दैनिक जागरण 1
जून 2016 मे प्रकाशित ‘सांवली
लडकीयों की गुहार’ लेख ने जो लिखा है वो अर्ध-सत्य है. पूरा
सच तो यह है की काले और सांवले जब खुद यह मान लेते है की गोरा रंग सुदंरता,
सभ्यता और अक्ल का प्रतीक है तो फिर कोइ ओर क्या करे. काली लडकी को
गोरा पति चाहिये और और काले लडके को गोरी पत्नी. अगर एसा ना हो, तो लाखों करोडो रूपये का गोरे बनाने के पागलपन कारोबार एसे ही नही चलता.
मजेदार बात तो यह है की आज तक कोइ इन क्रीमों से गोरा नही हुआ है. फिर भी लगाये जा
रहे है.
आपको क्या लगता है की गोरे पन का यह लफडा अंग्रेजों के भारत आने के
बाद शुरू हुआ? अगर आप एसा सोच रहे है तो भारी गलती कर रहे है. इस गोरे पन की खाज
हमारी संस्कृति मे तब से है जब से इस संस्कृति का उदय हुआ. तब से ही काले और
सांवले देत्य , असुर
और राक्षस नजर आते रहे है. और गोरे देवता. अब आप बोलोगे की राम और कृषण तो सांवले
थे. यह सही है की वो सांवले थे पर राम और कृषण जेसे सांवले को भी हमने भगवान तब
माना जब उन्होने सांवले और कालों का वध किया. कहने को तो वो सांवले थे पर उन्होने
काम गोरों के लिये ही किया. आप किसी से भी पूछ लो वो सब राक्षस या देत्य और असुर
को काला ही बतायेगे.
इसी तरह इस देश मे यह मान लिया गया है की सारी अक्ल और सभ्यता
अंग्रेजी पढे लिखे छोकरे छोकरीयों मे ही है. कुछ दिन पहले एक खबर पढी था की
हिन्दी किसी को प्रधान मंत्री तो बना सकती है पर इजीनियर, डाक्टर और आइ ए एस नही बना
सकती. यह एसी सोच है जिसे हम चाहे तो बदल सकते है. पर याद रहे यह किसी सरकार के बस
मे नही है की वो एसी सोच को बदल सके. यह तो आपकी अपनी इच्छा शक्ति से ही संभव हो
सकता है.
आज हम ग्लोबल है,
तो अपनी सोच को भी ग्लोबल करे. अक्ल का इस्तेमाल करे और देखे की
सभ्यता और शिक्षा का ना रंग से कोइ वास्ता है और ना ही अंग्रेजी से. जो आपको रंग
के कारण नापसंद करता हो उसे अनदेखा कर आगे बढे, इस
बात की हीन ग्रंथी अपने दिमाग मे ना पाले. यह सही है की अधिंकाश भारतीय गोरे रंग
को अहमियत देते है, पर आप इस बात को ज्यादा तब्बजो ना देते
हुये आगे बढे. आज लाखो करोडों लोग हैं जो काले है या सांवले होते हुये भी हर फील्ड
में इतिहास रच रहे है , इस दुनिया को नई दिशा दे रहे है,
बेहतरीन नेता साबित हो रहे है. एसे लोगों से सीख सकते हो तो सीखों.
आज कल तो गोरे भी अपनी गोरी चमडी से परेशान है अगर एसा नही है हो
तो उन्हे सूर्य स्नान करते हुये अपनी त्वाचा को टेन करने की जरूरत नही होती. अब तो
विज्ञान भी सांवली और काली त्वाचा के फायदे गिना रहा है तो हम फिर से अपने
को बेवकूफ क्यों साबित करने पर तुले हुये है.
स्मार्ट बनिये,
फेशनेबल बनिये, उसके लिये आपको गोरे होने की
कतई जरूरत नही है. एक बात अच्छी तरह समह लो की कोइ भी पहले अपनी नजरों मे नीचे
गिरता है फिर किसी ओर की निगाह मे नीचा होता है. स्वाभिमान को अपने रंग़ से नही,
अपने हुनर और अक्ल से जोडो और आगे बढों या फिर गोरे पन की क्रीम
मलते रहो.
