जब LPG गेस पर लिखने का मन में विचार आया तो लगा की इसके बढे हुये दामों ने मेरा दिमाग घुमा दिया है, ऐसा कैसे हो सकता की लाखों घर का जिससे खाना बनता हो उसमे कुछ खराब हो. जब नेट पर इस बारे मे जानकारी ली तो मुझे पता लगा की मैं गलत नहीं था पचास सालों से भी ज्यादा, भारतीय घरों की रसोई में खाना बनाने वाली गेस के बारे में इस नजर से कभी देखा ही नहीं गया. ज्यादा से ज्यादा गेस लीक से होने वाली आग की दुर्घटनाओं के बारे में लोगों को सचेत भर किया गया.
इसमे कोई शक नहीं की यह हर तरह से लकडी के चूल्हे और अगीठी से तो अच्छी है. इस का चूल्हे और अगीठी तुलना में आधुनिक, साफ सुथरा और सस्ता होना इसके प्रसार का बहुत बढा कारण रहा. ये चूल्हे और अगींठी से ज्यादा दक्ष भी साबित हुई.
भारतीय घरों के अदंर LPG गेस पर खाना बनाने से होने वाले नुकसान का अभी तक कोई अधिकारिक सर्वे मेरे पास नहीं है, मुझे नहीं लगता इस बारे मे कभी सर्वे हुआ होगा. इस तरह के सर्वे विदेशों में जरूर हुये है. वहां हुये सर्वे के परिणाम चिंता जनक है. हम सब जानते है की गेस के जलने से कार्बन डाइ ओक्साइड बनती है पर अगर किसी कारण से गेस ठीक से पूरी ना जेल तो वो जहरीली कार्बन मोनो ओक्साईड गेस भी बनाती है. जो गंध रहित बेहद जहरीली गेस होती है और हमे इसका पता भी नहीं चलता. अकसर एसी गंभीर दुर्घटना के समाचार ठंड के दिनों मे मिलते रहते है की जब बंद कमरे में खाना बना और फिर सोते समय ही इस गेस ने सब को अपने आगोश मे ले लिया.
गेस चूल्हे में बर्नर के जलने पर और भी कई तरह की गेस निकलती है जो हमारे स्वास्थ के लिये नुकसान देह है. यह बात सही है की अगर खिडकी खुली हो तो सब गेस बाहर निकल जाती है पर यह कुछ हद तक ही ठीक है क्योंकी गेस जो बर्नर से निकलती है वो खिड़की से बाहर निकलने से पहले सारे घर में भी फेलती है उसी तरह जेसे खाने की भीनी भीनी गंध घर के सारे लोगों को बता देती है की घर में क्या बना रहा है.
गेस में मिलावट का अंदाजा उसके फ्लेम को देखकर किया जा सकता है. रंग बिरंगी लो मिलावट या बर्नर चोक होने का संकेत हो सकता है. खाना बनाते समय गेस का धुआ चाहे या अनचाहे हमारे अदंर जाता है. खासकर जब आप गेस के उपर झुक कर काम कर रहे होते है तब आप हर सांस के साथ इन सारी गेसों को भी अदंर ले रहे होते है. BTEX (benzene, toluene, ethylbenzene and xylene), methane, radon and other radioactive materials, organometallic compounds such as methylmercury organoarsenic and organolead, mercaptan odorants, nitrogen dioxide, carbon monoxide, fine particulates, polycyclic aromatic hydrocarbons, volatile organic compounds (including formaldehyde), and hundreds of other chemicals. यह सब गेस रोटी सेंकते हुये रोटी में भी जाती है. इन सब के बुरे असर में बारे में कृपया नेट में खोजे. हम तो बस इतना कहेगें की यह एक बहुत ही धीमा पर मारक जहर है. क्या पता की यह आपके शरीर के मोजूद बिमारीयों की एक बहुत बढी वजह हो.
इसका तुरंत कोइ असर नहीं होता इसलिये हम इसकी चिंता नहीं करते. सिगरेट के धुयें का भी तो तुरंत कोई असर नहीं होता. पर हम सब को मालूम है की सिगरेट पीने से क्या होता है. इस पर भले ही हमारे देश में सर्वे ना हुये हों पर विदेशों में हुये सर्वे बताते है की गेस और गेस चूल्हे को हानि कारक ना मानना बहुत बढी गलती है.
धुम्रपान के पैकट पर जो लिखा गया क्या वो गेस चूल्हे और गेस सिलिडंर पर नहीं लिखना चाहिये. ऐसा करने पर कम से कम गृहणियां कुछ तो सावधान होगीं. किचन को हवादार बनाने पर वो गंभीरता से सोचेगी. आज किचन को हवादार सिर्फ इसलिये बनाने की सोचते है कि तलने पर तेल की वाष्प किचन को चिकना किये बगेर बाहर निकल जाये. उन्हे आज भी गेस से कोई खतरा नजर नहीं आता.
