Sunday, July 13, 2025

AI manthan : आधुनिक शिक्षा एक सवाल

आधुनिक शिक्षा एक  सवाल

क्या आपने कभी सोचा है कि इतिहास के सबसे तेज दिमाग वाले लोग अक्सर पारंपरिक क्लासरूम में क्यों असफल लगते हैं रिसर्च में एक दिलचस्प बात सामने आई है जो छात्र नियमों को मानने और आज्ञाकारी रहने में अच्छे होते हैं वे आगे चलकर नई चीजें बनाने में अक्सर पिछड़ जाते हैं 2014 में यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसल्वनिया की एक स्टडी ने पाया कि जो लोग गैर परंपरागत सोच रखते हैं उनके बिजनेस शुरू करने के चांस 27% ज्यादा होते हैं मुकाबले उन लोगों के जो पूरी तरह नियम मानते हैं असल में स्कूल में जो बच्चे सबसे ज्यादा तारीफ पाते हैं वही बच्चे आगे चलकर किसी इंडस्ट्री को  बदलने या कोई बड़ी खोज करने में सबसे कम सफल होते हैं


 अब यहां एक बड़ा सवाल खड़ा होता है एक सवाल जो निकलो मैकिया बेली (Niccolò di Bernardo dei Machiavelli एक प्रसिद्ध इतालवी पुनर्जागरण दार्शनिक, संगीतकार, कवि, और नाटककार थे। वे आधुनिक राजनीतिक दर्शन के संस्थापकों में से एक माने जाते हैं। उनका सबसे प्रसिद्ध कार्य "द प्रिंस" है, जो व्यावहारिक राजनीति पर एक प्रभावशाली ग्रंथ है।) भी जरूर पूछते अगर हमारी शिक्षा व्यवस्था सच में आज सोच रखने वाले और भविष्य के लीडर तैयार करने के लिए बनी होती।  तो यह नतीजा क्या इसे पूरी तरह असफल साबित नहीं करता। 

शायद यह व्यवस्था बिल्कुल वैसे ही काम कर रही है जैसे इसे करना चाहिए था हर कोई वही देखता है जो आप दिखाते हैं पर बहुत कम लोग आपको सच में जानते हैं मैकियावेली की किताब एड प्रिंस की यह लाइन हमें आज के विषय में गहराई से उतरने में मदद करेगी आधुनिक शिक्षा का छुपा हुआ मकसद  और कैसे यह हमारे दिमाग को ऐसे आकार देती है जैसा मैकियावेली तुरंत पहचान लेते। मैकी वेली जानते थे कि सबसे ताकतवर नियंत्रण वह होते हैं जो दिखते नहीं उन्होंने कहा था आम लोग हमेशा दिखावे में बहक जाते हैं और दुनिया में आम लोग ही सबसे ज्यादा हैं आधुनिक स्कूलिंग का असली कमाल यही है यह आपके सोचने के तरीके को बदल देती है जबकि ऊपर से लगता है कि यह आपको आजादी दे रही है सोचिए कैसे यह सिस्टम मैकियावेली के उस सिद्धांत को लागू करता है कि डर से राज चलाना प्यार से ज्यादा आसान होता है लेकिन डर को देखभाल की शक्ल में छुपा दिया जाता  है.


आज का स्कूल बच्चों पर खुला जोर जबरदस्ती नहीं करता बल्कि ऐसे नियम और ढांचे बनाता है जो धीरे-धीरे उनके आत्मविश्वास और सोचने की आजादी को सीमित कर देते हैं यहां मैं साफ कर दूं यह शिक्षकों पर हमला नहीं है ज्यादातर टीचर बहुत दिल से काम करते हैं और अपने छात्रों की तरक्की चाहते हैं हम जिस पर सवाल उठा रहे हैं वह है पूरा सिस्टम है।   इसका इतिहास, इसका ढांचा,  और इसका छुपा हुआ मकसद जिसे मैक्यावेली भी सत्ता बचाने का औजार मानते आज की शिक्षा प्रणाली असल में बच्चों की विकास जरूरतों या उनकी असली सीखने की क्षमता को ध्यान में रखकर नहीं बनी बल्कि  19वीं और 20वीं सदी के शुरुआत में बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने इसे तैयार किया उन्हें ऐसे वर्कर चाहिए थे जो समय पर आए आदेश माने ऊंच-नीच को स्वीकारें और सवाल ना पूछें 1905 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट चार्ल्स एलियट ने खुद कहा था हम चाहते हैं कि एक छोटा समूह पढ़ाई में ऊंचा पहुंचे और एक बड़ा समूह मजबूरी में अच्छी पढ़ाई का मौका छोड़कर कुछ मुश्किल मजदूरी वाला काम सीखे यह दो तरफ सिस्टम बिल्कुल मैकिया आवेली की सोच से मेल खाता है राज करने वालों और सेवा करने वालों के बीच साफ फर्क बनाए रखो आज की शिक्षा व्यवस्था भी यही कर रही है.