दैनिक जागरण 1
जून 2016 मे प्रकाशित ‘सांवली
लडकीयों की गुहार’ लेख ने जो लिखा है वो अर्ध-सत्य है. पूरा
सच तो यह है की काले और सांवले जब खुद यह मान लेते है की गोरा रंग सुदंरता,
सभ्यता और अक्ल का प्रतीक है तो फिर कोइ ओर क्या करे. काली लडकी को
गोरा पति चाहिये और और काले लडके को गोरी पत्नी. अगर एसा ना हो, तो लाखों करोडो रूपये का गोरे बनाने के पागलपन कारोबार एसे ही नही चलता.
मजेदार बात तो यह है की आज तक कोइ इन क्रीमों से गोरा नही हुआ है. फिर भी लगाये जा
रहे है.
आपको क्या लगता है की गोरे पन का यह लफडा अंग्रेजों के भारत आने के
बाद शुरू हुआ? अगर आप एसा सोच रहे है तो भारी गलती कर रहे है. इस गोरे पन की खाज
हमारी संस्कृति मे तब से है जब से इस संस्कृति का उदय हुआ. तब से ही काले और
सांवले देत्य , असुर
और राक्षस नजर आते रहे है. और गोरे देवता. अब आप बोलोगे की राम और कृषण तो सांवले
थे. यह सही है की वो सांवले थे पर राम और कृषण जेसे सांवले को भी हमने भगवान तब
माना जब उन्होने सांवले और कालों का वध किया. कहने को तो वो सांवले थे पर उन्होने
काम गोरों के लिये ही किया. आप किसी से भी पूछ लो वो सब राक्षस या देत्य और असुर
को काला ही बतायेगे.
इसी तरह इस देश मे यह मान लिया गया है की सारी अक्ल और सभ्यता
अंग्रेजी पढे लिखे छोकरे छोकरीयों मे ही है. कुछ दिन पहले एक खबर पढी था की
हिन्दी किसी को प्रधान मंत्री तो बना सकती है पर इजीनियर, डाक्टर और आइ ए एस नही बना
सकती. यह एसी सोच है जिसे हम चाहे तो बदल सकते है. पर याद रहे यह किसी सरकार के बस
मे नही है की वो एसी सोच को बदल सके. यह तो आपकी अपनी इच्छा शक्ति से ही संभव हो
सकता है.
आज हम ग्लोबल है,
तो अपनी सोच को भी ग्लोबल करे. अक्ल का इस्तेमाल करे और देखे की
सभ्यता और शिक्षा का ना रंग से कोइ वास्ता है और ना ही अंग्रेजी से. जो आपको रंग
के कारण नापसंद करता हो उसे अनदेखा कर आगे बढे, इस
बात की हीन ग्रंथी अपने दिमाग मे ना पाले. यह सही है की अधिंकाश भारतीय गोरे रंग
को अहमियत देते है, पर आप इस बात को ज्यादा तब्बजो ना देते
हुये आगे बढे. आज लाखो करोडों लोग हैं जो काले है या सांवले होते हुये भी हर फील्ड
में इतिहास रच रहे है , इस दुनिया को नई दिशा दे रहे है,
बेहतरीन नेता साबित हो रहे है. एसे लोगों से सीख सकते हो तो सीखों.
आज कल तो गोरे भी अपनी गोरी चमडी से परेशान है अगर एसा नही है हो
तो उन्हे सूर्य स्नान करते हुये अपनी त्वाचा को टेन करने की जरूरत नही होती. अब तो
विज्ञान भी सांवली और काली त्वाचा के फायदे गिना रहा है तो हम फिर से अपने
को बेवकूफ क्यों साबित करने पर तुले हुये है.
स्मार्ट बनिये,
फेशनेबल बनिये, उसके लिये आपको गोरे होने की
कतई जरूरत नही है. एक बात अच्छी तरह समह लो की कोइ भी पहले अपनी नजरों मे नीचे
गिरता है फिर किसी ओर की निगाह मे नीचा होता है. स्वाभिमान को अपने रंग़ से नही,
अपने हुनर और अक्ल से जोडो और आगे बढों या फिर गोरे पन की क्रीम
मलते रहो.