यह गर्म और हल्की होने से उपर के कमरों में भी तेजी से फैलती है. अगर गेस लीक हो रही हो तो वो और भी गंभीर प्रणाम देती है. ये हल्की लीक किचन के वातावरण को प्रदूषित करती रहती है. आकडे बताते है की यह अस्थमा और सांस की अन्य बिमारी की एक बडी वजह है. इसलिये अगर खाना बनाने वाले को असथ्मा या फेफडॉं की बिमारी के अन्य रोग है तो वो इसे और बढायेगी. यही हाल गेस से चलने वाले बाथरूम वाटरहीटर का है. बंद बाथरूम में ये और भी नुकसान दे सकते है.
अब गेस को अलविदा कहने का वक्त आ गया है. उसकी कई वजह है. पहली वजह उसकी बढती कीमते, दिनों दिन इसके घटते स्रोत और तीसरी सबसे बढी वजह स्वास्थय के लिये खतरा.
खतरे की एक और वजह इस पर सेंकना और तलना आसान होना. अब हर किसी क मालूम है की तला हुआ और सिका हुआ खाना हमारी सहेत के लिये कितना हानीकर है पर हम स्वाद से मजबूर ऐसा करने के लिये मजबूर है जब तक की डाक्टर का अंतिम फरमान ना आ जाये. देखा जाये तो तला हुआ या सिका हुआ खाना अब जेब पर भी हावी होने लगा है, क्योंकी यह उर्जा का बहुत बढा हिस्सा बरबाद करने का कारण है.
गेस की उपलब्धता तेजी से कम होती जा रही है. आजकल 21 दिन पहले नबंर लगाना पडता है फिर भी कोई भरोसा नहीं की गेस समय पर मिल ही जायेगी. दाम दिनों दिन बढते जा रहे है. इसलिये अब यह सही समय है कि हम इसके विकल्प की तलाश करें. और इसकी तुलना बजार में उपलब्ध दूसरे साधनों से करें.
आज हमारे पास सोलर और बिजली पर खाना बनाने का कम से कम दो सबसे बेहतर तरीँके है. क्यों ना हम सोलर को प्राथमिकता देते हुये दूसरे नंबर पर बिजली और तीसरे नबंर पर गेस को रखे. आज माइक्रो वेव और इंडक्शन कूकिंग जेसे दक्ष उपकरण बजार में है. जो लोग गेस को बिजली से सस्ता समझते है, गेस पर सबसिडी के खत्म होते ही उन्हे उसकी असली कीमत का अदांज हो जायेगा. अच्छा हो की हम गेस को बडे उद्योगों और बिजली घरों में इस्तेमाल होने दे क्योंकी वहां शायद अभी यह इंधन का अच्छा विकल्प सबित हो! वेसे भी वहाँ के उपकरण उसे बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते है.
अगले किसी लेख में हम गेस चूल्हे की तुलना में इंडक्श्न कूगिंग और माइक्रोवेव को परखेगे! तब तक आप सभी से इस लेख पर प्रतिक्रिया जानने की उम्मीद है.
इसमे कोई शक नहीं की यह हर तरह से लकडी के चूल्हे और अगीठी से तो अच्छी है. इस का चूल्हे और अगीठी तुलना में आधुनिक, साफ सुथरा और सस्ता होना इसके प्रसार का बहुत बढा कारण रहा. ये चूल्हे और अगींठी से ज्यादा दक्ष भी साबित हुई.
भारतीय घरों के अदंर LPG गेस पर खाना बनाने से होने वाले नुकसान का अभी तक कोई अधिकारिक सर्वे मेरे पास नहीं है, मुझे नहीं लगता इस बारे मे कभी सर्वे हुआ होगा. इस तरह के सर्वे विदेशों में जरूर हुये है. वहां हुये सर्वे के परिणाम चिंता जनक है. हम सब जानते है की गेस के जलने से कार्बन डाइ ओक्साइड बनती है पर अगर किसी कारण से गेस ठीक से पूरी ना जेल तो वो जहरीली कार्बन मोनो ओक्साईड गेस भी बनाती है. जो गंध रहित बेहद जहरीली गेस होती है और हमे इसका पता भी नहीं चलता. अकसर एसी गंभीर दुर्घटना के समाचार ठंड के दिनों मे मिलते रहते है की जब बंद कमरे में खाना बना और फिर सोते समय ही इस गेस ने सब को अपने आगोश मे ले लिया.
गेस चूल्हे में बर्नर के जलने पर और भी कई तरह की गेस निकलती है जो हमारे स्वास्थ के लिये नुकसान देह है. यह बात सही है की अगर खिडकी खुली हो तो सब गेस बाहर निकल जाती है पर यह कुछ हद तक ही ठीक है क्योंकी गेस जो बर्नर से निकलती है वो खिड़की से बाहर निकलने से पहले सारे घर में भी फेलती है उसी तरह जेसे खाने की भीनी भीनी गंध घर के सारे लोगों को बता देती है की घर में क्या बना रहा है.
