गेस्ट हाउस केयरटेकर
ने मुझे सुबह चार बजे उठा दिया था. मेरे तैयार होते होते, श्याम भी अपनी ट्रावेरा
के साथ मुझे ले जाने के लिये आ गया. उसने 4:30 से पहले मुझे फोर-बे रिसरवायर तक
पहुंचा दिया. लेंड स्लाइअड के कारण आगे रास्ता बंद था, मुझे मजबूरन गाडी को वंही छोडना पडा. अब रिम्बिक
गांव तक मुझे पैदल ही जाना था. कोहरे की
हल्की चादर से ढका पहाड़ अभी सो रहा है. 15 किलो का मेरा रगशेक मेरे पीठ
पर है. यह भारी है पर ये मेरी लाइफ लाइन है इसमे दो दिन के लिये खाने का सामान और
गर्म कपडे है. स्लीपिंग बेग है. मुझे नही पता की उपर चोटी पर रहने के लिये
क्या व्यवस्था है. हो सकता है मुझे अकेले ही वंहा रहना पडे. मंकी केप
और दस्ताने पहने हू उसके बाबजूद ठंड अपना असर दिखा रही है. सुबह की ठंड में घास पर जमी ओंस को टार्च की
रोशनी में निहारा. अपना रग-शेक ठीक किया और श्याम को विदा किया
...साहब
चिंता ना करे कल रास्ता खुल जायेगा तो आपको लेने मै रिम्बिक आ जाउगा. अभी सुबह आप
को रिम्बिक से संदाकफू जाने के लिये बहुत
से ट्रेकर मिल जायेगे. इसलिये कोइ चिंता ना करे.
मैने मुस्करा कर उसे
विदा किया और बांस की छ्डी पर अपना वज़न डालते हुये मेंने सामने खडी चढाई को देखा
और अपने कदम आगे बढाना शुरू कर दिये. घास पर जमी ओस रास्ते को फिसलन भरा बना रही
है. 600
मीटर उपर बसा रिम्बिक मेरा पहला पढाव होगा. पहाडों की चोटी पर सुबह
की सुनहरी धूप मन को भा रही है.
सुबह का आसमान साफ है
मुझे पूरी उम्मीद है की 2
बजे तक आसमान साफ रहेगा पर इसकी कोई गांरटी नहीं ले सकता पहाड़ के
मौसम का कोई भरोसा नहीं. मुझे हर हाल में 4 बजे तक संदाकफू
गेस्ट हाउस तक पहुंचना है. समुद्र तल से 3600 मीटर पर
रिम्बिक से 1800 मीटर उपर...घने जंगल से गुजरती 16 किलोमीटर चढाई...आसान नहीं होगा यह सब.
2 घंटे कि चढाई ने
मुझे इतनी ठंड के बाबजूद पासीने से लथ पथ कर दिया है. मेने आसमान को निहारा. आसमान
साफ और उसका रंग गहरा नीला है. इस तरह के असमान अब हमे शहरों मे दिखाई नही देते, शायद
वायू प्रदूष्ण इसकी वजह हो सकता है . सम्मोहित कर देने वाला गहरा नीला आसमान. 1800
मीटर की उचाई पर सामने दिखाई देता रिम्बिक गांव. पहाड़ के हिसाब से
ये एक शहर सा दिखाई दे रहा है मुझे इतना बढा गांव देखकर आश्चर्य हुआ. यहां तक
पशिच्म बंगाल की स्टेट बस आती है.
रिमबिक मे दुकाने खुल चुकी है. एक छोटे से ढाबे में मेंने याक का
गर्म दूध मक्के की रोटी और एक मीठा ताजा सेब लिया. एक काला झबरीला कुत्ता मेरी तरफ
देख रहा है शायद उसे मुझे से कुछ खाने की उम्मीद है. मे एक रोटी का टुकडा उसकी तरफ
बढा देता हू. वो पूंछ हिलाता हुआ मेर पास आकर बैठ जाता है. मै उसके सिर पर हाथ फेरता हू मुहे उसका नाम भी नही
पता मै उसका ढाबे वाले पूछता हू.
