Tuesday, July 1, 2025

AI के साथ मंथन : लोकतंत्र सिर्फ एक सभ्य तानाशाही है

 

AI के साथ मंथन 

लोकतंत्र का काला सच  

लोकतंत्र सिर्फ एक सभ्य तानाशाही है 


क्या वोट डालना सच में आजादी का काम है या बस एक दिखावटी आजादी है जो असल में आपकी चुपचाप गुलामी को इजाजत देती है। असल मे जिस सिस्टम को हम इंसानी सभ्यता की सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि मानते हैं वो असल में सिर्फ आज्ञाकारिता है लेकिन अच्छे दिखावे के साथ। इस बात को समझने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ना पड़ेगा


दशकों से लोकतंत्र पर जो भरोसा था वह अब भ्रम में बदल गया है। जो लोग वोट की ताकत से दुनिया बदलने का विश्वास रखते थे, उन्होंने अब सोचना शुरू दिया है कि क्या आम लोग सच में समझदारी से राजनीतिक फैसले ले सकते हैं। केसे कोई नेता झूठे चुनावी वादों के भ्रम और धुरवीकरन के सहारे जनता को भ्रमित कर जीत पर जीत हासिल कर सकता हैं । सालों साल सत्ता पर काबिज रह सकता है। दुनिया को खत्म होने की हद तक ले जा सकता है।


यह टूटन गहरी है, लेकिन नई नहीं थी, लगभग 2000 साल पहले प्लेटो ने इसे आते हुए देख लिया था जब उनके गुरु सुकरात को एक लोकतांत्रिक सभा ने मौत की सजा दी तो प्लेटो को न्याय नहीं दिखा उन्हें बहुसंख्यक शासन का खतरा दिखा।


उनका निष्कर्ष डरावना था की लोकतंत्र अत्याचार को खत्म नहीं करता बस वह उसे छुपा देता है आज की मनोविज्ञान की रिसर्च प्लेटो की चेतावनियों को और भी गहरा बना देती है 1950 के दशक में मनोवैज्ञानिक सोलमन ऐश ने दिखाया कि लोग अपने साफ नजरिए को भी छोड़ देते हैं अगर एक पूरा ग्रुप उनसे असहमत हो 75% लोगों ने साफ गलती को सही मान लिया सिर्फ इसलिए ताकि वे अकेले ना पड़े जाए।


अगर हम खुद पर इतना भरोसा नहीं कर सकते तो हम लाखों अनजान लोगों से कैसे उम्मीद करें कि वे अच्छे नेता चुनेंगे पर बात यहीं नहीं रुकती, वैज्ञानिकों ने जब राजनीतिक समर्थकों को उन्हें उनके पसंदीदा नेता की गलतियां दिखाई गई,  तो दिमाग का सोचने वाला हिस्सा शांत रहा लेकिन भावनाओं से जुड़ा हिस्सा तेजी से सक्रिय हो गया उनका दिमाग ना सिर्फ सच्चाई को नकार रहा था बल्कि खुद को इसके लिए इनाम भी दे रहा था लोकतंत्र इन मानसिक कमजोरियों की वजह से ही फलता फूलता है। 


लोकतंत्र की असली चतुराई  इस बात में नहीं है कि वह सत्ता कैसे बांटता है बल्कि इसमें है कि वह असली सत्ता को कैसे छुपाता है खुले तानाशाहों की तुलना में जहां पुलिस सेंसरशिप और हिंसा होती है लोकतंत्र नरम लगता है इंसानी लगता है न्यायपूर्ण लगता है और यही वह धोखा है जिसे प्लेटो ने सबसे बड़ा खतरा बताया था। 


सबसे असरदार नियंत्रण वही होता है जो महसूस ही नहीं होता वो लगता है जैसे यह आपकी अपनी पसंद हो आधुनिक लोकतंत्र गुस्से और असहमति को कुछ रस्मी कामों में बदल देता है जेसे अहिंसक विरोध प्रदर्शन, चुनाव याचिकाएं, यह सब आपको भावनात्मक राहत देते हैं लेकिन सिस्टम नहीं बदलते। 


आपको लगता है, कि आपकी आवाज सुनी गई, आपको लगता है कि आप शामिल हैं। लेकिन असली ढांचा जैसा का तैसा रहता है, आपको लगता है कि आप सिस्टम से लड़ रहे हैं जब आप किसी नेता को वोट से हटा देते हैं लेकिन हकीकत में आप उसी सिस्टम को और मजबूत कर रहे होते हैं जो आपके विकल्पों को सीमित करता है। प्लेटो ने चेताया था अगर आप राजनीति में हिस्सा नहीं लेते तो आप ऐसे लोगों द्वारा शासित होते हैं जो आपसे कम समझदार हैं। 


लेकिन लोकतंत्र एक कदम आगे चला गया वो आपको यकीन दिलाता है कि आप ही ने उन कमजोर नेताओं को चुना था कि यह सब, आपकी अपनी पसंद थी और आपकी पसंद का नेता या पार्टी गलत केसे हो सकती है, यह भ्रम नशे जैसा है, लोकतंत्र मन को बहलाता है यह वादा करता है कि आप शासन करेंगे, मिलकर फैसले लेंगे समझदारी से चर्चा करेंगे लेकिन इंसानी दिमाग इतनी जटिलता के लिए बना ही नहीं है। 


हमें चाहिए सादगी यकीन भावनात्मक साफगोई और यहीं से लोकतंत्र खुद को खोने लगता है। प्लेटो ने इस क्रम को पहले ही देख लिया था लोकतंत्र बहुत ज्यादा विकल्प देता है बहुत ज्यादा जानकारी बहुत सारे फैसले इससे दिमाग उलझ जाता है और जब इंसान उलझन में होता है तो उसे सच्चाई नहीं साफ-साफ जवाब चाहिए होते हैं।  यहीं से मैदान में आता है,  जननेता- एक ऐसा व्यक्ति, जो सब कुछ आसान बना देता है जो आपको बता देता है कि दोष किसका है। जो कहता है आप मत सोचिए,  मैं सोचूंगा। 