ऊपर  से यह दिखाती है कि इसमें सभी के लिए बराबरी का मौका है,  फिनलैंड हमें दिखाता है कि शिक्षा के दूसरे तरीके भी हो सकते हैं वहां की शिक्षा व्यवस्था दुनिया की सबसे अच्छी व्यवस्थाओं में गिनी जाती है वहां बच्चों को ज्यादा आजादी दी जाती है बहुत कम स्टैंडर्ड टेस्ट होते हैं और खेल आधारित पढ़ाई पर जोर दिया जाता है लेकिन जैसा कि मैकी आवेली कहते जो चीज सत्ता को फायदा देती है वह लोगों को फायदा दे ही ऐसा जरूरी नहीं उन्होंने लिखा था इंसान सीधे-सीधे अपनी जरूरतों को पूरा करने में इतने उलझे रहते हैं कि धोखेबाज को अपने शिकार कभी खत्म नहीं होते।


शिक्षा व्यवस्था इसी बात का चालाकी से इस्तेमाल करती है यह बच्चों पर अजीब अजीब नियम थोपती है जैसे चुइंगम पर बैन , सख्त ड्रेस कोड,  गलियारों में चलने के खास तरीके जिनका असल पढ़ाई से कोई लेना देना नहीं है.  ऐसे नियम बच्चों को यह सिखाते हैं कि बिना वजह के भी नियम मानो, हर आदेश को नैतिक सच मान लो.  मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि किशोर अक्सर बड़ों की बात मान लेते हैं चाहे उनके बनाए नियम बेकार ही क्यों ना हो.  


मैकियावेली इसे एक शानदार तरीका मानते , उन्होंने कहा था प्रजा को आजादी से नहीं बल्कि व्यवस्था और उद्देश्य का दिखावा करके संतुष्ट रखा जाए जब बच्चों को बिना वजह के नियम मानना सिखाया जाता है तो वे बड़े होकर भी ऐसे ही नियमों का पालन करते हैं भले ही वे उनके अपने फायदे के खिलाफ हो.


अब तुलना करो सुगाता मित्रा के होल इन द वॉल प्रयोग से जो भारत में हुआ था वहां बच्चों ने बिना किसी टीचर के कंप्यूटर चलाना और कई मुश्किल स्किल्स खुद सीख ली उन्होंने क्रिटिकल थिंकिंग और टीम वर्क में कमाल कर दिखाया।जब बच्चों को अपनी जिज्ञासा के हिसाब से सीखने दिया गया तो बच्चे बोलना सीखने से पहले मोबाइल चलाना सीख जाते है.  


वही चीजें जिन्हें मैकियावेली जैसे लोग एक आज्ञाकारी जनता में दबाकर रखना चाहते हैं सिर्फ बेमतलब अनुशासन ही नहीं शिक्षा एक और तरीका इस्तेमाल करती है वह है बाहरी तारीफ पर निर्भरता, गोल्ड स्टार , जीपीए,  टीचर की शाबाशी , टेस्ट के नंबर,  यह सब बच्चों को सिखाते हैं कि उनका महत्व दूसरों की राय से तय होता है। 


मैकियावेली ने कहा था लोग हाथ से कम आंखों से ज्यादा समझते हैं क्योंकि हर कोई देख सकता है पर छूने की हिम्मत कुछ ही करते हैं इस बाहरी तारीफ से ऐसे बड़े लोग बनते हैं जो अपनी सोच पर भरोसा नहीं कर पाते और हर फैसले में किसी ऊंचे अधिकारी से मंजूरी ढूंढते रहते हैं जब आपका आत्ममूल्य सिर्फ बाहरी रेटिंग से तय होने लगता है तो आपको आसान सी इनाम और  सजा की व्यवस्था से भी कंट्रोल किया जा सकता है.


