सारे देश का बिजली का बुरा हाल है. बढे शहरों और राज्य की राजधानीयों में तो बिजली अभी मिल पाती है. पर छोटे शहरों में बिजली कटौती का बुरा हाल है. यहां 6 से 7 घंटे की कटौती आम बात है. पर गांवों और कस्बों का तो और बुरा हाल है. पूरे-पूरे दिन बिजली गायब रहती है. जेसे जेसे गर्मी बढेगी बिजली की आँख मिचोली बढती जायेगी. अब एसे में यहां के लोग क्या करे?
जो धनवान है उन्होने डिजल जनरेटर का इंतिजाम कर लिया है. पर गरीब आदमी क्या करे. रात के अधंरे को कैसे दूर करे कैसे उसके बच्चे रात में पढाई करे. उसके पास रोशनी के लिये लालटेन या फिर सरसों के तेल का दिया या मिट्टी के तेल का लैंप होता है. यह रोशनी देने वाले उपकरण कितने मंहगे साबित हो रहे है उसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है.
एक लालटेन की रोशनी एक 5 वाट के सीएफल लेम्प से भी कम होती है. एक लालटेन एक लीटर में 30 घंटे के करीब चलती है. अगर हम मिट्टी के तेल की कीमत 15 रुपये लीटर भी मानकर चले तो 150 वाट-घंटे (करीब 10 दिनों तक 3 से 4 घंटे की रोशनी ) के बराबर विद्युत उर्जा रोशनी देगी इस तरह उन्हे 1 यूनिट बिजली की कीमत 35 से 50 रूपये हुई. मोमबत्ती की कीमत तो और होश उडा देगी. इतनी मंहगी कीमत इस देश के सबसे गरीब आदमी को देनी पड रही है.
इसका समाधान खोजने के लिये पिछले कुछ दिनों से इंटरनेट खंगालता रहा. मुझे अफ्रिका के एक NGO की मिसाल मिली उन्होने बेकार हो चुके मोबाइलों की बेटरीयों से LED चार्जेबल लेंप और टार्च बनाये और उन्हे स्कूल के बच्चों को दिया जिसे वो स्कूल में चार्जकर अपने घरों को ले जाते. प्रयास छोटा जरूर था पर उसकी हेमियत किसी से कम नहीं है. हम भी एसे स्कूल और पंचायत भवन में जो अभी बिजली से अछूते है या फिर जिन्हे बिजली के दर्शन कभी कभी होते है उन जगहों पर सोलर आधारित कमयूनिटी चार्जेबल यूनिट लगा सकते है और गांवों वालों को सस्ती LED चार्जेबल लेंप उपलब्ध करा सकते हे. जो केरोसिन और सरसों के लेंप का अच्छा विकल्प बन सके.
भला हो चाइना का की उसने इस देश में सस्ती LED टार्च से बजार को भर दिया। अब गांव-गांव में यह रोशनी का नया विकल्प बनती जा रही है. कम्यूनिटी चार्जेबल यूनिट की सुविधा होने से यह और भी लोकप्रिय हो सकती है. अब जरूरी हो गया है. की हर घर से लालटेन और तेल लेंप जेसी अदक्ष उपकरणों से इन गरीबों को निजात मिले. एक 75 वाट की कम्यूनिटी चार्जेबल यूनिट जिसकी लागत करीब 8 हजार रूपये की होगी जो आसानी से हर दिन 20 से 30 LED टार्च/ लेंप को चार्ज कर पायेगी एक बार चार्ज होने पर ये यूनिटें आसानी से 3 से 4 दिन तक काम करेगी इस तरह ये आसानी से 50 से 60 यूनिटों की चार्जिंग के लिये काफी होगी. इस तरह देखा जाये तो एक टार्च पर इसका एक बार का अतिरिक्त भार 100 रूपये से भी कम आयेगा. उसके बाद यह सालों साल तक फ्री चार्जिंग की सुविधा दे सकता है. इसे पचांयत आसानी से लगवाकर एक साल के अदंर ही अपनी लागत वसूल कर पायेगी, और सबसे बढी बात मिट्टी के तेल की आँख फोडू रोशनी से भी इन्हे मुक्ति मिलेगी.