न्यूरो साइंस भी यही कहता है जब हमारा दिमाग ज्यादा जानकारी और अनिश्चितता से भर जाता है तो सोचने समझने की शक्ति धीमी पड़ जाती है तब भावनाएं हावी हो जाती हैं हम सोचने की जगह बस प्रतिक्रिया देने लगते हैं और जो भी हमें इस मानसिक थकावट से राहत देता है वे उस ओर खींच जाते हैं। 


वेनेजुएला इसका ताजा उदाहरण है ह्यूगो चावेज ने सत्ता, तख्ता पलट से नहीं ली उसे बहुमत से चुना गया था। उसने लोगों से वादा किया कि वह सारी जटिलताओं का हल निकालेगा उसने भावनात्मक राहत दी, और जब तक जनता को समझ आया कि उन्होंने क्या खो दिया है।  तब तक वह मानसिक रूप से इतना जुड़ चुके थे कि पीछे लौटना लगभग नामुमकिन हो गया। दुनिया भर में यही पैटर्न दोहराया जा रहा है लोकतंत्र को कोई बंदूक की नोक पर खत्म नहीं कर रहा है लोग खुद उसे वोट से खत्म कर रहे हैं। 


यह ऐसे नेताओं को जन्म देता है जो चुनाव जीतने में माहिर हों , ना कि शासन चलाने में। चुनाव जीतने वाले गुण हैं आत्मविश्वास, आसान भाषा, भावनात्मक जुड़ाव लेकिन अच्छा शासक बनने के लिए जिन चीजों की जरूरत होती है वो है ,  गहराई , संतुलन और जटिल समझ, वो इन नेताओ मे अक्सर इनसे उलट होती है। 

 

प्लेटो ने इसे एक जहाज की कल्पना से समझाया था। सोचिए एक जहाज पर सवार लोग तय करें कि उसे कौन चलाएगा। असली नाविक जो सितारों और नक्शों की मदद से दिशा समझता है, पर  उसे खुद भी अपनी बात में थोड़ा संकोच होता है क्योंकि सच्चाई हमेशा सीधी नहीं होती।  वहीं एक चालाक तेजतर्रार शख्स कहता है, सब कुछ आसान होगा रास्ता भी आसान और शराब भी फ्री।


सोचिए लोग किसे चुनेंगे और वह जहाज कहां जाएगा!


हम ब्रेन सर्जरी पर वोट नहीं करते, पुल कैसे बने इस पर वोट नहीं करते, वहां हम विशेषज्ञों की बात मानते हैं लेकिन राजनीति में आत्मविश्वास ज्ञान और विशेषज्ञता से जीत जाता है क्यों?


क्योंकि असली विशेषज्ञ कभी पक्के शब्दों में बात नहीं करते वह कहते हैं, यह निर्भर करता है, वह हर चीज को कई पहलुओं से देखते हैं लेकिन हमारा दिमाग इस अस्पष्टता को पसंद नहीं करता।  हम सीधा स्पष्ट जवाब चाहते हैं, और इसी वजह से हम असली नाविक को नजरअंदाज करके उस जहाज को डुबोने वालों को चुन लेते हैं। 


यह कोई सिस्टम की गलती नहीं है यही सिस्टम है। 


अब यह और भी चालाक हो चुका है प्लेटो ने कभी डिजिटल युग की कल्पना नहीं की थी लेकिन उनकी गुफा की कथा जहां लोग अंधेरे में दीवार पर पड़ती परछाइयों को सच्चाई समझते हैं आज की सच्चाई से बिल्कुल मेल खाती है,  आज भी हम परछाइयां ही देख रहे हैं फर्क बस इतना है कि अब यह परछाइयां आपके लिए बनाई गई हैं आपका सोशल मीडिया फीड, जो सिर्फ जानकारी नहीं दे रहा वो आपकी सोच को गढ़ रहा है। 


एल्गोरििदम सीख रहे हैं कि आप किससे डरते हैं, आप क्या चाहते हैं, आपकी कमजोरियां क्या हैं और फिर वह आपको वही दिखाते हैं जो आप देखना चाहते हैं। इसका नतीजा हर इंसान के लिए एक अलग सच्चाई,  पक्के यकीन के साथ बनी झूठी दुनिया। आपको लगता है कि आप पहले से ज्यादा जागरूक हैं जबकि असल में आप पहले से ज्यादा चालाकी से कंट्रोल किए जा रहे हैं। अब AI  चालित सूचना तंत्र , लोगों के मनोविज्ञान को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना सीख चुकी है। 


जो लोग चिंतित थे उन्हें डरावनी बातें दिखाई जाती है,  जो गर्व से भरे थे उन्हें तारीफें दी,  जो अकेले थे, उन्हें किसी ग्रुप का हिस्सा महसूस कराया गया। यह कोई आम प्रचार नहीं था यह बहुत ही निजी स्तर पर किया गया मानसिक नियंत्रण होता है और यह बखूबी काम कर रहा है।


नतीजा, ऐसा राजनीतिक बंटवारा जो पीढ़ियों से नहीं देखा गया था हर पक्ष को लगता है कि वही समझदार है, वही सही है, और दूसरा पक्ष पागल है,  गुमराह है,  लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों पक्ष एक जैसे तथ्य भी नहीं देख रहे।  वे दो अलग-अलग दुनियाओं में जी रहे हैं और सबसे डरावनी बात आप अब भी सोचते हैं कि आप इस सबसे अलग हैं। 


