पानी हमेशा से एक सामुदायिक संपत्ति रहा है। पुराने समय में पानी लेने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी क्योंकी इसके लिये नदी और तालाब जेसे स्रोतों के पास जाना पडता था या कुओं, बावडी, से पानी खीचना पडता था, लेकिन आधुनिक सदी में घर में पानी के सीधे पाइप से पहुंचा दिया। इससे हमारी मानसिकता में भी बदलाव आ गया। अब हम बड़ी आसानी से पानी ले लेते हैं। पानी का इतनी आसानी से मिल जाने से ही पानी की बरबादी शुरू हुई। इसका नतीजा ये हुआ की भूमिगत जलस्तर घट रहा है, हैंडपंपों में पानी खत्म हो रहा है। कुएं और बाबडी सूख रहे है. हमारी नादानियों के कारण पानी के मूल स्रोत नदी और तालाब और भूमिगत जल प्रदूषित हो रहे है.
महानगरों की आबादी का दबाब के कारण नलों में पानी हमेशा नहीं रहेगा। पानी की कमी के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं, उन्हें सीखना चाहिए कि पानी को कैसे और कितना इस्तेमाल करना है। पहले हैंडपंप से या कुओं से पानी खींचकर लोग सिमित पानी इस्तेमाल करते थे. खर्च हुये पानी की भरपाइ मानसून से हो जाया करती थी, लेकिन अब तो घरों में नल और फव्वारों से बेशर्मी की हद तक बरबादी होती है. पूरा का पूरा शहर भूमिगत जल से पानी लेकर उसे पीने और नहाने धोने का कार्य कर रहा है. उसका असर यह हुआ की भूजल तेजी से नीचे जा रहा है. किसी शहर में पानी की कमी होना एक भयावह स्थिति है। अगर हमारे पास पानी ही नहीं होगा तो 8-9 फीसदी आर्थिक विकास की बातें करना सब बेमानी ही है। कारखाने बंद हो सकते हैं। बड़ी मात्रा में विस्थापन हो सकता है।
ठीक है कुछ शहरों में ऐसी स्थिति हो सकती है जहां पानी थोड़ा-थोड़ा टुकड़ों में मिलता रहे पर बाकी शहरों में तो स्थिति भयावह ही होगी। इतिहास में एसे बहुत से शहर और सभ्यताए दर्ज है जो पानी की कमी की वजह से ही खत्म हो गये। पानी के लिए युध्द, शायद आज असंगत लगे पर जरा सोचिये, अगर हमारे शहर में दो तीन वर्ष लगातार मानसून धोखा दे जाये? आप देख रहे हैं कि आज गली महोल्लों में पानी के मारामारी तो मची रहती है, या फिर तमिलनाडू और कर्नाटक का जल विवाद हो या भारत-पाक जल विवाद हो या मलेशिया और सिंगापुर के बीच भी पानी को विवाद इसे लेकर संबंधों में तनाव स्थिति पहले से और खराब होती जा रही है.
अगर किसी ने 50 साल पहले कहा होता की एक दिन लोग पानी को बोतलबंद करके अच्छे दामों पर बेचेंगे तो शायद उसे लोग पागल समझते। लेकिन आज हो रहा है। पानी का निजीकरण हो रहा है। ऐसे में ही पानी की कालाबाजारी शुरू होती है। लोगों का शोषण और नियंत्रण करने के लिए पानी का इस्तेमाल होगा। आम आदमी पानी की कमी की मार झेल रहा है, जबकि दूसरी ओर पांच-सितारा होटलों में लोग आधे-आधे घंटे तक नहाते रहते हैं। यानी अगर आपके पास पैसा है तो आज आप पानी खरीद कर उसे बरबाद कर सकते है, पर वो दिन अब दूर नहीं जब पैसा भी पानी को नही खरीद पायेगा.
पानी की बरबादी रोकने के लिये और उसका एक समान वितरण के लिये सरकार द्वरा जल कर पूर्ण समाधान नहीं हो सकता क्योंकी यह पक्षपात पूर्ण है. इससे सिर्फ पैसे वाले लोग ही पानी को खरीदेंगे, जो पानी का मूल्य नहीं चुका पायेगे उन्हें यह नहीं मिल पाएगा। यह तो अन्याय होगा क्योंकी पानी तो एक बुनियादी जरूरत है.
