खंण्ड- 15 पुनर्जन्म
किशोर जेसे तुम्हे पता है की पेड पोधों में भी
जीवन होता है. उनमे भी भावनाये होती है उन्हे भी दर्द होता है. वो भी खुश होते है.
उन्हे कोई भी आसानी से काट देता है, उखाड देता है. जानवर उनकी पत्तीयों को खा जाते
है. हर मौसम का सामना एक ही जगह रह कर करते है. जब जंगल मे आग लगती है और सब जानवर
वंहा से भाग जाते है वो उसी जगह खडे रहने को मजबूर होते है.
किशन
... उसके बाबजूद उन्होने अपने को ज्यादा नही बदला है.
किशोर,
इनमे से ज्यादतर को पता ही नही होता की इसके परे भी बहुत सी संभावनाये है. वो बार
बार पेड का ही जीवन चुनते है.
हां
किशन... उसके बाबजूद करोडो सालों से पेड पौधे है.
यह
सच है की उनके पास जानवरों की तरह विकिसित इन्द्रीयां नही है उसके वाबजूद वो जानते
है की कौन उनके दोस्त है और कोन दुश्मन. वो अपने सीमित दायरे मे ही अपने विकास की
संभावनाओ को खोजते रहे. अपने को विकिसित करते
रहे.
किशोर,
कुछ ही होंगे जिन्होने अपनी चेतना मे क़्वाटंम जम्प लिया होगा और प्राणी जगत का
हिस्सा बन गये होंगे.
पृथ्वी
पर जीवन को समय ने बांध रखा है. पर चेतना समय के बंधन से आजाद है.
किशोर
अगर तुम्हे मौका मिले तो तुम कोन सा पेड बनना
चाहोगे.
मै
और पेड केसी बातें कर रहे हो, वो भी कोइ जीवन है. एक
जगह खडे खडे सारा जीवन निकाल दो. मै क्या कोइ भी मानवीय चेतना एसा जीवन नही
चाहेगी.
नही
एसा नही है किशोर, एसी बहुत सी चेतानये जो निम्न से निम्न होती गई. जड हो गई,
विलीन हो गई या फिर किसी ओर चेतना मे समा गई.
तुम्हारी
कल्पना की दुनिया और भौतिक दुनिया मे एक ही अतंर है. भौतिक जगत मे चेतनाये पदार्थ
के द्वारा एक दूसरे पर प्रभाव डालती है. भौतिक जगत मे चेतना पदार्थ से जुड जाती
है. जब तक वो पदार्थ खत्म ना हो जाये उस से वो अलग नही हो पाती. वो उस पदार्थ का
गुण धर्म बन जाती है. जब भी दो पदार्थों
का आपस मे जुडते है तो एक नये पदार्थ की रचना करते है. उसका नया भौतिक लक्षण होता
है. पर जेसे ही वो अलग होते है वो अपनी पूर्व स्थति मे आ जाते है.
किशन
धरती पर हमारा शरीर सामूहिक चेतना का प्रणाम होता है. सामूहिक चेतना मे शरीर का हर सेल, हर अंग की भूमिका होती है. वो एक
दूसरे से संवाद स्थापित कर सामूहिक चेतना का निर्माण करते है. जन्म लेने के बाद
एसे शरीर के पास अपना कोइ अनुभव नही होता. समय के साथ वो अपने माता पिता और समाज
से सीखता जाता है. वो अपने माता पिता की भाषा सीखता है. जीने के गुर सीखता है,
समाज और गुरू जनों से जीने के तौर तरीक
सीखता है वो अपने आस पास के पर्यावरण से सीखता है. उसका चेतन मन सभी अनुभवों को
दर्ज करता रहता है, जो अनुभव उसके जीवन के
लिये खतरा होते है उसे उसका अवचेतन मन एक
टेम्पलेट की तरह दर्ज करता है जिससे वो अगली बार खतरे को पहचान कर अपना बचाव कर
सके.
पर
यह सब तो शरीर सीख रहा है वेसे ही जेसे किसी रोबोट को प्रोग्राम किया जा रहा हो,
एसे मे इसे पुनर्जन्म केसे कह सकते है.
