Monday, November 17, 2008

रेगीस्तान ट्रेक


गोपालसर मोड आते ही बस कंडक्टर अवाज ने लगाई...और में उतर गया...ठसाठस भरी बस से बाहर निकलते जेसे सांस में सांस आई। पर तेज गर्म हवा के थपेडों का सामना हुआ। लगा जेसे किसी ने मुझे तंदूर के अदंर झोक दिया हो। जल्दी से अपने चेहरे को टावल से कवर किया। और तेजी से बरगद के पेड़ की छांव की तरफ दौड गया। इन्दरा गांधी नहर होने के कारण पानी हे और हरियाली भी. स्टेट हाइवे से दांयी तरफ का रास्ता रेंज में जाता हे. में अपने सिर और चेहरे को फिर से ढक लेता हू. एक चाय की दुकान, एक साइकिल पंक्चंर जोडने की दुकान, एसटीडी बूथ और एक ककडी बेचने वाले का हाथ ठेला और एक परचूनी की दुकान...बस यही गोपालसर चौराहा हे… भरी दुपहर में बस चाय वाला जागता सा दिखा।


दुपहर 2 बजे हे...मुझे ले जाने के लिये कोई कार या जीप दिखाई नहीं दे रही, 

शायद, आने वाली होगी! पेड की छांव में आराम करते कुछ लोग. चायवाला मुझे देखकर मुस्कराया उसे लगा की में चाय के लिये उससे कहूगा. चलो चाय पी जाये इस बहाने उससे कुछ बात भी हो जायेगी, पर इतनी गर्मी में चाय. बोटल के खोलते गर्म पानी से तो बेहतर ही होगी. मे उसे चाय बनाने का इशारा करता हू और समान लेकर उसके पास आकर बेंच पर बेठ जाता हू. भरी तपती दुपहरी में गर्मा गर्म चाय.

साहब रेंज जायेगे क्या?

हां..

पर अभी-अभी तो एक गाडी रेंज को गई.. बस थोडी सी देर हो गई.

कोई बात नहीं मेरे लिये अलग से गाडी आयेगी...

हां साहब, बिना गाडी के थोडी ही आप जायेगे और वो हंस दिया,

18 km अभी और जाना हे तब कही जाकर गेस्ट हाउस पहुंच पायेगे. देखा एक और बस आकर रुकी, एक जवान उसमे से उतरा और तेजी से हमारी तरफ आया. उसे देखकर में समझ गया की अब मे अकेला नहीं हू...एक मुसकराहट से अजनबी पन जाता रहा..

मेने उसके लिये भी चाय बनाने को कहा. हम दोनों ही एक घंटे तक गाडी का इतिजार करते रहे.
पेड की छांव में भी जेसे आग बरस रही हे...तेज गर्म हवा...मे बार बार पानी से अपना गला तर करता हू...पर ये गाडी क्यों नहीं आई अब तक ...! वो जवान भी शायद मेरे ही भरोसे पर हे...

क्यों तुम कैसे जाओगे...!

बस साहब थोडी देर इतिजार करते हे ..कोई गाडी आती हे तो ठीक वरना पैदल मार्च...

पैदल!!..18 km पैदल.... पागल हो गये हो क्या!

वो हंस दिया...हां साहब ये पागल कर देने वाली जगह हे...आज केंप में रिपोर्ट करना हे मुझे..अगर गाडी नहीं मिली तो पैदल ही जाना होगा...एक बार जा चुका हू...फिर हम तो जवान हे...पर आप...वो भी इतने सामन के साथ..?

‘अगर गाडी नही आई तो आप क्या करेगे’.

‘अरे गाडी ना आने का सवाल ही नहीं हे’.

नहीं साहब इतना भरोसा मत किजिये यहाँ कुछ भी हो सकता हे...

अरे डरा नहीं यार ...मेने हंसते हुये कहा!

डरा नहीं रहे सच कह रहे हे...रास्ता कभी भी बंद हो जाता है..रेत के चलते फिरते टीले...ये रेत के पहाड कभी भी रास्ता बंद कर देते हे. इतनी देर से कोई गाडी आती दिखाई नहीं दी...इसलिये शक बढ रहा है!

देखिये साहब अभी 4 बजे यहां से आखरी बस शहर जायेगी. आप चाहो तो वापस जा सकते हो..उसके बाद शहर जाने का कोई साधन नहीं...वेसे भी यहां रात में रुकने का कोई इतिंजाम नहीं....
देखो भाइ...वापस जाने का तो सवाल ही नहीं...रही गाडी की बात, तो हो सकता हे किसी कारण से देर हो रही हो...वो आयेगी...यार यहां मोबाइल भी तो काम नही कर रहा हे
हां साहब ना रेंज में काम करेगा ना यहां पर...बस इस std बूथ का ही सहारा हे...इसी से रेंज मे बात हो सकती है 

तो करके देखो 

टेलीफोन डेड है?


