है. यह विरोध सिद्धांतिक कम और सियासी ज्यादा है. क्योंकी हम सब सुविधा पसंद और आराम तलब लोग हो गये है. अब हमे वातानुकुलित माल की आदत सी हो गई है, टीवी देखते हुये और बरगर पीजा खाते हुये बडी हो रही युवा पीढी के लिये वो अब स्टेटस सिम्बोल है. जिस किसी की हेसियत उसमे खरीददारी करने की है वो वही करना चाहता है. और जो नही कर सकते है वो आइसक्रीम खाते हुये विंडो शापिंग का मजा लेते हुये उसमे एक दिन दिल खोलकर खरीद दारी करने का सपना देखता है.
रिटेल क्षेत्र को विदेशी निवेशक कुछ वेसा ही बनाने में मदद करेगा जेसा आज कल के सुपर माल है. इन सुविधाओं की कीमत वो खरीददारों से ही वसूल करेगा. अगर ऐसा होगा तो उनके सामानों के दाम आज स्थापित छोटे दुकानदारों से ज्यादा होंगे. इसके बाबजूद कुछ लोगा गुंणवत्ता और सुविधा और स्टेटस के लिये वहाँ से ही खरीद दारी करना चाहेगे. आज उपभोक्ता का एक बडा समूह सुविधा और गुण्वत्ता और स्टेटस के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार है. उसे जो यह दे देगा वो उसे अपने सिर आंखों पर बैठायेगा. इसलिये यह बजार अभी फिलहाल उन्ही के लिये है.
जो लोग छाती पीट कर रोने का नाटक कर रहे है वो नींद से जागे. और समय के साथ चले. वेसे भी 125 करोड़ की आबादी वाला ये देश बहुत बड़ा बाजार है. यहाँ हर किसी के लिये जगह है. पर टिकेगा वही जो उपभोक्ता के माप दंडो पर खरा उतरेगा. उपभोक्ता अब बदबूदार कीचड और धूल भरी सडकों, गायों और सुअरों की बीच खरीद दारी नहीं करना चाहता. वो अब अपनी मर्जी से और अपनी पसंद से माल खरीदना चाहता है क्या आप इसमे कोई मदद कर सकते है ...अगर नहीं ...!! तो जो करने को आ रहा है उसे आने दे.
हमने लाखों करोडों का काला धन विदेशों मे जमा करने मे शर्म नही की. उनकी संस्कृति को अपनाने मे कोई कसर नही छोडी. तो अब यह घडीयाली आंसू किस लिये. ?
अब आगे आगे देखो होता है क्या । मीडिया उनका, दुकान उनकी माल उनका वो बार बार अपने माल को सबसे अच्छा बाताएगे और तुम्हारे बाप दादाओ ने जो खाया पिया उसे बुरा बाताएगे। बेहिसाब पैसा आपके हीरो को देगे जो उनके माल को आपके लिए सबसे अच्छा बाताएगे और उसके बाद आप उसे किसी भी की मत पर खरीदने को मजबूर हो जायेगे फिर उसके लिए उधार लेना पड़े तो क्या ?
तुम ऊअनके लिए मात्र बाजार हो जिसके मालिक वो है।
॥ बच्चा ॥ अबे सालों ...इसे ही तो गुलामी कहते है॥
....happy shopping
दुर्बेश
रिटेल क्षेत्र को विदेशी निवेशक कुछ वेसा ही बनाने में मदद करेगा जेसा आज कल के सुपर माल है. इन सुविधाओं की कीमत वो खरीददारों से ही वसूल करेगा. अगर ऐसा होगा तो उनके सामानों के दाम आज स्थापित छोटे दुकानदारों से ज्यादा होंगे. इसके बाबजूद कुछ लोगा गुंणवत्ता और सुविधा और स्टेटस के लिये वहाँ से ही खरीद दारी करना चाहेगे. आज उपभोक्ता का एक बडा समूह सुविधा और गुण्वत्ता और स्टेटस के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार है. उसे जो यह दे देगा वो उसे अपने सिर आंखों पर बैठायेगा. इसलिये यह बजार अभी फिलहाल उन्ही के लिये है.
जो लोग छाती पीट कर रोने का नाटक कर रहे है वो नींद से जागे. और समय के साथ चले. वेसे भी 125 करोड़ की आबादी वाला ये देश बहुत बड़ा बाजार है. यहाँ हर किसी के लिये जगह है. पर टिकेगा वही जो उपभोक्ता के माप दंडो पर खरा उतरेगा. उपभोक्ता अब बदबूदार कीचड और धूल भरी सडकों, गायों और सुअरों की बीच खरीद दारी नहीं करना चाहता. वो अब अपनी मर्जी से और अपनी पसंद से माल खरीदना चाहता है क्या आप इसमे कोई मदद कर सकते है ...अगर नहीं ...!! तो जो करने को आ रहा है उसे आने दे.
हमने लाखों करोडों का काला धन विदेशों मे जमा करने मे शर्म नही की. उनकी संस्कृति को अपनाने मे कोई कसर नही छोडी. तो अब यह घडीयाली आंसू किस लिये. ?
