प्रधानमंत्री की 100 स्मार्ट शहर की घोषणाओं के बाद हर दूसरे
दिन मिडिया मे इस पर कुछ ना कुछ आता रहता है. बताया जाता है केसे सेकडो करोंड
रूपये एक शहर को स्मार्ट बनाने मे खर्च होंगे. उस रूपये का केसे इंतिजाम होगा. क्या
इन शहरो का काया कल्प दूसरे शाहरों से टेक्स मे वसूले रूपयों से होगा या उसके लिये
किसी विश्व बेंक से लोन लिया जायेगा. लोन को चुकाने का इतिंजाम केसे होगा. क्या यह
सारी योजना सरकारी होगी या इसमे जन भागदारी सुनिशिचित की जायेगी. एसी बहुत सारी बातें है जिस का जिक्र रोज ही मिडिया मे होती रहता है.
अगर यह योजना भी सरकारी है तो भगवान मालिक, क्योंकी जिन शहरों मे अदने से पुल के निर्माण मे दसियों साल लग जाते हो. शहर की सडकों पर गड्डे ज्यादा और सडक कम हो. जिसकी अधिकांश आबादी अब भी झोपडपट्टी मे बसती हो. शहर के बाहर और अदंर गंदगी की अंबार हो. स्वास्थ शिक्षा और सुरक्षा और न्याय जेसी बुनायदी चीजे आम लोगों से दूर होती जा रही हो . एसे शहरों का स्मार्ट शहर बनना एक सपना सा लगता है.
अगर यह योजना भी सरकारी है तो भगवान मालिक, क्योंकी जिन शहरों मे अदने से पुल के निर्माण मे दसियों साल लग जाते हो. शहर की सडकों पर गड्डे ज्यादा और सडक कम हो. जिसकी अधिकांश आबादी अब भी झोपडपट्टी मे बसती हो. शहर के बाहर और अदंर गंदगी की अंबार हो. स्वास्थ शिक्षा और सुरक्षा और न्याय जेसी बुनायदी चीजे आम लोगों से दूर होती जा रही हो . एसे शहरों का स्मार्ट शहर बनना एक सपना सा लगता है.
यह योजना भी बाकी सब सरकारी योजना की तरह उपर से थोपी हुई लगती
है , एयर कंडिशंड कमरो से निकला एक दिमागी फितूर जो आम लोगों की बुनायादी जरूरतों
से कोसों दूर उन पर एक मजाक सा है. आज किसी से भी पूछो की आखिर ये स्मार्ट शहर हे
क्या बला. तो उसका जबाब कम से कम उस शहर के वासियों के पास नही है जिन्हे अगले कुछ सालों स्मार्ट सिटी का वासी होने का गोरव मिलने वाला है. जबाब के नाम पर
इक्का दुक्का सपने जरूर है जो वो पूछने पर बताने लगते है. वो अपनी ही कही इन बांतो
पर उतना ही यकीन करते है जितना यकीन उन्हे अपने सपनों पर है. यह बात कोइ नही समझ
रहा की स्मार्ट नागरिकों के बिना स्मार्ट शहर का कोइ वजूद नही हो सकता. एसे स्मार्ट
सिटी के होने का क्या फायदा जो एक नई लूट संस्कृति को जन्म देगा. कुछ लोगों को लूटने के और बहुत सारे लोगों को लुटने के नये
अवसर देगा.
स्मार्ट शहर की कल्पना करते ही हमारे दिमाग में एक एसे शहर की
तस्वीर उभरती है जिसमें, हंसते मुस्कराते
वैभव शाली लोग, चमचमाती, चौड़ी सड़कें, साफ-सुथरी गलियां, सुंदर इमारतें, हरे भरे पार्क और प्रदूषण रहित पर्यावरण है. जहां आपकी सारी जरुरतें पुरी हो जाएं.
लेकिन एक शहर का स्मार्ट सिटी बनना इतना आसान भी नहीं है। सिर्फ साफ-सफाई के नाम पर कचरे को एक जगह से दूसरी जगह फेंक देने से कोई सिटी स्मार्ट शहर नहीं बनता. 100 शहरों की बात छोडिये किसी एक शहर को सही मानों मे स्मार्ट शहर बना दिजिये तो वर्तमान सरकार के उपर इस देश क बहुत बढा उपकार होगा. पर उससे पहले हम यह तो जान ले की असल मे स्मार्ट शहर हम कहेगे किसको. मेरे हिसाब से निम्नलिखित सारी बातें किसी शहर को स्मार्ट शहर बना सकती है;
लेकिन एक शहर का स्मार्ट सिटी बनना इतना आसान भी नहीं है। सिर्फ साफ-सफाई के नाम पर कचरे को एक जगह से दूसरी जगह फेंक देने से कोई सिटी स्मार्ट शहर नहीं बनता. 100 शहरों की बात छोडिये किसी एक शहर को सही मानों मे स्मार्ट शहर बना दिजिये तो वर्तमान सरकार के उपर इस देश क बहुत बढा उपकार होगा. पर उससे पहले हम यह तो जान ले की असल मे स्मार्ट शहर हम कहेगे किसको. मेरे हिसाब से निम्नलिखित सारी बातें किसी शहर को स्मार्ट शहर बना सकती है;
1.