आखरी बस भी आकर चली गई..अपनी जिद्द या फिर ना समझी के कारण मे वापस नाही गया 

गाडी को ना आना था ना आई...शाम के 5 बज गये..जो लोग रुके हुये थे वो भी चले दिये...चाय वाला भी दुकान बंद करने लगा...जवान भी जाने के लिये बेचेन होने लगा..उसे हर हाल में आज रिपोर्ट करना हे ..

साहब अब में नहीं रुक सकता आप भी मेरे साथ चलिये कहो तो आप का सामान् मैं उठा लेता हू...मेरे पास एक लेप टाप बेग और एक ट्राली बेग और पानी की बोटल.. प्लास्ट्क की थेली में कुछ खाने का सामन.

मुझे भी चिंता ने आ घेरा...गाडी क्यों नही आई..मुझे बोला गया था की गाडी मेरा इतिंजार करेगी...एक बात साफ हो गई की अब यहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं...बस अब हम दो....साहब एक काम करते हे धीरे धीरे आगे बडते हे ...अगर कोई गाडी रास्ते में मिल गई तो ठीक वरना 9-10 बजे तक पहुंच ही जायेगे.

उसकी बात में दम था...अब यहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं...मुझे नहीं मालूम उन्होने गाडी क्यों नहीं भेजी..जो हुआ बुरा हुआ...अब हमें ही कुछ करना था..

शाम के 5 बज गये पर अभी भी हवा बेहद गर्म ...रेत से निकलती आग ...जवान के पास बस एक रग-शेक बेग उसने उसे कंधे पर लगाया और एक पानी की बोटल...अब वो जाने के लिये तैयार हे ...... आपना बेग मुझे दीजिये.... आप बिना बेग थोडा तेज चल पायेगे...मेरा ही फायदा होगा.. उसने हंसते हुये कहा....
 
लेपटाप मेने सँभाला, उसने Trolly बेग को ले लिया उसमे लगे पहिये..वो आसानी से उसे सड़क पर चलाने लगा...भला हो जिसने पहिये लगे बेग बनाये..जरूर वो एसे ही किसी जगह फंसा होगा और पहिये का ख्याल आया होगा. आदि मानव ने पहिया बनाया और VIP वालों ने पहिये वाला trolly bag...

रेत के पीछे छुपता सूरज का लाल गोला...आशचर्य मुगध और चकित सा उसे डूबता देखता रह गया...जो सारे दिन से आग बरसा रहा था..अब कितना शांत होकर विदा ले रहा हे. सूरज डूबते ही रेत तेजी से ठंडी होने लगी...आसमान में बदलते रंगो की छटा और किशन का गुनगुनाते हुये मस्ती से चलना ...देखा 1 घंटे में ही हम ने 5 km का रास्ता तय कर लिया. अभी भी बार बार पानी पी रहा हू। 2 लीटर की बोटल खत्म होने को आई..अब गला सूखने लगा.. किशन भी पसीने से नहा गया...मुझे देखकर मुस्कराया...

साहब..थक तो नहीं गये...

नहीं मेने अपनी सांसो को काबू में लेते हुये, मेने बोटल से चाय की तरह गर्म पानी के 2 घूटं पीया देखो किशन सामने गांव दिखाइ दे रहा है।

साहब इसे ही गोपाल सर गांव कहते हे इस रास्ते का सबसे बढा गांव. यहाँ से हो सकता हे कोई गाडी मिल जाये..कोई उट वाल जाने को तैयार हो जाये.. 20-25 घर का छोटा सा गांव...जमीन में शायद थोडा पानी हे। सब नहर के कारण. कुछ खेत दिखाई दे रहे हे. और खजूर के बहुत सारे पेड भी. गांव में एक भी ऊठ गाडी दिखाई नहीं दी...सब शहर में जो गये हे देर रात वापस आयेगे..अब क्या करे... अब गाडी मिलने की सारी उम्मीद खत्म हो गई हे...समझ गये सारा रास्ता पेदल ही जाना होगा...