अब आगे आगे देखो होता है क्या । मीडिया उनका, दुकान उनकी माल उनका वो बार बार अपने माल को सबसे अच्छा बाताएगे और तुम्हारे बाप दादाओ ने जो खाया पिया उसे बुरा बाताएगे। बेहिसाब पैसा आपके हीरो को देगे जो उनके माल को आपके लिए सबसे अच्छा बाताएगे और उसके बाद आप उसे किसी भी की मत पर खरीदने को मजबूर हो जायेगे फिर उसके लिए उधार लेना पड़े तो क्या ?
तुम ऊअनके लिए मात्र बाजार हो जिसके मालिक वो है।
॥ बच्चा ॥ अबे सालों ...इसे ही तो गुलामी कहते है॥
....happy shopping
दुर्बेश
@दुर्वेश जी, लोगों को तो पोर्न देखना पसंद है. इसका क्या मतलब है कि आप अपने बहन-बेटियों के साथ पोर्न देखेंगे? अंग्रेज तो कथित रुप से हमसे ज्यादा सभ्य हैं तो देश को उनके ही भरोसे क्यों नहीं छोड़ दिया जाये? दुर्वेश, आप गुलाम मानसिकता के हैं और खुद पूंजीवादी अय्याशी के शिकार है. आप जैसे अमरीकी परस्त लोगों को ही गांव वाले इस देश से घृणा है. आप जिस वर्ग के लिये वॉलमार्ट जैसी कंपनियों की सिफारिश कर रहे हैं, उस वर्ग की संख्या कितनी है ? और जानते हैं, इस वर्ग के लिये आम आदमी भी सुअऱ ही है, ब्लडी कॉमन इडियन मैन.... ऐसे लोगों की दलाली करना बेहद दुखद है.
ReplyDeleteसुजीत जी आपकी प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद. चलो किसी का तो जमीर जागा. अगर आप टीवी और सिनेमा देखते है तो समझ गये होंगे की आप पोर्न से ज्यादा दूर नही है. आप चाहे या ना चाहे इसको झेलना आपकी और हमारी मजबूरी होगी. रही बात देश को अंग्रेजों या अमेरिका के हवाले कर देने की. आंखे खोलिये और देखिये आप किस के हवाले है. आपकी हर सांस अब किस के लिये है. क्या है आपका स्वतंत्र वजूद. जब ताल ठोक कर देश की सरकार ग्लोबालाइजेशन की तरफ जा रही थी तो वो क्या था. अब रिटेल सेक्टर ....वो भी हो कर रहेगा. आप ही बताईये हम ने किस फील्ड मे अंग्रेजेयित को नही अपनाया ....सुजीत जी जो इस देश की देशी संस्कृति की बात करे उसे अति हिंदुवादी करार दिया जाता है. और जो अंग्रेज और अंग्रेजी की बात करे उसे विदेशी गुलाम. और ये वही लोग है जो दोनों का मजा लेते हुये बेशर्मी की हद तक सिर्फ अपने लिये जी रहे है और अपनी जेब भरने में लगे हुये है.
ReplyDeleteसुजीत जी इस देश में जिस गरीब की आप बात कर है. इस लोकतांत्रिक देश में वो सिर्फ एक वोट है जो भारत सरकार के हिसाब से 32 रू में अपनी जिंदग एश से गुजार सकता है. और राजनिज्ञों के लिये एक ऐसा वोट जिसे आसानी से बहलाया या फुसलाया जा सकता है. सुजीत जी आप तो कानपुर से है ना ...इस बात को आप से ज्यादा अच्छी तरह और कोन समझ सकता है. देखा नहीं आपने मनरेगा , नरेगा से सरकार गरीबी दूर करने चली है. यह मजाक इस देश में ही संभव है.
आप संख्या की बात कर रहे है...आज इस देश में जो लोग माल संस्कृति के हिमायती है उसकी संख्या अमेरिका की जन संख्या से कम नहीं है.
याद करे जब इस शहरों में तांगे चला करते थे और तब बसे चलना शुरू हुई...कितना शोर हुआ था याद करे जब इस देश में ट्क्स्टाइल मिलों को बुनकर का दुश्मन माना गया था. याद करे जब टीवी को सिनेमा का दुश्मन... माना गया था. याद करे ...या तो आप उन को बदलिये या वो आप को बदल देगे. बदलाव तो अवश्य होगा. इस नियम को कोई नहीं बदल पाया....... अब देख्नना यह है की कोन बदलता है. आगे और भी बहुत कुछ है कहने को पर.....फिर कभी
जबसारा देश FDI का विरोध कर रहा हो तो आपका यह लेख उअलझन पैदा करेगा. अब तो सरकार भी इसके पक्ष से फिलहाल हटा गई है.
ReplyDelete.
