Sunday, February 20, 2011

हिन्दी में वेब साइट की जरुरत

सन 2002 तक 32% इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की प्रथम भाषा अँग्रेज़ी नहीं थी. विश्व भर में नान-इग्लिश के बीच में इंटरनेट की लोकप्रियता के कारण यह प्रतिशत बढ़ता ही जाएगा. विशेषकर तीसरी दुनिया में इसकी लोकप्रियता गोर करने लायक होगी. आगे आने वाले दिनों में इंटरनेट पर अँग्रेज़ी इस्तेमाल करने वाले अल्पमत में आ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं.


इंटरनेट जानकारी का मुख्य स्रोत बन गया है. इसके साथ ही लोग मेल और चेट के द्वारा बहुत तेजी से एक दूसरे से जुड़ रहे है. इस में कोई दो राय नहीं कि ओपरेटिंग साफ्टवेयर में आये सुधार के कारण विश्व की नान-इग्लिश आबादी अब तेजी से इंटरनेट से जुड़ती जा रही है.

इंटरनेट अब खरीदने, बेचने, बेंकिग और अन्य ग्राहक सेवाओं का एक जरूरी माध्यम है. ग्राहक और विपणन सेवाएँ देने वाली साइटें बहुत तेजी से स्थानीय भाषाओं का प्रयोग अपनी साइटों पर कर रही है. बाजार नियंता बहुत जल्द ही यह बात समझ गये कि अगर वे ग्राहक को उनकी अपनी भाषा और सांस्कृतिक पृष्ट-भूमि को ध्यान में रखकर अगर वो ग्राहक के पास पहुंचगे अधिक सफल होंगे. इस बात को टीवी, प्रिंट और फिल्म मिडिया ने बहुत ही जल्द समझा और वो ग्राहक को उसकी भाषा में अनुवाद या प्रसारण करने लगे. बाजार के ग्लोबल होने के बाद यह और भी जरूरी हो गया था.

अब ग्राहक को सेवाए दे रहे काल सेंटर हो या ग्राहक के दरवाजे की घंटी बजाता सेल्समेन वो ग्राहक की भाषा की अनदेखी नहीं कर सकता. बाजार में मोजूद अधिंकाश बहुराष्ट्रीय कंपनीयों को यह बात समझ में आ गई कि अगर बाजार में उन्हे अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी है तो उन्हे ग्राहक से उनकी भाषा बात करनी होगी. अब टीवी पर आने वाले प्रोग्राम हो या इंटरनेट वो इस बात की अनदेखी नहीं कर सकते.

सात इग्लिश बोलने वाले देशों को छोड कर अगर अन्य यूरोपीय, अफ्रीकन, एशियन देशों में जाए तो मालूम पड़ेगा की वो अपनी भाषाओं के साथ खुश है. उन्हें इस बात की ज्यादा चिंता नहीं है कि इग्लिश में बोल कर वो क्या बेच रहा है या क्या दे रहा है. वो अकसर अनदेखी कर देते है. इग्लिश उन्हें प्रभावित नहीं कर पाती. कई बार तो इग्लिश का असर ही उल्टा हो जाता है. वो उन्हें सुनना या देखना भी पसंद नहीं करते. यह बात इन देशों में जा कर ही समझा जा सकती है.



साधारण जन तक की भागीदारी देश के विकास में हो, यह उनकी अपनी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग से ही सुनिश्चित की जा सकती है. ज्ञान -विज्ञान उनकी अपनी भाषा में हो. इंटरनेट इसके लिये अब एक सफल माध्यम बन सकता है. कंप्यूटरों का प्रयोग में आम लोगों की भागीदारी तब शुरू होगी जब इसमें लिखी हुई जानकारी उनकी अपनी भाषा में हो। उनकी अपनी भाषा में बनी अधिक से अधिक साइटें साधारण जन को इंटरनेट से जुडने का एक बड़ा कारण बन सकती है. प्रिंट मिडिया दिनों दिन मंहगा होते जाने से यह और भी जरूरी हो गया कि पुस्तकों का सस्ता विक्लप उपलब्ध हो.

जितने ज़्यादा लोग इंटरनेट पर ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी हिन्दी और अन्य प्रचलित भारतीय भाषाओँ मे लिखेंगे उतने ही लोग कंप्यूटरों और इंटरनेट से जुडते जाएगे और कभी ना खत्म होने वाला सिलसिला फेलता जाएगा. जो अपने साथ विकास की असीम संभावनाए समेटे होगा.