अब फैक्ट चेकिंग लोगों की सोच नहीं बदलती और बहसें प्रायोजित होती हैं। जब आप किसी के बनाए गए निजी नजरिए को चुनौती देते हैं। तो उनका दिमाग खुद ब खुद रक्षा करने लगता है साइकोलॉजिस्ट इसे बैक फायर इफेक्ट कहते हैं। जितना ज्यादा आप किसी को सही बातें दिखाते हैं पर अगर वो उसकी मोजूदा सोच से मेल नहीं खाती , तो वह अपनी पुरानी सोच में और गहराई से जड़ पकड़ लेता है।  


प्लेटो ने भी यह बात पहले ही समझ ली थी उन्होंने कहा था वे उससे नफरत करेंगे जो उन्हें सच्चाई बताएगा आज के लोकतंत्र में सच्चाई को बैन नहीं किया जाता उसे दबा दिया जाता है, शोर, ध्यान , भटकाने वाली चीजें और सोशल मीडिया की असहजता के नीचे उसे आसानी से दबा दिया जाता है। कोई अप्रिय सच बोलिए और देखिए आपकी पहुंच कैसे धीरे-धीरे गायब हो जाती है। 


वजह सरकार नहीं रोकती एल्गोरिद्म रोक देता है अब जरा वाइमर रिपब्लिक को देखिए वहां लोकतंत्र था चुनाव होते थे बोलने की आजादी थी अखबार खुले थे लेकिन जैसे ही संकट आया वहां के लोगों ने लोकतंत्र नहीं बचाया तानाशाही को चुना। 


क्यों? 


क्योंकि उन्होंने अत्याचार को पसंद नहीं किया था,  बल्कि आजादी बहुत भारी लगने लगी थी जब जीवन में अराजकता आ जाती है तो इंसानी दिमाग साफ-साफ आदेश ढूंढता है आसान जवाब चाहता है कोई आवाज जो कहे मैं संभाल लूंगा।

 

हिटलर ने सत्ता छीनी नहीं थी उसे चुना गया था क्योंकि उसने लोगों को जटिलता से भावनात्मक राहत दी यह कोई बीती हुई कहानी नहीं है यह एक आईना है।  जैसे रोम में हुआ था,  जब गणराज्य कमजोर हुआ,  नेताओं ने यह सीखा कि भीड़ को लुभाना तमाशा दिखाना सच्चे शासन से ज्यादा असरदार होता है इसलिए खेल कानूनों की जगह लेने लगे। 


जूलियस सीजर ने लोकतंत्र को तबाह नहीं किया उसने बस लोगों को वहीं दिया जो वह मांग रहे थे और उसी ने उस सिस्टम को मार डाला जिसने वह सब मुमकिन बनाया था आज के पॉपुलिस्ट नेता भी वही स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं हर चीज का वादा करो किसी ना किसी पर  दोष डालो,  तमाशा पेश करो और धीरे-धीरे सत्ता का शिकंजा कसते जाओ। 


हर राजनीतिक सिस्टम कुछ मिथकों पर चलता है फर्क सिर्फ इतना है कि वह मिथक जानबूझकर स्थिरता के लिए गढ़े गए हैं या बिना सोचे समझे हमारे अंदर भरे गए हैं ताकि हम कभी सवाल ना पूछे। 


लोकतंत्र के भी कुछ बहुत ताकतवर मिथक हैं जेसे हर एक आवाज बराबर मायने रखती है, चुनाव से भविष्य तय होता है, नेता जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन जब यह विश्वास हकीकत से टकराते हैं तो दिमाग में कॉग्निटिव डिसोनेंस यानी मानसिक तनाव पैदा होता है।  लोग इन मिथकों को छोड़ते नहीं वह किसी पर दोष मड़ना शुरू कर देते हैं।  जेसे गलती पार्टी की है, गलती मीडिया की है। सिस्टम टूटा नहीं है हमें बस इसे और अच्छे से करना होगा और यही चक्र चलता रहता है।


उधर असली सत्ता धीरे-धीरे हाथ से फिसल चुकी होती है चुने हुए नेता सिर्फ संस्कृति और पहचान की बहसों में उलझे रहते हैं जबकि असली फैसले अनचुने संस्थानों द्वारा लिए जाते हैं जैसे सेंट्रल बैंक, रेगुलेटरी एजेंसियां और अंतरराष्ट्रीय संगठन यही है लोकतंत्र का पैराडॉक्स जो राजनीति दिखती है वह और ज्यादा शोर मचाती है और ज्यादा बंटी हुई होती है जबकि असली  शासन चुपचाप दूर कहीं पीछे चलता रहता है। जहां आपकी कोई पहुंच नहीं और आप फिर भी वोट डालते रहते हैं ना कि इसीलिए कि इससे कुछ बदलता है बल्कि इसीलिए कि आपको लगता है शायद इस बार कुछ बदलेगा।


यही इस सिस्टम की चालाकी है वह आपको यकीन दिलाता है कि आपकी गुलामी ही आपकी आजादी है कि आज्ञा पालन ही आत्मनिर्णय है कि इस बार कहानी कुछ अलग होगी प्लेटो पूरी तरह सही नहीं थे लेकिन वह पूरी तरह गलत भी नहीं थे। 


लोकतंत्र से तानाशाही की ओर गिरना जरूरी नहीं है लेकिन वह रास्ता हमेशा खुला रहता है लोकतंत्र की मानसिक अपील नकारा नहीं जा सकती लेकिन जैसा कि प्लेटो ने चेतावनी दी थी।  इसकी कमजोरियां सिर्फ सिद्धांत नहीं है वह इंसानी स्वभाव में छुपी होती हैं अगर हम यह कड़वी सच्चाई मान भी लें कि लोकतंत्र आजादी के नाम पर एक सूक्ष्म नियंत्रण का जरिया बन गया है तो एक बड़ा सवाल सामने आता है फिर विकल्प क्या है।

