जल ही जीवन है यह बात रेगीस्तान मे आसानी से समझ मे आ जाती है. वंहा मेने एक बाल्टी पानी के लिये मीलों दूर जाते देखा है. उस पर भी अगर उस पानी को कोइ शहरी देखे तो इसे पीने लायक तो बिल्कुल नही कहेगा. वंहा जाकर ही जान पाया की सच मे पानी अमृत होता है. वो दिन दूर नही जब हमारे शहर पानी के मामले मे किसी रेगीस्तान से कम नही होंगे. सुना है की तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिये होगा. इसका तो पता नही पर आज हर गली महोल्लों मे पानी के लिये जो होता है वो किसी महायुद्ध से कम भी नही है. मेरी बात आप सब को मजाक लग रही हो.
अगर एसा है तो इस खबर को पढे
महाराष्ट्र
में प्रशासन ने लातूर शहर में पानी को लेकर संघर्ष रोकने के लिए जल स्रोतों के
आस-पास धारा 144 लगा दी है. लातूर में पानी के
स्रोतों के आसपास अब 5 से अधिक लोगों के इकठ्ठा होने पर
निषेधाज्ञा है. हालात महानगरपालिका अधिकारियों के नियंत्रण से बाहर हो चुके थे,
इसीलिए जिलाधिकारी को निषेधाज्ञा लागू करनी पड़ी.
लातूर
में पानी को लेकर इतने बुरे हालात पहले कभी नहीं थे. पानी को लेकर हिंसा की आशंका
बनी रहती है. लिहाज़ा जिलाधिकारी ने जमावबंदी यानी निषेधाज्ञा आदेश जारी कर दिए
हैं.
कॉर्पोरेशन
टैंकर के ज़रिए 200 लीटर पानी
प्रति परिवार दस दिनों के लिए देता है. चाहे परिवार छोटा हो या बड़ा. घर के बाहर 200
लीटर का बैरल रखा होता है जिसमें टैंकर उतना ही पानी देता है. फिर
टैंकर दोबारा कभी 12 तो कभी 15 दिनों
के बाद आता है.
खाना पकाते समय जैसे तेल डालते हैं, वैसे ही अभी पानी का इस्तेमाल हो रहा है. 200 लीटर पानी किसी भी परिवार को पूरा नहीं पड़ता, दूसरी ओर टैंकर माफिया हालात का फ़ायदा उठाकर लोग को निजी रूप से टैंकरों से पानी बेच रहे हैं.
खाना पकाते समय जैसे तेल डालते हैं, वैसे ही अभी पानी का इस्तेमाल हो रहा है. 200 लीटर पानी किसी भी परिवार को पूरा नहीं पड़ता, दूसरी ओर टैंकर माफिया हालात का फ़ायदा उठाकर लोग को निजी रूप से टैंकरों से पानी बेच रहे हैं.
महिन्द्रकर
बताते हैं कि 5 हज़ार लीटर टैंकर का पानी
पहले 300-400 रुपये में मिल जाता था. आज वो एक हज़ार रुपये
में मिलता है. ये आज की बात है. हो सकता है कल इसके लिए डेढ़ हज़ार रुपये देने
पड़ें.
यह हालत
मार्च मे है और अभी तो 3 महिने गर्मी पडेगी. अगर इस बार भी यदि मानसून ठीक नहीं रहा
तो? कोइ आशचर्य नही की आधा लातूर खाली हो जायेगा. लातूर
जेसे ही हालत धीरे धीरे सारे देश मे होते जा रहे है. भू जल तेजी से नीचे जा रहा
है. इतनी गहराइ स निकाले जानेवाले पानी मे
हेवी मेटल का होना आम बात है जो गंभीर बिमारी की वजह बन रहा है.
जो शहर
पानी के मामले मे ठीक थे उनके भी अधिकांश पानी के स्वच्छ स्रोत्र बरबाद होते जा
रहे है. जो बचे है उन्हे बरबाद करने की हम कोइ कसर नही छोड रहे है. हम सब को मालुम
है की नदी और नालों और तालाबों मे स्वत: ही पानी को स्वच्छ करने की गजब की प्रतिभा
होती है. यह काम उसमे मोजूद दोस्त बेक्टीरिया आसानी से कर देते है.
