इण्डिया टुडे के 21
अक्टूबर के अंक मे प्रकाशित गंदे शहरों की सूची ने स्वच्छ भारत अभियान की जमीनी
सच्चाइ को उजागर कर दिया. 2014 में सरकार और जनता दोनों ही झाडू हाथ मे लिये फोटो
खिचवाते नजर आये लगा की स्वच्छ भारत का सपना बस अब थोडी ही दूर है पर इस रिपोर्ट
से पता लगा की सपना तो हवा हो गया.
देश के प्रधानमंत्री ने
इसे अपनी प्राथमिकताओं की लिस्ट बहुत उपर रखा था. हर दूसरे भाष्ण मे इसका जिक्र होता
था यंहा तक की विदेशी धरती पर दिये भाषण मे उन्होने इस बात को जोरदार तरीक से रखा.
उनकी इस बात को देश के असरदार लोगों ने सिर आंखो पर लिया और हर रोज कोइ ना कोइ हाथ
में झाडू लिये फोटो खिचावाता नजर आने लगा. मिडिया मे लम्बी बहसे. जनता भी दिल से चाहती
थी की उसका शहर से गंदगी का नामोनिशान मिट
जाये. इसके बावजूद एसा क्या हुआ की हालत सुधरने की बजाय बद से बदतर होते जा रहे है.
लोग नाक पर रूमाल रखे कूडे के ढेर के बगल से निकलते रहते है, कुछ उन पर थूकते हुये
तो कुछ उस पर और कूडा फेकते हुये निकल जाते है. छोटा सा ढेर बढा और बढा होता जाता
है. लोग उस कचरे के ढेर को देखकर चिंता करते है और चिंता का चिंतन करते नजर आते है.
रिपोर्ट से लगा की
हमारे शहरों की नगर पालिकायें जिनके जिम्मे शहर की सफाइ का जिम्मा है संसाधन की
कमी से जूझ रही है. नगर पालिकाओं का एक
महत्व पूर्ण कार्य शहर को साफ रखना है. उसके लिये उसे हर घर से कूडा जमा करना, गली
महोल्लों के सडकों को साफ रखना, नालीयों की नियमित सफाइ, और कचरे का सही निष्पादन
करना होता है. रिपोर्ट से साफ की वो इस कार्य को करने नाकाम हो रहे है.
इस काम के लिये
उन्होने सफाइ कर्मचारीयों की फोज रखी हुई है पर हर सरकारी महकमे की तरह यह भी इतने
सफाइ कर्मचारीयों के बावजूद इनकी कमी से जूझ रहा है. क्या बात सिर्फ इतनी भर है.
अगर एसी बात होती तो उस्का रास्ता तो आसानी से निकाला जा सकता है. कुछ समय पहले
अमीर खान के शो से पता लगा की कुछ संस्र्थाये कूडा इकठठा करने और उसके निष्पादन का
काम अपने हाथ मे लेना चहती थी और उसके बदले नगर पालिका को धेला खर्च करने की जगह उल्टा
उन्हे इससे आमदनी होती पर उन्होने इसकी इजाजत नही दी, क्योंकी एसा होने पर काली कमाइ का क्या होता. दो
ट्रक कचरे को उठया जाता है और रजिस्टर में दर्ज होता है 10 ट्रक. हर दिन 300 से
400 टन कचरे का निष्पादन बताया जाता है और शहर से 100 टन कचरा भी नही उठाया जाता
है.
चलो मान लिया की नगर
पालिकाओं के पास इस कचरे को इकठठा करने की समुचित व्यव्स्था है तो भी कचरे को
निष्पादन के नाम पर मात्र इसे लेंड फिल जोन मे भेज दिया जायेगा. इन लेंडफिल मे
इसके पहाड बन जाते है और उस पर घूमती आवारा गाय, कुत्ते और कभी कभी गिद्ध नजर अ
जाते है. जब इन लेंड्फिल जोन में ओर कचरा ना फेंका जा सके तो दूसरे लेंड फिल जोन
की खोज होती है. प्रधान मंत्री के स्वच्छ भारत मिशन का यह तो मतलब नही हो सकता की
कचरे को एक जगह से उठाओ और उसे दूसरी जगह फेंक दो.
अच्छा होता अगर
स्वच्छ भारत के अभियान की शरूआत करने से पहले इसे पाइलेट प्रोजेक्ट के तरह कुछ
गिने चुने शहरों पर लागू किया जाता. उन शहरों को केसे zero
waste बनाना है उस पर
गंभीरत से सोचकर अमल किया जाता. उन शहरों मे इसे सफल बनाया जाता. उसमे लगने वाले श्रम
और लागत का ठीक ठाक आकलन किया जाता. उसके बाद
इसे पूरे भरत में लागू करने के बारे मे सोचा जाता . उस मे जन भागीदारी के बारे मे
खुलकर साफ साफ बताया जाता. नागरीकों मे उनकी भूमिका के बारे मे बताया जाता समझाया जाता..और
यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती जब तक वो देश की आदत ना बन जाये. पर अफसोस यह मात्र
राजनितिक बयान बाजी बनकर रह गया.
एक बात साफ है की स्वच्छ
भारत अभियान की सफलता मात्र राज्य प्रायोजित कार्यक्रम से संभव नही है. इस मे जन
भागीदारी बहुत जरूरी है. लोगों को समझाना होगा की केसे उनकी थोडी सी मदद से
अधिंकांश कचरे को रिसायकिल किया जा सकता है. हम केसे 90% कचरे को अपने स्तर पर ही
रिसाकिल कर सकते है. इस तरह से आप उसे आसानी से अतिरिक्त कमाइ का सधन बना सकते है.