 

प्लेटो ने दर्शन शास्त्री राजा का विचार रखा था ऐसे नेता जिन्हें लोकप्रियता के लिए नहीं बल्कि बुद्धिमत्ता और चरित्र के लिए चुना जाए लेकिन इस आदर्श के साथ भी मुश्किलें हैं कौन तय करेगा कि कौन बुद्धिमान है कैसे सुनिश्चित करें कि सत्ता उन्हें भ्रष्ट ना कर दे कैसे रोके कि वह आम लोगों की जिंदगी से कट ना जाए,  प्लेटो खुद इन सवालों को समझते थे उनका दर्शन एक राजनीतिक योजना नहीं था बल्कि एक दर्पण था जो हमें दिखाता है कि हम सत्ता और शासन के साथ कैसा संबंध रखते हैं उनका उद्देश्य यह था कि हम खुद से पूछें कैसे इंसान हमें बनना होगा। 


ताकि कोई भी सिस्टम हमारे भले के लिए काम कर सके तो अब जब हम यह असहज सच्चाई जान गए हैं कि लोकतंत्र असल में हमें मानसिक आराम देता है ना कि असली शक्ति तो हम क्या करें प्लेटो का जवाब था राजनीति से भागो नहीं बल्कि जागो। गुफा की कथा में वह दार्शनिक जो परछाइयों से बाहर निकलकर सच्चाई की रोशनी देखता है वह वहीं नहीं रुकता वह लौटता है गुफा में,  दोबारा जाता है सिस्टम की सेवा के लिए नहीं बल्कि इस जिम्मेदारी के साथ कि जो सच्चाई उसने देखी है उसे दूसरों तक पहुंचाए भले ही लोग उसका विरोध करें उसका मजाक उड़ाएं या हमला करें फिर भी वह कोशिश करता है यही हमारी भी जिम्मेदारी है। 

 

हम एक अधूरे सिस्टम का हिस्सा बने लेकिन खुली आंखों से,  बंद आंखों से नहीं।  हमें वोट देना है,  बोलना है,  कदम उठाना है,  लेकिन इस समझ के साथ कि हमारे व्यवहार को कैसे आकार दिया जाता है।  हमें अब लोकतंत्र से वह उम्मीदें छोड़नी होंगी जो कभी उसमें थी ही नहीं।  कि यह सबसे न्यायपूर्ण होगा कि यह हमेशा समझदार नेताओं को चुनेगा या कि हर वोट  बुद्धिमानी से डाले जाते हैं 


इसके बजाय हमें उसे वैसा देखना सीखना होगा जैसा वह वास्तव में है एक ऐसा ढांचा जो सामूहिक मनोविज्ञान को संभालने के लिए बना है ना कि उससे ऊपर उठने के लिए। चेतना लोकतंत्र को ठीक नहीं करती लेकिन यह आपकी भूमिका को बदल देती है जब आप समझ जाते हैं कि भावनात्मक भाषण कैसे आपके फैसले पर हावी हो जाते हैं आप ठहर सकते हैं जब आप जान जाते हैं कि आपकी राजनीतिक सोच कहीं ना कहीं कबीलाई पहचान से बन रही है सच्चाई से नहीं तो आप विनम्रता सीख सकते हैं। 


जब आप देख लेते हैं कि विरोध को भी कैसे सिस्टम चुपचाप निगल लेता है तो आप सोच सकते हैं,  कि असली बदलाव की रणनीति क्या हो सकती है।  आप अब भी वोट डाल सकते हैं आवाज उठा सकते हैं, हिस्सा बन सकते हैं।  लेकिन इस भ्रम के बिना कि सिर्फ यही सब कुछ बदल देगा। 


यह विमुख होने की बात नहीं है यह परिपक्वता की बात है जैसे हर सिस्टम लोकतंत्र भी अपने नागरिकों की मानसिकता का आईना है अगर यह सच है तो हमें एक और कड़वी सच्चाई का सामना करना होगा हमारा राजनीतिक तंत्र इसलिए टूटा हुआ नहीं है क्योंकि लोग बुरे हैं बल्कि इसलिए क्योंकि यह हमारे मानसिक सीमाओं की असहजता से बचने की प्रवृत्ति और सच की जगह आसान जवाब पसंद करने की आदत को दिखाता है। 


हम जागरूक दिखना  चाहते हैं बिना गहराई से सीखे हम आजादी चाहते हैं बिना जिम्मेदारी उठाए हम नैतिक स्पष्टता चाहते हैं। 


लोकतंत्र हमें एक एहसास देता है जैसे हम सब कुछ नियंत्रित कर रहे हो यह हमें यह भरोसा दिलाता है कि हमारे फैसले समझदारी से भरे हैं हमारे नेता जवाबदेह हैं और हमारी आवाज में ताकत है यह हमें नियंत्रण का मंच देता है जबकि असली फैसले वहां लिए जाते हैं जहां हमारी नजर नहीं पहुंचती इस सच्चाई को समझना मायूसी नहीं है बल्कि यही असली आजादी की शुरुआत है जब आप लोकतंत्र से ज्यादा की उम्मीद करना छोड़ देते हैं तभी आप इसका सही इस्तेमाल करना सीखते हैं। 


आप इसे समझदारी से नेविगेट कर सकते हैं आप पहचान सकते हैं कब आपको भ्रमित किया जा रहा है।  आप सवाल उठा सकते हैं जब जटिल बातों को जानबूझकर आसान दिखाया जा रहा हो आप बोल सकते हैं भले ही आपकी बात से कुछ ना बदले क्योंकि जागरूक होकर बोली गई बात का मूल्य सिर्फ असर में नहीं आत्मा में होता है। 

