Wednesday, April 13, 2011

थर्मोइलेक्ट्रीक जेनेरेटर



वैज्ञानिकों ने सी-बेक  प्रभाव पर आधारित एक एसे मोडयूल को बनाया है जो low grade heat जेसे सोलर उर्जा या फिर बायोमास उर्जा को आसानी से विद्युत उर्जा मे बदल देता है. इसे उन्होने थर्मोइलेक्ट्रीक जेनेरेटर का नाम दिया है
 हमारे आसपास ताप उर्जा के रूप में सूर्य ने आकूत भंडार दिया है. पर इस उर्जा को कार्य लायक यांत्रिक या विद्युत उर्जा में बदलने की कोई सस्ती तकनीक उपलब्ध नहीं होने के कारण इसका पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है. फोटो वोल्टीक पेनल अभी भी आम आदमी के पहुंच के बाहर है.  उर्जा के नये स्रोतों एवं उपकरणों की खोज के नतीजे मे हाल ही मे वैज्ञानिकों को 200 वर्ष से भी पुरानी खोज सी-बेक  प्रभाव पर आधारित एक एसे मोडयूल को बनाया है जो low grade heat जेसे सोलर उर्जा या फिर बायोमास उर्जा को आसानी से विद्युत उर्जा मे बदल देता है. इसे उन्होने थर्मोइलेक्ट्रीक जेनेरेटर का नाम दिया है
सी-बेक  प्रभाव में असमान धातु के तारों जेसे तांबा और लोहे के तार के सिरों को जोडकर जब एक जोड को गर्म और दूसरे सिरे के जोड को ठंडा किया जाये तो तारों में विद्युत उर्जा प्रवाहित होती है. पर यह विद्युत इतनी कमजोर होती है की इसका उपयोग तापमान नापने में या फिर ताप आधारित सेंसर को बनाने मे ही इस्तेमाल हो सका.







अब वैज्ञानिकों ने सेमीकंडक्टर आधारित मूड्यूल का विकास किया है जिससे इसकी दक्षता में बढोतरी हुई.  इस तकनीक को विकसित कर अंतरिक्ष स्टेशन में न्यूकिलियर बेटरी में रेडियो एक्टिव आइसोटोप जेसे की प्लूटोनियम 238 से निकली ताप उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने मे किया जाता रहा.
पेल्टियर प्रभाव जो  सी-बेक  प्रभाव का उल्टा है, का इस्तेमाल कर थर्मोइलेक्ट्रीक कूलर मोड्यूल बनाये गये जो हवाइ जहाज मे यात्रियोंको दिये जाने वाले खाने को गर्म या ठंडा करने मे होने लगा. क्योंको इस मोड्यूल की खासीयत यह है की जब इस में विद्युत उर्जा प्रवाहित कि जाती है तो उसका एक सिरा ठंडा और दूसरा सिरा गर्म हो जाता है. इसलिये जब यह किसी एक चेबंर में रखे खाने को वो गर्म कर रहा होता है तो दूसरी तरफ वाले चेंबर में रखे कोल्ड ड्रिंक्स को वो ठंडा भी कर रहा होता है. इसकी ठंडा करने की दक्षता भले ही 5% से 10% हो जो कम्प्रेसर पर आधारित रेफ्रीजरेशन की तुलना में 4 से 5 गुना कम है पर यह वज़न में बेहद हल्के और छोटे होते है.
थर्मोइलेक्ट्रीक जेनेरेटर के दोनों सिरों पर अगर तापमान में अतंर बना पाते है तो वो ताप उर्जा को विद्युत उर्जा में बदल देगा. जेसे अगर सोलर हीटर की मदद् से इसके दोनों सिरों पर 60 oc का अंतर भी बना लिया जाये तो वो उसी साइज के  फोटो वोल्टीक पेनल से मिलने वाली उर्जा से दो गुनी से ज्यादा उर्जा को विद्युत में बदल देगा.  समान वाट के थर्मोइलेक्ट्रीक जेनेरेटर मोड्यूल और सोलर पेनल से तुलना करने पर यह सोलर पेनल से बेहद सस्ता है.
सोलर पेनल रात को या फिर जब बरसाती मौसम में सूर्य की रोशनी को बादलों ने रोक लिया तो ये काम नही कर पाता. सब कुछ ठीक होने पर भी ये अपनी क्षमता से एक चोथाइ पर ही काम कर पाते है जेसे 75 वाट का फोटो वोल्टीक पेनल दिन में 4 से 5 घंटे के बीच  25 वाट ओसत से ज्यादा शक्ति नहीं दे पाता. साथ ही फोटो वोल्टीक पेनल के साथ उतनी ही कीमत की बेटरी का उपयोग उसकी उर्जा को संरक्षित करने में करना पडता है जिससे उसे रात के वक्त या फिर जब रोशनी कम हो तब उस जमा उर्जा का उपयोग किया जा सके.




