रवीश जी,
तेहल्का डाट कोम
पर आपके लेख ने नव पत्रकारों को कनफूसिया
दिया है. आप कुछ ज्यादा ही सेंटीमेंटल हो गये. जो आपने लिखा वो सिर्फ पत्रकारिता
का ही सच नही है ...ये आज हर व्यवसाय की सच है. चंद कुछ लोग ही चमक पाते है बाकी
के बस दिन काटते है.
बहुत कम को बचपन से पता होता है की उसे क्या बनना है और उसमें
भी कुछ के ही मां बाप और गुरुजन उसकी इस चाह्त को प्रतिभा मे बदल पाते है. अधिंकाश तो भेडचाल के मारे होते है. जिधर हवा चली उधर ही बह लिये क्योंकि उन्हे तो
जरूरत है बस एक अदद नोकरी की जो उत्तम वेतन दिलवा सके. अब अगर वो बजारू पत्रकारिता
से मिलता तो वही सही. वेसे भी 24×7 चलते न्यूज चेनलों से इससे ज्यादा की उम्मीद बेमानी है. और
अखबार…खुदा खेर
करे..आपने देखा नही ये सब खबरों से ज्यादा तो विज्ञापन बेचते है ( ओह सारी दिखाते
है).
अजीब दांसता है ये, कंहा शुरू कंहा खत्म, ये मंजिले है कोन सी ना तुम समझ सके ना हम…
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