अपने देश में हिन्दी में वेव साइट बनाने के बहुत सारे कारण गिनाए जा सकते है. पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है. 113 करोड़ की आबादी वाले इस देश में 50 से 68 करोड़ की प्रथम भाषा / मातृ भाषा हिन्दी है. 12 से 22 करोड़ की द्वितीय भाषा हिन्दी है. अगर हम राजनीतिक कारणों को दरकिनार कर दे तो हिन्दी का प्रचार एवं प्रसार देश के अहिन्दी क्षेत्रों में भी इग्लिश से बेहतर है. हिन्दी उन्हें अपने ज्यादा करीब लगती है.

लाखों अप्रवासी भारतीयों के कारण बंगला देश, सिंगापुर , अमेरीका, यमन, केन्या, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, फिलिपींस, न्यूजीलेंड, दक्षिण अफ्रिका, युगांडा यूएई, ब्रिटेन, जाम्बिया, बोटस्बाना, जर्मनी में हिन्दी लोकप्रिय है.

भारतीय जनमानस में कंप्यूटर और इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता और संचार माध्यम में आइ क्रांति से इंटरनेट अब देश के सुदूर हिस्सों में भी पहुंच गया है. यह अब कश्मीर से कन्या कुमारी तक आसानी से उपलब्ध प्रचार, मनोरंजन, प्रसार, ज्ञान और संपर्क का साधन है.

हिन्दी इस देश के करोड़ों जनमानस की अपनी भाषा है. अगर कोई कंपनी अपने ग्राहक के लिये हिन्दी में वेव साइट बनाती है तो हिन्दी में बनी वेब साइट देखकर उनके उपयोग कर्ताओं को लगता है कि ग्राहक के रुप में कंपनी उनका ध्यान रख रही है. वो ज्यादा प्रभावित होते है. अपने को भावनात्मक रूप से ज्यादा सुरक्षित महसूस करते है .

सर्च इंजन लोगों को इच्छित साइट पर पहुंचने में मदद करते है. आज चीन, जपान, और फ्रांस में गूगल, याहू या एम एस एन उतने लोकप्रिय नहीं है जितने उनके अपने घरेलू सर्च इजंन. ये उनकी अपनी भाषा में उनकी जरूरत को पूरा करते है. यह सीधे उनकी अपनी भाषा में बनी साइटों तक लोगों को पहुंचने में मदद करते है. और जब यह साइटे इनकी जरूरत पूरा कर देती है तो इन्हे अन्य किसी साइट पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती. इसका असर इंटरनेट पर मौजूद अन्य कंपनीयों पर जो इन देशों में अपना व्यवसाय करना चाहती थी, पर पडने लगा. इस बात को गूगल, याहू या एम एस एन ने जल्द ही समझ लिया. वे और अन्य सर्च इंजन उनकी भाषाओं में अपने क्षेत्रीय संस्करणों के साथ आने लगे.

यही हाल अब हमारे यहाँ होने लगा है. बड़ी संख्या मे इंटरनेट से ऐसे लोग जुड़ रहे है जो अग्रेंजी से कही ज्यादा हिन्दी के करीब है. युनीकोड के कारण हिन्दी में वेव साइट बनाना आसान हो गया. सर्च इंजन इन्हें आसानी से सर्च कर सकते है. गूगल, याहू या एम एस एन और अन्य सर्च इंजन हिन्दी के साथ सर्च और मेल करने की सहूलियत दे रहे है. लोग अब अपने ब्लाग हिन्दी में लिखने लगे है. अभी हाल ही में हिन्दी में विकिपीडिया इस तरफ उठा हुआ एक अभूतपूर्व कदम है । इससे वह सारी जानकारी आम लोगो तक पहुँच रही है, जो अन्य किसी साधन से दुर्लभ थी।

माइक्रोसॉफ्ट ने TBIL या TBIL Data Converter बनाया है. जो कि भारतीय भाषाओं मे लिखे हुए लेखों को एक फॉंन्ट से दूसरे फॉंन्ट मे बदल देता है। इस टूल का एक महत्वपूर्ण उपयोग तरह-तरह के नॉन-यूनिकोड फॉंन्ट्स मे लिखे हुए लेखो को यूनिकोड मे बदलने में है । इस प्रकार इंटरनेट पर उपलब्ध तमाम हिन्दी टैक्स्ट जो सर्च के लिये उपलब्ध नहीं थे. उसे TBIL से यूनिकोड में बदल कर सर्च के काबिल बनाया जा सकता है. इन साइटों पर मोजूद टूल्स की मदद से हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में वेब पेज आसानी से बनाए जा सकते है.