सही
कहा किशोर इसे पुनर्जन्म नही कह सकते.
शरीर
का पुनर्जन्म केसे हो सकता है उसका तो मात्र जन्म होता है.
किशन आप मुझे फिर से कंन्फयूस कर रहे हो.
तो
फिर पुनर्जन्म, क्या है. और वो कब और केसे होता है. पुनर्जन्म को
लेकर मेरे मन मे शुरू से ही जिज्ञासा रही है
किशोर
अगर शरीर चाहे तो रोबोट की तरह शरीर अपनी सिमित चेतना के आधार पर अपना जीवन गुजार
सकता है जरूरी नही की हर शरीर पुनर्जन्म
का कारण बने. समाज से वो धीरे धीरे सब कुछ सीख जाता है. सच तो यह है की 99% शरीर
मे पुनर्जन्म जेसा कुछ नही होता है. वो
जन्म लेते है और मृत्यु के बाद उनकी चेताना भी विलीन हो जाती है. खो जाती
है.
समझा एसे शरीरों के उपर चर्वाक के सिद्धांत लागू होता है की
जीवन के खत्म होते ही सब कुछ समाप्त हो जाता है. कुछ नही बचता. मिट्टी का शरीर
मिट्टी मे मिल जाता है. चेतना शरीर के साथ ही समाप्त हो जाती है.
पर कुछ शरीर अजर अमर जीवत्मा को धारण करते है वो अकसर अपने आस
पास के लोगों से हटकर होते है. .कुछ बातों के लिये जुनूनी होते है. लीक से हटकर
चलते है. उनके फेसले उनके कर्म बाकी लोगों के लिये अचंभा होते है. उनको देखकर ही
लगता है की जेसे वो कुछ करने के लिये ही पैदा हुये है. वो समाज को नई सीख दे जाते
है.
किशन यह सब तो आप अच्छी जीवत्माओं के बारे मे बता रहे हो , पर
उनका क्या जिनके फेसले ह्जारो के कत्ले आम का कारण बनते है. हर कोइ जो भी करता है
अपनी समझ के अनुसार सही कर रहा होता है. ..बाद मे आने वाले उसकी समिक्षा अच्छे और
बुरे की तरह करते है.
यंहा तक की तुम लोगो ने कृष्ण के कार्यों को भी एसी ही नजरो से
देखा है कुछ लोग उन्हे बुरा तो कुछ लोग अच्छा समझते थे.
चेतनाये
एक दूसरे से जुड सकती है. एक दूसरे से अलग हो सकती है. एक दूसरे पर हावी हो सकती है.
किशन
इसका मतलब यह हुआ की जब मे धरती पर फिर से जन्म लेना चाहूगा तो जिस शरीर के साथ भी
अपनी चेतना जोडूगा तो,उसने पहले सी उसकी अपनी चेतना भी होगी.
सही
कहा ...पर वो चेतना बहुत ही निम्न स्तर की
होती है पूरी तरह शरीर केन्द्रित रोबोट की तरह निशिचित क्रम मे काम करने के
लिये. हां एसे शरीर के लिये असल जीवात्मा
प्रेरणा का काम करती है. अगर तुम्हारी चेतना तीव्र हुई तो उसमे मोजूद चेतना
तुम्हारा अनुसरण करेगी, इसलिये अधिंकांश चेतनाये नव जात शरीर के पसंद करती है
क्योकी वो उस गीली मिट्टी की तरह होती है जिसे कुम्हार मन चाहा रूप दे पाता है.
एसे
शरीर बहुत तेजी से सीखते है. उनका व्यवाहर बाके सब से लग होता है. उन्हे देखक्र
लगता है जेसे वो किसी ओर दुनिया से हों. अपनी उअमर से आगे की बाते करते है.
किसी
बडे की चेतना पर हावी होने पर उसमे पहले से मोजूद चेतना जो समय के साथ मजबूत हो
जाती है उसके साथ तालमेल नही कर पाती और अंतर विरोध होता है ...उसे कई बार प्रेत
बधा माना जाता है.
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