आज वही ताकतें जिन्होंने जर्मनी के बीमार गणराज्य को तोड़ा, वेनेजुएला की लोकतांत्रिक संस्थाओं को गिराया और दुनिया के कई देशों में आजादी को मिटाया वही ताकतें आज आपके देश में भी सक्रिय हैं आपकी सोच को एल्गोरिद्म ढाल रहे हैं भावनात्मक थकान आपके विवेक को  कमजोर कर रही है।  करिश्माई नेता उभर रहे हैं जो आपको राहत दे रहे हैं,  पर सच छिपा कर ।


लोग इन सबको हां कह रहे हैं, नफरत से नहीं थकावट से , वे थक गए हैं,  सोचने से थक गए हैं,  चुनाव करने से थक गए हैं,  जिम्मेदारी उठाने से,  और यही वह पल है जिससे प्लेटो डरते थे। 


सवाल यह नहीं है कि क्या लोकतंत्र एक सभ्य तानाशाही बन रहा है सवाल यह है कि क्या आप अब भी सोए रहेंगे या जागेंगे यह लड़ाई निराशा और उम्मीद के बीच नहीं है।  यह चुनाव है बेहोशी और जागरूकता के बीच।  2000 साल पहले प्लेटो ने देखा था कैसे एथेंस के लोग सोक्रेटीज की आवाज दबा देते हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि वह  उन्हें असहज कर देता था। 


उन्होंने देखा कि जब लोग सच्चाई से ज्यादा दिलासा चाहते हैं तो तानाशाही टालना मुश्किल हो जाती है गुफा आज भी है अब वह डिजिटल बन गई है और उसमें दिखने वाली परछाइयां अब ऐसे एल्गोरिदम बना रहे हैं जो आपकी पसंद के हिसाब से आपको सच का भ्रम दिखाते हैं लेकिन काम अब भी वही है पीछे मुड़ो इन झूठी तस्वीरों पर सवाल उठाओ उस रोशनी की तरफ बढ़ो चाहे वो चुभती हो क्योंकि परछाइयां सुंदर हैं पर वह असली नहीं है और सिर्फ सच्चाई ही आजाद कर सकती है।  प्लेटो की सीख यह नहीं थी कि राजनीति से भागो बल्कि यह थी राजनीति में दिमाग खोलकर  प्रवेश करो। 


जिस लोकतंत्र पर सवाल ना उठाया जाए वह बचाने लायक नहीं और जो नागरिक खुद पर सवाल ना उठाए वह सच में आजाद नहीं आजादी कभी आराम नहीं देती वह हमेशा यह मांग करती है कि हम वह भी देखें जिसे देखने से डरते हैं और फिर भी कुछ करें यह चुनाव अब भी तुम्हारा है। 


 

दुर्वेश 


Thursday, June 19, 2025

Bollinger LIFO Tracker Strategy


The Bollinger LIFO Tracker is a custom backtesting and visualization tool built on top of the Bollinger Bands indicator. It combines dynamic entry/exit signals with LIFO (Last In, First Out) logic for selling, and tracks portfolio metrics like amount-days, gain, and average holding duration.This Pine Script v5-based strategy is designed to simulate realistic trading behavior, giving traders a clear picture of how their entries and exits would have performed under historical conditions.



Core Components of the Strategy{ At the core of the system lies the Bollinger Band indicator , built using a user-selectable moving average (SMA, EMA, RMA, WMA, or VWMA). It calculates:


Basis: The moving average of the closing price.

Upper Band: Basis + (multiplier × standard deviation)

Lower Band: Basis − (multiplier × standard deviation)

These bands dynamically adjust with market volatility.



2. Buy Logic: A buy is triggered when:

The previous candle’s low is below the lower band.

The current candle closes above the lower band.

The price is sufficiently below the last buy (gapPercent condition).

The current time is within the backtest date range.

once a buy is executed, its price and timestamp are stored in arrays, awaiting future sell evaluation.


3. Sell Logic: LIFO-Based Exit Strategy

A sell is triggered under two main conditions:

The price touches the upper Bollinger Band, then closes below it, indicating potential reversal.

Or a predefined profit target (or minimum profit) is met.

Sales are executed using LIFO logic—the most recent unsold buy is considered first.


4. Metrics Tracked

For deeper insights, the script tracks the following:

Amount-Days (amtdayscls): Measures capital exposure in time, i.e., the amount × number of days held.

Average Holding Duration: Total days across all closed trades.

Gross Gain: Total profit/loss considering open and closed positions.

Percentage Gain: Realized gain relative to average amount deployed.

These metrics help evaluate both efficiency and risk exposure.


5. Visual Signals & Results Table

Visuals on chart:

 Buy signals are shown as green triangles below bars.

 Sell signals as red triangles above bars.


Result table (top-right) displays key statistics

Start–End Date

Buy/Sell Count

Amt-Days Closed

Total Buy/Sell

Avg Holding Days

Total Gain

Gross Gain

% Gain


This gives an immediate snapshot of performance and behavior during the backtest window.


⚙️ User Controls




Users can configure:

Backtest period

Gap size between buys

Profit targets

Max lots held simultaneously

Whether to show signals and tables



These inputs make the script flexible for testing different market environments or trading styles.


🧠 Why LIFO?

Using LIFO (Last In First Out) mimics aggressive trading—selling the most recent entries first to take quicker profits. This can:


Reduce average holding time.

Improve capital efficiency during sideways markets.

Avoid waiting for older positions to recover.



🚀 How to Use It

download trading view pinescript

Copy & paste the script into the Pine Script editor in TradingView.

Customize your parameters.

Run the script and observe the signals and result table.

Test it on different symbols or timeframes.


