इलेक्टानिक
सामान हो या मेकेनिकिल समान ग्राहक के पास पैकिंग के साथ दिया जाता है जिससे वो
सही सलामत अपने गंतव्य तक पहुंच सके. इन की पैकिंग में थर्मोकोल, पोलीथीन, रबर,
लोहा, लकडी, प्लास्टिक इत्यादी का बहुतियात से इस्तेमाल होता है. इन में से
अधिकांश को रिसायकिल किया जा सकता है, पर उसके लिये जरूरी है की पैकिंग में
इस्तेमाल होने वाली सामग्री रिसायकिलकर्ता तक पहुंचाया जा सके.
पैकिंग
में इस्तेमाल होने वाली सामग्री उसके प्रकार के अनुसार आसानी से छांटी जा सकती हो
तो इस बात की अच्छी संभावना है की वो रिसायकिलकर्ता तक आसानी से पहुच जायेगी, पर आजकल
बहुत से सामानों की मिक्स पैकिंग होने लगी है, जैसे टेट्रापैक डिब्बे में सीलबंद जूस या फिर
सील बंद थेली में मिलने वाले चिप्स और नमकीन्. इन पैकों की खासियत है की इनमें
मिक्स पैकिंग कुछ इस तरह होती है कि इसमें रखा खाद्य पदार्थ बिना किसी रासायनिक
मिलावट के भी बहुत दिनों तक सुरक्षित रहता है. इनके उपर की गई आकर्षक प्रिटिंग
ग्राहक को आसानी से अपनी ओर खींच लेती है.
इस
तरह के पैकों में इस्तेमाल हो रहे पोलीथीन, एल्यूमिनियम और पैपर की रिसायकिल
प्रक्रिया अलग-अलग है पर इसके बारे में लोगों को कोइ जानकारी नही दी गई. दुकानदार भी
इन्हे बेचकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है और ग्राहक भी इन्हे इस्तेमाल कर
किसी कूडेदान मे फेंक कर सोचता है की उसने भी अपना काम पूरी जिम्मेदारी से कर
दिया. इस नये पैक के सही निस्पादन के बारे मे ना जनता को जागरूक किया गया. जब तक
माल बिकिता हो तो ना उसे बनाने वाले को
उसकी फिक्र है और ना ही बेचने वाले को उसकी फिक्र है.
इस
पूरी प्रक्रिया में रिसाकिलीकरण का क्या हुआ! यह कचरा सालों साल एसे ही कूडे के ढेर पर पडा रहता है या फिर किसी
नदी नाले पर तैरता रहता है, जानवरों के पेट मे जाता है, नालियों को चोक करता है.
हो सकता है यह आज आप को मुसीबत ना दिखाइ दे रही हो पर कल का क्या. यह भले ही शहरी
कचरे का मात्र 5% हो पर आगे चलकर हमारे लिये भारी मुसीबत साबित होगा. इस बात को आप
लोग तो नही पर आपके शहर के सफाइ कर्मचारी और संवेदनशील नागरिक अच्छे तरह से समझ पा
रहे है. सरकारी एजंसियों का पता नही वो कब जागेगी पर हमारे और आपके जागने का समय आ
गया है. हमारे द्वारा उठाये गये छोटे छोटे कदम आने वाली भारी मुसीबत से छुटकारा
पाने का आसान रास्ता बन सकते है. हम इसकी रिसायकिल प्रक्रिया को समझे और अपने बच्चों
को समझाये क्योंकी वो इसके सबसे बढे उपयोगकर्ता है और आगे आने वाले समय मे वो ही
इनके भुगतभोगी भी होंगे.
कुछ
आसान से उपाय और यह मुसीबत हमारे लिये वरदान बन जायेगी. सबसे पहला कदम इन पैकिंग
के प्रकार के अनुसार इन्हे अलग-अलग् कचरे के डिब्बे में डालने की आदत, अभी तक इसे
प्लास्टिक या पपैअप्र के साथ मान लिया जाता था जबकी यह अपने आप मे अलग टाइप का
कचरा है. इसे दूसरे कचरे के साथ मिक्स ना किया जाये. टेट्रापैक को कचरे के डिब्बे
में डालने से पहले इनके कार्नर को सीधा कर इन्हे फ्लेट कर दिया तो ये ज्यादा जगह
नही घेरते.
इसी तरह से थर्मोकोल का कचरा बहुत
जगह घेरता है, पर यह आसानी से एसीटोन में घुल जाता है, इस तरह थर्मोकोल के बढे बढे
टुकडों को आसानी से छोटे से क्यूब मे बदला जा सकता है. जिसे रिसायकिल यूनिट आप से
खरीद सकती है.
अकसर
बायोमास और प्लास्टिक, पोलीथीन और पैपर को
एक ही डिब्बे मे डाल दिया जाता है जो पूरी तरह गलत है, क्योंकी बाद मे इन्हे अलग
करना लगभग असंभव हो जाता है. और अगर यह गंदे हो गये तो इन्हे साफ करने का खर्च
अलग. इन्हे सही सलामत साफ सुथरी हालत में रिसायकिल यूनिट तक पहुचा दिया जाये तो
इनसे पैपर, पोलीशीट, बोर्ड, बनाये जा सकते है. इसके लिये आप को रिसायकिल यूनिट इसके
अच्छी खासी कीमत भी देती है.
इसके
लिये अपने शहर मे चल रही रिसायकिल यूनिटों का पता करे. अगर आपके शहर मे रिसायकिल
यूनिट नही है तो उसे स्थापित करायें. प्यार, सहयोग, जानकारी, और जुर्माना का उपयोग
करते हुये लोगों को जागरूक करे. शुरूआत आप अपने घर से कर सकते है. पह्ले आप सुधरे
फिर किसी दूसरे को सुधारने का जिम्मा लें. अगर रिसायकिल यूनिट आपके शहर मे नही हो
तो मायूस ना हो इंटरनेट पर घरेलू स्तर पर रिसायकिल की जा सकने वाले ढेरों उपाय के
विडियो मोजूद है. एक बार रद्दी पैपर वाले से भी बात करके देखे, मुझे पूरी उम्मीद
है की वो इन्हे आप से अच्छी कीमत देकर खरीदेगा. आगर कीमता ना भी दे सका तो उसके
चहरे पर अपके इस सहयोग के लिये मुस्कराहट तो होगी ही.
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