ReplyDeleteपिछले 2 दिन से टीवी और मिडिया मे पुरजोर से रिटेल क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों के लिए खोलने का विरोध हो रहा है. यह विरोध सिद्धांतिक कम और सियासी ज्यादा है. क्योंकी हम सब सुविधा पसंद और आराम तलब लोग हो गये है. अब हमे वातानुकुलित माल की आदत सी हो गई है, टीवी देखते हुये और बरगर पीजा खाते हुये बडी हो रही युवा पीढी के लिये वो अब स्टेटस सिम्बोल है. जिस किसी की हेसियत उसमे खरीददारी करने की है वो वही करना चाहता है. और जो नही कर सकते है वो आइसक्रीम खाते हुये विंडो शापिंग का मजा लेते हुये उसमे एक दिन दिल खोलकर खरीद दारी करने का सपना देखता है.
रिटेल क्षेत्र को विदेशी निवेशक कुछ वेसा ही बनाने में मदद करेगा जेसा आज कल के सुपर माल है. इन सुविधाओं की कीमत वो खरीददारों से ही वसूल करेगा. अगर ऐसा होगा तो उनके सामानों के दाम आज स्थापित छोटे दुकानदारों से ज्यादा होंगे. इसके बाबजूद कुछ लोगा गुंणवत्ता और सुविधा और स्टेटस के लिये वहाँ से ही खरीद दारी करना चाहेगे. आज उपभोक्ता का एक बडा समूह सुविधा और गुण्वत्ता और स्टेटस के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार है. उसे जो यह दे देगा वो उसे अपने सिर आंखों पर बैठायेगा. इसलिये यह बजार अभी फिलहाल उन्ही के लिये है.
जो लोग छाती पीट कर रोने का नाटक कर रहे है वो नींद से जागे. और समय के साथ चले. वेसे भी 125 करोड़ की आबादी वाला ये देश बहुत बड़ा बाजार है. यहाँ हर किसी के लिये जगह है. पर टिकेगा वही जो उपभोक्ता के माप दंडो पर खरा उतरेगा. उपभोक्ता अब बदबूदार कीचड और धूल भरी सडकों, गायों और सुअरों की बीच खरीद दारी नहीं करना चाहता. वो अब अपनी मर्जी से और अपनी पसंद से माल खरीदना चाहता है क्या आप इसमे कोई मदद कर सकते है ...अगर नहीं ...!! तो जो करने को आ रहा है उसे आने दे.
हमने लाखों करोडों का काला धन विदेशों मे जमा करने मे शर्म नही की. उनकी संस्कृति को अपनाने मे कोई कसर नही छोडी. तो अब यह घडीयाली आंसू किस लिये. ....happy shopping
उपर जो लिखा वो मेरे विचार थे और जो लिखने जा रहा हू वो भी मेरी सोच है.
FDI एक दूसरा सच
FDI के द्वारा अमेरिका और यूरोप हमारे दरवाजे पर आ गया है.
विश्व ग्लोबल है!
पर किसके लिये ?
इन अमेरिकनों और यूरोपियों को हम अपना खुला बजार दे रहे है की आओ भाइ हमे लूट कर ले जाओ. हम से सरकार कह रही है की हमारे लिये कोल्ड स्टोरेज बनायेगे बुनियादी डांचे को बनाने मे अपना पैसा खर्च करेगे, जिससे हमारे फल सबजिया आदी खराब होने से बच जायेगी ...इसको एसे बताया जा रहा है की जेसे बडे धर्म का काम करेगे.
ए भाइ जरा रुको..कितना खर्च होता है इन कोल्ड स्टोरेज को बनाने मे!!!
हो सकता है इस देश की भर्ष्टाचार मे डूबी सरकार के पास इतना पैसा ना हो! पर क्या देश इतना गरीब है?
सरकार गरीब हो सकती है पर देश नही क्योंकी इसी देश मे कुछ लोग 400 करोड रूपये मे खुद का रहने के लिये घर बनबाते है.
ओह आपने क्या कहा !
...ये हमे रोजगार देगे.
अगर ये इतने ही भले लोग है तो फिर इन्हे 65 साल पहले देश से बाहर क्यों किया था! सच तो यह कि अमेरिका और यूरोप आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे है उन्हे अपना माल बेचने के लिये नया बजार चाहिये और इस देश की सरकार उन्हे एक आसान बजार दे रही है.
अरे वो अपने देश के नागरिकों को तो रोजगार दे नही पा रहे और हमे रोजगार दने चले ?
वो इस देश के गरीब किसान का भला करने नही आया ..वो इस देश मे तेजी से उभर रहे नये अमीरों को लूटने आया है. वो इस देश मे मोजूद सस्ते संसाधनों को लूट करने आया है.
उसे 1 रूपये की चीज को 100 रूपये मे बेचने मे कोइ शर्म महसूस नही होती. वो तो एसे मायाजाल को रचने मे माहिर है की आप 100 रूपये देने मे गर्व महसूस करे.
इस देश मे जनता की सबसे बडी भूल यह है की सारी कल्याण्कारी योजनाओं के लिये वो सरकार की तरफ देखती है ..या एसा करना उसकी नियती बना दी गई....पता नही किस दिन उसे अपनी सही ताकत का पता चलेगा...