स्वास्थ्य सेवाओं की आसमान छूती कीमतों के लिये रात दिन हम दवा निर्माता को कोसते रहते है और् यह भूल जाते है की हमारी लोकतांत्रिक सरकारे जिसका दायित्व सब के लिये स्वासथ्य, सुरक्षा और शिक्षा सुनिशिचित करना भी होता है वो चिकित्सा उपकरणों, दवाइयों और स्वास्थ्य सेवाओं से 40 से 50% तक टेक्स वसूल कर रही है. हां कभी कभी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिये किसी इक्का दुक्का दवाइयों पर वो टेक्स मे छूट् भी दे देती है.
किसी मरीज के कुल चिकित्सकीय खर्च का करीब 60 से 70% प्रतिशत खर्च जांचो तथा सर्जिकल वस्तुओं का होता है. इनमे से अधिंकांश उपकरण आयात किये जाते है और उस पर केन्द्र और राज्य सरकारे जम कर टेक्स वसूल करती है. यह इस देश की विडंवना ही है की जिस मरीज का इलाज सिद्धांत: सरकार द्वारा मुफ्त होना था अब मुफ्त तो दूर, उसी इलाज पर बेशर्म होकर टेक्स बसूली कर रही है और अगर एसा है तो कफन चोर और एसी सरकारी व्यवस्था मे क्या अतंर हुआ?
जब आप दवा खरीदते है तो दुकानदार आपसे MRP मूल्य वसूल करता है. उस मूल्य मे टेक्स, मुनाफा, रायल्टी और कमिशन शामिल होता है. इसलिये सरकार की यह कारस्तानी आपको नजर नही आती. कई बार direct tax तो फिर भी पता चल जाये पर indirect tax के कारण कीमत पर पडा प्रभाव पता करना असंभव सा है.
सरकार के नेक नियति या वो स्वास्थय सेवाओं के प्रति कितनी गंभीर है का पता इस बात से चलता है कि जीवन उपयोगी चकित्सा उपकरणों और दवाइयों पर लगने वाले टेक्स की तुलना मे मोबाइल या आभूषण जेसी गेर जरूरी समान के आयात पर टेक्स कम वसूलती है. इसलिये सरकार के यह व्याख्या की सरकारे लोगों के भले के लिये होती है गले से नीचे नही उतरती. ये केसा भला की अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव मे मरीज तिल तिल मरता रहे.
घुलनशील स्टेंट हो या फिर घुटने या कुल्हे प्रत्यारोपित करने के लिये जोड़ ये सब आज आयातित होते है. यह पता होते हुये भी की यह मरीज के लिये जीवन रक्षक और बेहद जरूरी है मुझे नही लगता कि किसी भी सरकार ने उन पर लगने वाले टेक्स पर गंभीरता पूर्वक विचार किया हो. क्योकी अखिरकार उस टेक्स की भार तो उस मरीज को ही देना है.
अगर् चिकित्सकीय उपकरणों, जांच के उपकरण एवं प्रत्यारोपित किये जाने वाले यंत्रों की कीमत अत्याधिक होगी तो चिकित्सा सेवा सस्ती केसे हो सकती है क्योंकी इनके बगेर इलाज की कल्पना नही की जा सकती. जब इनकी कीमतें बढ़ी रहेंगी तो सस्ते इलाज की बात करना बेमानी ही है.
वर्तमान में इस व्यवसाय पर मूल्य नियंत्रण लागू नही होता. इस कारण इन्हें अनाप-शनाप मूल्यों पर बेचा जाता है एसा सोचना गलत है क्योंकी इस बात को समझ लें की अब मूल्य सरकार नही बाजार तय करता है. सरकारी मूल्य नियंत्रण एक दिखावा भर है. जिसका मकसद गरीबों के नाम पर किसी ओर का भला करना होता है. अच्छा हो की हम इस भर्म मे ना पडे. करोड़ों रुपये का निवेश करने के बाद कोई भी अधिक से अधिक लागत वसूलना चाहेगा. सीधी सी बात है की अगर लागत कम होगी को बेचने वाला मूल्य कम करने की सोच सकता है. इसलिये मूल्य नियंत्रण छोडकर सरकारे स्वास्थ सेवाओ मे इस्तेमाल हो रहे हर resource पर टेक्स निर्धारण करते समय गंभीरता से काम ले क्योंकी वो अधिक लागत का मुख्य वजह है..