गेस में मिलावट का अंदाजा उसके फ्लेम को देखकर किया जा सकता है. रंग बिरंगी लो मिलावट या बर्नर चोक होने का संकेत हो सकता है. खाना बनाते समय गेस का धुआ चाहे या अनचाहे हमारे अदंर जाता है. खासकर जब आप गेस के उपर झुक कर काम कर रहे होते है तब आप हर सांस के साथ इन सारी गेसों को भी अदंर ले रहे होते है. BTEX (benzene, toluene, ethylbenzene and xylene), methane, radon and other radioactive materials, organometallic compounds such as methylmercury organoarsenic and organolead, mercaptan odorants, nitrogen dioxide, carbon monoxide, fine particulates, polycyclic aromatic hydrocarbons, volatile organic compounds (including formaldehyde), and hundreds of other chemicals. यह सब गेस रोटी सेंकते हुये रोटी में भी जाती है. इन सब के बुरे असर में बारे में कृपया नेट में खोजे. हम तो बस इतना कहेगें की यह एक बहुत ही धीमा पर मारक जहर है. क्या पता की यह आपके शरीर के मोजूद बिमारीयों की एक बहुत बढी वजह हो.
इसका तुरंत कोइ असर नहीं होता इसलिये हम इसकी चिंता नहीं करते. सिगरेट के धुयें का भी तो तुरंत कोई असर नहीं होता. पर हम सब को मालूम है की सिगरेट पीने से क्या होता है. इस पर भले ही हमारे देश में सर्वे ना हुये हों पर विदेशों में हुये सर्वे बताते है की गेस और गेस चूल्हे को हानि कारक ना मानना बहुत बढी गलती है.
धुम्रपान के पैकट पर जो लिखा गया क्या वो गेस चूल्हे और गेस सिलिडंर पर नहीं लिखना चाहिये. ऐसा करने पर कम से कम गृहणियां कुछ तो सावधान होगीं. किचन को हवादार बनाने पर वो गंभीरता से सोचेगी. आज किचन को हवादार सिर्फ इसलिये बनाने की सोचते है कि तलने पर तेल की वाष्प किचन को चिकना किये बगेर बाहर निकल जाये. उन्हे आज भी गेस से कोई खतरा नजर नहीं आता.
यह गर्म और हल्की होने से उपर के कमरों में भी तेजी से फैलती है. अगर गेस लीक हो रही हो तो वो और भी गंभीर प्रणाम देती है. ये हल्की लीक किचन के वातावरण को प्रदूषित करती रहती है. आकडे बताते है की यह अस्थमा और सांस की अन्य बिमारी की एक बडी वजह है. इसलिये अगर खाना बनाने वाले को असथ्मा या फेफडॉं की बिमारी के अन्य रोग है तो वो इसे और बढायेगी. यही हाल गेस से चलने वाले बाथरूम वाटरहीटर का है. बंद बाथरूम में ये और भी नुकसान दे सकते है.
अब गेस को अलविदा कहने का वक्त आ गया है. उसकी कई वजह है. पहली वजह उसकी बढती कीमते, दिनों दिन इसके घटते स्रोत और तीसरी सबसे बढी वजह स्वास्थय के लिये खतरा.
खतरे की एक और वजह इस पर सेंकना और तलना आसान होना. अब हर किसी क मालूम है की तला हुआ और सिका हुआ खाना हमारी सहेत के लिये कितना हानीकर है पर हम स्वाद से मजबूर ऐसा करने के लिये मजबूर है जब तक की डाक्टर का अंतिम फरमान ना आ जाये. देखा जाये तो तला हुआ या सिका हुआ खाना अब जेब पर भी हावी होने लगा है, क्योंकी यह उर्जा का बहुत बढा हिस्सा बरबाद करने का कारण है.
गेस की उपलब्धता तेजी से कम होती जा रही है. आजकल 21 दिन पहले नबंर लगाना पडता है फिर भी कोई भरोसा नहीं की गेस समय पर मिल ही जायेगी. दाम दिनों दिन बढते जा रहे है. इसलिये अब यह सही समय है कि हम इसके विकल्प की तलाश करें. और इसकी तुलना बजार में उपलब्ध दूसरे साधनों से करें.
आज हमारे पास सोलर और बिजली पर खाना बनाने का कम से कम दो सबसे बेहतर तरीँके है. क्यों ना हम सोलर को प्राथमिकता देते हुये दूसरे नंबर पर बिजली और तीसरे नबंर पर गेस को रखे. आज माइक्रो वेव और इंडक्शन कूकिंग जेसे दक्ष उपकरण बजार में है. जो लोग गेस को बिजली से सस्ता समझते है, गेस पर सबसिडी के खत्म होते ही उन्हे उसकी असली कीमत का अदांज हो जायेगा. अच्छा हो की हम गेस को बडे उद्योगों और बिजली घरों में इस्तेमाल होने दे क्योंकी वहां शायद अभी यह इंधन का अच्छा विकल्प सबित हो! वेसे भी वहाँ के उपकरण उसे बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते है.
अगले किसी लेख में हम गेस चूल्हे की तुलना में इंडक्श्न कूगिंग और माइक्रोवेव को परखेगे! तब तक आप सभी से इस लेख पर प्रतिक्रिया जानने की उम्मीद है.
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