जो लोग बचपन से ही बाहरी तारीफ पर टिके रहते हैं वे बड़े  होकर भी तारीफ के लिए ही काम करते हैं असली मकसद भूल जाते हैं ।  स्कूल में शुरू हुआ परफेक्शनिज्म आगे चलकर नौकरी में घबराहट और रिस्क ना लेने की आदत से जुड़ जाता है वही बाहरी तारीफ की लत, सैलरी , करियर और नए मौके लेने की हिम्मत तक को प्रभावित करती है.  एक ऐसा नतीजा जिसे मैकियावेली शायद जनता को काबू में रखने के लिए खुद डिजाइन करते।  


मॉनंटेसरी शिक्षा इसका एक शानदार उल्टा उदाहरण है वहां बच्चों को अपनी मर्जी से सीखने और अंदर से प्रेरित होने पर जोर दिया जाता है इस पद्धति से कई क्रिएटिव बिजनेस लीडर निकले जैसे  ग्लरी पेज और सरगे ब्रेन ,  जेफ बेजोस , जमीवेल्स। मॉन्टेसरी वही चीजें मजबूत करता है जिनसे मैक्यावेली डरते अपनी सोच पर भरोसा और सच्चा आत्मसम्मान। 


सिर्फ नियम और बाहरी तारीफ ही नहीं पारंपरिक शिक्षा एक तीसरा तरीका भी इस्तेमाल करती है कंट्रोल करने के लिए और वह है ज्ञान को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ देना जब पढ़ाई को अलग-अलग बिखरी हुई चीजों में बांट दिया जाता है तो छात्रों के लिए पैटर्न समझना और चीजों को जोड़ना मुश्किल हो जाता है यह तरीका भी बहुत हद तक मैक्यावेली की सोच जैसा है जब ज्ञान से उसका संदर्भ हटा दिया जाता है तो लोग यह नहीं समझ पाते कि सत्ता के सिस्टम कैसे काम करते हैं और बड़े मुद्दों का मिलाकर हल निकालने में भी वे पीछे रह जाते हैं।  


मैकियावेली ने कहा था कि शासक को सिर्फ युद्ध और उसकी ट्रेनिंग पर ध्यान देना चाहिए वैसे ही बिखरा हुआ ज्ञान लोगों को मानसिक रूप से कमजोर बना देता है ताकि वे अपनी पढ़ाई में सीमित रह और आगे ना सोच सकें साथ ही ग्रेडिंग कर्व क्लास रैंकिंग और ज्यादा कंपटीशन यह सोच बढ़ाता है कि सफलता बहुत कम है और किसी एक को मिले तो दूसरे को नुकसान होगा। 


मैकियावेली ने सलाह दी थी कि शासकों को अपनी प्रजा में झगड़ा बनाए रखना चाहिए ताकि लोग आपस  में ना मिले और सत्ता के खिलाफ ना खड़े हो यह कंपटीशन का माहौल एक गहरा डर भी पैदा करता है फेल होने का डर याद करो जब फेल होने का डर था या कोई बेवकूफ सवाल पूछने में शर्म आती थी या गलती होने पर सबके सामने बेइज्जती महसूस होती थी.


स्कूल में गलतियां करने पर ज्यादा सजा दी जाती है बजाय इसके कि प्रयोग करने की हिम्मत को बढ़ावा दिया जाए इसका नतीजा यह होता है कि लोग रिस्क लेने से डरने लगते हैं और सेफ रास्ते पर ही चलते रहते हैं भले ही कोई नया तरीका ज्यादा अच्छा क्यों ना हो आज की तेजी से बदलती दुनिया में यह रिस्क ना लेना इंसान के लिए नुकसानदायक है लेकिन सिस्टम के लिए यह परफेक्ट है ताकि सब कुछ वैसा ही चलता रहे 


यही वजह है कि बड़े-बड़े नए सोच वाले लोग अक्सर पारंपरिक स्कूल में परेशान रहते थे रिचर्ड ब्रसन ने 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया था स्टीव जॉब्स ने भी कॉलेज बीच में छोड़ा लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि एक साधारण कैलग्राफी कोर्स ने उन्हें एप्पल का खूबसूरत डिजाइन बनाने का आईडिया दिया उनका सबक था आप डॉट्स को आगे देखकर नहीं जोड़ सकते सिर्फ पीछे देखकर ही समझ सकते हैं इनोवेटर्स ने शिक्षा के तीन जाल से बचकर दिखाया बेमतलब के नियम बाहरी तारीफ पर निर्भरता और बिखरा हुआ ज्ञान।  

