Wednesday, June 5, 2013

बिगडते पर्यावरण पर घडियाली आंसू


कल 5 जून को पर्यावरण दिवस था और देश दुनिया के अखबार पर्यावरण के बिगडते हालात की चिंतओं से भरे थे. और उसके एक दिन बाद हमारे देश के राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी के भोपाल दौरे का जिक्र था, साथ मे एक खबर थी की अटल बिहारी बाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय की आधारशिला 100 एसी वाले विशाल पंडाल मे रखी जायेगी. इन एसी की क्षमता 750 टन होगी इसे चालू रखने के लिये 23 जनरेटरों की व्यवस्था भी की गई है. इसी तरह आरजीपीवी के 8वें दिक्षांत समारोह के लिये एसी पंडाल की व्यवस्था की गई है.
भारी धन राशी खर्च कर यह व्यवस्था इस लिये की गई है की कंही हमारे अति विशिष्ट अतिथी पर वर्षा की चंद बूंदे ना पड जाये!...या फिर माथे पर पसीने के बूंदे ना चमक उठे. अगर इसे लोक शाही कहते है तो फिर राज शाही क्या है?
इस तरह के सरकारी या अर्ध सरकारी आयोजन आम जन को क्या संदेश देते है! अगर यह सब जायज है तो फिर पर्यावरणिय चिंताओं पर घडियाली आंसू मेरी समझ से परे है...अगर आपकी समझ मे आ जाये तो मुझे बताना.

1 comment:

  1. दरअसल पूंजीवाद की भोगवादिता से हटने की बात करना जितना आसान है उससे कहीं अधिक कठिन उस पर अमल करता है ! कथनी और करनी में फर्क तो मानव स्वभाव का स्थाई अंग है; पर्यावरण की बात करने वालों ने खुद कौन सी ऊर्जा-खाऊ सुविधाएं त्याग दी हैं ?) – जोशी

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