Wednesday, June 29, 2016

मंथन ...गुलाम बनना तुम्हारी अपनी फितरत है इश्वर की मर्जी नही

प्राकृतिक नियम सब के लिये बराबर है फिर चाहे वो पापी हो, धार्मिक हो, या अधर्मी, चोर हो या साहूकार, बालात्कारी हो, सच्चा हो या झूठा, हिंसक हो या अहिंसक, ब्राहम्ण हो या शूद्र, हिन्दू हो या मुस्लिम.
सब पर समान भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान के नियम लागू होते है. सब एक ही हवा मे सांस लेते है एक ही सूर्य की रोशनी को ग्रहण करते है. प्राकृति इसमे कोइ फरक नही करती है. बाढ, भूकंप हो या सुनामी जेसे प्राकृतिक प्रकोप उसके लिये सब इंसान बराबर है. उनका इससे बचना और ना बचना पूरी तरह प्राकृतिक नियम के हिसाब से होगा. विज्ञान ने इन नियमों को समझकर जो प्रगति की है वो किसी से छुपी नही है.
गुलाम बनाना एक सोची समझी समाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसे पुरातन काल से इस्तेमाल किया जा रहा है.  फिर वो चाहे शरारिक गुलामी हो या मानसिक गुलामी हो. इन नियमों का इस्तेमाल कर अधिसंख्यों को गुलाम बनाया जाता है. जिससे वो उन की मेहनत के बल ताकतवर बन सके और राज कर सके.
डर, लालच, अहंकार और ताकत के बल पर पर किसी को हराया जाता है,  उसे नीचा दिखाया जाता है, और गुलाम बनाया जाता है। गुलाम की औलाद गुलाम मानसिकता की हो जाती है, अशिक्षा और धर्म इसका हथियार है।   इन नियमों को समझकर कोइ भी अपनी और अपनों की प्रगति कर सकता है. दूसरों को गुलाम बना सकता है. गुट बना सकता है, उसका संचालन कर सकता है. इसीलिये जब इन नियमों को समझकर उस शक्ति को प्राप्त करने का यत्न करता है तो उस क्षेत्र मे पहले से मोजूद ताकते घबरा जाती है.
सत्ता और ताकत के इस खेल मे कोन सच्चा हमदर्द है और कोन नही उसे गुलाम  मानसिकता मे रह कर समझना आसान नही होता है. क्योंकी उस समय हम किसी ओर की नजरिये से देख रहे होते है. वो गलत बोले तो गलत वो अगर सही बोले तो सही. उस पर भी लोग मानसिक गुलामी के इतने आदी हो जाते है की वो इसे अपनी नियती ही समझ लेते है. एसे मे जो उन्हे इससे मुक्त करना चाहता है, गुलामी के दल दल से निकालना चाहता है वो उन्हे ही अपना दुश्मन समझ बैठते है. उन्हे पता भी नही होता की कोन उनका सच्चा हमदर्द है और कोन उन्हे मात्र अपने मतलब के लिये इस्तेमाल करना चाहता है.
जिन 85% को जगाने की बात हो रही है अगर वो सच मे जाग गये तो यह एक महा विस्फोट से कम नही होगा. जिसे ताकतवर सत्ताधीश कभी नही होने देंगे. साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल करते हुये उसे दबाने और खत्म करने की भरसक कोशिश करते है। अगर जरूरत पडी तो एसे विद्रोही नेता को या तो लोग खत्म कर देगे या फिर अपने मे शामिल कर लेगे. इस तरह एसा आंदोलन अपने आप खत्म हो जायेगा. कभी जाति , कभी धर्म , कभी अपने , कभी पराये, तो कभी रष्ट्र द्रोही तो कभी रष्ट्र वोरोधी का नाम देकर अधिसंख्यों को खुश और गुमराह करने का काम चलता रहता है.