यह सब दिमागी कंट्रोल के वही तरीके हैं जिन्हें मैक्यावेली तुरंत पहचान जाते लेकिन खुद मैकियावेली मानते थे कि असली शिक्षा बहुत जरूरी है खासकर उनके लिए जो लीडर बनना चाहते हैं।   प्रिंस में उन्होंने लिखा था कि शासक को इतिहास पढ़ना चाहिए क्योंकि इंसानी घटनाएं पहले जैसी ही दोहराई जाती हैं


ऐसी शिक्षा जो इतिहास राजनीति और सत्ता के खेल को सिखाती है वह इंसान की सोच को मजबूत करती है जिससे सही लीडरशिप बनती है ज्यादातर कामयाब लीडर इतिहास को गहराई से समझते हैं विंस्टन चर्चिल ने अपने इतिहास के ज्ञान से ब्रिटेन को वर्ल्ड वॉर दो में रास्ता दिखाया एंजेला मरकेल ने यूरोप के इतिहास  को समझकर नए संकटों को संभाला।  


आर्मी ट्रेनिंग और लीडरशिप स्कूल जानबूझकर कठिन हालात बनाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि सच्ची लीडरशिप मुश्किलों का सामना करने से आती है ना कि उनसे बचने से मैक्यावेली को लोग अक्सर सिर्फ निर्दयी मानते हैं लेकिन अगर ध्यान से पढ़ें तो वे इंसानी मनोविज्ञान को बहुत अच्छे से समझते थे उन्होंने लिखा था इंसान दो चीजों से चलता है प्यार और डर ऐसी शिक्षा जो आपकी इमोशनल इंटेलिजेंस बढ़ाए यानी लोगों को समझने और रिश्ते बनाने की क्षमता वही असली लीडर तैयार करती है जो हर परिस्थिति को समझदारी से संभाल सकते हैं तो असली सवाल यही है  क्या आपकी शिक्षा आपके अंदर की ताकत को बढ़ा रही है या उसे दबा रही है.


क्या यह आपको फॉलोअर बना रही है या लीडर मैक्यावेली ने लिखा था शेर खुद को जाल से नहीं बचा सकता और लोमड़ी खुद को भेड़ियों से नहीं बचा सकती इसलिए इंसान को लोमड़ी बनकर जाल पहचानना आना चाहिए और शेर बनकर डराना भी आना चाहिए इसका मतलब है कि आपको अपना आत्ममूल्य अपने अंदर से बनाना होगा ताकि आप दूसरों की तारीफ पर टिके ना रहें। 


थोड़ा सोचिए स्कूल की कौन सी आदत आपको सबसे मुश्किल लगी तोड़ने में अगर किसी की राय की कोई फिक्र ना होती तो आप क्या करते अपनी सोच पर भरोसा करना चाहे सबके खिलाफ  क्यों ना जाए वही एक खास लीडरशिप की खूबी है जिसे मैकियावेली भी पसंद करते हैं।  किरयेटिव लोग अपने मन से प्रोजेक्ट  बिना किसी रेटिंग की परवाह किए तो  वही उसका सबसे बड़ा कामयाब आईडिया बनजाता है,  क्योंकि उसमें उसे किसी की तारीफ की जरूरत नहीं होती।  


सोचो अगर आप भी अपनी अंदर की आवाज पर भरोसा करने लगे तो आपकी जिंदगी कितनी बदल सकती है यह अंदर का आत्ममूल्य एक और जरूरी आदत से जुड़ा है इंटरडिसिप्लिनरी सोच ,  मैकियावेली खुद इसमें माहिर थे उन्होंने मिलिट्री राजनीति इतिहास और मनोविज्ञान को मिलाकर एक पूरा सिस्टम समझा वे यही कहते कि अलग-अलग सब्जेक्ट्स के बीच की दीवार तोड़ो।

अगर आप इतिहास पढ़ते हो तो उसकी इकोनॉमिक्स भी समझो अगर साइंस पढ़ते हो तो उसकी नैतिकता एथिक्स भी सोचो ऐसी बड़ी सोच विकसित करो जो पारंपरिक स्कूल अक्सर आपसे छुपा लेता है यह सोच आपको सिस्टम को साफ देखने और चालाकी से काम करने में मदद करती है बिग पिक्चर लर्निंग जैसी वैकल्पिक शिक्षा पद्धतियां यही तरीका अपनाती हैं वहां बच्चे अपनी रुचि के हिसाब से इंटर्नशिप करते हैं और फिर क्लास में आकर  उन अनुभवों को अकादमिक पढ़ाई से जोड़ते हैं। 