सर उसे हम शेरा बोलते
है. मै भी उसे शेरा बुलाता हू, तो मेरे
हाथ को प्यार से चाटने लगता हि , मै उसे एसा करने से रोकता हू. और एक रोटी उसे ओर देता
हू. चाय वाले से आगे के ट्रेक की जानकारी लेता हू... उसने बताया आज कोइ ट्रेकर उपर
की तरफ नही गया है. ना ही किसी के जाने अब उम्मीद है. मै सोच मे पड जाता हू. साहब
आप अभी अपर की तरफ चल देगे तो रास्ते मे आपको गांववाले जरूर मिल जायेगे जो जंगल से
लकडी लाने काम करते है...उपर चाय बागान के खेत भी है. उसके मजदूर भी मिल
जायेगे..मेरे लिये इतनी जानकारी काफी थी. मै अकेला ही आगे चलने का मन बना लेता हू.
सुबह की धूप भी बहुत
तीखी लग रही है. जेकेट, मंकी केप और दस्ताने निकाल दिये और स्वेटर को अपनी कमर पर
बाँध लिया है अब में सिर्फ एक सूती शर्ट और कार्गो पेंट में हू धूप तेज होने लगी
है, आसमान साफ और गहरा नीला है पर तीखी धूप एसे चुभ रही है की जेसे सब कुछ जला
देगी. मेंने आंखो पर रेबेन का चश्मा लगा लिया जो मुझे अल्ट्रा वायलेट किरणों से
बचायेगा. अभी तो सुबह के 8 भी नही बजे है और इतनी तीखी धूप. मुझे बीएसएनएल का सिंगनल
अब भी मिल रहा है. मै जेसे ही आगे बढा देखा वो काला कुत्ता मेरे पीछे पीछे आ रहा
है...
अरे मेरे पास कुछ नही
तुझे देने को कुछ नही है ...जा अब
जा...मुझे उपर जाना है भाई...मेने उसे वापस जाने का इशारा किया पर वो लगातार मेरी तरफ देख रहा है जेसे कह रहा
हो की मुझे भी साथ ले चलो... जेसे उसने मेरे साथ आने की ठान ली थी. मुझे भी तो
किसी साथी की जरूरत थी मे उसे अपने साथ ले लेता हू..देखते है कितनी दोर वो मेरे
साथ चलता है. शायद एक रोटी ने उसे मेरा दोस्त बना दिया था. सच बोलू तो मुझे भी
उसका साथ अब अच्छा लग रहा था. मेने एक बार उसे अपने पास बुलाकर उसके गले पर एक बार
फिर हाथ फेरा. तो वो तेजी से पूंछ हिलाने लगा.
2500 मीटर पर मुझे यंहा वंहा पुरानी
स्नो दिखाई दे रही है. हवा मे ठंडक है पर धूप चेहरे को झुलसा दे रही है. ठंडी हवा
और सूरज की गर्म तीखी किरणों का अजब मेल, चेहरे से सारी नमी
सोख ले रहा है . इस हाइट पर मुझे वनस्पति मे साफ अंतर दिखाए दे रहा अब मुझे सेब और
चाय के खेत दिखना बंद हो गये. मौसम अब भी मेरा साथ दे रहा है. यंहा वंहा अपने याक
को चराते या फिर जंगल से लकडी बटोरते गांव वाले मुझे देख कर मुस्करा देते है. मेरे
साथ शेरा लगातार चल रहा है, उसको देखकर बार बार मुझे भालू का
अहसाहस होता है.
शेरा मेरे साथ लगातार
चल रहा है. दिन के 12:00
बजे एक छोटे से झरने के पास रूका. सडक के किनारे पर लगे पत्थर पर
लिखा है 3000 मीटर. धूप से बेहाल मे नहाने का मन मना लेता
हू. बर्फ की तरह ठंडा पानी. मेरी सारी देह जेसे अकड जाती है. शेरा को खाने के लिये
बिस्कुट देता हू और खुद भी साथ लाइ रोटी सब्जी खाता ह. ताजा दम होकर अब आगे जाने
के लिये तैयार हू.