ठीक है कुछ शहरों में ऐसी स्थिति हो सकती है जहां पानी थोड़ा-थोड़ा टुकड़ों में मिलता रहे पर बाकी शहरों में तो स्थिति भयावह ही होगी। पानी ज्यादा मात्रा में उपलब्ध नहीं है। पानी की समस्या का समाधान जल सरंक्षण, पानी को रिसाइकिल (परिशोधन), पानी का बुद्धीपूर्ण इस्तेमाल है, गंदे पानी को इस तरह रिसाइकिल (परिशोधन) किया जाना चाहिये की वो पीने के योग्य बन जाये. सिंगापुर इसका एक अच्छा उदाहरण है वहां गंदे पानी को रिसाइकिल (परिशोधन) किया जा रहा है और एक टी.वी. पर प्रसारित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी वही परिशोधित पानी पिया था।
पानी का अधिक उपयोग सफाइ और धुलाइ में होता है. हमे उसके विकल्प को बढावा देना होगा. जो इस काम में पानी का कम से कम उपयोग सुनिश्चित कर सके. जेसे एरीयेटेड वाटर (हवा और पानी मिश्रित) वाले नल और शावर. एरीयेटेड वाटर पानी की खपत को सीधे 40% तक कम कर सकता है. हमे इजराइल जेसे देश से कम से कम पानी में खेती करने की तकनीक सीखनी चाहिये. जंगल और खनिज की तरह भूमिगत जल भी देश की संपत्ति मानकर इसके दोहन को नियंत्रित करना चाहिये. जल हार्वेस्टींग को विकल्प के तोर पर ना देखकर उसे गंभीरता से लेना चाहिये.
हम कार्बन पाइंट की तरह ही जल पाइंट अपनाकर पानी खर्चने की सीमा तय कर सकते है उससे ज्यादा खर्च करने वाले को फाइन और उससे कम खर्च करने वाले को प्रोत्साहन देने के लिये उसे इनाम दे सकते है वेसे ही जेसे कार्बन पाईंट दुनिया भर में उद्योग कमा रहे है इस विचार को आम जनता के बीच प्रचलन में लाना चाहिये जिससे कम से कम पानी के इस्तेमाल के लिये सभी प्रोत्साहित हो सके. पानी बचाना मतलब पैसा कमाना।
महानगरों की आबादी का दबाब के कारण नलों में पानी हमेशा नहीं रहेगा। पानी की कमी के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं, उन्हें सीखना चाहिए कि पानी को कैसे और कितना इस्तेमाल करना है। पहले हैंडपंप से या कुओं से पानी खींचकर लोग सिमित पानी इस्तेमाल करते थे. खर्च हुये पानी की भरपाइ मानसून से हो जाया करती थी, लेकिन अब तो घरों में नल और फव्वारों से बेशर्मी की हद तक बरबादी होती है. पूरा का पूरा शहर भूमिगत जल से पानी लेकर उसे पीने और नहाने धोने का कार्य कर रहा है. उसका असर यह हुआ की भूजल तेजी से नीचे जा रहा है. किसी शहर में पानी की कमी होना एक भयावह स्थिति है। अगर हमारे पास पानी ही नहीं होगा तो 8-9 फीसदी आर्थिक विकास की बातें करना सब बेमानी ही है। कारखाने बंद हो सकते हैं। बड़ी मात्रा में विस्थापन हो सकता है।
ठीक है कुछ शहरों में ऐसी स्थिति हो सकती है जहां पानी थोड़ा-थोड़ा टुकड़ों में मिलता रहे पर बाकी शहरों में तो स्थिति भयावह ही होगी। इतिहास में एसे बहुत से शहर और सभ्यताए दर्ज है जो पानी की कमी की वजह से ही खत्म हो गये। पानी के लिए युध्द, शायद आज असंगत लगे पर जरा सोचिये, अगर हमारे शहर में दो तीन वर्ष लगातार मानसून धोखा दे जाये? आप देख रहे हैं कि आज गली महोल्लों में पानी के मारामारी तो मची रहती है, या फिर तमिलनाडू और कर्नाटक का जल विवाद हो या भारत-पाक जल विवाद हो या मलेशिया और सिंगापुर के बीच भी पानी को विवाद इसे लेकर संबंधों में तनाव स्थिति पहले से और खराब होती जा रही है.