थर्मोइलेक्ट्रीक जेनेरेटर की उर्जा दक्षता 5% से 10% तक होती है जो दक्षता में फोटो वोल्टीक पेनल से भले ही कम है. पर यह कीमत में उसका 1/3 है. साथ ही इसमे चार्जिंग बेटरी की जरूरत ना के बराबर है. सूर्य उर्जा ना होने पर विक्ल्पिक के रूप में किसी भी ताप उर्जा स्रोत जो उसे 200 oc से 250oc तापमान दे सके का उपयोग किया जा सकता है.



50 वाट TEG  स्ट्रीप, माप 275 X 75 X 50 mm का चार्ट
तापमान अंतर oC
वोल्टेज(V)
धारा (A)
शक्ति(वाट)
48
6.3
0.18
1.13
75
9.9
0.27
2.67
103
13.8
.36
4.96
131
17.4
1.06
131
159
24
1.4
33.5
186
27.2
1.5
40.8
214
31.6
1.6
50.5


इसका उपयोग दक्षता बढाने के लिये किसी भी ताप इंजन या अन्य उर्जा के स्रोतों जेसे चिमनी, चूल्हा, भट्टी के साथ उपयोग किया जा सकता है. जेसे अब तक कार की बेटरी को चार्ज करने के लिये अलटरनेटर का उपयोग होता था. BMW कार निर्माता ने अब उसकी जगह  थर्मोइलेक्ट्रीक जेनेरेटर को  exhaust चेंबर पर इस्तेमाल कर exhaust से बरबाद हो रही उर्जा से कार की बेटरी को चार्ज करने में किया है.
इसकी दक्षता भले ही 5 से 10 % है, थर्मल पावर स्टेशन मे टरबाइन (दक्षता 35%)  के सामने इसकी दक्षता भले ही कम नजर आये पर डिस्ट्रीब्यूटेड पावर का पूरा लाभ इसे मिलेगा. क्योंकी पॉवर हाउसों की टरबाईनों  और जनेरेटरो की दक्षता भले ही उच्च स्तर की हो पर  ओसत वार्षिक उपयोग  50% से 60% होने के साथ ही अगर इसमे ट्रासमिशन बरबादी जो क़रीब 22% से 30% है उसे भी शामिल किया जाये तो कई मानों में TEG बेहतर ही साबित होगा. यहां इस को  थर्मल पावर स्टेशन या सोलर पावर या एसे ही किसी दूसरे विद्युत उर्जा स्रोतों से बेहतर साबित करने का झगडा नहीं है. यह एक पूरक विद्युत स्रोत की अपनी भूमिका बेखूबी निभा सकता है.







TEG डिस्ट्रीब्यूटेड पॉवर सिस्टम के लिये अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. Waste heat से विद्युत बनाकर यह पूरे सिस्टम की दक्षता बढाने में मदद करता है. इसका रख रखाव का खर्च ना के बराबर है. यह कई परिस्थतियों में फ्यूल सेल, सोलर सेल, वायु ऊर्जा  से सस्ता विकल्प हो सकता है.  इसको लगाने में लगने वाला कम समय  और कम पूँजी इसे एसी जगह बेहद लोकप्रिय बना सकती है जहां बिजली के तार तो है पर उनमे बिजली का प्रवाह नहीं है. इन मोड्यूल की लाइफ सोलर पेनल की तरह लम्बी होती है जो बिना किसी मेंटीनेंस के लम्बे समय तक साथ देता है.




PTG-40-DC केम्प साइट पर आग पर खाना बनाते हुये 12VDC 40 वाट तक बिजली पैदा कर सकता है


TEG की तुलना में  पारंपरिक बिजली घरों से बिजली सस्ती हो सकती है पर जब ये शहरों को ही पूरी तरह बिजली आपूर्ति नहीं कर पा रहे है तो इससे दूरदराज गाँवों में बिजली मिलना असंभव सा ही है. दूरदराज गाँवों में बिजली पहुचाने में TEG खरा उतर सकता है. इसलिये एसी जगह जहां हमे बहुत कम उर्जा की जरूरत है और कोइ दूसरा विकल्प ना हो तो यह सबसे अच्छा स्रोत बन सकता है.
आज भी गाँवों में रात को रोशनी करने के लिए सरसों के तेल का दिया या फिर मिट्‌टी के तेल का लैंप या लालटेंन इस्तेमाल करते है। आपको आश्चर्य होगा की इस तरह एक यूनिट के बराबर बिजली के लिये वो 150/- से 200 रुपये दे रहे है. इसकी कमज़ोर रोशनी में पढ़ाई लिखाई का काम कितना कष्टप्रद है वो इसको इस्तेमाल करने वाले ही समझ सकते है। TEG चूल्हे के धुंए की ताप उर्जा को इस्तेमाल कर उस से एक साथ 8 से 10 लालटेन के बराबर रोशनी करने लायक विद्युत उर्जा पैदा कर सकता है. उसके लिये सरसों का तेल या केरोसिन तेल जलने की अब जरूरत नहीं होगी. उसकी तुलना में TEG एक अच्छा विकल्प तो हे ही.  

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