झूठ बोलना सीखें
सच बोलना आपको कमजोर बना सकता है। ईमानदारी आपको नुकसान पहुंचा सकती है। पारदर्शिता सब कुछ खुलकर बताना आपको दूसरों की चालों का शिकार बना सकती है। यह वो कड़वी सच्चाइयां हैं जिनके बारे में ज्यादातर मोटिवेशनल गुरु बात करने से डरते हैं। लेकिन आज हम इन बेरहम सच्चाइयों का सामना करने वाले हैं। सोचिए चुनाव लड़ रहे दो नेताओं को। एक है X जो बिल्कुल सच बोलता है। वह आने वाली मुश्किलों को खुलकर बताता है। झूठे वादे नहीं करता और मानता है कि सच बोलकर ही इज्जत मिलेगी। दूसरी तरफ है y जो खेल के असली नियम समझता है। वह लोगों को वही सुनाता है जो वह सुनना चाहते हैं। सच्चाई को थोड़ा मरोड़ कर आसान और मजेदार तस्वीर दिखाता है। तो जब चुनाव का दिन आता है
जीत किसकी होती है?
Y की !
क्यों?
क्योंकि लोग सच पर वोट नहीं करते। वो उस कहानी पर वोट करते हैं जिस पर वे यकीन करना चाहते हैं। अब आप सोच रहे होंगे क्या झूठ बोलना गलत नहीं है? क्या ईमानदारी एक अच्छाई नहीं मानी जाती? लेकिन सोचिए क्या आपका यही सख्त नैतिक रवैया मोरल रिगडनेस ही तो आपको ग्रेटनेस यानी कामयाबी से दूर नहीं रख रहा। क्या दुनिया के सबसे कामयाब लीडर्स जिनको आप मानते हैं आदर्श मानते हैं। उन्होंने कुछ ऐसा नहीं समझा जो आप अब तक नहीं समझ पाए। आज हम उन सख्त और कड़वे सबकों पर बात करेंगे जो सत्ता, चालाकी और रणनीतिक धोखे, स्ट्रेटेजिक डिसेप्शन से जुड़े हैं। और क्यों इतिहास के विजेता अक्सर सबसे ईमानदार लोग नहीं होते। यह सफर आसान नहीं होगा। यह वो मीठी-मीठी सलाह नहीं है जो सोशल मीडिया पर मिलती है। लेकिन यह शायद वही है जो आपको सुनना चाहिए।
चलिए शुरू करते हैं मैक्यावेली के सबसे मशहूर और विवादास्पद विचार से जो उसने डेड प्रिंस में लिखा था। अगर आप समझा नहीं बन सकते तो डराया जाना बेहतर है बनिस्बत प्यार किए जाने के। यह बात आजकल की लीडरशिप किताबों और कोचिंग से बिल्कुल उलट है जो हमसे कहती हैं लीडर को दयालु होना चाहिए। सबको जोड़कर रखना चाहिए। इंस्पायर करना चाहिए। मैकियावेली इसे खतरनाक भोलेपन नाइफटी की निशानी मानता था। उसका मानना था कि सत्ता स्वभाव से ही स्वार्थी, एहसान, फरामोश और बेईमान होती हैं। किसी सत्ता की चाहत रखने वाले नेता पर आंख बंद करके भरोसा करना बेवकूफी है।
अगर लोग आपके वादे नहीं निभाएंगे तो आप क्यों निभाएं? यही इंसानों की सच्चाई पर आधारित था मैकिया हवेली का पूरा विचार। उसके हिसाब से बहुत ज्यादा ईमानदारी कोई अच्छाई नहीं बल्कि आपकी कमजोरी है। अब यह आपके लिए क्यों जरूरी है? क्योंकि चाहे आप बिजनेस चला रहे हो, सैलरी बढ़ाने की बातचीत कर रहे हो या अपनी सोशल लाइफ संभाल रहे हो, हर जगह एक पावर रिलेशनशिप होता है। और उस रिश्ते में अगर आप सारी सच्चाई खोल दें तो वह रणनीति नहीं होगी बल्कि सरेंडर होगा। जरा याद कीजिए जब आपने किसी डील में पूरा सच बताया था तो क्या सामने वाले ने भी वही ईमानदारी दिखाई या उसने आपकी पारदर्शिता का फायदा उठाया।
अगर आप आम लोगों जैसे हैं तो शायद आपने यह सबक मुश्किल तरीके से ही सीखा होगा। लेकिन शायद अब भी आपके मन में यह डर होगा। क्या धोखा देना सही है? तो मैं आपसे एक सवाल पूछता हूं। क्या आपने कभी किसी को कहा कि उनकी हेयर कट अच्छी लग रही है? जबकि अंदर से आपको बिल्कुल पसंद नहीं थी? क्या आपने कभी किसी दोस्त के आईडिया की तारीफ जरूरत से ज्यादा कर दी? ताकि उसका हौसला बना रहे। क्या आपने कभी अपने असली जज्बात छुपाए ताकि झगड़ा ना हो? तो बधाई हो। आप पहले से ही एक तरह का मैकियावेली व्यवहार अपना रहे हैं। आप सच का चुनाव सोच समझ कर रहे हैं ताकि हालात संभाले जा सकें।