आसमान पर बादल दिखाई
देने लगे है. रास्ते मे खेत पर ही बने इक्का दुका घर. महिने में एकाध बार ही
रिम्बिक बजार करने जाते होंगे. अपने आप मे पूरी तरह आत्म निर्भर जिंदगी. वनस्पति
के नाम पर अब इक्का दुका पाइन के पेड है. हवा मे ठंडक बड रही है. असमान मे घिरते
बादल मुझे अब तेज चलना होगा. खडी चढाइ और हवा मे आक्सीजन की कमी अब सांस जल्दी उखड
जाती है. दिन के 14:00
अब चला नही जाता ..मे अपने कंधे से रगशेक उतार देता हू. खडे खडे ही
सांसे नोर्मल होने का इंतिजार कर रहा हू. अभी बैठ नही सकता...एक बर बैठा तो जोड
अकड जायेगे. उसके बाद मुझ से चला नही जायेगा.
शेरा बदलते मौसम से
बैचेन हो रहा है वो बार बार मुझे देख रहा है जेसे पूछ रहा हो की मे चल क्यों नही
रहा हू. अब मुझे थोडा आराम मिला है ..मेने रगशेक को पीठ पर लादा और चलने लगा. फिसलन
भरी काइ पर नाप तोल कर एक के बाद एक कदम बढाता.
खडी चढाइ और उस हवा मे ओक्सीजन की कमी से सांस बार-बार फूल जाती है. लग रहा है हवा
मे इस बार ओक्सीजन कुछ ज्यादा ही कम है मुझे हर चार कदम के बाद रूकना पड रहा है.
उससे मेरे आगे की रफ्तार बहुत कम हो गई है.
16:00 मौसम अब खरतरनाक तरीक से
खराब हो गया है ...धुंध और कोहरे ने मुझे चारों ओर से ढक लिया. मेने तुरंत बेग से
अपने गर्म उनी स्वेटर और मंकी केप निकाला हेड ग्लोब पहने. पिछले 2 घंटों से मुझे एक भी आदमी रास्ते मे दिखाइ नही दिया. अगला मोड काटते ही...
शुक्र है मुझे दूर उपर एक घर दिखाइ दे रहा है. हो ना हो वो ही गेस्ट हाउस हो
सकता है, मजिल दिखाई देने से मेरा होसला थोडा बढ जाता है. मन को समझाता हू की मुझे
वंहा तक हर हाल मे पहुचना है वो गेस्ट हाउस भले ही ना हो पर वंहा मुझे कोई ना कोइ
मदद जरूर मिल जायेगी. बस 1 किलोमीटर ओर बचा है, लग रहा है जी
वो कितनी दूर है, सा6स नही ले पा रहा, कोहरा इतना गहरा की मै 10 मीटर दूर भी नही देख पा रहा हू.
हवा तेज कांटे की तरह
चेहरे पर चुभ रहे है. तापमान मे इस तरह के तेज गिरावट की मुझे उम्मीद नही थी. मै
अब ठंड से कांप रहा हू. शेरा अब भी मेरे साथ है. आखरी 500 मीटर.
लगा जेसे यह अब जीने या मरने का मामला है. मै अब एक कदम भी आगे नही बढा पा रहा हू.
काश मुझे कोइ साहयता मिल पाती. सांस नही ले पा रहा हू सर दर्द से फट रहा है. लगा
जेसे दम घुट रहा है. मै समझ नही पा रहा हू की 3600 मीतर की
हाइट पर इतनी कम आक्सीजन केसे हो सकती है. एसा तो 4500 मीटर
पर कभी कभी होता है. आखरी 200 मीटर.... तेज तूफान जेसे सब कुछ उडा कर ले जायेगा...मै
तुरंत वही रगशेक की आड लेकर बैठ जाता हू. हे
भगवान अब मे क्या करू लगा जेसे जिस्म अकड कर जम जायेगा. दिमाग खाली...भारी शून्य
मुझे शेरा के भोंकने की आवाज सुनाइ दे रही है...अंधेरा
आंख खुली तो मेने
अपने को रजाइ मे पाया. मेरे दोनों तरह पानी की गर्म बोतल. मै अब भी जिंदा था. बाहर
तूफान की तेज आवाज. लेम्प हाथ मे लिये वो मेरे उपर झुका है
उसने मुसकरा कर मेरे
बालों मे हाथ फेरा..अब केसे हे सर....मे धनीराम इस गेस हाउस का केयरटेकर ...