कुछ दिन पहले गरीबी का विज्ञान पढ रहा था. उसमे एक मजेदार बात कही गई की अमीर अगर अपनी संपत्ती का थोडा सा भाग दान पुण्य करता रहे और उसके भांड उसे बढा चढाकर लोगों को बताते रहे तो एसे अमीर के विरूध गरीब कभी विद्रोह नही करेगा. बल्की  उसे अपना नेता मानकर उनकी पूजा करेगा उनकी हर बात मानेगा. यह एसा ही नियम है जिसे हर समझदार अमीर और ताकतवर आदमी पालन करता आ रहा है. जरूरत पढने पर एसे अमीरों के लिये गरीब मर मिटेगा पर उसका बुरा नही होने देगा. क्योंकी एसे अमीर की इमेज एक दानी और धार्मिक की होती है.
गुलामों को कभी एक जुट ना होंने दो. उन्हे जात पांत धर्म रंग लिंग के नाम पर बांट कर रखो. इस नुस्खे को इस्तेमाल कर अंग्रेजों के 200 साल तक राज किया और इसी का इस्तेमाल कर राजनैतिक पार्टीयां आज भी इस देश में अपना उल्लू सीधा कर रही है.
ये लोग काल्पनिक संकट दिखाकर उन्हे समय समय पर अपने छुपे हुये उद्देशय के लिये इस्तेमाल करते रहते है. जरूरत पडी तो संकट पैदा कर दिया. वो मात्र उन्हे अपने उद्देशय के लिये इस्तेमाल करने के लिये उनकी भावनाओं को इस कदर भडकाते है वो मर मिटने को तैयार हो जाते है. आग भडका कर सही समय पर वंहा से किस तरह खिसकना है वो यह अच्छी तरह जानते है 
एसे ही बहुत से लिखित और अलिखित नियम है जिसे अपनाकर सत्ताधीश ताकतवर बनते है. मजे दार बात यह है की शोषक और शोषित मे गहरा रिशता है, हम एक ही समय मे शोषक और शोषित होते है। हम केसी का शोषण कर रहे होते है और कोई हमारा शोषण कर रहा होता है। शोषण का सीधा मतलब  मेहनत का सही मूल्य ना देना।  डर , हिंसा, अशिक्षा, इसके हथियार है। भावनात्मक शोषण भी  एक तरीका है जिसके द्वारा लोग आसानी से किसी का शोषण कर देते है और सामनेवाले को पता ही नाही चलता , नेता भावनात्मक अपील कर अपना उल्लू सीधा करता है। हर शोषक शोषित का इसी तरह से शोषण करता है. यह  आपको हर गल्ली महोल्लों मे भी दिखाई देगा. 
लालच, सत्ता का खेल मे आनेकता को घृणा की हद तक भडकाया जाता है. वो इसे हर कीमत पर बनाये रखना चाहते  है. उसके लिये मानवता का खून होता है तो होने दो. मानवता लज्जित होती है तो होने दो हर किसी को अपना धर्म और जाति, संकट मे नजर आती है. देखा नही किस तरह हर दंगे मे भीड लूट, हत्या और बालात्कार का नंगा नाच करती है. सार्वजनिक संपत्ती को बरबाद करती है.
बाजारवाद के इस युग में जब सब कुछ बिकाउ है. जो पहले से ताकतवर है वो और ताकतवर होते जा रहे है. मुक्ती भले ही बलिदान मांगती है. जो इसके लिये तैयार हो गया उसे भी ये लोग केसे अपने मतलब के लिये इस्तेमाल करना है अच्छी तरह जानते है. हम मे से 85% अपने दिमाग का इस्तेमाल इनके हिसाब से घटनाओं का विशलेषण करने मे लगाते है. असल मे हमे विश्वास ही नही होता की हमारी कोइ स्वतंत्र सोच भी हो सकती है. अगर कोइ स्वतंत्र सोच पैदा करता भी है तो एसे लोगों को वो राष्ट्र द्रोही, नकस्लवादी और आंतक वादी घोषित कर देते है सत्ता उन्हे “Enemy of State” घोषित कर देती है.