फर्क सिर्फ इतना है कि आप यह सब रक्षा के लिए कर रहे हैं यानी शांति बनाए रखने के लिए। मैकियावेली कहता इसे हमला करने के लिए इस्तेमाल करो यानी अपने मकसद पूरे करने के लिए। जब हम इस पावर के उलझे हुए खेल में आगे बढ़ते हैं तो मैकियावेली एक शानदार उदाहरण देता है। एक लोमड़ी बनो ताकि चालों को पहचान सको और एक शेर बनो ताकि भेड़ियों को डरा सको। यहां लोमड़ी का मतलब है चालाकी और रणनीति और शेर का मतलब है ताकत और डर पैदा करना। अगर आप सिर्फ शेर बनेंगे तो लोग आपको आसानी से जाल में फंसा लेंगे। अगर आप सिर्फ लोमड़ी बनेंगे तो आप इतने कमजोर होंगे कि अपनी रक्षा नहीं कर पाएंगे।
एक सच्चा मास्टर वही है जो दोनों को मिलाकर इस्तेमाल करता है। नेपोलियन बोनापार्ट ने इस सिद्धांत को पूरी तरह दिखाया। एक जनरल के रूप में उसने दुश्मनों को धोखा दिया। अपने मूवमेंट्स छुपाए। नकली हार दिखाकर दुश्मनों को जाल में फंसाया। यह था लोमड़ी वाला खेल। लेकिन नेपोलियन को यह भी पता था कि कब शेर की तरह गर्जना है। जब वो जेल से निकल कर वापस फ्रांस आया और बिना एक भी गोली चलाए सत्ता वापस ले ली। सिर्फ अपनी छवि और डर के दम पर। ज्यादातर लोग सिर्फ एक ही तरीका चुनते हैं। या तो पूरी पारदर्शिता, साफगोई या सिर्फ ताकत या तो चालाकी या फिर सीधी जोर जबरदस्ती।
लेकिन सबसे कामयाब लीडर्स हालात के हिसाब से इन तरीकों को बदलते रहते हैं। जरा स्टीव जॉब्स को याद कीजिए। उसका जो रियलिटी डिस्टॉर्शन फील्ड कहा जाता था वो एकदम लोमड़ी की तरह था। लोगों को यकीन दिलाना कि नामुमकिन भी मुमकिन हो सकता है। अपनी टीम की सीमाओं को तोड़ देना। साथ ही जब जरूरत पड़ी तो वह शेर की तरह सख्त और डराने वाला भी बन जाता था ताकि उसका मिशन पूरा हो सके। असल में सबसे जरूरी चीज है कॉन्टेक्स्ट यानी हालात को समझना। जब दांव बहुत बड़ा हो जिंदगी मौत का सवाल या बहुत बड़ी बिजनेस डील तब पूरी ईमानदारी एक ऐसी लग्जरी है जिसे आप अफोर्ड नहीं कर सकते।
लेकिन अपने सबसे करीबी लोगों के साथ ईमानदारी वही भरोसा बनाती है जिसकी आगे चलकर आपको जरूरत होगी। शायद मैं मैकियावेली का सबसे बेचैन कर देने वाला विचार यह था। दिखावा बनाम असली हकीकत। उसने लिखा हर कोई वही देखता है जो आप दिखाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि आप अंदर से असल में कैसे हैं। उसका कहना था एक राजा को अच्छाई की एक्टिंग आनी चाहिए। असल में अच्छा होना जरूरी नहीं। जैसे जूलियस सीजर को देखिए। उसने बाहर से दिखाया कि वह रोम के लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करता है। लेकिन अंदर ही अंदर उसने अपनी ताकत मजबूत कर ली।
उसने पब्लिक में ताज लेने से मना कर दिया। लेकिन पर्दे के पीछे सीनेट को कमजोर करता रहा। लोगों को तब भी लगता रहा कि उनका गणराज्य जिंदा है। जबकि असल में वह एक साम्राज्य बन चुका था। आज भी यही देखिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरर जो अपनी लाइफ को परफेक्ट दिखाते हैं पर असली परेशानियां छुपाते हैं। राजनेता जो फैमिली वैल्यूज की बातें करते हैं। लेकिन पर्दे के पीछे कुछ और करते हैं या कंपनियां जो पर्यावरण की बातें करती हैं। लेकिन असल में शॉर्टकट लेती हैं। क्या यह धोखा है? हां। क्या यह असरदार है? हां बिल्कुल। तो क्या इसका मतलब है कि आपको पूरी तरह नकली बन जाना चाहिए? नहीं।
