रस्सी है, जिज्ञासा उसकी.
एक सिरे पर है
उसके विश्वास और श्रद्धा
दूसरी तरफ है
ज्ञान और विज्ञान.
मथनी है चिंतन,
मथना है सच और झूठ के महासागर को
निकल सके अमृत.
जो है
सच और झूठ
से परे परमसत्य
अमृत ना भी मिले.
पर मिलेगा
नये विचारों के
अनमोल रत्नों से भरे कलश
साथ ही मिलेगा जहर,
जो बनेगा
अंधश्रद्धा , डर और लालच के झकझोरने से
जो पियेगा जहर
वो बनेगा शिव उस मंथन का
दुर्वेश😊
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