नतीजा ज्यादा ग्रेजुएशन रेट बेहतर कॉलेज रिजल्ट और पढ़ाई में असली दिलचस्पी इसके साथ ही मैकियावेली यह भी सलाह देते कि इंसान को साहसी लेकिन सोच समझकर रिस्क लेना चाहिए उन्होंने कहा था हर काम में रिस्क होता ही है समझदार लोग रिस्क से नहीं डरते बल्कि उसे तौलते हैं और फिर निर्णायक कदम उठाते हैं स्टैनफोर्ड का डी स्कूल अपने छात्रों को फेलियर रिज्यूम  बनाने को कहता है ताकि वे अपनी गलतियों से सीखा हुआ सामने रख सकें इससे उनका डर कम होता है और वे बड़े प्रोजेक्ट करने की हिम्मत पाते हैं। 


व्यक्तिगत रणनीतियों से  आगे बढ़कर मैक्यावेली यह भी मानते कि असली बदलाव के लिए समूह में जागरूकता जरूरी है इसलिए पहले सोच बनाये और फिर उस जैसी सोच के समूह खोजे, समूह वो कर गुजरता है जो  अकेले कोई नहीं कर सकता।  व्यक्तिगत बदलाव जरूरी है लेकिन संस्थागत बदलाव भी उतना ही जरूरी है जैसे प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग में रट्टा लगाने की बजाय असली दुनिया की समस्याएं हल करने पर जोर दिया जाता है 


छात्र असली समस्याओं का हल ढूंढते हुए अपनी जिज्ञासा और आनंद बनाये रखे.  ऐसा मॉडल चलाने के लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग नया पाठ्यक्रम और भरोसा देना पड़ता है.   नतीजा यह होता है कि छात्र ज्यादा क्रिएटिव और क्रिटिकल सोचने वाले बनते हैं फिनलैंड का उदाहरण बताता है कि राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था भी ऐसा कर सकती है वहां के टीचरों को ज्यादा प्रोफेशनल आजादी मिलती है और कम पढ़ाने के घंटे होते हैं जिससे वे आपस में मिलकर योजना बना सकें और नए आईडिया लागू कर सकें उनके छात्र इंटरनेशनल टेस्ट में भी अच्छा स्कोर करते हैं और अपनी खुशी और मोटिवेशन भी ज्यादा बताते हैं 


फिनलैंड का मॉडल साबित करता है कि टीचरों पर भरोसा करना सख्त नियमों से बेहतर काम करता है पर इतना ही जरूरी है असेसमेंट सुधारना पुराने टेस्ट सिर्फ याद करने और आदेश मानने को नापते हैं,  लेकिन कैलिफोर्निया के एनविजन स्कूल्स जैसे प्रोग्राम पोर्टफोलियो का इस्तेमाल करते हैं जिसमें छात्र अपने काम का पैनल के सामने बचाव करते हैं इससे असली दुनिया के काम में लगने वाली स्किल्स साबित होती हैं और कॉलेज में कमजोर बच्चों की सफलता भी बढ़ती है यह सुधार दिखाते हैं कि शिक्षा  इंसानी क्षमता को कुचलने की बजाय निखार भी सकती है.


वे साबित करते हैं कि पढ़ाई मजेदार और सख्त दोनों हो सकती है अनुशासन और रचनात्मकता एक साथ चल सकते हैं साथ ही यह भी दिखाते हैं कि सत्ता के बारे में मैकियावेली की बातें सिर्फ कंट्रोल के लिए नहीं बल्कि लोगों को सशक्त बनाने के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती हैं मैकियावेली यह मानते कि असली आजादी सिस्टम से लड़कर नहीं बल्कि खुद का सिस्टम बनाकर आती है उन्होंने लिखा था समझदार शासक को उधार की ताकत पर भरोसा नहीं करना चाहिए यह बात आपकी सोच और सीखने पर भी लागू होती है खुद से पूछिए अगर आपका सीखना सिर्फ आपकी जिज्ञासा पर आधारित होता तो कैसा होता। 