कुछ लोग भाग्यशाली होते है की ज्यादा पेसे मे ही सही, उनके मरीज को समय पर उचित चिकित्सा मिलने से वो मरीज को बचा सके और इलाज करा कर उन्हे सकुश्ल वापस ला सके. वरना इस देश मे एसे हजारों मरीज इस लिये दम तोड रहे है की उन्हे समय पर सही चिकत्सिय सलाह उपल्ब्ध नही होती. इसलिये हम तो चाहते है की अपोलो जेसे उच्च स्तेरीय अस्पताल हर शहर मे हो. कम से कम सस्ते के नाम पर जो हर गली महोल्ले मे कब्र गाहे खुली है उनसे ये लाख गुना बेहतर है.
मुझे तो लगता है की आम नागरिक को शिक्षा और स्वास्थय देने मे सरकार पूरी तरह नाकाम रही यह मे किसी भी राजनैतिक पार्टी के बारे मे नहीं कह रहा हूँ. अब ना सरकार के पास बजट है और ना ही इच्छा शक्ति. अगर सरकार हर शहर को एक अच्छा अस्पलताल नही दे सकती तो कम से कम हम उन लोगों का होसला बुलंद करे जो अच्छे अस्पताल को बना ने का कारण बनते है, क्योंकी अगर इलाज कराने किसी मरीज को दूसरे शहर इस वजह से जाना पडे क्योंकी वो इलाज उसके अपने शहर मे उपलब्ध नही है तो मरीजों के रिश्तेदारों की रात की नींद सिर्फ इसलिये हराम हो जाती है एक अजनबी शहर मे अपने काम धंधे को छोडकर केसे और कितने दिन मरीज का इलाज करा पायेगे,. इसी कारण से कई घर बरबाद हो चुके है.
जो लोग इन अस्पतालों की बुराइ मे लिख रहे है और जब अपनों पर या अपने पर गुजरती तो सबसे पहले इन अस्पतालों मे भर्ती होने के लिये खडे दिखाइ देते है उनसे मेरी यह विनती है...क्या उससे सस्ता और अच्छा कही है??? अगर है तो उसका भी अपने लेखों में जरूर उल्लेख किया करे.
किसी मरीज के कुल चिकित्सकीय खर्च का करीब 60 से 70% प्रतिशत खर्च जांचो तथा सर्जिकल वस्तुओं का होता है. इनमे से अधिंकांश उपकरण आयात किये जाते है और उस पर केन्द्र और राज्य सरकारे जम कर टेक्स वसूल करती है. यह इस देश की विडंवना ही है की जिस मरीज का इलाज सिद्धांत: सरकार द्वारा मुफ्त होना था अब मुफ्त तो दूर, उसी इलाज पर बेशर्म होकर टेक्स बसूली कर रही है और अगर एसा है तो कफन चोर और एसी सरकारी व्यवस्था मे क्या अतंर हुआ?
जब आप दवा खरीदते है तो दुकानदार आपसे MRP मूल्य वसूल करता है. उस मूल्य मे टेक्स, मुनाफा, रायल्टी और कमिशन शामिल होता है. इसलिये सरकार की यह कारस्तानी आपको नजर नही आती. कई बार direct tax तो फिर भी पता चल जाये पर indirect tax के कारण कीमत पर पडा प्रभाव पता करना असंभव सा है.
सरकार के नेक नियति या वो स्वास्थय सेवाओं के प्रति कितनी गंभीर है का पता इस बात से चलता है कि जीवन उपयोगी चकित्सा उपकरणों और दवाइयों पर लगने वाले टेक्स की तुलना मे मोबाइल या आभूषण जेसी गेर जरूरी समान के आयात पर टेक्स कम वसूलती है. इसलिये सरकार के यह व्याख्या की सरकारे लोगों के भले के लिये होती है गले से नीचे नही उतरती. ये केसा भला की अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव मे मरीज तिल तिल मरता रहे.
