हे जिम्मेदार नागरिक,
मै जिम्मेदार नागरिक
नही हू इसलिये इस मेल को जेसे का तेसा फार्वड ना कर कुछ लिखने की गुजारिश कर रहा
हू. जनाब हम हजारों सालो से नदी तलाब का पानी पी रहे थे, इन नदी नालों को जिस तेजी से आपने प्रदूषित
किये है वो तारीफे काबिल है. आपने अपने लिये तो RO
की मांग कर दी. इन मे रह रहे जल जीव, इन पर पल रहे जीव उनका
क्या...उनके लिये RO कंहा से लाओगे, अगर आपके लिये वो पानी
जहर है तो उनके लिये भी जहर हुआ ना , या आप समझ बैठे है की इस संसार की आप सर्वश्रेष्ठ रचना है और सिर्फ आपको जीने का
अधिकार है पर आप भी उनके बिना अकेले कब तक !
आपकी शाही आदते नदी
नालो को प्रदूषित करने का सबसे बडा कारण है पर जब बोतल बंद पानी मिल रहा है तो आपको
क्या चिंता है. आप लोग अपना मल मूत्र घर
से बाहर बहाने के लिये सेकडो लीटर पानी बरबाद कर देते है, बिना ये सोचे की यही मल
मूत्र नदी नालो को भी प्रदूषित कर रहा है. सेकडो टन साबुन रोज इस हसरत मे नदी नालो
मे बहा देते है की उससे आप गोरे और सुदंर दिखाई देंगे. कंही पर भी हग देगे ... मूत देगे...कचरा फेला
देगे. प्लास्टिक की उडती पन्नीयां. नदी नालों को जाम करती ये पन्नीया उसका दोष भी आपको
इन्ही पन्नीयों मे दिखाई दे रहा है इसलिये आप को अब कागज की थेलिया चाहिये. जिससे आपकी
शाही आदते वेसी ही बनी रहे...क्योंकी आप तो इशवर की बेहतरीन रचना है आपकी आदते या सोच खराब केसे हो
सकती है
अभी हाल ही मे गणेश
विसर्जन का नाजारा देखा एक छोटा सा तालाब और हजारों की भीड अपने अपने गणेश मूर्ति
के साथ विसर्जन के लिये तैयार, लाख बताया , समझाया की POP
की मूर्ति का इस्तेमाल नही करना है पर लोगों का क्या वो इसबार भी POP
की सेकडो बढी-बढी मूर्तियों लेकर विसर्जन के लिये हाजिर थे. धार्मिक
मामला था कोइ कुछ बोल भी नही सकता ओर तो ओर उनके हाथ मे पोलीथीन की छोटी बढी पूजा
मे इस्तेमाल की हुई सामग्री से भरी. हजारों थेलिया थी उसे पोलीथीन समेत तालाब के
फेंक दिया. कम से कम पोलीथीन तालाब मे फेंकने से बच सकते थे. पर एसा नही हुआ. एसा
करने वाले पढे लिखे समझदार लोग थे जो गणेश विसर्जन बेंड बाजो के साथ कर रहे थे. सच मानो ये वही सब लोग थे जो घरों मे RO का पानी पीते है. यही भीड अगर उस दिन तालाब साफ करने के लिये इकठ्ठी हुई
होती तो नजारा कुछ ओर ही होता. बंदा नतमस्तक हो जाता, पर एसा हो ना सका.
प्रशासन नदारद था ,
वेसे अगर वो होता तो क्या कर लेता. यही लोग उसके विरोध मे उतर आते. क्या किसी को
ये सब दिखाइ नही दे रहा था, सब को दिखाइ दे रहा था. पर बोले कोन, टोके कोन, समझाये कोन. नासमझ को समझाया जा सकता है, समझदार
का क्या किया जाये. एक समय था जब इसी बदबूदार गंदे तालाब का पानी साफ
हुआ करता था, पशु-पक्षी पानी पीते थे. तालाब जीवन था. अब वो मर रहा है. पर उन्हे क्या
चिंता है. अगले गणेश उतस्व मे इससे ज्यादा गंदगी तालाब के हवाले कर देगे. उनके
घरों मे तो RO है ना. वेसे भी जिन लोगों ने गणेश की मूर्ति के साइज को अपना शक्ति प्रदर्शन बना दिया हो. आस्था
साइज से जुड गई हो भीड मूर्ति के साइज के हिसाब से जय जय कार करती हो , उनसे इस सब
की उम्मीद केसे की जा सकती है.
अब ये दूसरा शगूफा, असल कारण पर वार ना कर, सस्ते और मंहगे का रोना
लेकर RO
की बात कर रहे है. RO तकनीक आपको रामवाण नजर आ
रही है, जो बोतल से सस्ता पानी देगी. क्या फर्क पडता है अगर RO तकनीक...50% से 60% पानी
बरबाद कर देती हो. पीने वाले को वो साफ पानी दे रही है ना .
धन्य है दानवीर जिम्मेदार
नागरिक जनता अरे हमारी बात छोडिये, 20 रूपये देना आपकी शान मे इजाफा करता है वरना आपके जेसों के लिये टीवी पर वो
एड नही आता जिस मे एक ही बोतल से दूसरे के पीने से उसे पहला वाला चांटा मारता है और
कारण बताया जाता है की उससे संक्रमण फेलता है ...वाह री लाजिक .. चुम्मा से संक्रमण
नही फेलता पर बोतल से फेल जाता है...वाह जी वाह क्या बात है.
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