🧾 Final Thoughts

The Bollinger LIFO Tracker script blends technical indicators with quant-style metrics, offering a versatile framework for tactical entry-exit analysis. core thought behind this indicator ir to grab small swings frequently. this strategy is best suited for index or any stock whos high and low is well with 30 to 40% range. 

say prices continue to drop from the day you started with it. then continue to trade as the th indicator till prices comes back to startting price or  more. completing its cup and handle pattern. user is suppose to continue trade with this system Whether you're exploring gap strategies, Bollinger-based setups, or just want better visibility into trade duration and profitability, this tool gives you actionable insights—all visually represented on your chart.

This strategy is meant for backtesting and analysis. For actual trading, risk management and execution must be handled through dedicated systems.


Sunday, March 31, 2024

चेतना का स्तर

 मानव चेतना के स्तरों का एक से सात तक के मुख्य पदानुक्रम रखा जा सकता है। यह पता लगाना भी काफी आसान है कि हम अपनी वर्तमान जीवन स्थिति के आधार पर इस पदानुक्रम में कहाँ आते हैं। निम्न से उच्च तक, चेतना के स्तर हैं: शर्म, अपराध, उदासीनता, दुःख, भय, इच्छा, क्रोध, गर्व, साहस, तटस्थता, इच्छा, स्वीकृति, कारण, प्रेम, आनंद, शांति, आत्मज्ञान। हालाँकि हम विभिन्न जीवन स्थितियों और मनोदशाओं के आधार पर विभिन्न स्तरों पर विभिन्न समयों पर आ और जा सकते हैं, लेकिन आमतौर पर हमारे लिए एक प्रमुख "सामान्य" स्थिति होती है। यह हमारे रक्तचाप की तरह है। यह बदलता रहता है लेकिन इसमें सामान्य स्थिति की प्रधानता होती है जो हमें हाई बीपी या लो बीपी या सामान्य बीपी के रूप में पहचानती है। इसके साथ ही, कोई व्यक्ति किस लेवल पर अपनी अधिकांश ऊर्जा और समय गुजार रहा है वही उसका लेवल माना जा सकता है।


चेतना को 7 प्रमुख स्तरों में विभाजित किया जा सकता है, जहां आपके आसपास हर कोई और आप स्वयं वास्तविकता को समझने और उस पर प्रतिक्रिया करने के तरीके में स्पष्ट बदलाव देखते हैं।


लेवल-1: शर्म, अपराधबोध, उदासीनता, दुःख

शर्म - मौत से बस एक कदम ऊपर। शायद इस स्तर पर आत्महत्या पर विचार कर रहे हों। या एक सीरियल किलर. इसे स्व-निर्देशित घृणा के रूप में सोचें।

अपराध बोध - शर्म से एक कदम ऊपर, लेकिन फिर भी आत्महत्या के विचार आ सकते हैं। कोई अपने आप को पापी समझता है, पिछले अपराधों को क्षमा करने में असमर्थ है।

उदासीनता - निराश या पीड़ित महसूस करना। सीखी हुई असहायता की अवस्था। यहां कई बेघर लोग फंसे हुए हैं.

दुःख - सतत दुःख और हानि की स्थिति। किसी प्रियजन को खोने के बाद कोई यहां गिर सकता है। उदासीनता से भी अधिक, क्योंकि व्यक्ति स्तब्धता से बचना शुरू कर रहा है।



स्तर-2: भय, इच्छा और क्रोध

डर - दुनिया को खतरनाक और असुरक्षित देखना। आमतौर पर किसी को इस स्तर से ऊपर उठने के लिए मदद की ज़रूरत होती है, या वह लंबे समय तक फंसा रहेगा, जैसे कि अपमानजनक रिश्ते में।

इच्छा - लक्ष्य निर्धारित करने और प्राप्त करने में भ्रमित न हों, यह लत, लालसा और वासना का स्तर है - धन, अनुमोदन, शक्ति, प्रसिद्धि, आदि उपभोक्तावाद के लिए। भौतिकवाद. यह धूम्रपान, शराब पीने और नशीली दवाएं लेने का स्तर है।

गुस्सा - निराशा का स्तर, अक्सर निचले स्तर पर किसी की इच्छा पूरी न होने के कारण। यह स्तर किसी को उच्च स्तर पर कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकता है, या वह नफरत में फंसा रह सकता है। अपमानजनक रिश्ते में, व्यक्ति अक्सर क्रोधी व्यक्ति के साथ-साथ डरे हुए व्यक्ति को भी देखेगा।



स्तर-3: अभिमान

अभिमान - पहला स्तर जहां व्यक्ति अच्छा महसूस करना शुरू करता है, लेकिन यह एक झूठी भावना है। यह बाहरी परिस्थितियों (धन, प्रतिष्ठा, आदि) पर निर्भर है, इसलिए यह असुरक्षित है। अभिमान राष्ट्रवाद, नस्लवाद और धार्मिक युद्धों को जन्म दे सकता है। धार्मिक कट्टरवाद भी इसी स्तर पर अटका हुआ है. व्यक्ति अपने विश्वासों में इतना अधिक उलझ जाता है कि वह विश्वासों पर हमले को खुद पर हमले के रूप में देखता है।



स्तर-4: साहस, तटस्थता

साहस - सच्ची ताकत का पहला स्तर। साहस ही प्रवेश द्वार है. यहीं से व्यक्ति जीवन को चुनौतीपूर्ण और रोमांचक देखना शुरू करता है। व्यक्ति को व्यक्तिगत विकास में रुचि होने लगती है, हालाँकि इस स्तर पर हम इसे कुछ और कहते हैं जैसे कौशल-निर्माण, कैरियर उन्नति, शिक्षा, आदि। व्यक्ति भविष्य को उसी की निरंतरता के बजाय अतीत में सुधार के रूप में देखना शुरू कर देता है।

