कुछ दिन पहले वाहटस एप एक मेसेज मिला ...की सच को चीखने की जरूरत नही होती, सच सनातन है, सच की जीत होती है इत्यादी-इत्यादी... पर जरूरी नहीं आप का सच किसी दूसरे का भी सच हो. यह तो किसी घटना को देखने का अपना अपना नजरिया है. अब जंहागीपुरी के दंगे को ही देखो. सबका अपना अपना सच होगा. अब आप ही बताइये आप के हिसाब से क्या सच है ? जनाब जो चीख चीख कर बोलेगा उसे ही तो सुना जाएगा। अगर आप अपने सच को आवाज नहीं दोगे तो आप को दूसरे का सच मानना पडेगा, इसे ही लोकतंत्र कहते है .
एक और उदाहरण, बैंक से उधार लें सत्ता के करीबी एक ग़रीब ने एयर पोर्ट ख़रीदा और फ़िर महान सरकार ने उस गरीब का बैंक कर्ज को माफ़ करा दिया। ! अब आप करते रहिए सच और झूठ का पोस्टमार्टम।
अब करोना को ही लिजिये। करोना का सच क्या है। मेरा सच यह है की एक साधारण से जुकाम को करोना का नाम दे दिया। हर होने वाले मौत को करोना मौत बताने का इंतिज़ाम किया और डर दिखाकर धमकाकर पूरे देश का लोक डाउन करा डाला..? कुछ लोगो का यही सच है। अगर ऐसा नहीं होता तो इतने चुतियापे के बाद वो कैसे सरकार में बने रहते।
यानी मेरा सच सब लोगो का सच नहीं है। उनका सच बो है जो मीडिया और सरकार ने बताया।
अब तो लोग मेरे ही सुनाने लगे हैं की सारा विश्व जिस की चपेट में था वो तुम्हें दिखी नहीं देता क्या। हज़ारो मौत तुम्हें दिखी नहीं। तुम्हारे अपने मरते तो तुम्हें पता चलता ...एसा ही और ना जाने क्या-क्या नही सुनने को मिला। .अब उन्हे केसे बताउ की … उन्हे वो नहीं दिख रहा जो मुझे दिखाई दे रहा है।
जो लीग लाशों को उठा रहे थे, मरीजो की दिन रात सेवा कर रहे थे , जो दिन रात एम्बूलेस सेवा दे रहे थे, मेरीजो को ले जाते हुये उनकी सेवा कराते हुये वो उनके सबसे नजदीक होते थे। जब उनके अपनों ने भी उन्हे छूने तक से परहेज कर लिया था, तब भी कुछ लोग थे जो उनकी सेवा करा रहे थे। कोई मुझ बताएगा की एसे लोगो जो दिन रात मरीजो की सेवा करा रहे थे उनमे से कितनों की मौत हुई ...क्योकी जिस तरह से इस बीमारी का डर दिखाया गया था उस हिसाब से उनमे से किसी को भी नही बचना चाहिए था।
सच तो यह है की कुछ लोगो के लिए मौत भी मौका है, पैसा कमाने का, सत्ता हासिल करने का. एसे दरिंदो से अगर बचना है और अपने वजूद को बचाना है तो अपनी आवाज बुलंद करिए .. सच और झूठ का फैसला आने वाले कल पर छोड़िए.
सत्ता को हासील करने और उसे बनाए रहने के लिए वो एसी एसी क्र्रूरतम हिंसा को कर गुजरते है जिसे हम और आप सोच भी नही सकते, पर वो हमसे अहिंसक विरोध की चाह रखते है। और उसे भी हमे नही करने देना चाहते। वो अहिंसक विरोध को भी पुलिस और सेना के उपयोग से दबा देना चाहते है।
दुर्वेश
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