सभी
को काम और काम का सही वेतन,
2.
जन्म
आधारित जाति व्यवस्था को पोषित ना करता हो और सभी को विकास के समान अवसर प्रदान
करता हो
3.
सभी
को विकास का अवसर और सभी को उसके अनुभव के अनुसार कार्य
4.
दुरस्त
न्यायिक व्यवस्था जो सबकी पहुंच मे हो और त्वरित न्याय करती हो.
5. जिसमे
अमीर और गरीब के बीच का अंतर 1: 100 से ज्यादा ना हो ( सब समान हो एसी सोच मेरे
सपनों से भी बाहर की सोच है...:( )
6. शहर
मे रहने वाले हर व्यक्ति एक जिम्मेदार नागरिक हो जो शहर के विकास के लिये समर्पित
हों , स्मार्ट शहर को बनाये रखने के लिये जो भी खर्च हो उसे उसके नागरीकों में वहन
करने का जज्बा हो.
7.
सरल
नियम, कानून और आसान टेक्सिंग
8.
बुनियादी
सुविधाएं जैसे किसी चीज की बुकिंग, बिल जमा करना, आदि बेहद सरल हो।
9.
विश्व
स्तरीय सार्वजनिक यातायात से युक्त बेहतरीन
परिवहन व्यवस्था जिससे ट्रैफिक जाम ना हो
10.
स्वच्छ
पर्यावरण उपलब्ध कराना, जहां जलवायु
शुद्ध हो, लोग खुली हवा में सांस ले सकें।
11. शहर की सड़कें, इमारतें, शापिंग माल, सिने प्लेकस पार्क, पार्किंग, स्कूल, अस्पताल, स्टेडियम, सब कुछ योजनाबद्ध
तरीके से बने हों।
12.
एसी
संचार व्यवस्था जिससे सब आपस मे बिना किसी विलम्ब के सूचना का आदान प्रदान कर सके.
13.
एक
जागरूक केन्द्रीय प्रणाली जो सबके
i.
स्वास्थ
और सुरक्षा का ध्यान रखे
ii.
सार्वजनिक
जगहों का विकास और रखरखाव जेसे सडके, पार्क , तालाब और नदियां
iii.
संचार
और यातायात का सही व्यवस्था
iv.
उर्जा
की न्यूतनम पर दक्ष उपयोग
v.
परिवहन
व्यवस्था, सार्वजनिक
यातायात
vi.
जल
निकासी की सही व्यवस्था
vii.
zero waste , कचरे
का सही निस्पादन, पानी रिसाकिल
viii.
disaster प्रबंधन
की उचित व्यवस्था
14. खर्चे
और आमदनी का सही संतुलन. जिससे शहर की व्यव्स्थाये आत्म निर्भर और लोन रहित हो.
व्यवस्था को बनाये रखने के लिये लगातार लोन का जरूरत ना रहे.
15.
स्वास्थ्य
और शिक्षा उच्च दर्जे की हो और सबके लिये आसानी से उपलब्ध हो ।
16.
शहरी
संसाधनों, स्रोतों और
बुनियादी संरचनाओं का सक्षम ढंग से विकास
17.
आंदोलन, उत्सव शहर की व्यवस्थाओं को जाम ना करे
18.
बिजली
सप्लाई 24 घंटे
सुचारू हो।
19.
सभी
के लिये पीने के पानी की व्यवस्था
20.
सार्वजनिक
जगहों पर कूड़ा न दिखे।
21.
गु़ड
गवर्नेंस हो, विशेषकर
ई-गवर्नेंस औऱ लोगों को ज्यादा से ज्यादा शामिल करना।
22.
