Monday, January 17, 2011

हिंदी की बात

आज हिंदी को कितना भी बुरा भला कहा दे, है तो हमारी अपनी भाषा. यह हमारे देश में आज भी सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है.  पर  आज यह गरीबों और कमजोरों की भाषा बनकर रह गई है. यह भी सच है कि इसका  बुरा, हम हिंदी बोलने वालों ने सबसे ज्यादा किया.  भला हो बजारवाद का, कि उसके कारण दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनीया अपना माल बेचने के लिये हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का सहारा ले रही है.
किसी भी भाषा की ताकत उसका ज्ञान होता है. जरूरी नहीं की वो उनका अपना हो. पर ये जरूरी है की वो सब उनकी अपनी भाषा में हो जिसे उसके लोग पढ सके और समझ सके.... हिंदी जानने और समझने वालों ने पिछले 60 सालों से साहित्य लिखने के अलावा कुछ नहीं किया. हमारे विश्व विद्यालय लोगों को डिग्रीया बांटते रहे. बिना इस बात की चिंता किये की जो ज्ञान वो विदेशी भाषा में उपलब्ध करा रहे है वो उनकी अपनी भाषा में भी उपलब्ध हो. इसे किसी भी तरह असंभव काम नहीं कहा जा सकता..बस हमारे अदंर इच्छा शक्ति नहीं थी. अगर एक प्रोफेसर अपने विषय को अपनी भाषा में ना पढा सके तो लानत है एसे प्रोफेसरी पर.
सच तो यह  है कि पढने वाले को नोकरी के लिये डिग्री चाहिये थी और पढाने वालों को अपनी तन्खाह से मतलब था. अब अगर ऐसा है तो फिर हिंदी हो या कोई और भाषा  रहे क्या फर्क पडता है. क्योंकी ये दोनों काम तो हो ही रहे है.
आज भाषा पेट से जुडी है. अंग्रेजी हम भारतीयों की जरूरत है क्योंकी यह हमे रोटी दे रही है. कल अगर जर्मन या फिर चाइनिस वो काम करेगी तो हम वो सीख लेगे... आज हम गलोबल युग में है. जो बेहतर होगा वो ही टीकेगा...जिसके पास ताकत होगी वही रहेगा...बाकी सब इतिहास की गर्त में होगा....इसलिये जागो और ओछी भाषाई राजनिती से उपर उठ कर सोचो.
इस देश को अपनी भाषा चाहिये. एक एसी भाषा जो कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और गुजरात से लेकर नागालेंड तक सबकी अपनी हो. इसके लिये क्यों ना हम उस भाषा की बात करे जो ना हिंदी है ना इगलिश ना उर्दू है ना मराठी और ना ही वो तमिल है. एक जन सामान्य की भाषा, वो भाषा जिसे हम भारतीय रोज इस्तेमाल करते है. बस उसे स्वीकार भर करने की जरूरत है.
उसमे सभी भाषाओं के प्रचलित शब्द हों जिससे किसी को यह शिकायत ना रहे कि उसे अनदेखा कर दिया.
एक बात और पूरे भारत मे लिखने की एक ही लिपी का इस्तेमाल हो. अगर मानक लिपी मे अन्य भाषा का कोई विशेष स्वर वाला अक्षर ना हो तो उसे उसमे जोडा जा सकता है. इस मानकीकरण  से पूरे भारत मे एक जेसा लिखा जा सके. अभी तो तमिल नाडू में तमिल में तो केरल में मलियाली मे तो बंगाल में बँगला मे लिखा होता है.   अगर किसी एक लिपी का इस्तेमाल हो, तो कम से कम उसे हर भारतीय पढ तो सकता है. अभी तो हाल यह है की दूसरे राज्यों के लोग बसों पर लिखी जगह का नाम तक नहीं पढ पाते.  इससे दूसरे राज्यों की भाषा को सीख़ना भी हमारे लिये आसान हो जायेगा. अंग्रेजी भी खुले दिन से दूसरे भाषा से शब्दों को आयात कर अपने क्लो दिनों दिन विकिसित करती जा रही है. फिर हम अपनी भाषा के साथ एसा क्यों नही कर सकते.
अगर आपको लगता है की हिंदी को इस देश की प्रथम भाषा होनी चाहिये तो राजनिती से उपर उठकर पहले कम से कम इतना भर कर ले की हिंन्दी को सभी जगह लिखने के लिये इस्तेमाल करे. अगर जरूरी हो तो इसमे नये अक्षर जोडे जा सकते है. या उसे भी हम राजनीती में उलझा देना चाहते है, जब अग्रेजी एसा कर सकती है तो हमारी अपनी भ्षा क्यों एसा नही कर सकती. इसे ही तो भाषा का विकास कहते है.
हमें बाते कम और काम ज्यादा करना है. नहीं तो हम और आप हिंदी और अंग्रेजी करते रह जायेगे....और कोई  हमारे वतन में ही हमे अजनबी बना देगा.  
जो लाखों करोडों किताबे और इंटर नेट पर ज्ञान है उस सबका अनुवाद हिंदी मे करना है. जिस दिन एसा कर पायेगे ...हिंदी इस देश की क्या वो विश्व भाषा बन जायेगी. अगर सच में आप 150 करोड़ हो तो उसे काम से साबित करो.  कुछ लोग इस काम मे लगे हुये है...आप चाहो तो आप भी उनके साथ मिल जाओ...वरना शोर ना मचाओ. ना ही राज नेता की तरह बाते करो. काम करो... . अगर आप भाषाई राजनिती से उपर नही उठोगे तो नीचे जाओगे...अरे नीचे जाओगे क्या ...आपकी दुआ से नीचे जा रहे है.
वेसे हम बेशर्म लोग है. कितना भी बुरा भला कहा लो हम वो काम नहीं करेगे जो दिल कहता है, हम वो काम करेगे जो हमसे डंडे की चोट पर कराया जाता है. या फिर पैसा फेंक कर हमसे कोई भी काम करा लो....यार कुछ तो बोलो...भगवान भला करे आपका 

2 comments:

  1. आपने सही कहा है, अब जरा इनेह देखे इन सब को व्यावसायिक भाषाएं कहा जाता है
    अरबी (Arabic) 25 करीब करोड़ (23)
    इतालवी (Italian) करीब 6 करोड़ (4)
    कोरियाई (Korean) करीब 7 करोड़ (1)
    चीनी मैंडरिन (Chinese Mandarin) 100 करोड़ से अधिक (1)
    जर्मन (German) 12-13 करोड़ (6)
    जापानी (Japanese) 12-13 करोड़ (1)
    तुर्की (Turkish) 6-7 करोड़ (1)
    पुर्तगाली (Portuguese) करीब 20 करोड़ (8)
    फ्रांसीसी (French) 12-13 करोड़ (27)
    रूसी (Russian) 25-26 करोड़ (4)
    स्पेनी (Spanish) करीब 40 करोड़ (20)
    पर 70 से 80 करोड लोगों द्व्रा बोली और समझे जानि वालॉ हिंदि का कंही नामोनिशान तक नही ...जागो रे जागो

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