आज विंडो XP प्रोफेशनल ऑपरेटिंग सिस्टम और उसके बाद के ससंकरण वेब पेज बनाने में मददगार हो रहे है. हिन्दी मे ईमेल लिख्नना और वेब पेज बनाना बहुत ही असान हो गया है । अब् आप किसी भी साधारण ईमेल सॉफ्टवेयर से हिन्दी में ईमेल लिख सकते हैं । जैसे माइक्रोसॉफ्ट आउटलुक, जीमेल, याहू इत्यादि । हिन्दी में इंटरनेट पर आसानी से वेबपेज बनाने के लिये आजकल कई मुफ्त टूल उपलब्ध हैं ।

हिन्दी का प्रचार और प्रसार सिर्फ संवेधानिक प्रतिबद्धता ना रहकर अब ग्लोबल बाजार की जरूरत है. बहुराष्ट्रिय कंपनीयों ने इसे समझ लिया है. हम और आप भी इस बात को जितना जल्दी मझ कर अपना सक्रीय सहयोग देंगे उतना ही हमारे अपने भविष्य के लिये अच्छा होगा.



2 comments:

  1. यह अंग्रेजी का परचम ही है की उसने sms का इजाद कर अपने ही व्याकरण की धज्जियां उडा दी, और समय की मांग के अनुसार sms का नया व्याकरण ही बना डाला. उसका असर यह है की संसार भर के युवाओं में एक बार फिर अपना दब दबा बनाने में कायम हो रही है. और हम है की हिंदी की शुद्धता के पीछे पडे हुये है और उसमे नये प्रयोग से डर रहे है. जहां अंग्रेजी दुनिया भर की भाषाओं से नये शब्द लेकर खुद को विशाल बनाती जा रही है. वंही हम इसमे इसलिये कोई शब्द शामिल नही करना चाहिये क्योंकी वो अंग्रेजी से है. अंग्रेजी या किसी और भाषा के शब्दों का प्रयोग आम जनता करना चाहती है तो क्या गुनाह हो गया. आप कब तक जंजीरों और बेडियों में हिंदी को जकडे रहोगे...उसे खुली हवा में सांस लेने दो. उसे महा सागर बनने दो ऐसा महासागर जिसमे सब भाषाओं की नदियां समा जाये. और सच्चे अर्थों में इस देश की राष्ट्र भाषा बन सके. एसी भाषा जिसे कोई भी मंत्री या संत्री किसी मंच से बोलकर शान का अनुभव करे और उसे भरोसा हो की वो जो बोला रहा है उसे सुनने वाला समझ भी रहा है. भाषा तो एक बहती नदी है, उसकी बहती धारा को रोकोगे तो उसके पानी में सडान पैदा हो जायेगी ...हमने संस्कृत जेसी महान भाषा को बे मौत मार दिया ..अब ऐसा कम से कम हिंदी के साथ तो ना हो.

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  2. अच्छा होता अगर सारे देश मे कम से कम लिखने की एक लिपी होती. अभी तो गुजरात मे गुजराती, केरल मे मलियाली, तामिलनाडू मे तमिल, कर्नाटक मे क्न्न्ड, आंध्रा मे तेलगू, और बंगाल मे बंगला मे लिखा जा रहा है. एक राज्य का पढा लिखा व्यक्ति दूसरे राज्य मे अनपढ सा हो जाता है. बसों पर लिखे जगहों के नाम तक दूसरों से पूछने पढते है. इस दुविधा को हमारे जेसा घुम्मकड ही समझ सकता है. यह देश हर साल सेकडो कानून बनाता है ...काश एक देश एक लिपी पर भी एक कानून सर्व सम्मति से बना कर लागू कर लिया होता. इसके लिये हिंदी को मूल लिपि मानते हुये उसमें दूसरे भाषा की वो ध्वनी वाले अक्षर सम्मिलित किये जा सकते है जो इसमे नहीं है. ...आप सब का क्या विचार है.

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