Thursday, March 21, 2024

मंथन : बाबा बाजार

 

कल अश्टावक्र गीता के बारे में यू-ट्यूब लेक्चर सुना. बोलने वाले ने उसे भगवद गीता से अच्छा बताया. मुझे भी लगा की सच मे उसकी बात मे दम है. बिना लाग लपेट के उसके व्यख्यान मे जीवन के कुछ सिद्धांतों की चर्चा थी. उसने बताया की इसमे कृष्ण का मायावी जाल नही है. एक तरह से सच्च भी है, किसे अपने लिये, दया, ममता, करूणा खराब लग सकती है. कोन अपने लिये क्रोध, हत्या, लालच, डर चाहेगा. उनके व्यख्यान मे हर दूसरे वाक्य पर बजती तालियां.

हाथ जोडे हजारों श्रधालुओं को अपने प्रवचन से मोहित करता उसका रोबदार चेहरा. उसकी अपनी ही विद्यता पर मोहित  मुस्कराती आंखे.   साफ लगता था इस समय वो किसी  भी तरह अपने को किसी भगवान से कम नही समझ रहा. उसकी सुरक्षा और सेवा मे तेनात सेकडों लोग. उचे सिंहासन पर बैठा वो सब भक्तो के लिए सारे संसारिक सुख का प्रतीक बना हुआ था.

हजारों भक्त जो उसका प्रवचन सुन रहे थे उन भक्तों के लिये इश्वरीय ज्ञान और उसकी कृपा का मतलब क्या है. उनके लिये इश्वरीय कृपा का मतलब शरारीक, मानसिक, और भावनात्मक सुख की प्रकाष्ठा है. उसकी कृपा से वो घटनाओं का अपनी मर्जी से नियंत्रण कर सके. उसकी कृपा से वो अपना और दूसरों का भविष्य और भूत जान सके. एसी असिमित ताकत जिस से वो अपनी और अपने हिसाब से दूसरों की नियती तय कर सके.

वो कर सके जो उनके आस पास का जन मानस ना कर सकता हो. हजारों करोडों लोग उनके नाम की माला जपे. हाथ जोडे उनकी दया पर निर्भर. वो जब तक चाहे इस संसार मे जीवित रहकर सारे सुख भोग सके. मुझे नही लगता एसे लोगों को कोइ भी गीता मदद कर पायेगी. भक्तों का तो पता नही पर प्रवचन देने वाले और उसके विशेष कृपा पात्रों के वारे न्यारे हो रहे है.

आज धर्म का मतलब रितीरिवाज और पहनावे को मान लिया गया है लोग उसके प्रतीक चिन्हों को पकडे हुये है. सच तो यह है की कुछ लोगों के लिये यह बहुत ही फायदेमंद धंधा है, फिर चाहे वो कोई  भी धर्म हो. सभी धर्म का जन्म इंसानियत को बनाये रखने के लिये हुआ था पर .इतिहास गवाह है की इसने ही सबसे ज्यादा इंसानियत को नुकसान पहुचाया है.

अगर आप सरल ह्र्दय है. आप इंसान को इंसान समझते है. लालच और डर को काबू मे रख पा रहे है तो फिर आप धर्म के रास्ते पर है. इससे कोइ फर्क नही पडता की आप किस धर्म को मानना चाहते है. हां अगर आप को उससे राजनितिक फायदा उठाना है तो फिर यह जरूरी हो जाता है की आप रितीरिवाज और पहनावे और धार्मिक चोंचलों पर ध्यान दे और उसका दिखावा भी करे. शक्ति प्रदर्शन करे दूसरे को नीचा देखाये. लोगों की भावनाओं को भडकाये और उनके जजबातों से खेले. उन्हे बताये की धर्म खतरे मे है .

सरल धब्दों मे तो किसी को बबकूफ ही बनाया जा सकता है....अगर सागर मे से मोती को चुनना है तो उसमे डूबना ही होगा. इतना कष्ट तो उठाना ही पडेगा. एक बात ओर जब तक दूसरो का धर्म को नही समझोगे तब तक तुम्हे अपना धर्म भी समझ नही आयेगा. यह तो यात्रा है ..सरल और कठिन की फिक्र छोडकर जितना जल्दी यात्रा  शुरू करोगे अच्छा रहेगा.   

दुर्वेश

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