अगर किसी ने 50 साल पहले कहा होता की एक दिन लोग पानी को बोतलबंद करके अच्छे दामों पर बेचेंगे तो शायद उसे लोग पागल समझते। लेकिन आज हो रहा है। पानी का निजीकरण हो रहा है। ऐसे में ही पानी की कालाबाजारी शुरू होती है। लोगों का शोषण और नियंत्रण करने के लिए पानी का इस्तेमाल होगा। आम आदमी पानी की कमी की मार झेल रहा है, जबकि दूसरी ओर पांच-सितारा होटलों में लोग आधे-आधे घंटे तक नहाते रहते हैं। यानी अगर आपके पास पैसा है तो आज आप पानी खरीद कर उसे बरबाद कर सकते है, पर वो दिन अब दूर नहीं जब पैसा भी पानी को नही खरीद पायेगा.
पानी की बरबादी रोकने के लिये और उसका एक समान वितरण के लिये सरकार द्वरा जल कर पूर्ण समाधान नहीं हो सकता क्योंकी यह पक्षपात पूर्ण है. इससे सिर्फ पैसे वाले लोग ही पानी को खरीदेंगे, जो पानी का मूल्य नहीं चुका पायेगे उन्हें यह नहीं मिल पाएगा। यह तो अन्याय होगा क्योंकी पानी तो एक बुनियादी जरूरत है.
ठीक है कुछ शहरों में ऐसी स्थिति हो सकती है जहां पानी थोड़ा-थोड़ा टुकड़ों में मिलता रहे पर बाकी शहरों में तो स्थिति भयावह ही होगी। पानी ज्यादा मात्रा में उपलब्ध नहीं है। पानी की समस्या का समाधान जल सरंक्षण, पानी को रिसाइकिल (परिशोधन), पानी का बुद्धीपूर्ण इस्तेमाल है, गंदे पानी को इस तरह रिसाइकिल (परिशोधन) किया जाना चाहिये की वो पीने के योग्य बन जाये. सिंगापुर इसका एक अच्छा उदाहरण है वहां गंदे पानी को रिसाइकिल (परिशोधन) किया जा रहा है और एक टी.वी. पर प्रसारित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी वही परिशोधित पानी पिया था।
पानी का अधिक उपयोग सफाइ और धुलाइ में होता है. हमे उसके विकल्प को बढावा देना होगा. जो इस काम में पानी का कम से कम उपयोग सुनिश्चित कर सके. जेसे एरीयेटेड वाटर (हवा और पानी मिश्रित) वाले नल और शावर. एरीयेटेड वाटर पानी की खपत को सीधे 40% तक कम कर सकता है. हमे इजराइल जेसे देश से कम से कम पानी में खेती करने की तकनीक सीखनी चाहिये. जंगल और खनिज की तरह भूमिगत जल भी देश की संपत्ति मानकर इसके दोहन को नियंत्रित करना चाहिये. जल हार्वेस्टींग को विकल्प के तोर पर ना देखकर उसे गंभीरता से लेना चाहिये.
हम कार्बन पाइंट की तरह ही जल पाइंट अपनाकर पानी खर्चने की सीमा तय कर सकते है उससे ज्यादा खर्च करने वाले को फाइन और उससे कम खर्च करने वाले को प्रोत्साहन देने के लिये उसे इनाम दे सकते है वेसे ही जेसे कार्बन पाईंट दुनिया भर में उद्योग कमा रहे है इस विचार को आम जनता के बीच प्रचलन में लाना चाहिये जिससे कम से कम पानी के इस्तेमाल के लिये सभी प्रोत्साहित हो सके. पानी बचाना मतलब पैसा कमाना।
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