Friday, January 6, 2012

भोपाल श्हर

भोपाल हरे-भरे जंगलों और पहांडों से घिरा भोपाल शहर खूबसूरत शहरों में से एक है। यहां की बंडी झील, ताजूल मस्जिद, भारत भवन, पर्दा, नामर्दा, जर्दा, बतौलबाजी और तांगा इसकी पहचान है। यहां की शाम और भोपाली उर्दू जुबान, इसकी खूबसूरत शाम और शांत वातावरण.....पर अब तेजी से बदल रहा हे
जिस झील के किनारे सैकंडों पर्यटकों और प्रेमी बैठकर इसकी खूबसूरत फिंजा को देखते थे वहीं आज यह बिरान सी लगने लगी है। ऐसे ही भोपाल की उर्दू, फारसी और अरबी जुबान भी अपनी विशेष पहचान रखती है। लेकिन अब वह भी भगवान भरोसे हो गई है। एक समय था, जब यहां वॉल्टर और फ्लोरा सारकस नाम की शायर रहा करते थे। असद भोपाली और कैफे भोपाली फिल्मी गीतकारों की हैसियत से भोपाल नगरी की पहचान थी…
तिरपन बरस पहले का भोपाल राजा भोज की नगरी थी। कहा जाता है कि तब यह भोपाल न होकर भोजपाल हुआ करता था और इस भोपाल शहर को उस समय के नवाबों ने संजोया और संवारा। तब भोपाल राजधानी भी नहीं था। तिरपन बरस पहले जब नये मध्यप्रदेश की स्थापना हुई और राजधानी के लिये भोपाल को चुन लिया गया। राजधानी बनने के साथ भोपाल दो हिस्सो में बंट गया। अब शहर एक और नाम दो थे। पुराना भोपाल और नया भोपाल। इन बावन सालों में पुराना भोपाल तो जस का तस रहा किन्तु नया भोपाल की सूरत साल-दर-साल बदलती गयी। पुराना भोपाल अपनी यादों के साथ आज भी जी रहा है। यादों के इस भोपाल में तांगे और बग्घी अब थोड़े से बच गये हैं और बाकियों को धुंआ उड़ाते आटोरिक्शा न लील लिया है। भोपाल की पहचान जरी-बटुआ उद्योग अब गुमनामी के साये में हैं। पुराने भोपाल की ताजुल मस्जिद में सजदा करते हजारों लोग, नफासत के साथ बतियाते लोग और वही पुरानी तंग गलियां, पानी के लिए नलों के सामने आपस में सुबह किलकिल और सांझ को साथ बैठ एक-दूसरे का सुख-दुख बांटती औरतें ही पुराने भोपाल की पहचान रह गई हैं। भोपाल का यह वही हिस्सा है जहां कभी कारखाने से निकली जहरीली गैस ने हजारों जिंदगियों को नींद में ही इस दुनिया से रूखसत कर दिया था। भोपाल की पहचान एक समय एशिया के सबसे बड़े ताजुल मस्जिद से थी तो ढाई सीढ़ियों की एशिया की सबसे छोटी मस्जिद भी भोपाल में है। मिंटो हाल, नया विधानसभा भवन, नेशनल लॉ यूर्निवसिटी, साइंस सेंटर और राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भी इस शहर की पहचान हैं। इस शहर की शान कलाओं का घर भारत भवन है। इस शहर की पहचान कामरेड शाकिर अली खां और बरकतउल्लाह भोपाली से हे तो इसी भोपाल ने देश को शंकरदयाल शर्मा जेसे विशाल व्यक्तित्व का राष्ट्रपति भी दिया। एशिया की पहली महिला कव्वाल शकीला बानो भोपाली से है तो दुष्यंत कुमार ने अपनी ग़ज़लों से इस शहर को एक नयी पहचान दी। अपने शेर-ए-शायरी के लिए पहचाने जाने वाले जनाब बशीर बद्र भी तो भोपाल से ही हैं। मंजर भोपाली, जावेद अख्तर के नाम के साथ भोपाल की पहचान जुड़ी है तो कमाल अमरोही और जगदीप भी इसी भोपाल से वास्ता रखते हैं तो लोक एवं आदिवासी कलाकारों को भोपाल के रास्ते नाम मिला। भोपाल ताल इस शहर की प्यास बुझाता है तो सैलानियों के लिए स्वर्ग जैसा है और इसी बड़े ताल से लगा हुआ है छोटा ताल। छोटा ताल नहीं कहलाता बल्कि तालाब कहलाता है और यह पुराने भोपाल के हिस्से में आता है। पुराने भोपाल की पहचान इतवारा, मंगलवारा, बुधवारा जैसे मोहल्ले से है तो नया भोपाल नम्बरों का शहर है। १२५०, १४६४, ७४ बंगले, सेकंड स्टॉप, दो नं, पांच नं, सवा छह, छह, साढ़े छै, सात, दस, ग्यारह और बारह नम्बरों में भोपाल बसा हुआ है। यह माना जाता है कि पुराने भोपाल के मोहल्ले के नाम उनके साप्ताहिक बाजारो के कारण पड़ा होगा तो नये भोपाल की पहचान वहां नये बने मकानों की संख्या से आशय रहा होगा। राज्यपाल निवास, मुख्यमंत्री निवास, विधानसभा भवन, मंत्रालय और पुलिस मुख्यालय नये भोपाल के हिस्से में हैं। पर्दा, जर्दा और मर्दा के लिये मशहूर भोपाल का उल्लेख केवल उसके राजधानी होने के कारण नहीं होता हे बल्कि इसके और भी कारण हैं। यह शहर देश के चुनिंदा महंगे शहरों में शामिल है। इन बावन सालों में बहुत सारी चीजें बदली। निजाम बदलते गए, व्यवस्था बदलती गई। किसी ने इस शहर को सुव्यवस्थित करने का प्लान बनाया तो कोई पेरिस की शक्ल देने में जुट गया। बात बनी नहीं और बेजा कब्जा वाले पसरते गए राजधानी होने का सुख भोपाल ने खूब भोगा तो दुख भी इस भोपाल ने झेले हैं। झाबुआ से बस्तर तक की राजधानी कहलाने का सुख भोगने वाले भोपाल को बीसवीं सदी के समाप्त होते-होते जोर का झटका लगा। इस राजधानी के मुकाबले एक और राजधानी बन गयी वह छत्तीसगढ़ की थी। मध्यप्रदेश विभाजित हो गया और अपने ही जन्मदिन एक नवम्बर को विभाजन की पीड़ा भोगनी पड़ी।

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