जैसे ही मेने ब्रेड प्लेट से उठाइ देखा एक चीटीं तेजी से प्लेट पर ब्रड की तरफ आ रही है. मुझे उस पर थोडा सा गुस्सा आया...इस भुख्ख्ड को मेरी ही ब्रेड मिली...फिर अचानक मुस्कराया...चलो छोटी सी जान हे कितना खायेगी, इसे ब्रेड खाने देते है... मै इतिंजार करने लग की कब वो ब्रेड खायेगी......मेरे आशचर्य का ठिकाना नहीं रहा जब देखा की वो ब्रेड के नजदीक तो चली आइ पर ब्रेड को छुआ भी नही और वापस लोट गई. ..उसकी इस अजीब हरकत ने मुझे अचंभे में डाल दिया. मैं ब्रेड खाना छोडकर... मेग्नीफाईंग ग्लास लेकर अपनी खोजी नजर उस पर टिका दी.
में ध्यान से उसे देखने लगा. वो कभी दांये..कभी बांये प्लेट पर घूम रही है....बैचेन सी. मैं ध्यान से उसकी हर हरकत को देखने लगा. उसका एटंना कभी दाये होता कभी बाये...जेसे किसी सिग्नल को पकडना चाहती हो. वो अकेली मेरी प्लेट पर थी. वो प्लेट से बाहर की और जाने लगी... वो बिना खाये ही प्लेट से वापस जा रही थी. मुझे उसका बर्ताव समझ नई आया. अगर उसे ब्रेड नहीं खानी थी तो मेज पर आयी क्यों. वो भी प्लेट के उपर ब्रेड के इतने नजदीक.
उसके जाते ही मेने जेम और मख्खन लगी ब्रेड का एक बड़ा सा बाइट लिया और उसे फिर ध्यान से देखने लगा...उसकी चलने की तेजी...पूरी मेज पर भागती फिरती..जैसे कुछ खोज रही हो.
वो पिछले द्स मिनिट से बिना रुके तेजी से इधर उधर भाग रही है ...इन सब मैं मुझे आफिस जाने का ख्याल भी नहीं रहा. लगा जेसे वो रास्ता भटक गई है.
डरी सी सहमी सी छोटी जान. शायद उसे किसी तीखी गंध ने अपने ग्रुप से भटका दिया था...या फिर हो सकता है किसी हवा के झोके ने उस इस मेज पर ला पटका हो. उसने 15 सेंकड से भी कम समय में मेज से एक सिरे से दूसरे सिरे तक की दूरी नाप ली. उसकी तेजी देखनेलायक थी. अगर वो मेरी जितनी बडी होती तो इसका मतलब था 15 सेंकड मेँ 2 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर. ऐसा वो आधे घंटे से कर रही है. उसकी तेजी में अभी भी कोई कमी नहीं.
ना जाने कितनी ताकत समायी है उसमे. उसकी बैचेनी अब देखी नहीं जाती, मुझे उसकी मदद करनी चाहिये. उसे कागज के टुकडे के सहारे में उठाकर अपने आस पास देखता हू...सामने की दीवार पर एक चीटींयोँ के कतार है, में उसे वहां छोड् देता हू. मुझे नहीं मालूम की वो उसके अपने है या पराये. पर वो उनमेँ घुलमिल गई है. अब मैं उसे नहीं पहचान सकता. आफिस के लिये वेसे ही देर हो गई है काश उस जैसी स्पीड और ताकत मुझे भी मिल जाये
में ध्यान से उसे देखने लगा. वो कभी दांये..कभी बांये प्लेट पर घूम रही है....बैचेन सी. मैं ध्यान से उसकी हर हरकत को देखने लगा. उसका एटंना कभी दाये होता कभी बाये...जेसे किसी सिग्नल को पकडना चाहती हो. वो अकेली मेरी प्लेट पर थी. वो प्लेट से बाहर की और जाने लगी... वो बिना खाये ही प्लेट से वापस जा रही थी. मुझे उसका बर्ताव समझ नई आया. अगर उसे ब्रेड नहीं खानी थी तो मेज पर आयी क्यों. वो भी प्लेट के उपर ब्रेड के इतने नजदीक.
उसके जाते ही मेने जेम और मख्खन लगी ब्रेड का एक बड़ा सा बाइट लिया और उसे फिर ध्यान से देखने लगा...उसकी चलने की तेजी...पूरी मेज पर भागती फिरती..जैसे कुछ खोज रही हो.
वो पिछले द्स मिनिट से बिना रुके तेजी से इधर उधर भाग रही है ...इन सब मैं मुझे आफिस जाने का ख्याल भी नहीं रहा. लगा जेसे वो रास्ता भटक गई है.
डरी सी सहमी सी छोटी जान. शायद उसे किसी तीखी गंध ने अपने ग्रुप से भटका दिया था...या फिर हो सकता है किसी हवा के झोके ने उस इस मेज पर ला पटका हो. उसने 15 सेंकड से भी कम समय में मेज से एक सिरे से दूसरे सिरे तक की दूरी नाप ली. उसकी तेजी देखनेलायक थी. अगर वो मेरी जितनी बडी होती तो इसका मतलब था 15 सेंकड मेँ 2 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर. ऐसा वो आधे घंटे से कर रही है. उसकी तेजी में अभी भी कोई कमी नहीं.
ना जाने कितनी ताकत समायी है उसमे. उसकी बैचेनी अब देखी नहीं जाती, मुझे उसकी मदद करनी चाहिये. उसे कागज के टुकडे के सहारे में उठाकर अपने आस पास देखता हू...सामने की दीवार पर एक चीटींयोँ के कतार है, में उसे वहां छोड् देता हू. मुझे नहीं मालूम की वो उसके अपने है या पराये. पर वो उनमेँ घुलमिल गई है. अब मैं उसे नहीं पहचान सकता. आफिस के लिये वेसे ही देर हो गई है काश उस जैसी स्पीड और ताकत मुझे भी मिल जाये
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