जो धनवान है उन्होने डिजल जनरेटर का इंतिजाम कर लिया है. पर गरीब आदमी क्या करे. रात के अधंरे को कैसे दूर करे कैसे उसके बच्चे रात में पढाई करे. उसके पास रोशनी के लिये लालटेन या फिर सरसों के तेल का दिया या मिट्टी के तेल का लैंप होता है. यह रोशनी देने वाले उपकरण कितने मंहगे साबित हो रहे है उसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है.
एक लालटेन की रोशनी एक 5 वाट के सीएफल लेम्प से भी कम होती है. एक लालटेन एक लीटर में 30 घंटे के करीब चलती है. अगर हम मिट्टी के तेल की कीमत 15 रुपये लीटर भी मानकर चले तो 150 वाट-घंटे (करीब 10 दिनों तक 3 से 4 घंटे की रोशनी ) के बराबर विद्युत उर्जा रोशनी देगी इस तरह उन्हे 1 यूनिट बिजली की कीमत 35 से 50 रूपये हुई. मोमबत्ती की कीमत तो और होश उडा देगी. इतनी मंहगी कीमत इस देश के सबसे गरीब आदमी को देनी पड रही है.
इसका समाधान खोजने के लिये पिछले कुछ दिनों से इंटरनेट खंगालता रहा. मुझे अफ्रिका के एक NGO की मिसाल मिली उन्होने बेकार हो चुके मोबाइलों की बेटरीयों से LED चार्जेबल लेंप और टार्च बनाये और उन्हे स्कूल के बच्चों को दिया जिसे वो स्कूल में चार्जकर अपने घरों को ले जाते. प्रयास छोटा जरूर था पर उसकी हेमियत किसी से कम नहीं है. हम भी एसे स्कूल और पंचायत भवन में जो अभी बिजली से अछूते है या फिर जिन्हे बिजली के दर्शन कभी कभी होते है उन जगहों पर सोलर आधारित कमयूनिटी चार्जेबल यूनिट लगा सकते है और गांवों वालों को सस्ती LED चार्जेबल लेंप उपलब्ध करा सकते हे. जो केरोसिन और सरसों के लेंप का अच्छा विकल्प बन सके.
भला हो चाइना का की उसने इस देश में सस्ती LED टार्च से बजार को भर दिया। अब गांव-गांव में यह रोशनी का नया विकल्प बनती जा रही है. कम्यूनिटी चार्जेबल यूनिट की सुविधा होने से यह और भी लोकप्रिय हो सकती है. अब जरूरी हो गया है. की हर घर से लालटेन और तेल लेंप जेसी अदक्ष उपकरणों से इन गरीबों को निजात मिले. एक 75 वाट की कम्यूनिटी चार्जेबल यूनिट जिसकी लागत करीब 8 हजार रूपये की होगी जो आसानी से हर दिन 20 से 30 LED टार्च/ लेंप को चार्ज कर पायेगी एक बार चार्ज होने पर ये यूनिटें आसानी से 3 से 4 दिन तक काम करेगी इस तरह ये आसानी से 50 से 60 यूनिटों की चार्जिंग के लिये काफी होगी. इस तरह देखा जाये तो एक टार्च पर इसका एक बार का अतिरिक्त भार 100 रूपये से भी कम आयेगा. उसके बाद यह सालों साल तक फ्री चार्जिंग की सुविधा दे सकता है. इसे पचांयत आसानी से लगवाकर एक साल के अदंर ही अपनी लागत वसूल कर पायेगी, और सबसे बढी बात मिट्टी के तेल की आँख फोडू रोशनी से भी इन्हे मुक्ति मिलेगी.
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