Monday, November 17, 2008

बाबारामदेव और स्वामीसत्यवेदांत की फ्रीसेक्स चर्चा पर प्रतिक्रिया


13 मार्च 2010 को नव भारत टाइम्स में प्रकाशित बाबा रामदेव और स्वामी सत्य वेदांत की फ्री सेक्स पर चर्चा को पढा. फ्री सेक्स जानवरों में देखा गया पर उसमे भी मादा नर पर या नर मादा पर एका अधिकार करने की कोशिश करता है. ये अपने जोडे के लिये मर मिटने तक को तैयार रहते है इनमे रिश्तों कि समझ नही होती, इसलिये मा पुत्र के साथ या बहन भाई के साथ सेक्स कर सकता है. इंस के वाबजूद प्रकति ने इन्हे समय से बांध रखा है ये साल के कुछ महिनों मे ही अकसर सेक्स करते है और सृजन का सुख पाते है.

हम मनुष्यों के साथ एसा नही है , हमने रिशतों की अहैमियत को समझा और समाजिक होने के फायेदे के बारे मे भी समझा. हमने समूह मे रहने के लिये एसे नियम बनाये जो आपस मे सदभाव बनाते हुये एक अच्छे समाजिक ढांचे को बनाये. हमारे बच्चे पैदा होते ही जानवरों की तरह स्वांलबी नहीं हो जाते उनकी आज भी 15 से 25 साल तक परवरिश करनी होती है. फ्री सेक्स की बात करने वाले यह कैसे सुनुश्चित करगे की फ्री सेक्स से पैदा हुये बच्चे का पालन पोषण कैसे होगा और वो किसकी जिम्मेदारी होगी. समाज उन्हे किस दर्जे मे रखेगा.

हमने समझा की सेक्स सृजन के लिये होता है. पर कुछ लोगों के लिये उसमे मिलने वाला क्षणिक सुख उन सब से उपर हो गया. वो इसे ध्यान और समाधी का रास्ता समझने लगे. हो सकता है कुछ लोग आपसी सहमति से एसा करने मे सक्ष्म हुये हों पर इसे पूरे समाज मे लागू नही किया जा सकता. जिस मानसिकता को हमने हजारों सालों से अपनाया है उसमे यह संभव नही. और फिर ध्यान और साधना के उससे बेहतर उपाय हम जानते है. तो फिर हम नई समस्या को जन्म क्यों देना चाहते है. क्या कम समस्यायें आज हमारे सामने है!

कुछ लोग टेंशन और परेशानियों का इलाज सेक्स समझते है. अगर ऐसा है तो यह भी एक नशा ही हुआ. जो एक बार इस में फंसा वो बाहर नहीं निकल पाया इस बात को इंटर नेट पर मिलयन डालर की सेक्स प्रोनोग्राफी से अच्छी तरह समझा जा सकता है. फ्री सेक्स और सेक्स से समाधि तक पर बात करने वाले प्रोनोग्राफी से बरबाद हुये लाखों लोगों के बारे मे भी सोचे. यह भी समझ लें की सेक्स उर्जा और समय खर्च करती है. जब आप सेक्स के बारे में सोचते है तो कोई दूसरा काम नहीं कर सकते.

वेसे भी अगर सेक्स से अपराध बोध होता हो तो वो और भी खतरनाक हो जाता है. 

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