तटस्थता - इस स्तर की विशेषताओं को "जियो और जीने दो" वाक्यांश से समझा जा सकता है। यह लचीला, तनावमुक्त और अनासक्त है। चाहे कुछ भी हो जाए, किसी के पास साबित करने के लिए कुछ नहीं है। सुरक्षित महसूस करें और अन्य लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें।



स्तर-5: इच्छा, स्वीकृति, कारण

इच्छा - अब जब आप मूल रूप से सुरक्षित और आरामदायक हैं, तो ऊर्जा का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करना शुरू करें। बस गुजारा करना अब काफी अच्छा नहीं है। कोई अच्छा काम करने के बारे में परवाह करना शुरू कर देता है - समय प्रबंधन और उत्पादकता के बारे में सोचना शुरू कर देता है और संगठित हो जाता है, जो चीजें तटस्थता के स्तर पर इतनी महत्वपूर्ण नहीं थीं। इस स्तर को इच्छाशक्ति और आत्म-अनुशासन के विकास के रूप में सोचें। ये लोग समाज के "सैनिक" हैं; वे काम अच्छे से करते हैं और ज्यादा शिकायत नहीं करते। यदि स्कूल में है, तो वास्तव में एक अच्छा छात्र है; जो पढ़ाई को गंभीरता से लेते हैं और अच्छा काम करने के लिए समय देते हैं। यही वह बिंदु है जहां हमारी चेतना अधिक संगठित और अनुशासित हो जाती है।

स्वीकृति - अब एक शक्तिशाली बदलाव होता है, और व्यक्ति सक्रिय रूप से जीने की संभावनाओं के प्रति जागृत होता है। इच्छा के स्तर पर व्यक्ति सक्षम बनता है, और अब व्यक्ति क्षमताओं का सदुपयोग करना चाहता है। यह लक्ष्य निर्धारण और प्राप्ति का स्तर है। इसका मूल रूप से मतलब यह है कि दुनिया में भूमिका के लिए जिम्मेदारी स्वीकार करना शुरू करें। यदि किसी के बारे में कुछ सही नहीं है तो वांछित परिणाम को परिभाषित करें और उसे बदल दें। जीवन की बड़ी तस्वीर को अधिक स्पष्ट रूप से देखना शुरू करें। यह स्तर कई लोगों को करियर बदलने, नया व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रेरित करता है।

कारण - इस स्तर पर व्यक्ति निचले स्तरों के भावनात्मक पहलुओं को पार कर जाता है और स्पष्ट और तर्कसंगत रूप से सोचना शुरू कर देता है। जब कोई इस स्तर पर पहुंच जाता है, तो वह अपनी पूरी सीमा तक तर्क क्षमता का उपयोग करने में सक्षम हो जाता है। अब उनके पास अनुशासन है और वे सक्रिय रूप से प्राकृतिक क्षमताओं का पूरा दोहन करते हैं। वे उस बिंदु पर पहुँच गए जहाँ वे कहते हैं, “वाह। मैं यह सब कुछ कर सकता हूं, और मैं जानता हूं कि मुझे इसे अच्छे उपयोग में लाना चाहिए। तो मेरी प्रतिभा का सर्वोत्तम उपयोग क्या है?” दुनिया भर पर नज़र डालें और सार्थक योगदान देना शुरू करें। बहुत ऊंचे स्तर पर, यह आइंस्टीन और फ्रायड का स्तर है।


स्तर-6: प्रेम, आनंद

प्यार और आनंद - यह बिना शर्त प्यार है, जो कुछ भी मौजूद है उसके साथ जुड़ाव की एक स्थायी समझ। करुणा सोचो. तर्क के स्तर पर, व्यक्ति अब अपने सिर और अन्य सभी प्रतिभाओं और क्षमताओं को सही और गलत की बेहतर समझ की सेवा में लगाता है, इस स्तर पर उद्देश्य शुद्ध और भ्रष्ट नहीं होते हैं। यह मानवता की आजीवन सेवा का स्तर है। गांधी, मदर टेरेसा के बारे में सोचें। इस स्तर पर आप स्वयं से भी बड़ी शक्ति द्वारा निर्देशित होने लगते हैं। यह जाने देने का एहसास है। अंतर्ज्ञान अत्यंत प्रबल हो जाता है



स्तर-7: आनंद और आत्मज्ञान

शांति और आत्मज्ञान - संतों और उन्नत आध्यात्मिक शिक्षकों का स्तर। इस स्तर के लोगों के आसपास रहना ही आपको अविश्वसनीय महसूस कराता है। इस स्तर पर जीवन पूरी तरह से समकालिकता और अंतर्ज्ञान द्वारा निर्देशित होता है। लक्ष्य निर्धारित करने और विस्तृत योजनाएँ बनाने की अब कोई आवश्यकता नहीं है - आपकी चेतना का विस्तार आपको बहुत उच्च स्तर पर काम करने की अनुमति देता है। व्यापक, अटल ख़ुशी की स्थिति। मानव चेतना का उच्चतम स्तर, जहाँ मानवता देवत्व के साथ मिश्रित होती है। अत्यंत दुर्लभ। कृष्ण, बुद्ध और ईसा का स्तर। यहां तक ​​कि इस स्तर के लोगों के बारे में सोचने मात्र से भी आपकी चेतना जागृत हो सकती है।