साहब अब केसे
हो...भला हो शेरा का की उसने मुझे सही समय पर आप के बारे मे बता दिया...वरना भगवान
जाने आज क्या हो जाता
आप पागल हो क्या जो
अकेले ही इधर आ गये...वो तो अच्छा था की मे आज यंहा पर मिल गया.
...शुक्र
है शेरा ने मुझे सही समय पर आप तक पहुचा दिया. बाहर देखिये तेज तूफान और ठंड है
एसे मे आपका बचना नामुमकीन हो जाता. और मेने अपने हाथों मे उसके हाथ ले लिया.
मेने प्यार से शेरा
के सिर पर हाथ फेरा..ओह तो आप इसी लिये मेरे साथ थे... शुक्रिया शेरा जी
आप भी इस कुत्ते को
जनते है!
अरे साहब यह मेरा ही
कुत्ता है, दो दिन पहले गायब हो गया था. इसके भोकने की अवाज सुनी तो बाहर आया...
वो मुझे खीचकर आपके पास ले कर गया.
गर्म दूध और रोटी
..बाहर तूफान अब थम गया है ..चारो ओर गहरी शांती.
...साहब
मौसम की पहली बर्फबारी शुरू हो गई है. देखा आप इसे साथ लेकर आये.
साहब आप खुश किस्मत
है मौसम की पहली बर्फ साथ लेकर आये हो
धनीराम जी अभी तो
मुझे आप पागल बोल रहे थे
.... वो
हंसा और बोला हां साहब इधर सभी पागल ही आते है.
ओर तुम धनीराम !!
हम तो यंही पैदा
हुये. साहब लोगों ने गेस्ट हाउस का केयर टेकर बना दिया है. आप भाग्यशाली थे जो मे
आज यंहा हू वरना आज मुझे नीचे घर मे जाना था. पता नही क्या सोच कर रूक गया.
सुबह मेरी नींद खुली, असल
मे शेरा ने ही मेरी नींद खोली थी. कमरे से बाहर निकला..जो देखा विसमृत कर देने
वाला नजारा था चारो तरफ स्नो, बर्फ की सफेद की चादर गेस्ट हाउस के पीछे से उगता सूरज
अपनी सुनहरी किरणे बिखेर रहा है...और सामने अपने पूरे सोदंर्य से मंत्र मुग्ध कर
देने वाला कंचन चुंगा की चोटी का शानदार नजारा. मै सम्मोहित हर पल बदलते उसके रंग
और नजारे को निहार रहा हू,
धनीराम ने मुझे काफी
का मग दिया. मे काफी पीते हुये शेरा का सिर सहला रहा हू..आज उसकी वजह से ही यह दिन
देख पा रहा हू. शायद उसे मेरे उपर आने वाली मुसीबत का अहसाहस था जो मेरे साथ यंहा
तक चला आया था या फिर एक रोटी और थोडे से प्यार ने उसे मेरे साथ आने को मजबूर कर
दिया था
9 बजते घाटी की गहराइ
से बादल उठना शुरू हो गये है. एसा नजारा पहले कभी नही देखा. स्नो और बादलो का एसा
मेल. हर पल बदलता मंत्र मुग्ध कर देने वाला नजारा
याक के दूध और गुड की
खीर. सारे दिन नो सेल फोन,
नो कंप्यूटर, नो एस एम एस. नो ईमेल बस मे और
मेरी यांदे और यह ना भूल सकने वाला नजारा!!
शाम को मौसम फिर से
खराब हो रहा है पर इस बार मुझे घबराने की जरूरत नही है. इस बर मे धनी रम के साथ
पूरी तरह सुरक्षित हू. सुबह के ...5 बजे ही वो मुझे उठा देता है. आज मुझे लोटना जो
है. याक क दूध और रोटी खाकर में जाने के लिये तैयार हो जाता हू. धनीराम रास्ते के
लिये भी रोटी और साग पेक कर देता है. शेरा को भी रोटी मिल जाती है. मै उन्हे विदा
देकर चल देता हू पर इस बार शेरा मेरे साथ नही है वो धनीराम के साथ खडा है...धनीराम
हाथ हिलाकर विदाई दे रहा है और शेरा पूछ हिलाकर ....नीचे उतरते हुये कोइ खास
परेशानी नही हुई. शाम के 4
बजे जब रिम्बिक पहुचा तो मेने वंहा श्याम को इंतिजार करते पाया.
दुर्वेश
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