विशवास नही होता ना. पर ये आपकी थोडी सी जागरूकता और समझदारी से यह संभव है
क्या आपने कभी अपने
घर और दुकान से निकलने वाले कचरे पर गोर किया है. इस लेख मे हम घरों और दुकानों से
निकलने वाले कचरे के बारे मे बात करेगे. शहरो को गंदा करने में इस कचरे का सबसे
बढा हाथ है. घर और दुकान से निकलने वाले कचरे मे मुख्यत:
1.
पैकिंग सामग्री जेसे प्लास्टिक,
थर्मोकोल, पोलीथीन, प्लास्टिक रैपर, कागज, प्लास्टिक की बोतल इत्यादी.
2.
कपडा,
3.
मिक्स कचरा जेसे टेट्रा पैक,
use
and thro rajor blades
4.
मैटल दवाइयों के एल्यूमिनियम
रैपर, कोला केन, स्प्रे केन इत्यादी ), तार इत्यादी
5.
गिलास
6.
खतरनाक रसायन जेसे बैटरी, CFL,
दवाइयां, CFL
7.
इलेक्टानिक उपकरण,
8.
ओरगेनिक पदार्थ ..जेसे फल और
सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाने का समान
9.
धूल, मिट्टी,
10.
सेनेटरी नेपेकिन
अगर इन सब को मिक्स
कर दिया जाये तो हमारे लिये मुसीबत बन जाता है. अगर आप ने इसे मिक्स कर दिया तो फिर इसको अलग करना बहुत
मंहगा पडेगा. इसमे मोजूद CFL, बैटरी, और उसमे मोजूद लेड और मरकरी जेसे खरतरनाक रसायन इसे जहर
बना देते है. जो भू जल को दूषित कर वाप्स ह्मे ही नुकसान पहुचाता है. वंही एसा
कचरा बिमारीयों के फेलने के वजह भी बन जाता है.
हमारी पहली
जिम्मेदारी कचरे के प्रकार के अनुसार उसे अलग अलग रखना सीखे. इसके लिये अगली बार
अपने भंगार वाले से इस बारे मे बात करे. अधिंकाश रिसायकिल किये जाने वाले कचरे को
भंगारवाले आपसे अच्छी कीमत देकर खरीद लेते है. उसके लिये अगलीबार जब वो आप से
भंगार खरीदने आये तो उपर दिये 10 प्रकार के कचरे के बारे मे बात करे. वो खुशी खुशी
इसमे से अधिंकांश आपसे खरीदने के लिये राजी
हो जायेगा. उसकी सलाह के हिसाब से उसे अलग अलग रखे. इस तरह आप क्रमांक 1 से
लेकर 7 तक कचरे का निष्पादन से आपको आमदनी होगी.
क्रमांक 8 और 9 से आसानी
से खाद बनाया जा सकता है उसके लिये कोलोनी मे पार्क के एक निश्चित कोने मे गढा कर
उसमे ओर्गेनिक कचरा डाले और उस के भर जाने के बाद उसे 4 से 5 महोने तक बंद लर दे.
जिससे वो अपने आप खाद मे बदल सके. इस खाद को आसानी से अच्छी कीमत देकर बेचा जा
सकता है. या फिर इस खाद को कोलोनी के रहवासी खुद भी इस्तेमाल अपने गार्डन मे कर
सकते है. अगर किसी कारण से आप इसे खाद बनाने मे असमर्थ है तो किसी भी खाद बनाने
वालों से संपर्क कर उसे आसानी से बेच सकते है.
आप अच्छी तरह समझ ले
की मिक्स कचरा सब के लिये मुसीबत है. इसलिये कचरे को किसी भी हालत मे मिक्स ना
होने दे. लोग अपनी जिम्मेदारी समझे और सामान खरीदने से पहले उस के निष्पादन के
बारे मे सोच ले. जेसे खराब CFL, बैटरी, को केसे
ठिकाने लगाना है. क्योंकी उनके द्वारा गलत तरिके किया गया निष्पादन ही जल स्रोतों
के प्रदूषित होने का सबसे बढा कारण है.
नगर निगम अपने सफाइ
कर्मचारी को मिक्स कचरा ना उठाने की सख्त हिदायत दे. ओर जो मिक्स कचरा दे उस पर
जबर्दस्त फाइन लगाये. जिससे अगली बर वो एसा ना कर सके.
जागरूकता अभियान का
मतलब हाथ मे झाडू लेकर फोटो खिचावाना नही होता. खुद को
रोल माडल बनाना होता है. मिडिया आम आदमी को इस अभियान मे उसके रोल को सही तरीक से समझाये.
उन शहर और कस्बों को दिखाये जो बाकी से इस मामले मे बेहतर है. उसेसे बाकी लोगों मे
भी कुछ करने का जज्बा जगेगा. उन्हे असफलता की जगह सफल हो चुके कार्यक्रमों की
जानकारी देते रहनी होगी, जिससे वो उससे सबक ले सके. एक तरफ तो बेरोजगारी की बात कर
रहे है और दूसरी तरफ शहर गंदा है क्योंकी काम करने वाले लोग नही है एसा विरोधाभास भारत
मे ही संभव है.
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