महिलाओं, बच्चें और बुजुर्गों की सुरक्षा हो।
23. शहर की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान हो
आप लोगों के सहयोग से इसे 100 तक ले जाया जा सकता है पर इस लेख के लिये
अभी फिलहाल इतने ही काफी है
उपर जो कुछ बताया गया है उसमे से अधिकांश काम
उस शहर शहर मे रहने वाले नागरिकों को करना
होता है या उसके द्वारा चुनी गई नगर पालिका परिषद उस कार्य को अंजाम देती है, पर वो एसा नही कर
रहे है क्योंकी शहरवासी टेक्स देने मे आना कानी करते है, जो भी टेक्स के नाम पर
नगर पालिकाये पेसा इकठ्ठा करती है उसका एक बढा हिस्सा लूट की भेट हो जाता है. जो
थोडा बहुत अच्छा काम ये नगर पालिकाये करती भी है तो उसे उसी शहर के वासी उसका सत्यानाश
करने के कोइ कोर कसर नही छोडते. अतिक्रमण की कोइ सीमा नही. दुकानदारों ने शहर के
फुट पाथ हजम कर लिये, सडकों पर आवारा गाय, सुअर, और कुत्ते, गड्डे, ठेले. पार्कों को
हजम करती गंदगी का ढेर और झुग्गीयां. बिना सोचे शहर की प्लानिंग, जिसे जिधर आया
जेसे मन चाहा इमारत बना ली. एसे ही बस गया शहर. जिन्हे जंगल राज की आदत हो गई हो
उन्हे हम स्मार्ट शहर देना चाहते है.
एसे मे किसी शहर को
स्मार्ट केसे बनाया जाये. मुझे लोग समझाते है की जिस तरह दिल्ली आगरा यमुना एक्सप्रेस
हाइवे बन गया, माल साफ सुथरे और चमक दमक
के साथ शहर मे अपनी आभा बिखेर रहे है. जिस तरह इसी देश मे हवाइ अड्डों का काया
कल्प हो रहा है उसी तरह शहर का भी काया कल्प हो जायेगा. एक नजर से देखें तो बात मे दम नजर
आती है सच भी है यह सब भी इसी देश मे हो रहा है पांच सितारा होटल भी इसी देश मे
है. नोयेडा मे गगन चूमती इमारतें साफ सुथरी चोडी सडकें. सब कुछ सपना सा लगता हैना. जब नोयेडा एसा चमक दमक वाला हो सकता है तो देश के बाकी शहर क्यों नही.
जब उन्हे उसका गणित समझाने लगता हू और उन्हे बताता हू की इस देश के कुछ चंद शहर ही एसे है जिस पर पैसा बे हिसाब बरस रहा है, उसमे दिल्ली और उसके पास बसा नोयडा, फरीदाबाद, और गुडगांव का इलाका भी है. वेसे सच मानों मे यह भी स्मार्ट शहर नही हो सकते पर उन्हे आसानी से स्मार्ट शहर मे बदला जा सकता है.
उसके बाद उनकी बोलती बंद हो जाती है. क्योंकी उसके लिये शहर के हर नागरीक को लखपती होना होगा जिसेसे वो कम से कम लाख रूपये साल के टेक्स के रूप मे अपने शहर नगर पालिका को दे सके. उसके वाबजूद उसे अपनी आदतों मे भी बेहिसाब परिवर्तन करते हुये वेसा ही सहयोग देना होगा जेसा वो माल मे घूमते हुये देता है यानी की नो अतिक्रमण, नो यंहा वंहा गंदगी, नो यंहा वंहा थूक-थाक, हंगास-मुतास. एसा कर सके तो स्मार्ट नागरीक बनने की तरफ यह आपका पहला कदम होगा.
जब उन्हे उसका गणित समझाने लगता हू और उन्हे बताता हू की इस देश के कुछ चंद शहर ही एसे है जिस पर पैसा बे हिसाब बरस रहा है, उसमे दिल्ली और उसके पास बसा नोयडा, फरीदाबाद, और गुडगांव का इलाका भी है. वेसे सच मानों मे यह भी स्मार्ट शहर नही हो सकते पर उन्हे आसानी से स्मार्ट शहर मे बदला जा सकता है.
उसके बाद उनकी बोलती बंद हो जाती है. क्योंकी उसके लिये शहर के हर नागरीक को लखपती होना होगा जिसेसे वो कम से कम लाख रूपये साल के टेक्स के रूप मे अपने शहर नगर पालिका को दे सके. उसके वाबजूद उसे अपनी आदतों मे भी बेहिसाब परिवर्तन करते हुये वेसा ही सहयोग देना होगा जेसा वो माल मे घूमते हुये देता है यानी की नो अतिक्रमण, नो यंहा वंहा गंदगी, नो यंहा वंहा थूक-थाक, हंगास-मुतास. एसा कर सके तो स्मार्ट नागरीक बनने की तरफ यह आपका पहला कदम होगा.