घरो से उठता धुआ..शाम के खाने की तैयारी.....हम लोग थोडा सुस्ताने के बाद फिर से चल दिये...पूरब से उगता चाँद...मंत्र मुग्ध ..शाम के 7 बज गये पर अभी भी काफी रोशनी है। हम चलते रहे …चलते रहे गांव में पानी मिल गया था…वेसे भी अब हवा में ठडंक थी। पूर्व में चाँद उग आया… रेत पर बिखरती चांदनी...

अब मे कैसे बयान करू...बस देखता ही रह गया. शायद आज पूर्णिमा हे. अंधेरा होते–होते हमने आधे से ज्यादा रास्ता तय कर लिया...बस साहब 6-7 km के बाद चौकी मिल जायेगी..हो सकता हे वहां से हमे कुछ मदद मिल जाये.

नहीं किशन भाई आज मदद की कोई उम्मीद मत दिलाओ...मे हंस दिया...वो कुछ ना कुछ गाता रहा... देखा रास्ते के किनारे बंजारे रेत पर डेरा जमाये हुये हे...सडक के किनारे खाट पर हुक्का गुडगुडाता बूढा....मेने उसे नमस्ते की... तेज चलने के कारण पसीने से नहाया बदन..उसने हमें रुकने का इशारा किया

आप लोग पैदल..!!

हां दाद्दा आज गाडी लेने नहीं आई...

मालूम हे ... आज रास्ता बंद हे..आगे रेत ने सारा रास्ता बंद कर दिया...दुपहर बाद कोई गाडी नहीं निकली...मेरे लडके उधर ही काम पर गये हे...

ओह तो यह बात हे...

आप लोग थक गये हो। आज रात आराम करो..सुबह किसी गाडी से चले जाना..नही तो मेरी ऊठ गाडी आपको छोड आयेगी..

दद्दू की शुद्ध हिंदी सुनकर में चोंक गया...किशन थोडा सुस्ता लेते हे...उसने अपने पास ही दूसरी खाट लगवा दी...पता चला वो सेना में कभी जवान था...उसके लडके भी रेंज में ठेका लेते हे,..थोडी देर सुस्ताने के बाद किशन जाने की जिद्द करने लगा..उसे हर हाल में आज रिपोर्ट जो करना था...पर में उस बुजुर्ग के निमंत्रण को ना ठुकरा सका..चूल्हे पर सिकती रोटिया..भूख भडक उठी...उपर से थकान और चांदनी रात... यह दिलचस्प बुजर्ग...उससे बहुत सारी बाते करनी थी...मेने किशन को अपनी जरुरी जानकारी देकर उसे विदा किया...और में रुक गया.

खुली जगह पर लगा डेरा..सेकडो की तादाद में भेडे...4-5 ऊठ गाडी पर लदा घर का समान.... शाम का खाना खाते और मस्ती करते 10-12 बच्चे, 2 जलते चूल्हे..और उनके किनारे बेठी औरते. ये भरी दुपहर मे भी खुली जमीन पर डेरा लगाते हे. किसी पेड के नीचे डेरा लगाना इन्हे पसंद नही. तपती धूप मे उनके बच्चे यों रेत पर खेलते रहते हे जेसे दिस्मबर की सर्द सुबह मे धूप का आनंद ले रहे हो. अभी तक इन्हे दूर से ही देखा था..आज पहले बार इनके पास बैठा हू,,,किशन चला गया...

दद्दू...इस तपते रेगीस्तान मे बसे लोगों को लेकर बहुत से सवाल हे...आपने तो सेना की जिदंगी जी हे...शहर में भी रहे हो..वापस इस जिदंगी में आ गये कुछ समझ नहीं आया. एसा क्या हे यहां कि, लोगों यहा बसे हुये हे...क्या ये व्यवसायिक मजबूरी हे या फिर जमीन से जुडना हमारी फितरत ...कि जो जहां पैदा हुआ उसी जगह से जुड गया..उसे उसी जगह से प्यार हो गया. जीवन देने वाला एसा कुछ भी यहां नही हे...फिर भी आप यहां हो..और यह बंजारा जिदंगी..!

साहब आपने सच्च कहा...अब अगर इस जगह के बारे में समझना हे तो यहाँ कुछ दिन रह कर देखो. या तो भाग जाओगे...या फिर रुक जाओगे...अगर रुके तो सारे सवालों का जबाब तुम्हे खुद मिल जायेगा...और अगर भाग खडे हुये तो इसका मतलब यह की आपको मेरी बात समझ नहीं आयेगी...उसने गोल मोल जबाब दिया...और अपनी मूछों पर ताव देता हुआ मुस्कराने लगा.

उसकी बातों में दम हे...पर मेरा भूख से बुरा हाल...ब्च्चे मुझे घेर कर खडे हो गये..मै उन्हें टाफी देता हू...वो खुशी खुशी ले लेते हे...