सबसे आजाद सोच वाले लोग स्कूल के ढांचे से बाहर अपने सिस्टम बनाते हैं वे सफलता को नंबर या डिग्री से नहीं बल्कि हल की गई समस्याओं , सीखी गई स्किल्स और पूरे किए गए प्रोजेक्ट से मापते हैं , सोचो आपने आखिरी बार कब कुछ सिर्फ अपनी मर्जी से सीखा था किसी मजबूरी से नहीं , साथ ही अपनी नेचुरल सीखने की स्टाइल पहचानो क्या आप सबसे अच्छा प्रयोग करके सीखते हैं , या दूसरों को सिखाकर या कुछ बनाकर।  अपनी ग्रोथ का असली तरीका ढूंढो और स्टैंडर्ड तरीकों से खुद को आजाद करो सबसे जरूरी बात अपना असली मकसद खुद तय करो समाज से लिया हुआ नहीं अगर स्टेटस इज्जत या तुलना की कोई फिक्र ना होती तो आप क्या करना चाहते। 


अक्सर हमारे सबसे गहरे सपने समाज की परतों में दबे होते हैं और यहां एक दिलचस्प विरोधाभास है जिसे मैकियावेली भी मानते हैं जितना आप सीखते हो कि सिस्टम आपको कैसे आकार दे रहा है उतना ही आप उसके कंट्रोल से बच सकते हो एक शासक को लोमड़ी बनकर जाल पहचानना चाहिए और शेर बनकर भेड़ियों को डराना चाहिए इसका मतलब यह है कि असली शिक्षा शायद पढ़ाई के कंटेंट में नहीं बल्कि सिस्टम को समझने के मौके में छुपी होती है. यह जागरूकता दिखावे के पीछे छुपे ढांचे को देख पाने की क्षमता वही चीज  है जिसे सत्ता का सिस्टम कभी नहीं चाहता कि आप विकसित करें।


मेरे अपने स्कूल के समय में मुझसे कहा जाता था कि मैं बहुत सवाल पूछता हूं मेरी जिज्ञासा परेशान करने वाली है जब मैंने असाइनमेंट से अलग सोचकर कुछ लिखा तो उसके नंबर काट दिए गए कई साल तक मुझे लगा कि मुझ में ही कोई कमी है लेकिन आज जब मैंने मैकिया वेली को पढ़ा तब समझ आया कि सवाल पूछने सीमा से आगे सोचने की मेरी आदत ही मेरी सबसे बड़ी ताकत थी.

 

वही ताकत जिसे सिस्टम दबाना चाहता था आज हम एक बहुत गहरे मोड़ पर खड़े हैं हमारी शिक्षा व्यवस्था जो औद्योगिक युग के लिए बनाई गई थी आज भी उन्हीं पुराने मूल्यों को पकड़े बैठी है जबकि आज की दुनिया में क्रिएटिविटी आजाद सोच और मिलकर काम करने की क्षमता आज्ञाकारी बनने से कहीं ज्यादा जरूरी है.


असल सवाल जो मैकियावेली भी आपसे पूछते , यही है जब आपको यह पूरा पैटर्न दिख गया है तो अब आप क्या करोगे क्या आप बस ग्रेड और तारीफ के पीछे भागते रहेंगे वही चीजें जो अब आपकी वयस्क जिंदगी में नए नाम से चल रही हैं क्या आप नियम मानते रहेंगे बिना उनकी वजह पूछे क्या आप गलतियां करने और मजाक का डर पाले रहेंगे या आप इन आदतों को एक सीखे हुए रिएक्शन की तरह पहचान कर इन्हें बदलेंगे साहस रिस्क लेने और जिज्ञासा से मैकियावेली की सबसे गहरी बात  यही है कि असली व्यक्तिगत ताकत तभी आती है जब आप सच्चाई को साफ देख पाते हैं। 


उन्होंने चेतावनी दी थी लोग आंखों से ज्यादा समझते हैं हाथ से कम लेकिन जो लोग दिखावे से आगे महसूस कर सकते हैं वही समाज में असली बदलाव ला सकते हैं अगर आप खुद को इन पैटर्न में पहचानते हैं और इससे आजाद होना चाहते हैं तो इन विचारों को किसी और के साथ भी बांटें एक सिस्टम जो इंसानी संभावनाओं को दबाने के लिए बना है उसके खिलाफ सबसे बड़ी बगावत यही है उन संभावनाओं को दूसरों में जगाना मैकिया बेली ने सदियों पहले समझ लिया था और यह बात आज भी सच है असली ताकत अंधी आज्ञाकारिता से नहीं आती बल्कि अपनी सोचने की शक्ति से आती है यही एक स्किल स्वतंत्र सोचने की क्षमता आपको हर तरह की चालबाजी से बचा सकती है और यही तोहफा है जिसे मैकियावेली भी सबसे ज्यादा सम्मान देते हैं



दुर्वेश

No comments:

Post a Comment