 इसे इश्वर की मर्जी कभी न समझे. इश्वर का इस सबसे कोइ लेना देना नही है. गुट बनाना हमारी नियती है. क्योंकी पुरातन काल से ही यह समझ आ गया की गुट मे रहना अकेले रहने से ज्यादा सुरक्षित और आसान है. स्वतंत्र सोच जेसा कुछ नही है. जिंदा रहने का पूरा खेल गुट बनाने का है. गुट होगा तो कोइ नेता होगा. और बाकी उसके रास्ते पर चलने वाले होंगे. उन्हे आप उस नेता का गुलाम कह सकते है. पहले मुझे यह समझ नही आता था की केसे हजारों लाखों लोग की भीड ये लोग जुटा लेते है. पर अब समझ आ रहा है.  गुट बनाना हमारे DNA मे है , हो सकता आप सब को भी यह सब समझ आ रहा होगा.
जिसे आप सरकार कहते है दुनिया का सबसे ताकतवर शोषक है। अब भारत का उदाहरण देता हू। आपको जानकार अचरज होगा की हम सब माध्यम वर्गीय लोग साल के 6 महिने सरकार के लिए बेगार करते है। आपकी बेगार से ये आलीशान  महल मे रहते है। ताकत का भोंडा प्रदरशन और दिखावा करते है । इसमे कुछ कम पड़ जाये तो लाखो करोड़ों का कर्ज जनता की भलाई के नाम पर लिया जाता है। दुनिया भर की सरकारे पूजीपतियों का सरक्षण करती है। जो नेता आपके वोटो से जीता है , वो जीतने के बाद आपको अपने आस पास भी फटकने नही देगा। बस दिखावा जरूर करेगा की आप ही उसके माइबाप हो पर मौका मिलते ही ....इसे ही लोकतन्त्र कहते है। 
आप सब ने देखा और सुना होगा की केसे कोई दस बीस साल मे जो फट्वेहाल था लाखो करोड़ों का मालिक बन गया। और एक दिन शादी ब्याह के नाम पर अपनी दौलत का बेहद  बेशर्म प्रदर्शन करता है। सरकार उसके लिए रेड कारपेट बिछाती है , पूरे देश का मीडिया उसे कवर करता है। कोई नही पूछता की इतनी दौलत केसे उसकी हो गई। 
आप की मर्जी की आप किन गुटों को अपना समझते है और किसे पराया. जब कोइ सिरफिरा आपकी भावनाओं को भडका रहा हो तो अपनी चेतना का इस्तेमाल करते हुये निर्णय करे. किसी को भी अपना नेता तो बना सकते है पर उसे अपना भगवान बनाने की भूल कभी ना करे. उसके अंधभक्त ना बने.
एक बात अच्छी तरह समझ ले जो आप दूसरों के साथ करते है, आज नही तो कल वो सब आप के साथ भी होगा. आज आप किसी को काट रहे है कल इसी तरह कोइ आपको काटेगा. आज आपको मोका मिला तो आपने लूटा ...कल उसे मोका मिलेगा तो वो आप को लूटेगा. यह सिलसिला चलता रहेगा जब तक की आप यह समझ नई जाते  की आप इस जगत मे लूटने और लुटने  के लिये नही आये है उस दिन आप खुद इशवाररीय हो जायेगे तब आप आसानी से इस बात को भी समझ जायेगे की गुलाम बनना तुम्हारी अपनी फितरत है इश्वर की मर्जी नही. 
देश और धर्म की परिकल्पना ही शोषण पर आधारित है, देश बनाना और देश चलाना दोनों ही शोषण के उदाहरण है। पता नही मानव कब एक दूसरे को दुशमन समझना बंद करेगे। जब तक इन दोनों का वजूद है तब तक शोषण होता रहेगा। 


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