इन दिनों टिवी पर निर्मल बाबा प्रकरण छाया हुआ है. पहले मिडिया ने उन्हे अधात्मिक गुरू बनाया और अब उन्हे जालसाज, धोखेबाज, धंधेबाज, और ना जाने किस किस विभूतियों से नवाजा जा रहा है. मेने भी इनकी बातें टीवी पर बहुत बार सुनी है. अपने भक्तों को जिस तरह की राय मशविरा देते थे उससे मेरा मंनोरंजन होता था. मै यह जानने की भरपूर कोशिश करता की इस व्यक्ति मे एसा क्या है की हजारों लोग दो से पांच हजार रूपये देकर उसके समागम मे जाना चाहते है.
कभी मुझे उस आम दुखी आदमी पर तरस आता जो उनके दरबार मे हाथ जोडे खडा है और कभी मुझे मिडिया पर गुस्सा आता की क्या अब उसके पास दिखाने को एसे लोग ही बचे है. पर जब से मिडिया अब बाबा की लेने पर तुली है तो मुझे बाबा पर तरस आ रहा है. और् मिडिया पर गुस्सा क्योंकी इतना सब कुछ हो जाने जाने के बाद मिडिया पर किसी ने उगली नही उठाइ यह वही मिडिया है जिस ने इस बाबा को हीरो बनाया अब वही उसकी बुराइ कर रहा है.
बाबा जो कुछ् भी करता था ताल ठोककर सब के सामने करता था और जो करता था उसका टेली कास्ट करता था. एसा उसने एक दिन नही दो दिन नही ......मुझे नही मालुम कितने दिन से यह सब चल रहा था...अब एसा क्या हो गया की बाबा रातोंरात मिडिया का विलेन बन गया....मुझे तो लगता की कोइ है जो मिडिया और बाबा के उपर है...शायद उसकी बाबा से खटपट हो गई और् उसके इशारे से अब बाबा का बेंड बजा रहा है. एसे हजारो है जो इस देश मे धर्म और कर्म कांडो के नाम पर उल्लू सीधा कर रहे है. जो लोग आज निर्मल बाबा के पीछे लगे है क्या उन्हे वो हजारो नजर नही आ रहे...या फिर ये सब भी बहती गंगा मे हाथ धो रहे है. जहां तक निर्मल बाबा का सवाल है उसे मे एसे धूध वाले की तरह देख रहा हू जो दूध मे पानी मिलाता है उनका क्या जो दूध के नाम पर जहर बेच रहे है...और आये दिन धर्म और कर्म केर नाम पर हजारो का खून बहाने से भी नही चूकते.
जहां तक .निर्मल बाबा का सवाल है उसके समागम मे जाने के लिये लोगों ने पैसा दिया था....मुझे अब तक एक भी एसा नही मिला जिसने कहा हो की उससे जबर जस्ती पैसा ले लिया है. या फिर पैसा लेकर उसे समागम मे शामिल नही होने दिया. पैसा समागम मे जाने की फीस थी .....अपना दुख जाहिर करने की फीस थी....वही फीस जो एक डाक्टर वसूल करता है. और जिस फीस के ना मिलने पर इस देश मे नर्सिंग होम बिमार को मरने के लिये छोड देते है.
जितने भी प्रोग्राम देखे उसमे बाबा ने दुख सुनकर उन्हे दिलासा दी और उम्मीद की एक किरण दिखाइ. और उनके द्वारा बताया उपाय....अगर एक मनोवैज्ञानिक की दृष्टी से देखोगे तो उसके उपाय मे आपको अर्थ दिखाइ देगा...वही अर्थ जो मंदिर मे दिया जलाने का होता है...या फिर अगरबत्ती या फिर घंटा बजाने का.. सवाल यह है कि फिर सिर्फ निर्मल बाबा ही क्यों?.....मुझी तो लगता है की पूरा मामला मुनाफे की हिदस्सेदारी का है.
पिछले एक हफ्ते से न्यूज चेनलों पर एक्सपर्ट बहस पर नजर है. उनमे अधिकतर का कहना है कि अगर बाबा ने ट्र्स्ट बनाया होता और दिखाता की इस पैसे से वो अस्पताल बनवा रहा है या फिर स्कूल कालेज चला रहा है तो उसका किया हुआ सब जायज हो जाता...पर बिचारे से एक गलती हो गई उसने पैसे को अपने या अपनों के नाम से धंधे मे लगा दिया ... बाबा अगर एक ट्रस्ट बनाकर यह सब कर देता तो सब जायज हो जाता...पर क्या है की विपरीत काले .... वरना इस देश मे तथा कथित मदिंरो और आश्रम मे करोडों अरबों की नाजायज संपत्ति कहां केसे इस्तेमाल हो रही है उस पर इनकी कभी नजर नही गई.
मुझे मिडिया के लिये बाबा खडग सिंह की कहानी याद आ रही है...
हे मिडिया आप कुछ भी करो पर एसा कुछ ना करो की आम जनता का भरोसा आप पर से टूट जाये...
क्योंकी जो लोग बाबा के उपायों पर बहस कर रहे है..उन्हे मिडिया पर दिन रात चलने वाले उन विज्ञापनों पर भी नजर डालनी होगी ...जो लोगो को जिंदगी को रातों रात बदलने का दावा कर, अपना माल बेच रहे है और आम जनाता को हर रोज लाखों करोडों का चूना लगा रहे है मजेदार बात तो यह रही की मिडिया पर बाबा का कोर्ट मार्शल हो रहा है और उस पर भी मिडिया को करोडो के विज्ञापन मिल रहे है...और यही तथा कथित मिडिया बिना यह देखे या जाने की इन विज्ञापनों मे आम जनता को क्या परोसा जा रहा है बेधडक दिखाया जा रहा है...इन प्रोग्रामों का एंकर हर दो मिनिट बाद बढी बेशर्मी से ब्रेक पर जाने की जबर्दस्ती इजाजत मांगता है जिससे वो इन भोडे विज्ञापनों को हमे दिखाकर लाखों कमा सके .... अगर एसा है तो बाबा ही क्यों!