जब से
हमने साबुन और अन्य काटाणु नाशकों का इस्तेमाल करना शुरू किया है नदी तालाबों की
यह प्रणाली नष्ट होती जा रही है. शहर के दूषित नालों का पानी और उसमे मोजूद सडे
हुये पदार्थ पानी मे मोजूद ओक्सीजन की मात्रा को बेहद कम कर देते है. जिस से उसमे
मोजूद दोस्त बेक्टीरिया खत्म होने लगते है और एसे एनारोबिक बेक्टीरिया पनपते है जो
सडान पैदा कर बिमारी फेलाते है.
टनों साबुन
का इस्तेमाल पानी को जहर बना रहा है. हम अच्छी तरह समझ ले एक बार अगर साबुन मिला
दिया तो वो पानी उसके बाद हमारे नदी तलाबों
मे मोजूद दोस्त जीवाणु और पेड पोधं को नुकसान पहुचाता है. कभी आपने सोचा है की
आपके नल मे आता साफ पानी कंहा से आ रहा है.
आज भी
ज्यादतर शहरों मे मिन्यूसिपल सप्लाइ किसी नदी या तालाब का पानी ही शहर वासियों को
पीने के लिये स्पलाइ करती है. यानी की ह्मारे ही द्वारा दूषित पानी हम पीने को
मजबूर हो जाते है. हो सकता है आपने अपने लिये RO लगवा लिया हो या फिर आप बोटल खरीद कर अपनी प्यास बुझाते हों. पर कब तक? यह
इस समस्या का उपाय पूर्ण उपाय नही हो सकता.
क्या आप
को मालुम है की पानी पूरी तरह रिसायकिल हो सकता है. हां यह सच है इसका अनोखा
उदाहरण अंतिरिक्ष यान है. जंहा मोजूद अंतिरिक्ष यात्री उसी पानी को रिसायकिल कर
बार बार इस्तेमाल करते है. यह सच है की वो तकनीक बेहद मंहगी है, पर हम भी आसानी से कुछ कामों मे पानी को रिसायकिल कर
बहुत सारा पानी बचा सकते है.
आज हमारे
हर घर मे एक ही तरह का पानी सप्लाइ होता है जिसे हम पीने से लेकर नहाने धोने और
बगीचों मे इस्तेमाल करते है. अब समय आ गया है की कम से कम नहाने , धोने और बाग बगीचों मे रिसायकिल पानी का इस्तेमाल
करना सीखे.
एसा तभी
कर पायेगे जब हम पानी मे साबुन और अन्य कीटाणुओ नाशकों को पानी मे मिलने से रोके.
हम कम से कम नहाने और धोने मे साबुन और अन्य किटाणु नाशकों के इस्तेमाल से परहेज
करे. हमारे द्वार विसर्जित पानी कम से कम इस तरह का हो की वो कम से कम पेड पौधों
को नुकसान ना पहुचाये.
इन सब का
इलाज दरअसल सिंगापुर और यूरोप की तरह पानी को रीसाइकल और रीयूज़ करना है. इस तकनीक
के बारे मे फेली भ्रांतियों के बारे मे लोगों को जागरूक बनाकर इस के लिये उन्हे
तैयार करना है.
लातूर
जेसे शहर मे सूरज की रोशनी पूरी तरह मेहरबान है लोग अपने घर के पानी को एक जगह
इकठ्ठा कर सोलर तकनीक से उसे वास्प मे बदलकर कंडेस कर दुबारा इस्तेमाल के लायक बना
स्कते है. इस तरह आसानी से 90% पानी को दुबारा इस्तेमाल के योग्य बनाया जा सकता
है.
हो सकता
है मेरी यह सलाह आज आप लोगों को जले पर नमक लगे. पर यही भविष्य मुझे दिखाई दे रहा
है. जितना जल्द हम इसे लागू कर पानी को रिसायकिल करना शुरू करे उतना ही हमारे लिये
अच्छा होगा.
जरूरत है
इस तकनीक को आसान बनाकर आम जनता के बीच पहुचाया जाये. जेसे जेसे गम्री बढती है वाष्पीकरण
की गति भी बढती है. मेने गूग्ल से कुछ चित्र पोस्ट किये . इन्हे देखक्र आप अपने लिये
आसान सा सोलर आधारित वाटर दिस्टीलेशन यंत्र बना सकते है
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