हिंदी पखवाडा चल रहा है, भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन का उदघाटन माननीय मोदी जी के हाथ द्वारा होना है. भोपाल शहर उनके मुस्कराते चहरे वाले पोस्टर से पट गया है. कुछ दिन इस सम्मेलन की समाचारों मे चर्चा रहेगी उसके बाद
...उसके बाद क्या ?
उसके बाद उसे भुलाकर लोग अपनी रोजमर्रा की जिदंगी अंग्रेजी से आसान बनाने लग जायेगे. आजादी के बाद से हम एसा ही तो कर रहे है, क्योंकी हिन्दी का महिमामण्डन करने वाले सिर्फ दिखावा कर रहे हैं, उन्होने हिन्दी को अंग्रेजी के बाद दोयम दर्जे का स्थान दिया गया है. 68 साल बाद भी सिर्फ हिन्दी के ज्ञान से कोई आई.ए.एस., आई.पी.एस., न्यायाधीश, या राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों से अभियंता, चिकित्सक या प्रबंधक नहीं बन सकता. देश में शासन-प्रशासन, न्यायालय व पेशेवर सेवाओं में ऊंचे पदों पर अंग्रेज़ी का ज्ञान रखने वाले ही बैठ सकते हैं. हिन्दी या स्थानीय भाषा में अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले निचले पदों पर ही अपनी सेवाएं दे सकते हैं. यह कितने शर्म की बात है. अंग्रेजों के समय की गुलामी की व्यवस्था अब भी कायम है. अंग्रेजी जानने वाले स्थानीय भाषा बोलने वालों पर राज कर रहे हैं. अब शासक वर्ग की चमड़ी का रंग बदल गया है. वह देखने में अपने देश-वासियों जैसा दिखता है किंतु सोच में अभी भी अंग्रेज़ ही है.
संविधान में तो कल्पना की गई थी कि आजादी के 15 वर्षों के अंदर हम अंग्रेजी से छुटकारा पा जाएंगे. किंतु स्थिति उल्टी हो गई. जिन विद्यालयों में हिन्दी में ही पढ़ाई होती रही अब वंहा भी अंग्रेजी पढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.
हमारी गुलाम मानसिकता ने हमको अंग्रेजी के चंगुल से मुक्त नहीं होने दिया. दुनिया के ज्यादातर देश अपनी स्थानीय भाषा में ही शिक्षा देते हैं. जो लोग यह मानते हैं कि खासकर तकनीकी विषय जैसे अभियांत्रिकी या चिकित्सा की पढ़ाई हिन्दी या अन्य किसी भारतीय भाषा में नहीं हो सकती है, उन्हें सोचना चाहिए कि रूस, चीन या जापान कैसे उच्च शिक्षा अपनी भाषाओं में ही देते हैं और किसी भी मायने में अमरीका, इंग्लैण्ड या यूरोप के किसी देश से कम नहीं हैं, बल्कि कुछ मामलों में उनसे आगे ही हैं.
यदि कोई वाक़ई में हिन्दी प्रेम प्रदर्शित करना चाहता है तो देश में शिक्षा का माध्यम हिन्दी व अन्य स्थानीय भाषाओं को बनाने की बात करनी चाहिए. हिन्दी का इस्तेमाल सिर्फ चुनाव जीतने के लिए नहीं होना चाहिए.
हम सब यह महसूस करते है की इस देश को अपनी भाषा चाहिये. एक एसी भाषा जो कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और गुजरात से लेकर नागालेंड तक सबकी अपनी हो. इसलिये हिन्दी को बहुजन भाषा के रूप मे चुना गया. उस पर गेर हिन्दी भाषीयों और खुद हिन्दी भाषीयों ने अपने संक्रीण स्वार्थों के लिये राजनिती कर उसे सही अर्थों मे राष्ट्र भाषा नही बनने दिया.
दर्द बहुत है पर यह मौका दर्द दिखाने का नही, उसे खत्म करने के बारे मे कुछ कर गुजरने का है, मेरे दिमाग मे एक आइडिया है कृपया गोर फरमायें ..
क्यों ना हम उस भाषा की बात करे जो ना हिंदी है ना इगलिश ना उर्दू है ना मराठी और ना ही वो तमिल है. एक जन सामान्य की भाषा, उसमे सभी भाषाओं के प्रचलित शब्द हों जिससे किसी को यह शिकायत ना रहे कि उसे अनदेखा कर दिया.
एक बात ओर पूरे भारत मे लिखने की एक ही लिपी का इस्तेमाल हो. अगर मानक लिपी मे अन्य भाषा का कोई विशेष स्वर वाला अक्षर ना हो तो उसे उसमे जोडा जा सकता है. इस मानकीकरण से पूरे भारत मे एक जेसा लिखा जा सकेगा. अभी तो तमिल नाडू में तमिल में तो केरल में मलियाली मे तो बंगाल में बँगला, आन्ध्रा में तेलगू मे लिखा होता है. अगर किसी एक लिपी का इस्तेमाल हो, तो कम से कम उसे हर भारतीय पढ तो सकता है. अभी तो हाल यह है की दूसरे राज्यों के लोग बसों पर लिखी जगह का नाम तक नहीं पढ पाते.
एक लिपी होने से दूसरे राज्यों की भाषा को सीख़ना भी आसान हो जायेगा. जब अंग्रेजी खुले दिल से दूसरे भाषा से शब्दों को आयात कर अपने को दिनों दिन विकिसित करती जा रही है तो फिर हम अपनी भाषा के साथ एसा क्यों नही कर सकते.
अगर आपको लगता है की हिंदी को इस देश की प्रथम भाषा होनी चाहिये तो राजनिती से उपर उठकर पहले कम से कम इतना भर कर ले की देवनागरी लिपी को सभी जगह लिखने के लिये इस्तेमाल करे. अगर जरूरी हो तो इसमे नये अक्षर जोडे जा सकते है. अरे...इसे ही तो भाषा का विकास कहते है. या उसे भी हम राजनीती में उलझा देना चाहते है.
हमें बाते कम और काम ज्यादा करना है. नहीं तो हम और आप हिंदी और अंग्रेजी करते रह जायेगे....और कोई हमारे वतन में ही हमे अजनबी बना देगा.
जो लाखों करोडों किताबे और इंटर नेट पर ज्ञान है उस सबका अनुवाद हिंदी मे करना है. जिस दिन एसा कर पायेगे ...हिंदी इस देश की क्या वो विश्व भाषा बन जायेगी. अगर सच में आप 150 करोड़ हो तो उसे काम से साबित करो. कुछ लोग इस काम मे लगे हुये है...आप चाहो तो आप भी उनके साथ मिल जाओ...वरना शोर ना मचाओ. ना ही राज नेता की तरह बाते करो. जेसे अपुन आज कर रहा है...
काम करो... . अगर आप भाषाई राजनिती से उपर नही उठोगे तो नीचे जाओगे...अरे नीचे जाओगे क्या ...आपकी दुआ से नीचे जा रहे है.
वेसे हम बेशर्म लोग है जी. कितना भी बुरा भला कहा लो हम वो काम नहीं करेगे जो दिल कहता है, हम वो काम करेगे जो हमसे डंडे की चोट पर कराया जाता है. या फिर पैसा फेंक कर हमसे कोई भी काम करा लो....यार कुछ तो बोलो...भगवान भला करे आपका
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