Friday, March 4, 2011

6500 मिलियन इंसान जय हो!


6500 मिलियन की इंसान की आबादी से लदा यह ग्रह बहुत तेजी से बदल रहा है. इस बदलाव में हम इंसानो का बहुत बडा हाथ है. जंगल के कटने से और प्राकृतिक स्रोतो का अत्यधिक दोहन से अब हम सब संकट में है.  हमारा ग्रह अब पहले जेसा नहीं रहा वो तेजी से बदल रहा है. यह सच है की जंगल खत्म हो रहे है यह भी सच है की हमने अपने रहने के लिये और खाने के लिये इन्हे बुरी तरह बरबाद किया...अगर हम यह नहीं करते तो क्या करते...6500 मिलियन लोगो को खाने और रहने के लिये यह सब शायद जरूरी था. हम मानते है की हम इसकी बरबादी का कारण गये है.


पर क्या सिर्फ हम! हम ही नहीं ब्रह्मांड की और भी बहुत सी ताकते इस ग्रह को बदल रही है सच तो यह है की हम इसे बदले या ना बदले इसे तो बदलना ही है .इसलिये हमे हर परस्थिति में जीना सीखना होगा. हम में से कुछ लोग सहारा रेगीस्तान और साइबेरिया जेसी विषम परिस्थतियों और भीषण प्रदूषण में जी रहे है. यही वो लोग होंगे जो बदली हुई परस्थिति में जिंदा रह पायेगे.

जल्दी ही  10000 मिलियन का आकडा पार कर लेगे. इतनी बढी आबादी को खाना, रहना, ....यह सब इतना आसान नहीं है. हम इंसानों ने जिंदा रहने की जिद्दो जहद में बहुत कुछ सीखा है और लगातार हम हर दिन कुछ ना कुछ नया सीख रहे है...नेये उर्जा स्रोत पता करने, नया खाना..., वो समय दूर नहीं जब हम घास को खाने लायक बना देगें. सीधे मिट्टी से हमारी फेक्ट्रीयां  पेड़ पोधों की तरह खाना बाना सकेगीं.

हमारे लिये जगह की कमी होने वाली है इसलिये हम नये रहने विकल्प तलाश कर रहे है अब वो चाहे समुद्र के अदंर हो या सागर की लहरों पर तेरता शहर. हम जल्द ही अतिंरिक्ष और दूसरे ग्रहों को भी रहने लायक बना लेगे. हमे नहीं मालुम यह सब कैसे होगा, पर हम करेगे यह हमे मालुम है.

हम ही क्या जानवर भी अपने को बदलने में लगे हुये है ...अगर वो अपने को नही बदलेगे तो इतिहास बन जायेगे ...देखा नहीं आपने गाय भी अब हमारे द्वारा छोडा गया सडा गला खाना  सीख रही है, हो सकता है वो जल्द ही  प्लास्टिक को भी पचाने लगे. जंगली जानवर शहर की ओर भाग रहे ...अब अगर शेर को जीना है तो उसे हमारे साथ रहना सीखना होगा, वेसे ही जेसे कुत्तों ने हमारे साथ जीना सीखा. ...अरे आप तो बुरा मान गये.

अब हम सिर्फ शेर के लिये तो जंगल बचाने से रहे...अगर शेर को जिंदा रहना है तो उसे भी बदलना होगा.
सब कुछ बहुत तेजी से घट रहा है. जो विकास हजारों सालों मे नही हो सका वो हमने कुछ दशकों मे कर दिया. समय और लोगों के बीच की दूरिया कम होती जा रही है.  इसलिये आम अदमी दुविधा मे है. समय के साथ यह दुविधा खत्म होती जायेगी. क्योंकी समय के चक्र को उल्टा घुमाना अभी तो असंभव है. इसलिये हमें अपने को बदलते समय के साथ खुद को बदलते रहना होगा अब चाहे वो बदलना जीवन मूल्यों का ही क्यों ना हो!

2 comments:

  1. so u think that whatever damage is done by us ir right ?

    ReplyDelete
  2. एसा बिल्कुल नही है की जो हो राहा है वो सही है, पर हम सिर्फ उसका रोना नही रो सकते. हमे भी बदलना होगा. जो ख्त्म हो रहा है उसका विकल्प तलाशना है. बदलते प्रयावरण के लिये अपने क तैयार करना है. दूसरे को पर्यावरण का पाठ पढाने से पहले खुद को वो पाठ सीखना होगा अब चाहे वो उर्जा की खपत का मामला हो या फिर पानी और जंगल हमे उसका मर्यादित इस्तेमाल तो सीखना ही होगा.

    ReplyDelete