आते ही बच्चो को बिगाडने लगी आप...वो हंसते हुये बोला.

अच्छा अब हाथ मूह धो लो ...और खाना खाओ...उसने पानी का लोटा मेरी और बढाते हुये कहा...

दद्दा एक बात बोलो आप पानी कहां से लाते हो।

साहब लडके उठ गाडि से रास्ते में जो गांव मिला था ना वहां से ले आते हे।

वो तो ठीक हे पर इतने सारे लोग फिर तुम्हारे जानवर भी हे नहाने धोने का काम …पानी तो बहुत लगता होगा।

नहीं साहब हमने कम पानी में जिंदा रहना सीख लिया हे कई बार तो एक बालटी पानी से ही हम सब का गुजारा हो जाता हे।

बस एक बाल्टी पानी …???दद्दू आपको मालूम हे अभी अभी 2-3 घटे में ही मेने इस पूरी बोतल का पानी पी लिया वो भी शाम के समय में।

जिंदगी सब सिखा देती हे साहब! जानवर क्या और आदमी क्या सब पानी का मोल जानते हे।

खाना शानदार रहा ..और शानदार रही उनकी मेहमानबाजी...देर रात तक वो गाते बजाते रहे..कुछ समझा..और बहुत कुछ ना समझ में आने वाले गीत संगीत...ठंडी रेत पर, नंगे पाँव घूमने लगा ...

साह्ब राते ठंडी होती हे...और खतरनाक भी...अकसर सांप और बिच्छू निकलते रहते हे. जरा देखकर चलना...

वो चाहे तो आसानी से इससे अच्छी जगह बस सकते हे पर फिर भी यहां हे और खुश हे..जिदगी को कुछ एसा बना लिया की, जो हे, जितना हे, उसी मे खुश...ये आधी बालटी पानी...मे 2 दिन निकाल देते हे...और हम 2 घंटे नही निकाल पाते. अपनी शारारिक जरूरतो को उसी हिसाब से ढाल लिया. खुश होने और खुश रहने के अपने- अपने तरीके...एक ही बात समझ आयी की कष्ट और दुख तुलनात्मक होता हे. अब यह हम पर हे की हम किससे तुलना करते हे.

सुबह 4 बजे ही ऊठों की आवाज ने मुझे जगा दिया...वो अभी अभी वापस आये हे, रास्ता साफ हो गया हे..सुबह होने को हे...पूर्व में लाली हवा में ठंडक...सूरज की सुनहरी किरणों के साथ भेड का दूध और रोटी का नाश्ता...अब ऊट की सवारी का आनंद लेने के लिये तैयार हू..

अरे तुम ...स्वामी की आंखे मुझे इतनी सुबह देखकर आश्चर्य से फेल गई. और फिर जेसे उसे कुछ समझ आ गया हो वो खुशी से चीख उठा ....और मुझे से कस कर लिपट गया...

मुझे कुछ समझ नही आया ...

क्या हुआ...!!

यार कल तुम्हे आना था..रास्ता बंद था तो गाडी नहीं भेज पाये..सब बोले की तुम गाडी नहीं देखकर 4 बजे वाली बस से वापस चले जाओगे...पर मुझे पता नहीं क्यों लगा की तुम नहीं जाओगे और किसी भी तरह बेस पर आजाओगे..बात की बात...हम लोगों में शर्त लग गई थी...अब जब रात तक तुम नहीं आये तो में यह शर्त के 500/- हार गया.

..पर अब लग रहा हे की तुम सच में वापस नहीं गये थे...तभी तो इतने सुबह बेस पर हो...हां तुमने सही कहा ...

पर मेरी खबर लेकर जवान नहीं आया आपके पास.?

नहीं तो!

हो सकता हे वो दूसरी रेजीमेंट का जवान रहा होगा..और फिर रात थी..जाने दो... मेरा हाथ पकडकर मेस ले जाने लगा...चलो अभी तो 500/- वसूल किये जाये।

देखा सब नाश्ते पर जमे हे..मुझे देखकर हेरत में...स्वामी को 500 मिल गये..वो जीत गया था...आज रात को जीत की पार्टी तय हे...पर उन्हे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा की में रात भर बंजारो के साथ था. उन्हें अभी भी लग रहा हे की में शहर से कार किराये पर लेकर सीधे बेस तक आ गया हू. वो बाहर आकर पक्का करते हे की में कोई गाडी लेकर नहीं आया हू.....और फिर बोले ..एक और सिरफिरा...

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