स्मार्ट शहर में स्मार्ट नागरिक होना जरूरी है. बिमार सोच के
नागरिकों के साथ आप स्मार्ट सिटी नही बना सकते. स्मार्ट सिटी बनाने से पहले आप को
स्मार्ट नागरिक बनाना होगा उसके लिये किसी खर्चे की जरूरत नही है बस सोच मे परिवर्तन
भर लाना है. इसका मतलब है की आप को झाडू हाथ मे लेकर फोटो भर नही खिचानी है, उसका
इस्तेमाल करते हुये अपने आस पास की सफाइ भी करनी है. वो भी एक बार नही बार बार
करनी है. अरे जब आप अपने घरों की सफाइ रोज करते हो, रोज नहाते हो तो जिस जगह को
साफ करने के लिये गोद लिया है उसे रोज साफ क्यों नही कर सकते हो. अगर शहर वाकई
आपका है तो उसे किसी ओर के भरोसे केसे छोड सकते हो. मुझे मालुम है की आप पूरे शहर की जिम्मेदारी नही ले सकते. पर जिस जगह है उस जगह की नजिम्मेदारी तो लें. सिर्फ टेक्स भर देने से और वोट डाल देने भर से ही आप स्मार्ट नागरीक नही बन जाते.
जब शहर एसे नागरिकों से भरा हुआ हो जो अनपढ है, गरीब है, गंवार
है, डरे हुये है , बिमार
है, लालची है . जो लूट
संस्कृति के आगे सिर झुकाता हो, और मोका पडने पर
दूसरे को लूटने से ना चूकते हो एसे नागरीकों से स्मार्ट शहर
नही बसाया जा सकता. एसे लोगों को स्मार्ट शहर का सपना दिखाकर अपना उल्लू
जरूर सीधा किया जा सकता है. ओछी और सस्ती राजनिती को उन्हे आसान शिकार बनाया जा सकता है.
हमारे संविधान मे नागरिक की जो परिभाषा दी गई है वो सही मे एक स्मार्ट नागरिक की परिभाषा ही है , वो एक एसा नागरिक है जो :
हमारे संविधान मे नागरिक की जो परिभाषा दी गई है वो सही मे एक स्मार्ट नागरिक की परिभाषा ही है , वो एक एसा नागरिक है जो :
1. पढा
लिखा है ओर अपने अधिकारों और अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक है. और अधिकार से पहले कर्तव्य को महत्व देता
हो.
2.
बातें
कम और काम ज्यादा करता हो.
3.
एक
दूसरे की मदद करता हो
4. यह
मानता हो की समाज के बिना उसका आसतित्व नही है. जो समाज को बहेतर बनाने के लिये
समर्पित हो
5.
समाजिक
कार्यों मे बढचढ कर हिस्सा लेता हो
6.
सह
नागरीकों को आदर और सम्मान करता हो
7.
शहर
से प्यार करता हो उसे अपना मानता हो
8. अपने
आस पास हो रही गलत बातों को ना सिर्फ विरोध करता हो, उसे सही करने के लिये उचित कदम भी उठाता हो
9.
जिसका
लूट संस्कृति मे विशवास ना हो.
10.
अनुशासनप्रिय
एसा नही है की शहरों मे स्मार्ट नागरिक नही होते है, पर उनकी संख्या बहुत ही कम है. जेसे जेसे इनकी संख्या
बडेगी शहर खुद बा खुद स्मार्ट होता जायेगा. जिन देशों के शहरों को देखकर यह विचार
हमारे अदंर आया है प्रथन विश्व युद्ध से
पहले उन शहरों की हालत हमारे बुरे से बुरे शहरों से भी बदतर थी. उसके बावजूद उसे
प्रथम और द्वतिय विश्व युद्ध ने बुरी तरह बरबाद कर दिया था. फिर एसा क्या हुआ की 50
वर्षों से भी कम समय मे वो अपने शहर को स्मार्ट शहर मे बदल सके और हमारे शहर गंवार
और बदहाल होते चले गये. इसे समझने के लिये प्रथन विश्व युद्ध और द्वतिय विश्व युद्ध के
दौरान पैदा हुई स्थतियों को समझना होगा. क्योंकी इन दो युद्धों से पैदा हुई परिस्थतियों
ने उसके पूरे समाज को स्मार्ट नागरीकों मे बदल दिया.
कभी आपने गोर किया की किस तरह
हम लोग डिजास्टर के समय बदल जाते है. केसे उस समय हम अपने को भूल कर दूसरों की मदद
करने लगते है. क्रासदीयों मे लाख बुराइ हो पर उसमे एक सबसे बडी बात है उस समय हम
उसका सामना एकजुट होकर करते है. वही एक जुटता और जिम्मेदारी हमे स्मार्ट नागरीक
बनता है.
काश हम बिना किसी बढी क्रासदी के यह सब सीख पाये और सही अर्थों मे स्मार्ट नागरीक बन पायें.
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