रणनीतिक असंगति, स्ट्रेटेजिक इनकंसिस्टेंसी। आपको वही रूप दिखाना चाहिए जो आपके लक्ष्य के लिए सही हो और धीरे-धीरे जब भरोसा बने तब अपनी और बातें सामने लानी चाहिए। जैसे पहली डेट पर आप अपनी सारी कमजोरियां थोड़ी ना बता देते हैं। पहले अपनी अच्छी बातें ही सामने रखते हैं। यह झूठ नहीं है। यह सेल्फ प्रेजेंटेशन है। काम की जगह भी आप अपने रिज्यूुमे में हर कमजोरी थोड़ी लिखते हैं। आप अपनी ताकतें बताते हैं। यह रणनीति है। धोखा नहीं। मैकियावेली इससे भी आगे जाता है। कभी-कभी जो चीज पहली नजर में बेरहम लगती है, वही आगे चलकर ज्यादा दयालु साबित होती है।
अगर आप दोनों नहीं बन सकते, तो डराया जाना बेहतर है बनिस्बत प्यार किए जाने के। उसने कहा था क्योंकि प्यार जिम्मेदारी पर टिका होता है जिसे लोग जल्दी तोड़ देते हैं जब उनका फायदा होता है। लेकिन डर एक सज्जा के डर से बना रहता है और वह जल्दी नहीं टूटता। नेपोलियन ने इस बात को फ्रांस में क्रांति के बाद लागू किया। उसकी सख्त पकड़ और सत्ता का केंद्रीकरण पहली नजर में कठोर लगा होगा। लेकिन इसने एक बिखरते देश को स्थिर कर दिया और बड़ी तबाही से बचा लिया।
एक आज का उदाहरण सोचिए। आप किसी कंपनी में मैनेजर हैं और कोई कर्मचारी लगातार खराब काम कर रहा है। आप सख्त बात करने से बच सकते हैं। हल्कीफुल्की सलाह देकर उम्मीद लगा सकते हैं कि वह सुधरेगा। वह उस समय दयालु लगेगा या आप सीधे बात कर सकते हैं। साफ नियम तय कर सकते हैं और जरूरत पड़ी तो नौकरी से निकाल सकते हैं। यह पहली नजर में बेरहम लगेगा। पर लंबी अवधि में वो नरम रवैया टीम का मनोबल तोड़ सकता है। आपके बिजनेस को नुकसान पहुंचा सकता है और बाद में बड़ी छंटनी करनी पड़ सकती है। वो थोड़ी सी सख्ती असल में ज्यादा लोगों का भला कर सकती है।
विंस्टन चर्चिल ने भी यही समझदारी दिखाई। जब ब्रिटेन को नाजी, जर्मनी का सामना करना पड़ा तो उसने सच्चाई को छुपाया नहीं। उसने देश से कहा खून, पसीना, आंसू और मेहनत लगेगी। यह सख्त सच था लेकिन लोगों को असली कुर्बानी के लिए तैयार किया। झूठी उम्मीद देने के बजाय मैकियावेली का जो उसूल था
अंत सही हो तो साधन सही माने जाते हैं। उसे अक्सर लोग तोड़ मरोड़ कर समझते हैं। उसका मतलब यह नहीं था कि आप किसी भी हालत में कुछ भी कर सकते हैं। उसका मतलब था जब दांव बहुत बड़ा हो और कोई कोर्ट या सिस्टम ना हो जो आपको रोक सके तब आपको अपने काम का हिसाब नतीजों से लगाना चाहिए ना कि उसके तरीके से।
जूलियस सीजर का उदाहरण लीजिए। जब उसने रोबिकॉन नदी पार की तो रोमन कानून तोड़ा। तकनीकी रूप से देखा जाए तो यह देशद्रोह था। लेकिन उसका मानना था कि अगर उसने अपने दुश्मनों को रोका नहीं तो वे उसकी सारी मेहनत बर्बाद कर देंगे। और पीछे मुड़कर देखें तो उसके इसी कदम से पैक्स रोमानिया नाम का शांति का दौर शुरू हुआ। या अब्राहम लिंकन को देखिए जिसने सिविल वॉर के दौरान हैबियस कॉर्पस को सस्पेंड कर दिया। यह संविधान के लिहाज से सवालों के घेरे में था। लेकिन उस समय अमेरिका को टूटने से बचाने के लिए यह जरूरी कदम साबित हुआ। सच्चा मैकियावेली सवाल यह है आप किस बड़े भले ग्रेटर गुड के लिए लड़ रहे हैं?
