अकसर हम एसे दो राहे पर होते है जब दूसरा सही और हमारा गलत हो . जब हमे अपनों मे और जो सही है उसमे किसी एक को चुनना होता है. आज अधिकांश अपनों को ही तो चुन रहे है...चाहे वो कितना ही गलत क्यों ना हो, अगर अपना है तो उसके गुनाह नजर अंदाज कर उसे ही चुनो. आज किसी भी राजनैतिक दल को देखो उसमे केसे लोगो की भरमार है , और किस बेशर्मी से वो अपनो का हर गुनाह नजरंदाज कर देते है। इस तरह उन्होने लोकतंत्र को मजाक बना दिया, चुनाव जात, धर्म और परिवार के नाम पर ही तो लड़ा जा रहा है।
हमने बचपन मे प्रेमचंद की पंचपरमेश्वर पढी थी. उस कहानी में ..जुम्मन शेख अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। ...पर अलगू चौधरी ने सच का साथ दिया. उसका पडोसी और दोस्त उससे वफदारी की उम्मीद लगा बैठा था पर अलगू ने वफादारी की जगह सच का साथ दिया और निर्णय जुम्मन शेख के विरूध दिया. मुझे लगता है, अलगू चौधरी सही थे। आज हमे एसे लोगो की सख्त जरूरत है.।
आज स्टेट आप से अंध वफादारी की उम्मीद करता है, वो चाहता है की आप उसके हर अच्छे और बुरे नियम-कानून को अंध भक्त की तरह पालन करे। आपका नेता आपसे अंध वफादारी की उम्मीद करता है उसके लिए धर्म, समाज और जात की दुहाइ देता है. यह जाने बिना की जिस जात भाई नेता की हम तरफ दारी कर रहे है वो किस के प्रति वफादार है।
सच तो यह है की डर और लालच हमारी वफादारी तय कराते है, तब वो होता है जो आज हम सब के साथ हो रहा है । इतिहास मे दर्ज सारे युद्ध इसी वफादारी का ही तो प्रणाम है। कोई अपने धर्म के प्रति इतना वफादार हो गया की उसे स्लीपर सेल बनने मे कुछ गलत नजर नही आता.।
कुछ दिन पहले गरीबी का विज्ञान पढ रहा था. उसमे एक मजेदार बात कही गई की अमीर अगर अपनी संपत्ती का थोडा सा भाग दान पुण्य करता रहे और उसके भांड उसे बढा चढाकर लोगों को बताते रहे तो एसे अमीर के विरूध गरीब कभी विद्रोह नही करेगा. बल्की उसे अपना नेता मानकर उनकी पूजा करेगा उनकी हर बात मानेगा. यह एसा ही नियम है जिसे हर समझदार अमीर और ताकतवर आदमी पालन करता आ रहा है. जरूरत पढने पर एसे अमीरों के लिये गरीब मर मिटेगा पर उसका बुरा नही होने देगा. क्योंकी एसे अमीर की इमेज एक दानी और धार्मिक की होती है.
काल्पनिक संकट दिखाकर आम जनता को अपने छुपे हुये उद्देशय के लिये इस्तेमाल करते रहते है. जरूरत पडी तो संकट पैदा कर दिया। सत्ता के लिये उनकी भावनाओं को इस कदर भडकाते है की वो मर मिटने को तैयार हो जाते है. नेता आग भडका कर सही समय पर वंहा से किस तरह खिसकना है वो अच्छी तरह जानते है
बाजारवाद के इस युग में जब सब कुछ बिकाउ है. जो पहले से ताकतवर है वो और ताकतवर होते जा रहे है. मुक्ती भले ही बलिदान मांगती है. जो इसके लिये तैयार हो गया उसे भी ये लोग केसे अपने मतलब के लिये इस्तेमाल करना है अच्छी तरह जानते है. हम मे से 85% अपने दिमाग का इस्तेमाल इनके हिसाब से घटनाओं का विशलेषण करने मे लगाते है. असल मे आज हमारी कोइ स्वतंत्र सोच नही बची. .
कोइ स्वतंत्र सोच पैदा करता भी है तो एसे लोगों को वो राष्ट्र द्रोही, नकस्लवादी और आंतक वादी घोषित कर देते है सत्ता उन्हे “Enemy of State” घोषित कर देती है. असल मे वफादारी एक सोची समझी समाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसे पुरातन काल से ताकतवर कमजोर के लिए इस्तेमाल करता है.
इस तरह डर और लालच के कारण जब ,समाज की चेतना अपने न्यूनत्म स्तर पर होती है तो एसा समाज खुद अपना दुशमन बनकर पूरी तरह अपने को बरबाद कर लेते है।
इससे बचने एके लिए ही तो, बुद्ध हमसे ज्ञान और विज्ञान के सहारे अपनी चेतना का विस्तार करने की बात करते है,और फिर जो सबके लिये सही हो उस रास्ते को अपनाने की बात करते है. जेसे-जेसे हमारी चेतना का विकास होता है उसके साथ "मै" का विस्तार होता है, बुद्ध का समाज सम्पूर्ण विश्व है, वो जगत के सारे मानव, जीव, जन्तु पेड़ पौधो को उसमे शामिल कर लेते है। ...सारा विश्व "मै " बन जाता है.
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