घुलनशील स्टेंट हो या फिर घुटने या कुल्हे प्रत्यारोपित करने के लिये जोड़ ये सब आज आयातित होते है. यह पता होते हुये भी की यह मरीज के लिये जीवन रक्षक और बेहद जरूरी है मुझे नही लगता कि किसी भी सरकार ने उन पर लगने वाले टेक्स पर गंभीरता पूर्वक विचार किया हो. क्योकी अखिरकार उस टेक्स की भार तो उस मरीज को ही देना है.
अगर् चिकित्सकीय उपकरणों, जांच के उपकरण एवं प्रत्यारोपित किये जाने वाले यंत्रों की कीमत अत्याधिक होगी तो चिकित्सा सेवा सस्ती केसे हो सकती है क्योंकी इनके बगेर इलाज की कल्पना नही की जा सकती. जब इनकी कीमतें बढ़ी रहेंगी तो सस्ते इलाज की बात करना बेमानी ही है.
वर्तमान में इस व्यवसाय पर मूल्य नियंत्रण लागू नही होता. इस कारण इन्हें अनाप-शनाप मूल्यों पर बेचा जाता है एसा सोचना गलत है क्योंकी इस बात को समझ लें की अब मूल्य सरकार नही बाजार तय करता है. सरकारी मूल्य नियंत्रण एक दिखावा भर है. जिसका मकसद गरीबों के नाम पर किसी ओर का भला करना होता है. अच्छा हो की हम इस भर्म मे ना पडे. करोड़ों रुपये का निवेश करने के बाद कोई भी अधिक से अधिक लागत वसूलना चाहेगा. सीधी सी बात है की अगर लागत कम होगी को बेचने वाला मूल्य कम करने की सोच सकता है. इसलिये मूल्य नियंत्रण छोडकर सरकारे स्वास्थ सेवाओ मे इस्तेमाल हो रहे हर resource पर टेक्स निर्धारण करते समय गंभीरता से काम ले क्योंकी वो अधिक लागत का मुख्य वजह है..
कुछ लोग भाग्यशाली होते है की ज्यादा पेसे मे ही सही, उनके मरीज को समय पर उचित चिकित्सा मिलने से वो मरीज को बचा सके और इलाज करा कर उन्हे सकुश्ल वापस ला सके. वरना इस देश मे एसे हजारों मरीज इस लिये दम तोड रहे है की उन्हे समय पर सही चिकत्सिय सलाह उपल्ब्ध नही होती. इसलिये हम तो चाहते है की अपोलो जेसे उच्च स्तेरीय अस्पताल हर शहर मे हो. कम से कम सस्ते के नाम पर जो हर गली महोल्ले मे कब्र गाहे खुली है उनसे ये लाख गुना बेहतर है.
मुझे तो लगता है की आम नागरिक को शिक्षा और स्वास्थय देने मे सरकार पूरी तरह नाकाम रही यह मे किसी भी राजनैतिक पार्टी के बारे मे नहीं कह रहा हूँ. अब ना सरकार के पास बजट है और ना ही इच्छा शक्ति. अगर सरकार हर शहर को एक अच्छा अस्पलताल नही दे सकती तो कम से कम हम उन लोगों का होसला बुलंद करे जो अच्छे अस्पताल को बना ने का कारण बनते है, क्योंकी अगर इलाज कराने किसी मरीज को दूसरे शहर इस वजह से जाना पडे क्योंकी वो इलाज उसके अपने शहर मे उपलब्ध नही है तो मरीजों के रिश्तेदारों की रात की नींद सिर्फ इसलिये हराम हो जाती है एक अजनबी शहर मे अपने काम धंधे को छोडकर केसे और कितने दिन मरीज का इलाज करा पायेगे,. इसी कारण से कई घर बरबाद हो चुके है.
जो लोग इन अस्पतालों की बुराइ मे लिख रहे है और जब अपनों पर या अपने पर गुजरती तो सबसे पहले इन अस्पतालों मे भर्ती होने के लिये खडे दिखाइ देते है उनसे मेरी यह विनती है...क्या उससे सस्ता और अच्छा कही है??? अगर है तो उसका भी अपने लेखों में जरूर उल्लेख किया करे.
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