मुझे लगता है कि आपको यह मॉडल विचार के योग्य लगेगा। न केवल लोगों को बल्कि वस्तुओं, घटनाओं और पूरे समाज को भी इन स्तरों पर रैंक किया जा सकता है। अपने जीवन में, आप अपने जीवन के कुछ हिस्सों में विभिन्न स्तरों का अनुभव कर सकते हैं, लेकिन आपको अपने वर्तमान समग्र स्तर की पहचान करने में सक्षम होना चाहिए। आप कुल मिलाकर तटस्थता के स्तर पर हो सकते हैं लेकिन फिर भी धूम्रपान के आदी हो सकते हैं (इच्छा का स्तर)। आप अपने भीतर जो निचले स्तर पाते हैं, वे एक खिंचाव के रूप में काम करेंगे जो आपके बाकी हिस्सों को पीछे खींच लेगा। लेकिन आप अपने जीवन में ऊंचे स्तर भी पाएंगे। आप स्वीकृति के स्तर पर हो सकते हैं और तर्क के स्तर पर एक किताब पढ़ सकते हैं और वास्तव में प्रेरित महसूस कर सकते हैं।


अभी अपने जीवन में सबसे मजबूत प्रभावों के बारे में सोचें। कौन आपकी चेतना को बढ़ाता है? कौन इसे कम करता है?.. हम किसी भी सप्ताह के दौरान स्वाभाविक रूप से कई स्थितियों के बीच उतार-चढ़ाव करेंगे, इसलिए आपको संभवतः 3-4 स्तरों की एक सीमा दिखाई देगी जहां आप अपना अधिकांश समय बिताते हैं। अपनी "प्राकृतिक" स्थिति का पता लगाने का एक तरीका यह सोचना है कि आप दबाव में कैसा प्रदर्शन करते हैं। यदि आप एक संतरे को निचोड़ते हैं, तो आपको संतरे का रस मिलता है क्योंकि वही अंदर है। जब आप बाहरी घटनाओं से दब जाते हैं तो आपके भीतर से क्या निकलता है? क्या आप विक्षिप्त हो जाते हैं और चुप हो जाते हैं (डर से)? क्या आप लोगों पर चिल्लाना (गुस्सा) शुरू करते हैं? क्या आप रक्षात्मक (अभिमान) बन जाते हैं?


आपके वातावरण की हर चीज़ का आपकी चेतना के स्तर पर प्रभाव पड़ेगा। टी.वी. चलचित्र। पुस्तकें। वेब साइटें। लोग। स्थानों। वस्तुएँ। खाना। यदि आप तर्क के स्तर पर हैं, तो टीवी समाचार देखना (जो मुख्य रूप से भय और इच्छा के स्तर पर है) अस्थायी रूप से आपकी चेतना को कम कर देगा। यदि आप अपराधबोध के स्तर पर हैं, तो टीवी समाचार वास्तव में इसे बढ़ा देंगे।


एक स्तर से दूसरे स्तर तक प्रगति करने के लिए भारी मात्रा में सचेत प्रयासो  की आवश्यकता होती है। सचेत प्रयास या दूसरों की मदद के बिना, आप संभवतः अपने वर्तमान स्तर पर ही बने रहेंगे जब तक कि कोई बाहरी शक्ति आपके जीवन में नहीं आती। एक स्तर भी ऊपर जाना बेहद कठिन हो सकता है; अधिकांश लोग अपने पूरे जीवन में ऐसा नहीं करते हैं। केवल एक स्तर में परिवर्तन जीवन में सब कुछ मौलिक रूप से बदल सकता है। यही कारण है कि साहस के स्तर से नीचे के लोगों की बाहरी मदद के बिना प्रगति होने की संभावना नहीं है।


इस पर सचेत रूप से काम करने के लिए साहस की आवश्यकता है; यह अधिक जागरूक और जागरूक बनने के अवसर के लिए अपनी पूरी वास्तविकता को बार-बार दांव पर लगाने की बात आती है। लेकिन जब भी आप अगले स्तर पर पहुंचते हैं, तो आपको स्पष्ट रूप से एहसास होता है कि यह एक अच्छा दांव था। उदाहरण के लिए, जब आप साहस के स्तर पर पहुँच जाते हैं, तो आपके अतीत के सभी भय और झूठा अभिमान अब आपको मूर्खतापूर्ण लगते हैं। जब आप स्वीकृति के स्तर (लक्ष्य निर्धारित करना और प्राप्त करना) पर पहुंचते हैं, तो आप इच्छा के स्तर पर पीछे मुड़कर देखते हैं और देखते हैं कि आप ट्रेडमिल पर दौड़ने वाले चूहे की तरह थे - आप एक अच्छे धावक थे, लेकिन आपने कोई दिशा नहीं चुनी।


स्तर -4 तक बाहरी वातावरण सबसे अधिक प्रभाव डालता है, बाहरी स्थिति आपको आसानी से निचले स्तरों में डुबा सकती है और याददाश्त धूमिल हो जाती है। एक मोटे अनुमान के अनुसार पृथ्वी पर 85% लोग साहस के स्तर से नीचे रहते हैं। यदि आप इसे पढ़ रहे हैं, तो संभावना है कि आप कम से कम स्तर 4 पर हैं क्योंकि यदि आप निचले स्तर पर होते, तो संभवतः आपको व्यक्तिगत विकास में कोई सचेत रुचि नहीं होती।


मेरा मानना ​​है कि मनुष्य होने के नाते सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो हम कर सकते हैं वह है अपनी व्यक्तिगत चेतना के स्तर को ऊपर उठाना। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम अपने आस-पास के सभी लोगों में उच्च स्तर की चेतना फैलाते हैं। कल्पना कीजिए कि यह दुनिया कितनी अविश्वसनीय होगी यदि हम कम से कम सभी को स्वीकार्यता के स्तर पर ला सकें।


यीशु एक बढ़ई थे. गांधी एक वकील थे. बुद्ध एक राजकुमार थे और शुरुआत में निम्न चेतना के विभिन्न स्तरों पर थे। हम सब को कहीं से तो शुरू करना है। इस पदानुक्रम को खुले दिमाग से देखें और देखें



दुर्वेश