अगर आपके मकसद सिर्फ खुद का फायदा उठाना है तो मैकियावेली की रणनीति आपको एक धोखेबाज मैनपुलेटर बना देगी। लेकिन अगर आपका मकसद दूसरों के लिए भी कुछ अच्छा बनाना है तो वही तकनीकें आपको एक रणनीतिकार स्ट्रेटजिस्ट बना देंगी। मैकियावेली यह भी जानता था कि आपकी साख रेपुटेशन ही सबसे बड़ा हथियार है और इसे बचाने के लिए हर बात खुलकर बताना जरूरी नहीं है। जरूरी है कि आप लगातार अच्छे नतीजे दिखाते रह। उसने लिखा लोग ज्यादातर वही देखते हैं जो आंखों के सामने हैं। ना कि वो जो पर्दे के पीछे किया गया। यानी लोग आपके तरीकों से कम और आपके नतीजों और दिखावे से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
आज भी यही होता है जैसे Apple अपने प्रोडक्ट्स की सिर्फ उतनी ही बातें दिखाता है। जिससे लोगों में दिलचस्पी बढ़े। सरकारें भी जानबूझकर कुछ बातें लीक करती हैं या अपनी छवि संवारती हैं। यह सारी रणनीतियां इसलिए काम करती हैं क्योंकि वह मनचाहा नतीजा देती है। ना कि इसलिए कि वह बिल्कुल पारदर्शी होती हैं। बिल्कुल। आपकी साख तब गिरती है जब लोग देख लेते हैं कि आपका धोखा सिर्फ अपने मतलब के लिए था और सबके लिए नुकसानदायक था। उसकी यह भरोसेमंद टीम ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गई। आपके लिए भी यही सबक है।
अपने सच्चे साथियों, पार्टनर और करीबी दोस्तों के साथ ईमानदार रहें क्योंकि उनका भरोसा ही आपकी सबसे बड़ी ताकत है और वह भरोसा सिर्फ ईमानदारी से बनता है। इसका विरोधाभास यही है। भीड़ के साथ रणनीतिक धोखा लेकिन अपने चुनिंदा लोगों के साथ पूरी सच्चाई यही कॉम्बिनेशन अपराजय होता है। आखिर में मैं यह नहीं कह रहा कि आप हमेशा झूठ बोले। मैं कह रहा हूं रणनीतिक समझ रखिए। कभी पूरी ईमानदारी फायदेमंद है तो कभी नुकसानदायक भी हो सकती है। एक परफेक्ट दुनिया में पूरी ईमानदारी सबसे सही होती। लेकिन हमारी दुनिया परफेक्ट नहीं है। इसलिए क्या कितना और कब बताना है? अगर यह आप समझ पाए तो आप अपने लिए और अपनों के लिए कुछ बड़ा बना सकते हैं।
तो खुद से पूछिए। आप किन लक्ष्यों के लिए सच में लड़ना चाहते हैं? कौन सी रणनीतियां आपको वहां तक पहुंचा सकती है? कब थोड़ा बहुत छुपाना भी सही है? क्योंकि उससे बड़ा फायदा होगा। मैकियावेली का आखिरी सबक बिल्कुल साफ है। सत्ता अपने आप में ना अच्छी होती है ना बुरी। वो सिर्फ उसके इरादे को बड़ा बनाती है जिसके हाथ में वह है। अगर आप इसका इस्तेमाल दूसरों को ऊपर उठाने, मदद करने या कुछ बनाने में करें तो हां मैकियावेली की रणनीतियां भी नैतिक एथिकल बन सकती हैं।
अगर इस लेख ने आपकी सोच को नया नजरिया दिया हो तो इसे उस इंसान के साथ शेयर करें जिसे यह कड़वी सच्चाई सुनने की जरूरत है, याद रखिए इस दुनिया में जहां सदाचार को अक्सर आपके हौसले को दबाने के हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। थोड़ा सा मैकियावेली सोच अपनाना ही शायद वही चीज है जो आपको जीत दिला सकती है। बिना अपनी आत्मा खोए।
दुर्वेश
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